आतंकी बुरहान की सुरक्षा बलों के द्वारा मौत के बाद एक बार फिर पाक सेना तथा आइएसआइ ने कश्मीर घाटी को हिंसा की आग में उसी प्रकार झोंकने का प्रयास किया है जिस प्रकार पाक समर्पित तालिबान ने अफगानिस्तान में किया था। परन्तु यहां पर वे सफल नहीं होंगे क्योंकि पाक अधिग्रहित कश्मीर, ब्लूचिस्तान तथा पाकिस्तान में शिया, अहमदिया तथा अन्य अल्पसंख्यकों पर ढाये जाने वाले जुल्मों सितम की रोशनी में कोई भी कश्मीरी बुद्धिजीवी इसको अपना सहयोग नहीं देगा।
मेरे इस लेख का मुख्य उद्देश्य जहां देशप्रेम है वहीं पर मानवता के नाते कश्मीर भी जनता को उनके अच्छे बुरे के बारे में निर्णय लेने में मदद करना है जिससे इस समय पाक सेना के द्वारा हिंसा के वातावरण में वे अलगाववादियों को समर्थन देना बन्द कर सके। 1947 में अंग्रेजों ने भारत को आजादी प्रदान करने के साथ साथ इसके विभाजन का भी निर्णय लिया और इस प्रकार भारत और पाकिस्तान बने। आजादी से पहले भारत में राजा व नवाबों की 568 रियासतें थीं जिनको तय प्रक्रिया के अनुरूप भारत या पाकिस्तान में मिलने का विकल्प अंग्रेजों ने दिया और इस प्रकार अगस्त 1947 तक 567 रियासतों ने अपना अपना विकल्प चुन लिया तथा जम्मू कश्मीर के शासक महाराजा हरीसिंह ने स्वतंत्र रहने का विकल्प चुना। परन्तु केवल दो महीने में पाक ने अपने असली तेवर दिखाते हुए कवायनियों के रूप में कश्मीर पर हमला कर दिया तथा अपनी सीमा से लगते भाग पर कब्जा करते हुए वे श्रीनगर तक आ गये इन हालातों में हरीसिंह ने भारत में विलय को एक सही विकल्प मानते हुए अपने राज्य को भारतीय गणराज्य में मिला लिया। भारतीय सेना ने कवायलियों को खदेड़ा परन्तु विश्व बिरादरी के दबाव में युद्ध विराम लागू होने के कारण पाकिस्तान ने कश्मीर के 5 जिलों गिलगिट, बालिस्तान, दियामीर तथा मुजफ्फराबाद इत्यादि पर अपना कब्जा करके इसे आजाद कश्मीर का नाम दे दिया। इस समय जम्मू कश्मीर राज्य के तीन प्रमुख भाग हैं जिनमें जम्मू, कश्मीर घाटी तथा लद्दाख क्षेत्र प्रमुख हैं। आबादी के अनुसार जम्मू में हिन्दू, लद्दाख में बौद्ध तथा घाटी में मुस्लिम बहुसंख्यक हैं। इस प्रकार अब तक के मिले संकेतों से यह साफ हो जाता है कि केवल कश्मीर घाटी में ही पाक सेना भारत विरोधी अपने कारनामें में वहां के कुछ अलगाववादियों के द्वारा हिंसा भड़काने में कामयाब रह पायी है। तथ्यों के आधार पर घाटी की जनता के सामने तीन विकल्प हो सकते थे। पहला स्वतंत्र कश्मीर राज्य, दूसरा पाकिस्तान में विलय तथा तीसरा भारत में विलय। पहले विकल्प का परिणाम पाक ने वहां की जनता को 1947 में केवल दो महीने में कवायलियों के हमले के रूप में दिखा दिया था। अब हम दूसरे विकल्प पाकिस्तान में कश्मीर के विलय की विवेचना तथ्यों की रोशनी में करते हैं।
इस विवेचना में हम वहां पर पिछले 68 वर्षों के क्रियाकलापों को पाक अधिग्रहित कश्मीर, ब्लूचिस्तान तथा पाक में विभिन्न अल्पसंख्यकों की हालत तथा भारत से विस्थापित होकर गये मुस्लिमों के साथ किये व्यवहार से करेंगे। जैसा कि सर्वविदित है कि 1947 से लेकर अब तक भारत से गये मुसलमानों को अपना वतन नहीं मिला है। उन्हें अभी तक मुजाहिर (शरणार्थी) ही पुकारा जाता है और उन्हें केवल वहां सिंध प्रान्त तथा कराची तक ही सीमित कर दिया गया है। इनके अधिकारों की लड़ाई लड़ने के परिणामस्वरूप इनके नेता अल्ताफ हुसैन को लंदन में निर्वासित जीवन गुजारना पड़ रहा है। इसी कारण जन0 मुशर्रफ को ना कभी पाक जनता और ना ही अमेरिका ने एक प्रभावशाली नेता माना। पाक अधिग्रहित कश्मीर में दिखावे के लिए पाकिस्तान ने इंग्लैण्ड के वैस्ट मिनिस्टर मॉडल पर पार्लियामैंट बना दी है जिसमें राष्ट्रपति तथा प्रधानमंत्री पाक सेना के इशारों पर नियुक्त किये जाते हैं परन्तु यहां की असली सत्ता 14 सदस्यीय कश्मीर विकास काउंसिल के हाथों में है। इनमें से 6 सदस्य पाक सरकार सेना के इशारों पर मनोनित करती है और यहां की असली सत्ता इन्हीं 6 सदस्यों के हाथों में होती है। भारतीय कश्मीर के नागरिकों के अस्तित्व, संस्कृति तथा जनसंख्या के संतुलन को बनाये रखने के लिए संविधान में धारा 370 का प्रावधान है और इस कारण भारत के और किसी राज्य का निवासी जम्मू कश्मीर राज्य की ना तो नागरिकता ही ले सकता है ना वहां पर सम्पत्ति खरीद सकता है। 1974 तक यही प्रावधान पाक अधिग्रहित कश्मीर में भी थे। परन्तु 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री भुट्टो ने नागरिकता का यह प्रावधान हटा दिया उसके बाद से पाक वाले पंजाब से पंजाबी मुसलमानों तथा पुरवतुनवा से पठानों ने पाक अधिग्रहित कश्मीर में बसना शुरू कर दिया तथा इस प्रकार वहां के स्थानीय कश्मीरियों को अल्पसंख्यक बनाते हुए उनकी ज्यादातर कृषि पर भूमि कब्जा करते हुए बड़े बड़े कृषि फार्मों का निर्माण कर लिया। पाक के पंजाबी शासक किसी और का प्रभुत्व स्वीकार नहीं कर सकते इसका उदाहरण है 1970 में उस समय के पूर्वी पाकिस्तान तथा आज के बंगलादेश में शेख मुर्जीबुरहमान की जीत जिसको ये बर्दाश्त नहीं कर सके तथा शेख को सत्ता से दूर रखने के लिए पाक सेना ने बंगलादेश में जुल्म ढाने शुरू कर दिये। इन्हीं जुल्मों के परिणामस्वरूप बंगलादेश का निर्माण हुआ जिसका दोष वे भारत को देते हुए इसका बदला लेने के लिए ही वे कश्मीर को भारत से अलग करने का कृत्सित इरादा रखते हैं। उनके इस इरादे को पूरा करने के लिए वहां की आइएसआइ ने पूरे पाक वाले कश्मीर में आतंकी कैंपों का जाल फैला रखा है जिससे सीमा मिलने के कारण मौका मिलते ही प्रशिक्षित आतंकियों को भारतीय कश्मीर में भेजा जा सके। इन आतंकी कैंपों के कारण पाक कश्मीर के जनजीवन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है। आतंकी गतिविधियों के लिए जंगल तथा अविकसित क्षेत्र अच्छा माना जाता है इसलिए पाक कश्मीर को विकास से कोसों दूर रखा गया है। आधारभूत ढांचे की हालत में 1947 के बाद से कोई सुधार नहीं हुआ है। यहां पर विकास तथा औद्योगीकरण ना होने के कारण बेरोजगारी चरम पर है। पाक शासकों के दबाव तथा पाक के अन्य प्रांतों से आये प्रभावशाली लोगों के कारण स्थानीय कश्मीरियों के मौलिक अधिकार करीब करीब समाप्त होकर वे गुलामों जैसी जिन्दगी गुजार रहे हैं इन तथ्यों की पुष्टि बहुत से मुस्लिम पत्रकारों तथा पश्चिम के लोगों ने की है।
इसके साथ साथ ब्लूचिस्तान के हालात पूरा विश्व जानता है। पाक में ब्लूचिस्तान एक ऐसा प्रान्त है जहां प्राकृतिक खनिजों का भंडार है। इन खनिजों का दोहर करके वहां की सरकार इस प्रान्त के साथ सौतेला व्यवहार करते हुए इसके विकास के लिए धन तथा अन्य संसाधन नहीं देने के कारण वहां की जनता पाक के इस व्यवहार के प्रति 1947 से ही आवाज उठा रही है उनकी इस आवाज को दबाने के लिए पाक सेना तथा आइएसआइ तरह तरह के हथकंडे अपना रही है। इसमें सबसे मुख्य हथकंडा है उठाओ और खत्म करो और इसके द्वारा वहां पर हजारों बलूची गायब हैं। केवल 2008 में 1102 लोग गायब हो गये। 2001 में पाक के मानव अधिकार कमीशन ने इसके लिए वहां की सेना तथा आइएसआइ को जिम्मेदार माना था। क्या कोई कल्पना कर सकता है कि अपने ही नागरिकों पर ब्लूचिस्तान में पाक सेना ने हवाई शक्ति का प्रयोग करते हुए वहां 2002 में हवाई हमला करवाया। इस हमले में वहां के लोकप्रिय नेता नवाब वुगती की मौत हो गयी और इस प्रकार ब्लूचिस्तानी नागरिक पाक अधिग्रहित कश्मीरियों की तरह अपनी ही मातृभूमि में गुलामों जैसा जीवन व्यतीत करने को मजबूर हैं।
ऊपर वर्णित हालातों के साथ यहां पर यह भी विचारणीय है कि पाक में पिछले 68 सालों में सत्ता पूरे 48 साल सेना के हाथों में रही है और अभी तक पाक सेना ही पाक के शासन को नियंत्रित करती आ रही है। सेना अपना वर्चस्व बनाने के लिए देश में कट्टरवादियों को बढ़ावा दे रही है। इस कारण पाक आतंकवाद की फैक्ट्री के रूप में जाना जाने लगा। पाक में विकास पर खर्च होने वाला पैसा इन आतंकी गतिविधियों को चलाने में खर्च होता है और इसी का नतीजा है कि पाक की आर्थिक दशा बहुत खराब है। पूरे देश में इन आतंकियों और कट्टरपंथियों ने अशांति का माहौल बना रखा है। इस कारण पाक में विदेशी निवेश ना के बराबर आ रहा है। इन्हीं सब कारणों से पाक फेल गणराज्यों की सूची में शामिल होने वाला है। इसके साथ साथ यह भी देखना चाहिए कि कश्मीर घाटी में अलगाववादी मुहिम चलाने वाले सैय्यद सलाहुद्दीन, सैय्यद जफर शाह गिलानी और हुरिर्यत के प्रमुख नेता उमर मीर वायज के स्वयं के परिवारों का उनके बारे में क्या सोचना है। इनकी स्वयं की संतानें जम्मू कश्मीर तथा देश के अन्य हिस्सों में सरकारी नौकरियों जैसे डाक्टर, इंजीनियर तथा शिक्षकों के रूप में देश के एवं स्वयं के विकास में लगकर शांतिपूर्ण जीवन बिता रहे हैं। जबकि ये स्वयं पाक आइएसआइ की शह पर कुछ पैसों के लालच में कश्मीर के भविष्य युवा नौजवानों को पत्थरबाजी तथा अन्य प्रकार की देश विरोधी गतिविधियों में डालकर उन्हें मुजरिम बना रहे हैं। इन तथ्यों के प्रकाश में कश्मीर घाटी के बुद्धिजीवियों को विचार करके युवा वर्ग को इन देश विरोधी गतिविधियों से दूर रहने की सलाह देनी चाहिए तथा जनता को यह भी समझ लेना चाहिए जहां उनके भाई पाक अधिगृहित क्षेत्र में नारकीय जीवन बिता रहे तो क्या उनके लिए पाक अलग से स्वर्ग का निर्माण करेगा।
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