चीन का यादगार दिवस
Commodore Gopal Suri

स्थाई मध्यस्थता न्यायाधिकरण (पीसीए) ने फिलीपींस और चीन के बीच मध्यस्थता के मामले में अपना फैसला सुना दिया है। ‘‘पश्चिम फिलीपीन सागर में फिलीपींस के समुद्री अधिकार क्षेत्र में चीन के साथ विवाद’’ के मामले में फिलीपींस ने 2013 में संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन (यूएनसीएलओएस) के अनुबंध VII के तहत चीन के खिलाफ मध्यस्थता कार्यवाही शुरू की थी।1 पीसीए न्यायाधिकरण ने कहा है कि दक्षिण चीन सागर में चीन को कोई ‘ऐतिहासिक अधिकार’ प्राप्त नहीं है और इसने स्कारबोरो शोआल2 द्वीप में फिलीपीन द्वारा मछली पकड़ने के उसके पारंपरिक अधिकार में हस्तक्षेप किया है। चीन ने इस फैसले को अमान्य घोषित करते हुए वैसी ही प्रतिक्रिया दी है, जैसी कि उससे उम्मीद की जा रही थी। हाल के दिनों में उभरे वैश्विक हितों को देखते हुए आगामी दिनों में देशों के बीच आपसी संबंधों की कटुता में वृद्धि और राजनयिक गतिविधियों में अतिश्योक्तिपूर्ण सक्रियता दिखाई पड़ना निश्चित है। मामले के महत्वपूर्ण पहलुओं और हाल ही में घटित घटनाओं की पुनरावृत्ति से उचित परिप्रेक्ष्य उभरकर सामने आएगा, जिसके निकट भविष्य में स्पष्ट होने की संभावना है।

दक्षिण चीन सागर

विवाद- फिलीपींस और चीन, क्षेत्रीय दावों को लेकर चल रहे विवाद में पक्षकार हैं, जिसमें चीन ने ‘नाइन डैश लाइन’ पर दावा किया किया है जिसके दायरे में दक्षिण चीन सागर का लगभग पूरा विस्तार ही सिमट जाता है। यह विवाद पिछले चार दशकों से चीन और अन्य दावेदारों, अर्थात् फिलीपींस, वियतनाम, मलेशिया, ताइवान और ब्रुनेई के बीच के क्षेत्र में चल रही है। सभी दावेदारों ने इस क्षेत्र के बहुत से ठिकानों को कब्जा लिया है, और यहां पर सैन्य और नागरिक दोनों तरह की सुविधाओं का निर्माण कर लिया है, जो कि अलग-अलग अनुपात में है। वास्तव में, सबसे महत्वपूर्ण ठिकाना ‘इतु अबा’ ताइवान के कब्जे में है। हालांकि, चीन द्वारा अपने अधिग्रहित महत्वपूर्ण जगहों पर निर्माण और भूमि सुधार गतिविधि ने इस विवाद को एक नया और तीक्ष्ण मोड़ दे दिया है। चीन द्वारा अपने दावों को लागू करने के लिए आक्रामक रूप से हथकंडे अपनाने के उसके रवैये ने पहले से अप्रिय स्थिति को और अधिक जटिल बना दिया है। इस क्षेत्र में न केवल चीन, बल्कि अन्य देशों के एकतरफा दावे को नकारने के लिए अमेरिकी नौसेना नियमित तौर पर ‘फ्रीडम ऑफ नेविगेशन’ की गश्त करा रही है, जिससे इस सम्मिलित विवाद को और अधिक हवा मिल रही है।

फिलीपींस के कदम। फिलीपींस ने निम्ललिखित तर्काें के आधार पर मध्यस्थता कार्यवाही शुरुआत की है3:-

  1. चीन जिस क्षेत्र को ‘ऐतिहासिक अधिकार’ के रूप में संदर्भित करता है, उसे यह करने का कोई अधिकार नहीं है।
  2. ‘नाइन-डैश लाइन’ का अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत कोई आधार नहीं है।
  3. विभिन्न समुद्री ठिकानों जिन पर चीन का दबदबा है और जिसके आधार पर वह दक्षिण चीन सागर में अपना दावा करता है, वे द्वीप नहीं हैं।
  4. फिलीपींस के संप्रभु अधिकारों और उसके अधिकार-क्षेत्रों में हस्तक्षेप कर चीन ने परिपाटी का उल्लंघन किया है।
  5. चीन ने क्षेत्रीय समुद्री पर्यावरण को अपूर्णीय क्षति पहुंचाई है।

चीन का रुख। चीन ने मध्यस्थता को खारिज कर दिया और अपने इस रुख पर कायम है कि इस मामले में न्यायाधिकरण का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं था। उसने 7 दिसंबर, 2014 को एक स्थिति पत्र जारी की थी, जिसमें यह कहा गया था कि क्षेत्रीय संप्रभुता से जुड़ी मध्यस्थता, यूएनसीएलओएस के दायरे से बाहर है, और इसलिए इस मामले में पीसीए न्यायाधिकरण का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है।4

इस मामले पर न्यायाधिकरण ने फिलीपींस की उपस्थिति में और ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, जापान, मलेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम से लिए गए पर्यवेक्षकों के समक्ष कई बार सुनवाई की। अक्टूबर, 2015 में न्यायाधिकरण ने फैसला सुनाया कि यूएनसीएलओएस के तहत मामला पूरी तरह से विधि सम्मत है और चीन की गैर-उपस्थिति, न्यायाधिकरण को उसके अधिकार क्षेत्र से वंचित नहीं कर सकती है।5 चीन ने तब से कार्यवाही में भाग नहीं लेने और इसके आधार पर दिए गए किसी फैसले से सहमत नहीं होने के अपने रुख को कई बार दोहराया है।

फैसले से पूर्व की स्थिति

चीन की मुहिम। न्यायाधिकरण का फैसला आने से पूर्व पीसीए में मध्यस्थता कार्यवाही में गैर-भागीदारी की अपने घोषित रुख पर बने रहते हुए भी, चीन ने अपने मत, कि इस मामले में न्यायाधिकरण के पास अधिकार क्षेत्र का अभाव है और इस आधार पर उसका फैसला भी अमान्य है, के पक्ष में विभिन्न देशों के समर्थन जुटाने के लिए अपने प्रयास तेज कर दिए थे।

अंतिम समय में उसने इस मामले को लेकर अपने पक्ष में 60 देशों के समर्थन होने का दावा किया था।6 हालांकि, एशियाई समुद्री पारदर्शिता पहल (एएमटीआई) के अनुसार, सार्वजनिक रूप से केवल आठ देश ही चीन की स्थिति के समर्थन में खड़े हुए थे, जबकि अन्य देशों ने या तो सार्वजनिक रूप से चीन के दावे से इनकार किया या इस मसले पर वो मौन रहे7। चीन ने भी अन्य दावेदार देशों, विशेषकर मलेशिया और वियतनाम के दौरे के लिए अपने महत्वपूर्ण गणमान्य व्यक्तियों को भेजा। मलेशियाई नौसेना प्रमुख ने भी जिम्मेदारीपूर्वक कहा कि समुद्री क्षेत्रीय दावों पर मौजूदा विवाद से दोनों देशों की सेनाओं के बीच के संबंध प्रभावित नहीं होंगे।8 अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए उसने आसियान और शांगरी ला बातचीत जैसे विभिन्न मंचों का भी इस्तेमाल किया था। चीन का प्रभाव तब भी दिखाई पड़ा जब आसियान के विदेश मंत्रियों ने जारी किए हुए बयान को वापस ले लिया, उस बयान में दक्षिण चीन सागर में हाल की घटनाओं पर गंभीर चिंता व्यक्त की गई थी।9

फिलीपींस में नेतृत्व परिवर्तन। फिलीपींस ने हाल ही में रोड्रिगो ड्यूटेर्टो को अपना राष्ट्रपति चुना है। ड्यूटेर्टो ने तत्काल दक्षिण चीन सागर विवाद के मसले को हल करने के लिए द्विपक्षीय वार्ता बुलाई थी, और इसके लिए उन्होंने कार्यभार संभालने तक का भी सब्र नहीं किया था।10 यह कदम, प्रभावी फिलिपीनी लोगों के बीच से मसले के हल के लिए चीन से द्विपक्षीय बातचीत का रास्ता अपनाने की मांग उठने पर उठाया गया था।11 चीन ने भी अपनी आक्रामकता में नरमी लाते हुए विवादित स्कारबोरो शोल में फिलिपीनी मछुआरों को मछली मारने की अनुमति दे दी और अपने तटरक्षकों को फिलिपीनी मछुआरों को परेशान नहीं करने के निर्देश दिए। फिलीपींस को मिंडानाओ प्रांत में विकास को प्रगति देने के लिए वहां बुनियादी ढांचे विकसित करने हेतु चीन से निवेश की भी जरूरत है, जिसे ड्यूटेर्टो तत्काल शुरू करने के पक्ष में है।

इसलिए ऐसा लगता है कि ड्यूटेर्टो, बेनिग्नो एक्विनो द्वितीय के पिछले कार्यकाल में प्रशासन द्वारा चीन के खिलाफ अख्तियार किए गए आक्रामक रुख में नरमी लाना चाहते हैं। वस्तुतः उन्होंने यह भी स्पष्ट रूप से कहा था कि वह युद्ध में जाने के लिए तैयार नहीं है और यदि बातचीत से शांति स्थापित होती है, तो उन्हें खुशी होगी। हालांकि ड्यूटेर्टो ने हाली में यह स्पष्ट किया था कि चीन के साथ किसी भी वार्ता के लिए पीसीए का फैसला आने तक इंतजार करना होगा।

आसियान और डीओसी। इस मामले में फंसे आसियान देशों ने 2002 में ‘दक्षिण चीन सागर में पक्षकारों के आचरण पर घोषणा पत्र’ पर हस्ताक्षर किए, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि ‘‘संबंधित पक्ष शांतिपूर्ण तरीके से अपनी प्रादेशिक क्षेत्राधिकार और विवादों को हल करने के लिए अंतरराष्ट्रीय कानून के सार्वभौमिक मान्यता प्राप्त सिद्धांतों के अनुसार बिना धमकी या बल प्रयोग किए, सीधे संबंधित संप्रभु राष्ट्रों से दोस्ताना परामर्श और वार्ता का मार्ग अपनाने के वचन पर हस्ताक्षर करते हैं।’’ मलेशिया और वियतनाम ने विवादास्पद विवाद पर आगे का मार्ग प्रशस्त करने के लिए बातचीत पर बल दिया है। आसियान देशों के बीच आंतरिक कलह, जो हाल ही में, विदेश मंत्रियों द्वारा जारी किए गए बयान की वापसी के रूप में प्रकट हुआ, ने इस विवाद के समाधान के लिए एक साक्षा दृष्टिकोण के विकास में दरार डालने का काम किया है।

अतिरिक्त क्षेत्रीय भागीदारी। इस बीच, अमेरिका, जिसने दक्षिण चीन सागर के विवाद में संप्रभुता के मुद्दे पर कोई कदम नहीं उठाने का दावा किया है, क्षेत्र में बड़ी संख्या में नौसैनिक उपस्थिति कायम कर रखी है। यह भी बार-बार कहा गया कि पिछले वर्ष अक्टूबर के बाद से तथाकथित ‘फ्रीडम आफ नेविगेशन’13 यहां गश्त कर रहा है। यद्यपि विशेष रूप से ‘फ्रीडम आफ नेविगेशन’ के लिए ही नहीं, लेकिन यूएसएन जहाज लगातार इस क्षेत्र में दौरा कर रहे हैं। यूएसएस रोनाल्ड रीगन वाहक लड़ाकू समूह भी यह के जल क्षेत्र में तैनात है।

ऐसा प्रतीत होता है कि अमेरिका, पीसीए द्वारा चीन के प्रतिकूल फैसला सुनाने की स्थिति में चीन को किसी भी आक्रामक सैन्य कार्रवाई से रोकने की तैयारी कर रहा था। फ्रांस जैसे अन्य देशों ने भी दक्षिण चीन सागर में ‘टकराव के जोखिम को रोकने’ के लिए गश्त के संचालन को जारी रखा है।14 भारत का सभी पक्षों के लिए संदेश है कि दक्षिण चीन सागर में शामिल पक्षों को 2002 के पक्षों के आचरण पर घोषणा का अनुपालन करना चाहिए, और यूएनसीएलओएस के ढांचे के तहत विवादों के शांतिपूर्ण समाधान सुनिश्चित करने के लिए एक साथ काम करना चाहिए।

फैसला

न्यायाधिकरण ने इससे पहले अक्टूबर 2015 में फैसला किया कि ‘‘चीन की गैर-भागीदारी न्यायाधिकरण को उसके अधिकार क्षेत्र के वंचित नहीं करता’’ और उसने चीन की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि विवाद क्षेत्रीय अखंडता को लेकर है और इसलिए यूएनसीएलओएस का इससे कोई वास्ता नहीं है। हालांकि, न्यायाधिकरण चीन द्वारा दिसंबर, 2014 में दायर स्थति पत्र का लगातार संज्ञान लेता रहा।

न्यायाधिकरण ने फिलीपींस के दावों की योग्यता के आधार पर 12 जुलाई, 2016 को जारी अपने फैसले में फिलिपीनी द्वारा दायर 15 प्रस्तुतियों के जवाब में निम्नलिखित चीजों को प्रमुखता से निर्धारित किया है15 -

  1. नाइन-डैश लाइन क्षेत्र में आने वाली समुद्री क्षेत्र में चीन के ‘ऐतिहासिक’ दावे का कोई वैधानिक आधार नहीं है। न्यायाधिकरण ने यह भी पाया कि संसाधनों के लिए पूर्व मौजूदा अधिकारों का सवाल (विशेष रूप से मछली पकड़ने के संसाधनों में) पर विशेष आर्थिक क्षेत्र के निर्माण पर चर्चा के दौरान विचार किया गया और तब ज्यादातर देशों ने मछली पकड़ने के ऐतिहासिक अधिकार को नए क्षेत्र में संरक्षित करने की इच्छा जताई थी। इस स्थिति को अस्वीकार कर दिया गया और सम्मेलन के अंतिम पाठ में अन्य देशों को विशेष आर्थिक क्षेत्र में मत्स्य पालन का सीमित अधिकार और पेट्रोलियम या खनिज संसाधनों पर कोई अधिकार नहीं दिया गया।
  2. स्प्रेटलिस द्वीपों में से कोई भी बढ़े हुए समुद्री क्षेत्र को उत्पन्न करने में सक्षम नहीं है और न ही वे सामूहिक रूप से एक इकाई के रूप में ही इसे उत्पन्न कर सकते हैं। न्यायाधिकरण फिलीपींस की इस बात से सहमत हुआ कि स्कारबोरो शोल, जॉनसन रीफ, कार्टरान रीफ, और फियरी क्रॉस रीफ सभी उच्च ज्वार वाले ठिकाने हैं और सुबी रीफ, ह्यूजेस रीफ, मिश्चिफ रीफ और दूसरे थॉमस शोल अपने प्राकृतिक हालत में उच्च ज्वार में डूबे हुए थे। हालांकि, न्यायाधिकरण ने गावेन रीफ (उत्तर) और मैककेनन रीफ की स्थिति पर फिलीपींस से असहमत व्यक्त की और निष्कर्ष निकाला कि दोनों उच्च ज्वार ठिकाने हैं। इसलिए न्यायाधिकरण ने निष्कर्ष निकाला है कि स्प्रैटली में उच्च ज्वार वाले सभी ठिकाने कानूनी तौर पर ‘‘चट्टानें’’ हैं जो कि विशेष आर्थिक क्षेत्र या महाद्वीपीय शेल्फ नहीं बनाते हैं।
  3. कुछ समुद्री क्षेत्र फिलीपींस के ईईजेड के भीतर हैं। यह पता लगने पर कि मिस्चिफ रीफ, दूसरे थॉमस रेती और रीड बैंक, उच्च ज्वार में डूबे हुए हैं, ये विशेष आर्थिक क्षेत्र और फिलीपींस के महाद्वीपीय शेल्फ के हिस्से हैं, और कहीं से भी यह चीन का संभावित हिस्सा प्रतीत नहीं होता है। न्यायाधिकरण ने निष्कर्ष निकाला कि सम्मेलन समुद्री क्षेत्र के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र में फिलीपींस को संप्रभु अधिकार देने के पक्ष में है। चीन ने फिलीपींस के ईईजेड में उसके संप्रभु अधिकारों का उल्लंघन किया था और चीनी कानून प्रवर्तन तंत्रों ने फिलिपीनी तंत्र को शारीरिक रूप से बाधित कर अवैध टकराव की एक गंभीर खतरा पैदा कर दी थी।
  4. न्यायाधिकरण ने पाया कि हाल ही में चीन द्वारा बड़े पैमाने पर भूमि सुधार और स्प्रैटली महाद्वीप में सात ठिकानों पर कृत्रिम द्वीपों के निर्माण से कोरल रीफ पर्यावरण को काफी नुकसान हुआ है और चीन ने यूएनसीएलओएस की अनुसूची 192 और 194 के तहत नाजुक पारिस्थितिकी प्रणालियों और जर्जर, संकट में या लुप्तप्राय प्रजातियों के निवास स्थान के लिए समुद्री पर्यावरण की रक्षा करने के अपने दायित्व का उल्लंघन किया है। न्यायाधिकरण ने यह भी पाया कि दक्षिण चीन सागर में चीनी मछुआरे पर्याप्त पैमाने पर लुप्तप्राय समुद्री कछुए, मूंगा और विशाल क्लेम के शिकार में लगे हुए हैं। इसके लिए प्रयोग में लाई जाने वाली विधियों से मूंगा चट्टान पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचता है। न्यायाधिकरण ने पाया कि चीनी अधिकारी इन गतिविधियों के बारे में जानते थे और इसे रोकने के लिए समझौते के तहत अपने हिस्स के दायित्वों को पूरा करने में नाकाम रहे।
  5. न्यायाधिकरण दूसरे थॉमस शोल पर फिलीपींस मरीन और चीनी नौसेना तथा कानून प्रवर्तन जहाजों के बीच टकराव के प्रभाव पर विचार करने के अधिकार क्षेत्र से वंचित रहा।

न्यायाधिकरण का फैसला तथाकथित ‘नाइन-डेश लाइन’ से घिरे होने के चीन के ‘ऐतिहासिक’ दावों पर एक चुभने वाला अभियोग है। चीन, 1982 में अस्तित्व में आए यूएनसीएलओएस का एक हस्ताक्षरकर्ता राष्ट्र है और इसलिए ‘नाइन-डेश लाइन’ को लेकर लगातार जोर देना विरोधाभास उत्पन्न करता है, क्योंकि यूएनसीएलओएस को इस प्रकार के ‘ऐतिहासिक अधिकारों’ के बारे में पता नहीं है। दक्षिण चीन सागर में चीन द्वारा तथाकथित ऐतिहासिक तौर पर मत्स्य पालन और नेविगेशन भी ‘गहरे समुद्री स्वतंत्रता’ प्राप्त करने का एक प्रयास माना जाता है। उसका कारण यह है कि यूएनसीएलओएस के समक्ष ये क्षेत्र कानूनी रूप से गहरे समुद्र का हिस्सा थे। चूंकि ‘ऐतिहासिक अधिकार’ वाला दावा यूएनसीएलओएस द्वारा मुहैया कराई गई समुद्री क्षेत्रों के साथ ‘असंगत’ है, इसलिए न्यायाधिकरण ने ‘ऐतिहासिक अधिकार’ वाले चीन के गलत तर्क को सिरे से नकार दिया।

न्यायाधिकरण का स्पष्ट फैसला वास्तव में फिलीपींस द्वारा मामले की बहुत निपुण तैयारी के कारण आया है। फिलीपींस का मामला विशुद्ध रूप से समुद्री अधिकारों आधारित था और इसका संप्रभुता के मुद्दे से कोई लेना देना नहीं था, जिससे पीसीए को इस विवादास्पद मुद्दे को दरकिनार कर अपना फैसला देने में सहुलियत हुई। न्यायाधिकरण ने चीन की स्थिति पत्र में दिए गए इस तर्क को भी खारिज किया कि पक्षकारों का विवाद वास्तव में समुद्री सीमा के परिसीमन को लेकर है और इसलिए समझौते के अनुच्छेद 298 द्वारा विवाद निपटारा और उस अनुच्छेद के आधार पर 25 अगस्त, 2006 को चीन के घोषणा पत्र से इसे बाहर रखा गया। न्यायाधिकरण ने कहा कि विवाद के विषय में एक देश समुद्री क्षेत्र के लिए पात्रता रखता है, का मामला, एक ही क्षेत्र में परस्पर टकराने वाले समुद्री क्षेत्रों के परिसीमन से बिल्कुल अलग है।

फैसला से चीन के पहुंच एंटी-एक्सेस/क्षेत्र मनाही के लिए स्प्रैटलिस के स्थानों के उपयोग की रणनीति को भी गंभीर खतरे में डाल दिया है। चीन ने दक्षिण चीन सागर में खनिज प्राप्त करने के लिए गहरे समुद्र में एक मानवयुक्त प्लेटफार्म तैयार करने की भी योजना बनाई है, जिसका उपयोग सैन्य उद्देश्य के लिए भी किया जा सकता है।16

चीन के पास दक्षिण चीन सागर में उपलब्ध संसाधनों के और अधिक शोषण के लिए भी कई योजनाएं हैं, जिसका उल्लेख उसने अपनी 13वीं पंचवर्षीय योजना17। इसलिए इस फैसले के आने के बाद चीन को अब दक्षिण चीन सागर के लिए अपनी रणनीति पर फिर से विचार करना होगा क्योंकि भविष्य की इन योजनाओं के क्रियान्वयन में अन्य राज्यों से गंभीर विरोध का सामना करना पड़ेगा।

न्यायाधिकरण ने यह भी स्पष्ट रूप से निर्णय लिया है कि स्प्रेटलिस के दायरे में आने वाले समुद्री क्षेत्र का कोई भी स्थान जिसको यूएनसीएलओएस द्वारा मान्यता दी गई है, वे द्वीप होने के योग्य नहीं हैं और बेहतर स्वरूप में चट्टाने हैं। न्यायाधिकरण ने यह भी व्यवस्था दी है कि सभी ऐतिहासिक आर्थिक गतिविधि केवल ‘खनन’ थी और इन ठिकानों का अस्थायी उपयोग को निवास नहीं कहा जा सकता है।

इसके अलावा, वहां मौजूदा मानव उपस्थिति और ठिकानों पर सुविधाओं के लिए बाहर से समर्थन की आवश्यकता है। द्वीपों के लिए जरूरी है कि वहां स्वभाविक स्थिति में स्थिर मानव बस्ती होने चाहिए, और इस आधार पर वहां यूएनसीएलओएस का अनुच्छेद 121 लागू नहीं होता है। यह कच्चा लोहा निर्णय है, इसलिए यह भविष्य में द्वीपों में इन ठिकानों की वर्तमान स्थिति में किसी भी परिवर्तन को रोकता है।

न्यायाधिकरण ने भी फिलीपींस को उसके ईईजेड के रूप में कुछ निश्चित समुद्री क्षेत्र प्रदान किए हैं। नतीजतन, इस जल क्षेत्र में ‘नौवहन की स्वतंत्रता’ पर चीन द्वारा प्रतिबंध लगाने का उसका पहले का रुख को अवैध ठहराता है और अमेरिका व अन्य देशों द्वारा उठाए गए कदमों को सही ठहराता है। फिलीपींस ने हाल ही में कहा है कि वे आपसी लाभ के लिए इस क्षेत्र के संयुक्त अन्वेषण शुरू करना चाहते हैं।18

मध्यस्थता के प्रति चीन का रुख मौजूदा अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के प्रति अवज्ञा को दर्शाता है। चीन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है और वह यूएनसीएलओएस पर एक हस्ताक्षरकर्ता भी है। एक ऐसे वक्त में चीन का मध्यस्थता को मान्यता देने और आगामी फैसले को मानने से इनकार करना, जब वह अपने को विश्व का एक प्रमुख नेतृत्वकर्ता के रूप में पेश कर रहा है, इसे लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय में बहस और कार्रवाई होनी चाहिए। जब चीन भारत जैसे देश को परमाणु अप्रसार संधि, जैसे अंतरराष्ट्रीय संधियों जिसका भारत हस्ताक्षरकर्ता नहीं है, का पालन करने की मांग करता है, तो उसका यह कदम बहुत ही चालाकी भरा प्रतीत होता है।

फैसले के प्रति प्रतिक्रिया

चीनः चीन के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर यह घोषणा की है कि फैसला अमान्य है और इसे मानना चीन के लिए बाध्यकारी नहीं है तथा चीन न तो इसे स्वीकार करता है और न ही इसे महत्व देता है।19 बयान में आगे न्यायाधिकरण और मध्यस्थता के अधिकार क्षेत्र को लेकर चीन की गैर-मान्यता के रुख को दोहराया गया है। इसमें यह भी कहा गया है कि क्षेत्रीय विवाद में तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप को चीन स्वीकार नहीं करेगा। आधिकारिक बयान उम्मीद की तर्ज पर है, हालांकि आने वाले दिनों सरकार प्रायोजित मीडिया द्वारा बयानबाजी को मनमुताबिक रूप में जोर-शोर से सामने लाया जाएगा जो स्थानीय राष्ट्रवादी निर्वाचन क्षेत्र तक पहंुचेगा। अपनी आंतरिक नीतियों की वजह से उत्पन्न धीमी अर्थव्यवस्था और देश की आंतरिक दरारों का सामना कर रहे चीन की सरकार के लिए समस्याओं की चकाचैंध से ध्यान हटाने में भी यह सहायक हो सकता है।

फिलीपींसः फिलीपींस ने अपने आधिकारिक बयान में विदेश सचिव के हवाले से यह कहते हुए चुप्पी साधी है कि फैसले का अध्ययन किया जा रहा है और सभी पक्षों से ‘संयम और शांति’ बनाए रखने की उम्मीद है।20 फिलीपींस इस मामले में ‘धीरे धीरे’ आगे बढ़ने के दृष्टिकोण को अपनाता हुआ प्रतीत होता है ताकि चीन इस असहज समय में अपने पंख पसारने को व्याकुल न हो जाए। यह इस मुद्दे पर बातचीत के जरिए समाधान के लिए चीन के साथ वार्ता आयोजित करने की राष्ट्रपति ड्यूट्रेटे के पूर्व के बयानों के अनुकूल भी है। विदेश मामलों के पूर्व सचिव अल्बर्ट डेल रोसारियो, जिन्होंने फिलीपींस मामले में तर्क दिए, का कहना है कि चीन को ‘कानून के शासन का सम्मान’ करना होगा।21 हालांकि ये तथ्य है कि यह फिलीपींस के लिए एक स्पष्ट जीत है, इसे कम नहीं आंका जा सकता है और इसकी गूंज संभावित जिंगोइस्टीक मकसद के साथ, राष्ट्रीय बहस में सुनाई देगी। नई सरकार को अब अंशशोधित दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत होगी ताकि खुलेआम राष्ट्रवादी भावनाओं में शासन किया जा सके, जो कि पहले से ही अनिश्चित स्थिति को और अधिक आक्रामक बना सकती है।

अमेरिकाः अमेरिकियों ने दोनों पक्षों से यूएनसीएलओएस के तहत अपने वचन को निभाने का आग्रह किया है।22 चीन द्वारा यूएनसीएलओएस के के उल्लंघन का कोई विशेष संदर्भ नहीं है, यह अमेरिका को अभी स्वीकार करना बाकी है। अमेरिका ने सभी दावेदारों से अनुरोध किया है कि विवाद का प्रबंधन और हल करने के लिए एक साथ प्रयास करें।

भारतः भारत का बयान उम्मीद और इसके नियमित रुख के मुताबिक रहा, जिसमें इसने सभी देशों से विवाद को निपटाने के लिए शांतिपूर्ण प्रयास करने का आग्रह किया है।23 इसने नौवहन की स्वतंत्रता और बेरोक वाणिज्य के रूप में ओवरफ्लाइट पर जोर दिया है। इसने सभी पक्षों से यूएनसीएलओएस के प्रति सम्मान जाहिर करने का भी आग्रह किया है। अन्य दावेदार राष्ट्रों, खासकर वियतनाम में, इस मोर्चे पर भविष्य के घटनाक्रम पर बारीकी से नजर रखना भारत के हित में होगा।

वियतनामः वियतनाम ने एक आधिकारिक बयान में, होआंग सा (पार्सेल) और ट्रुओंग सा (स्प्रैटली) पर, आंतरिक पानी और प्रादेशिक समुद्र पर, अपनी संप्रभुता तथा विशेष आर्थिक क्षेत्र व महाद्वीपीय शेल्फ पर अपने संप्रभु अधिकार व क्षेत्राधिकार की फिर से पुष्टि की है।24 वियतनाम का चीन के साथ बहुत निकट का आर्थिक संबंध है, यह पिछले दशक में चीन का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार रहा है।25 दोनों देशों की कम्युनिस्ट पार्टियों का भी आपस में बहुत घनिष्ठता है। चीन ने बीबु खाड़ी में वियतनाम के साथ एक समुद्री विवाद का निपटारा किया है। नतीजतन, वियतनाम को अपने विवाद को हल करने के लिए चीन के साथ एक महीन रेखा चलना होगा। यदि वियतनाम भी मध्यस्थता मार्ग का सहारा लेता है, तो यह एक विवादास्पद मुद्दा होगा।

सागर से आगे का रास्ता

इन दिनों दक्षिण चीन सागर में साल का सबसे खराब मौसम है और टायफून तूफान सागर की तटों पर तबाही मचा रहा है। न्यायाधिकरण का यह फैसला ऐसे समय में आया है, जब पिछले सप्ताह से सुपर टाइफून चीन और ताइवान के तटों से टकरा रहा है और इस प्राकृतिक घटना ने वहां नुकसान को कई गुना बढ़ा दिया है। चीन के प्रतिकूल फैसले आने से उसकी छवि को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तर पर एक बड़ा धक्का लगा है। इसकी कोई संभावना नहीं है कि चीन दक्षिण चीन सागर के ठिकानों पर अपनी क्षेत्रीय संप्रभुता का दावा करने के अपने वर्तमान रुख को वापस लेगा। चीन की आंतरिक उथल-पुथल में उसकी अर्थव्यवस्था की परिस्थिति, आंतरिक पुनर्गठन और भ्रष्टाचार विरोधी अभियान जैसे राजनीतिक पहल को देखते हुए इन स्थितियो से निपटने में वर्तमान प्रशासन को विवेक से काम करने की आवश्यकता है। अपने घरेलू नीतियों के विफलता को रोकने और कठोर चीन की छवि को पुष्ट करने के लिए एक आक्रामक कदम उठाने की संभावना से प्रशासन को अपने घरेलू निर्वाचन क्षेत्रों में अच्छा लाभ मिला सकता है लेकिन इससे अंतरराष्ट्रीय साख को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचेगा और और क्षेत्रीय सहयोगियों को निराशा होगी।

वायु रक्षा पहचान क्षेत्र (एडीआईजेड) की घोषणा पर कई विशेषज्ञों द्वारा चर्चा की जा चुकी है और आज तक भी चीन ने इसकी संभावना से इनकार नहीं किया है। इससे दक्षिण चीन सागर में सैन्य विमान उड़ान पर गंभीर प्रतिबंध लगाया जाएगा। हालांकि, एससीएस के ठिकानों में उपलब्ध सुविधाओं को देखते हुए, एडीआईजेड को आक्रामक तरीके से लागू करने की चीन तत्काल क्षमता संदेह होता है, क्योंकि इनमें से ज्यादातर सुविधाओं में जरूरी स्थायी क्षमता नहीं है।

कुछ चीनी मीडिया ने प्रतिक्रियावादी कदम के रूप में यूएनसीएलओएस से बाहर आ जाने पर चर्चा की है।26 हालांकि, यह केवल तेवर दिखाने जैसा प्रतीत होता है, क्योंकि चीन का यूएनसीएलओएस पर एक हस्ताक्षरकर्ता होने के नाते, उसके इस कदम से उसकी अंतरराष्ट्रीय साख सेंध लग जाएगी। इस क्षेत्र में विशेष रूप से, फिलीपीन के कब्जे वाले ठिकानों के आसपास के क्षेत्र में नौसैनिकों की मौजूदगी में भी वृद्धि हो सकती है, जो चीन के साथ ‘संघर्ष’ के परिणामस्वरूप फिलीपींस के लिए संदेश होगा। पिछले कुछ हफ्तों से चीनी बेड़े में हथियार गोलीबारी और अन्य गतिविधियों के के साथ नौसैनिक उपस्थिति में वृद्धि हुई है, जबकि यूएसएस रोनाल्ड रीगन कैरियर लड़ाकू समूह क्षेत्र में पहले की तरह ही तैनात है। हालांकि, चीन कोई ऐसा उपक्रम करे जिससे संघर्ष की काली छाया में वृद्धि हो, इसकी संभावना बहुत कम है।

दूसरी ओर, फिलीपींस की कार्रवाई पर भी बारीकी से नजर रखा जाएगा क्योंकि इस फैसले से उन्हें काफी प्रोत्साहन मिला है, इसके साथ ही अभी वही एक एसे देश के रूप में उभरा है जिसने चीन के छल को बेनकाब कर दिया है। हालांकि, चीनी निवेश और वर्तमान की उसकी सैन्य स्थिति के लिए उसे भविष्य में चीन के भारी सहयोग की जरूरत होगी। फिलीपींस के मामले में अमेरिकी प्रभाव दूसरा निर्णायक कारक है, जो कि फिलहाल संभवतः आसन्न राष्ट्रपति चुनाव के कारण शांत बैठा है। फिलिपीनी राष्ट्रपति और वहां की सिविल सोसाइटी की चीन के साथ वार्ता आयोजित करने जो संकेत मिले हैं, यदि यह कुछ काम कर जाता है तो, दक्षिण चीन सागर में तनाव बढ़ने की संभावना को कम किया जा सकता है।

आगामी हफ्तों में चीन और फिलीपींस के स्फूर्जन के बावजूद दक्षिण चीन सागर दुनिया भर की सुर्खियों में बना रहेगा।

अंतिम बिंदु

  1. फिलीपींस गणराज्य और चीन की पीपुल्स रिपब्लिक के बीच मध्यस्थता पर 27 अगस्त, 2013 की पीसीए की प्रेस विज्ञप्ति। https://pcacases.com/web/sendAttach/227. 20 अगस्त, 2015 को देखा गया।
  2. फिलीपींस गणराज्य और चीन की पीपुल्स रिपब्लिक के बीच मध्यस्थता पर 12 जुलाई, 2016 की पीसीए की प्रेस विज्ञप्ति। https://pca-cpa.org/wp-content/uploads/sites/175/2016/07/PH-CN-20160712-.... 12 जुलाई, 2016 को देखा गया।
  3. फिलीपींस गणराज्य और चीन की पीपुल्स रिपब्लिक के बीच मध्यस्थता पर 13 जुलाई, 2015 की पीसीए की प्रेस विज्ञप्ति। https://pcacases.com/web/sendAttach/227. 20 अगस्त, 2015 को देखा गया।
  4. दक्षिण चीन सागर मामले में फिलीपींस गणराज्य द्वारा शुरू की गई मध्यस्थता की पहल में क्षेत्राधिकार के मामले पर चीन गणराज्य की जनवादी सरकार की स्थिति पत्र। 7 दिसंबर, 2014। http://www.fmprc.gov.cn/mfa_eng/zxxx_662805/t1217147.shtml 4 मई, 2016 को देखा गया।
  5. फिलीपींस गणराज्य और चीन की पीपुल्स रिपब्लिक के बीच मध्यस्थता पर 29 अक्टूबर, 2015 की पीसीए की प्रेस विज्ञप्ति। https://pcacases.com/web/sendAttach/227. 1 नवंबर, 2015 को देखा गया।
  6. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लू कांग की 14 जून, 2016 की नियमित संवाददाता सम्मेलन। http://www.fmprc.gov.cn/mfa_eng/xwfw_665399/s2510_665401/2511_665403/t13.... 20 जून , 2016 को देखा गया।
  7. पंचाट समर्थन ट्रैकर। http://amti.csis.org/arbitration-support-tracker/. 8 जुलाई, 2016 को देखा गया।
  8. ‘आरएमएन प्रमुखः समुद्री चुनौतियों मलेशिया-चीन दोस्ती को प्रभावित नहीं करेगी।’ थो जिन यी। 24 मई, 2016। www.thestar.com.my/news/nation/2016/05/24/rmn-chief-maritime-challenges-wont-affect-malaysia-china-ties/ 25 मई, 2016 को देखा गया
  9. ‘दक्षिणपूर्व एशियाई देशों ने दक्षिण चीन सागर पर चिंता व्यक्त करते हुए अपने वक्तव्य वापस लिए, रोजाना लेटिफ’ 15 जून, 2016। http://www.reuters.com/article/us-southchinasea-asean-idUSKCN0Z10KX. 16 जून , 2016 को देखा गया।
  10. ड्यूटेर्टो ने दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रामकता को शांत करने के लिए ‘द्विपक्षीय वार्ता’ का प्रस्ताव रखा। एशिया टाइम्स एंड फिचर्स में, दक्षिणपूर्व एशिया पर 8 जून, 2016 को नोएल ताराजोना। http://atimes.com/2016/06/dutertes-proposed-bilateral-talk-calms-chinas-.... 9 जून , 2016 को देखा गया।
  11. फिलिपीनी नेताओं, विशेषज्ञों, राय बनाने वाले नेताओं ने स्वतंत्र विदेश नीति, दक्षिण चीन सागर के मसले पर चीन के साथ द्विपक्षीय वार्ता। वांग वेन और यांग तियान्मु। 9 जून, 2016। http://news.xinhuanet.com/english/2016-06/09/c_135423268.htm. 9 जून, 2016 को देखा गया।
  12. फिलिपीनी राष्ट्रपति ड्यूट्रेटे चीन के साथ वार्ता में, ‘नरम पहल’ से आगे बढ़ाना चाहते हैं। 7 जुलाई, 2015। . http://www.globaltimes.cn/content/992784.shtml 7 जुलाई, 2016 को देखा गया।
  13. दक्षिण चीन सागर में अमेरिकी नौसेना विध्वंसक की मौजूदगी से चीन के दावे को बल मिलता है। डेविड लार्टर, नौसेना टाइम्स। 06 जुलाई, 2016। http://www.navytimes.com/story/military/2016/07/06/us-navy-destroyers-st.... 7 जुलाई, 2016 को देखा गया।
  14. ‘फ्रांस दक्षिण चीन सागर में समन्वित यूरोपीय संघ गश्त के लिए जोर लगाएगा।’, डेविड रोम, 5 जून, 2016 http://www.bloomberg.com/news/articles/2016-06-05/france-to-push-for-coo.... 6 जून, 2016 को देखा गया।
  15. फिलीपींस गणराज्य और चीन की पीपुल्स रिपब्लिक के बीच मध्यस्थता पर 12 जुलाई, 2016 की पीसीए की प्रेस विज्ञप्ति। https://pca-cpa.org/wp-content/uploads/sites/175/2016/07/PH-CN-20160712-.... 12 जुलाई, , 2016 को देखा गया।
  16. ‘चीन समुद्र के 10,000 फुट नीचे एक विशाल सागर लैब की योजना बना रहा है। http://www.bloomberg.com/news/articles/2016-06-07/china-pushes-plan-for-.... 10 जून, 2016 को देखा गया।
  17. ‘तेरहवीं पंचवर्षीय योजना’ ब्लू अस्पेक्ट। 8 मार्च, 2016। http://www.cima.gov.cn/_d276820512.htm. 17 मई, 2016 को देखा गया।
  18. फिलीपींस, दक्षिण चीन सागर में साझेदारी चाहता है। 8 जुलाई, 2016। http://www.freemalaysiatoday.com/category/world/2016/07/08/philippines-w.... 11 जुलाई, 2016 को देखा गया।
  19. दक्षिण चीन सागर मध्यस्थता जिसकी शुरुआत फिलीपींस ने की थी, के फैसले पर चीन के विदेश मंत्रालय का वक्तव्य। 12 जुलाई, 2016।
    http://news.xinhuanet.com/english/2016-07/12/c_135507744.htm
    12 जुलाई, 2016 को देखा गया।
  20. विदेश मामलों के सचिव का वक्तव्य। 12 जुलाई, 2016।
    http://www.dfa.gov.ph/index.php/newsroom/dfa-releases/9900-statement-of-.... 12 जुलाई, 2016 को देखा गया।
  21. ‘पूर्व-डीएफए सचिव, डेल रोजारियो ने चीन से न्यायाधिकरण के फैसले का सम्मान करने का अनुरोध किया।’ 13 जुलाई, 2016। http://www.gmanetwork.com/news/story/573464/news/nation/ex-dfa-sec-del-r.... 13 जुलाई, 2016 को देखा गया। और अधिक http://www.gmanetwork.com/news/story/573464/news/nation/ex-dfa-sec-del-r... पर देखें।
  22. फिलीपींस-चीन के न्यायाधिकरण में निर्णय, प्रेस वक्तव्य, जॉन किर्बी, सहायक सचिव और विभाग के प्रवक्ता, सार्वजनिक मामलों के ब्यूरो, वाशिंगटन, डीसी। 12 जुलाई, 2016। http://www.state.gov/r/pa/prs/ps/2016/07/259587.htm 12 जुलाई, 2016 को देखा गया।
  23. यूएनसीएलओएस के अनुबंध टप्प् के तहत दक्षिण चीन सागर पर मध्यस्थ न्यायाधिकरण का फैसला http://mea.gov.in/press-releases.htm?dtl/27019/Statement_on_Award_of_Arb....12 जुलाई, 2016 को देखा गया।
  24. वियतनाम के विदेश मामलों के मंत्रालय के प्रवक्ता की टिप्पणियां। http://www.mofa.gov.vn/en/tt_baochi/pbnfn/ns160712211059. 12 जुलाई, 2016 को देखा गया।
  25. ‘चीन, वियतनाम $100इ के व्यापार लक्ष्य को 2016 में पूरा करने वाले हैं। समाचार एजेंसी सिन्हुआ, 2016.03.09। http://www.chinadaily.com.cn/business/2016-03/09/content_23791827.htm. 3 जून, 2016 को देखा गया।
  26. न्यायाधिकरण के फैसले के बाद यूएनसीएलओएस की निंदा करना भी चीन के लिए एक विकल्प है। स्टीफल टालमोन। ग्लोबल टाइम्स, 3 मार्च, 2016। http://www.globaltimes.cn/content/971707.shtml. 28 जून, 2016 को देखा गया।

Translated by: Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)
Published Date: 25th July 2016, Image Source: http://www.freemalaysiatoday.com
(Disclaimer: The views and opinions expressed in this article are those of the author and do not necessarily reflect the official policy or position of the Vivekananda International Foundation)

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