भारत में दाएश की बढ़ती पैठ
Dr Alvite Singh Ningthoujam

कुछ समय पहले तक भारत में दाएश या इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (आईएसआईएस) के खतरों की कई प्रकार से व्याख्या की जा रही थी। इसकी वजह यह थी कि कुछ भारतीय मुसलमान सीरिया अथवा इराक में इस संगठन में शामिल हो गए थे और उसके बाद से देश के भीतर किसी तरह का हमला नहीं हुआ है। नतीजतन कुछ लोगों को यह बड़ा खतरा नहीं लगता है, लेकिन कुछ लोग इस संगठन की आतंकी विचारधारा का दुनिया भर में प्रसार होता देखकर इसके बारे में चिंता जताते हैं। हकीकत यह है कि महाराष्ट्र के कल्याण से जुलाई 2014 में चार मुस्लिम युवाओं के इराक जाने पर कुछ ध्यान गया था, लेकिन उससे फौरी तौर पर कोई चिंता नहीं हुई। चिंता उनमें से एक - आरिफ मजीद - के लौटने के बाद हुई, जिसने कुछ ऐसी बातें बताईं, जो पहले नहीं पता थीं। उनमें से कुछ हैं कट्टरपंथी बनाने/भर्ती करने में सोशल मीडिया की भूमिका, कोई अंदरूनी व्यक्ति, जो यात्रा के लिए सभी जरूरी इंतजाम करता है और देश तथा विदेश विशेषकर खाड़ी देशों में रहने वाले भारतीयों की मिलीभगत।

वक्त गुजरने के साथ ही भारत में दाएश से जुड़ी गतिविधियां बढ़ रही हैं तथा न तो वे निष्क्रिय हैं और न ही छिटपुट घटनाएं होती हैं। सुरक्षा एजेंसियों प्रमुख रूप से राष्ट्रीय खुफिया एजेंसी (एनआईए), आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) तथा राज्यों की पुलिस ने पिछले कुछ महीनों में दाएश का समर्थन करने वाले या उससे सहानुभूति रखने वाले करीब 54 लोगों को एक के बाद एक पकड़ा है।11 इससे यह भ्रांति तो दूर हो जानी चाहिए कि भारतीय मुसलमान दाएश के दुष्प्रचार में फंसने वाले नहीं हैं और केवल कुछ युवाओं के उसमें शामिल होने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। यह भ्रांति समूची मुस्लिम आबादी (लगभग 18 करोड़) और आतंकी गुट में शामिल होने वाले मुसलमानों की संख्या (मुश्किल से 20) के बीच तुलना से पैदा की गई है। भौगोलिक दूरी भी अब उस तरह की बाधा नही रह गई है, जो कट्टरपंथ का पाठ पढ़ने वालों को स्वयंभू खलीफा अबू बक्र अल-बगदादी की खिलाफत में जाने से रोक पाए। भारत में कड़ी निगरानी के बावजूद कट्टरपंथ का पाठ पढ़ाए जाने और भर्ती किए जाने के मामले धीरे-धीरे सामने आ रहे हैं और ये चिंता का विषय हैं। ऐसा उस वक्त हो रहा है, जब सीरिया और इराक में मौजूदा हालात देखकर विभिन्न सामरिक विशेषज्ञ और विश्लेषक दाएश के खात्मे की भविष्यवाणी कर रहे हैं।

दाएश ने अस्तित्व में आने के बाद से ही अपना प्रभाव दूर-दूर तक फैलाने का महत्व ध्यान में रखा है। सीरिया और इराक में हजारों विदेशी लड़ाकों के आने से इसका संख्याबल ही नहीं बढ़ा है बल्कि इसका मनोबल भी बढ़ा है। लेकिन उसके लगातार जमीन गंवाने के कारण उसे बड़ा धक्का लगा है और नतीजतन अब वह आतंकी विचारधारा को दूसरे देशों में फैला रहा है और सुदूर विदेशी धरती पर हमले करा रहा है। फ्रांस, बेल्जियम, अमेरिका, लीबिया, तुर्की, लेबनान, सऊदी अरब, कुवैत, यमन, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, इंडोनेशिया और फिलीपींस आदि में हो रहे हमले इसका सबूत हैं। इन हत्याओं के लिए आम तौर पर खीझ को जिम्मेदार बताया जाता है, लेकिन समूह ने कट्टरपंथी रुझान वाले लोगों तथा तमाम स्थानीय आतंकवादी संगठनों को प्रेरित किया है। इसीलिए (पश्चिम एशिया में) यह अपने क्षेत्र तो गंवा रहा है, लेकिन दूसरे देशों में अपना प्रभाव जमाने में कामयाब होने के कारण एक ऐसे संगठन के तौर पर उसका दर्जा बना हुआ है, जिसक खिलाफ अंतरराष्ट्रीय समुदाय को लगातार लड़ना होगा। यह बात याद रखनी होगी कि दाएश ने खुद को ऐसे भौतिक संगठन, जिसे सेना की मदद से पछाड़ा जा सकता है, से बदलकर ऐसे विचार में तब्दील कर दिया है, जिसका मुकाबला करना मुश्किल हो रहा है। इसमें से दूसरी बात इस वक्त भारत में सच साबित हो रही है क्योंकि कट्टरपंथी रुझान वाले व्यक्ति इस घातक विचारधारा के फेर में फंस रहे हैं और हिंसा के जरिये छाप छोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।

2016 के आरंभ से ही दाएश से जुड़े कई लोग - सहानुभूति रखने वाले, भर्ती करने वाले और समर्थन करने वाले - गिरफ्तार हुए हैं, जिनमें जनवरी में महाराष्ट्र से पकड़ा गया मुद्दबिर मुश्ताक शेख भी शामिल है, जो भारत में दाएश की शाखा का कथित सरगना है। वह सीरिया में रहने वाले आतंकी शफी अरमार उर्फ ‘यूसुफ’ का कथित करीबी सहयोगी था। मुद्दबिर आईएस की प्रेरणा से बने चरमपंथी गुट जुनूद-उल-खालिद-अल-हिंद का “अमीर” भी था।22 यह बड़ी घटना थी, चूंकि कई अन्य लोग भी पकड़े गए। उन्होंने भर्ती के तरीके (अंदरूरनी लोगों की मदद से और सोशल मीडिया के जरिये) का, विभिन्न भारतीय राज्यों में इसी प्रकार के लोगों के होने का, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और तेलंगाना में प्रशिक्षण से जुड़ी बैठकें होने का खुलासा किया। गिरफ्तार लोगों ने पूछताछ के दौरान बताया कि दिल्ली में महत्वपूर्ण जगहों पर और कुंभ मेला तथा गणतंत्र दिवस समारोहों के दौरान हमले करने की उनकी योजना थी। उनकी कोशिशें तो नाकाम कर दी गईं, लेकिन बाद में गिरफ्तार किए गए लोगों से पूछताछ में भी इसी तरह की योजनाओं का खुलासा हुआ। पहले से उलट इस बार आतंक की साजिश उत्तराखंड के दो छोटे और शांत शहरों में रची गई थीं। इससे पता चलता है कि देश में दाएश का प्रभाव कहां तक फैल गया है। इससे भी ज्यादा आगाह करने वाली बात यह है कि इन लोगों को हाइड्रोजन पर ऑक्साइड, अमोनियम नाइट्रेट और पोटेशियम क्लोरेट जैसे सामान्य विस्फोटकों से बम बनाने का ऑनलाइन प्रशिक्षण मिला था। इंटरनेट का अच्छा खासा इस्तेमाल करने और तकनीकी पृष्ठभूमि वाले लोगों के होने के कारण हल्के विस्फोटकों की ताकत बढ़ाना मुश्किल नहीं होगा। यह सब देखते हुए इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि दाएश और उसके सहयोगी भारत में देर-सवेर कुछ बड़ा करने की फिराक में हैं और अगर वे सफल होते हैं तो उससे गंभीर संदेश जाएगा, जो कहेगा कि हम यहां भी हमला कर सकते हैं!

जैसा ऊपर बताया जा चुका है, भारत में दाएश से जुड़ी गतिविधियां उस वक्त बढ़ रही हैं, जब आतंकवाद कई शक्लों में दिख रहा है और उनके काम करने का कोई एक तय तरीका नहीं है। अमेरिका और यूरोप में खास तौर पर ऐसा बड़े पैमाने पर दिखा है, जहां बेहद प्रेरित और कट्टर व्यक्तियों ने हवाई अड्डों और मॉल, स्टेडियम, डिस्कोथेक तथा थिएटर समेत लोकप्रिय स्थानों को निशाना बनाया। इन सभी हमलों में सीधे दाएश का हाथ नहीं बताया जा सकता, लेकिन इस संगठन से प्रेरणा लेकर ‘अकेले हमला करने वालों’ के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। अपराध चाहे कैसा भी हो, लेकिन उसे अंजाम देने वाला या देने वाले अगर दाएश की ही कसमें खाते हैं तो दाएश की साख में इजाफा ही होता है चाहे सीरिया और इराक में उसे कैसे भी झटके लगे हों। भारत में दाएश के लोगों या उससे प्रेरणा पा चुके समर्थकों द्वारा हमले की संभावना पर अचरज नहीं होना चाहिए। ढाका का हमला भारत के लिए भी खतरे की घंटी होना चाहिए क्योंकि उस बर्बर घटना ने “देसी” कट्टरपंथियों से बढ़ते खतरे को सामने पेश किया है। इन लोगों की हरकतों का पता लगाना और उन्हें रोकना मुश्किल है।

दाएश के खतरे को बढ़ा चढ़ाकर बताए बगैर संबंधित अधिकारियों और नागरिकों को कम से कम यह पता होना चाहिए कि भारत पर इस संगठन की निगाहें हैं। जरूरी नहीं है कि खतरा सीरिया या इराक से आए, वह उन कट्टरपंथी युवाओं से भी हो सकता है, जो इस संगठन के तौर तरीकों और रणनीतियों की नकल कर ऐसे घिनौने कामों को अंजाम दे रहे हैं। भारत और दक्षिण एशिया को खास तौर पर ध्यान में रखकर दाएश ने मई में 22 मिनट का वीडियो क्लिप जारी किया था।33 आसानी से प्रभावित होने वाले कितने लोगों ने इस पर ध्यान दिया, इस बात को छोड़ दें तो भी कथित रूप से सीरिया जाने वाले या देश में ही रहकर हमलों की साजिश रचाने वाले कट्टरपंथी मुस्लिम युवाओं के मामले इसी दौरान बढ़ रहे थे। सीरियाई मानवीय संकट का फायदा उठाकर भर्ती करने वाला संगठन अब “मुंबई, गुजरात, असम और मुरादाबाद समेत विभिन्न स्थानों पर मुसलमानों के खिलाफ हिंसा” का जिक्र कर देश विरोघी भावनाएं भड़काने की कोशिश कर रहा है।44 इस बीच केरल से 21 युवाओं के लापता होने और उनमें से कुछ के कथित रूप से दाएश में भर्ती होने की खबरें तथा एनआईए द्वारा हैदराबाद में गिरफ्तारियों की खबरें बहुत परेशान करने वाली हैं। उनमें से कई लोगों की पहुंच हथियारों की प्रणालियों तक रही है, उनके पास घातक विस्फोटकों से संबंधित रसायन थे और उन्हें भारत तथा विदेश में अपनी देखरेख करने वालों से वित्तीय मदद भी मिली। उदाहरण के दाएश के आत्मघाती हमलावरों ने पेरिस और ब्रसेल्स में जिस ट्राई एसिटोन ट्राई परऑक्साइड (टीएटीपी) रसायन का इस्तेमाल किया था, वही रसायन हैदराबाद में गिरफ्तार एक व्यक्ति के तहखाने से मिलने पर55 सब यह सोचकर चौकन्ने हो गए कि हैदराबाद का गुट आत्मघाती हमले की तैयारी तो नहीं कर रहा था। ऐसा होता तो यह भारत में टीएटीपी का पहला इस्तेमाल होता।

वास्तव में अभी तक देश खुशकिस्मत रहा है कि इन कट्टरपंथी लोगों की आतंकी साजिशों का पता उनके अंजाम तक पहुंचने से पहले ही लगा लिया गया है। इसे देखते हुए भारत में दाएश से जुड़ी गतिविधियों के धीरे-धीरे हो रहे खुलासे को कम गंभीर नहीं मानना चाहिए। भारत के विभिन्न राज्यों में युवाओं को कट्टरपंथी बनाने के बढ़ते चलन पर करीब से निगाह रखनी चाहिए और उसी तरह उनसे निपटा भी जाना चाहिए। इसके लिए नागरिक समाज और सुरक्षा प्रतिष्ठानों के बीच तालमेल महत्वपूर्ण है। भारत में प्रभावशाली नेताओं अथवा विचारकों द्वारा व्यक्तिगत रूप से या सोशल मीडिया के जरिये हिंसा भड़काने की कोशिशों का विचारधारा के जरिये ही जवाब दिया जाना चाहिए। पश्चिम बंगाल और असम की सीमाओं की कड़ी निगरानी की जानी चाहिए क्योंकि दाएश से जुड़े तत्व बांग्लादेश से इन्हीं के रास्ते भारत में घुस सकते हैं। चूंकि पश्चिम में दाएश से प्रेरणा पाकर या उसके निर्देश पर कुछ नृशंस हत्याकांडों को अकेले हमलावरों या देसी कट्टरपंथियों ने अंजाम दिया था, इसीलिए भारतीय सुरक्षा योजनाकारों को उन हमलावरों के तरीकों से सीखना चाहिए और ऐसे ही हमले रोकने के लिए जरूरी कदम उठाने चाहिए। चुनौतियां बड़ी हैं क्योंकि लड़ाई किसी व्यक्ति या आतंकी संगठन के खिलाफ नहीं है बल्कि एक विचार के खिलाफ भी है, जो हिंसा, सांप्रदायिकता और घृणा को बढ़ावा दे रहा है।

संदर्भः

  1. “54 आईएसआईएस सपोर्टर्स अरेस्टेडः गवर्नमेंट” द टाइम्स ऑफ इंडिया, 26 जुलाई 2016।
  2. “मेकिंग अ जिहादीः हाउ मुदब्बिर मुश्ताक शेख बिकेम इंडियन फेस ऑफ इस्लामिक स्टेट्स” द इकनॉमिक टाइम्स, 9 फरवरी 2016।
  3. “इस्लामिक स्टेट्स रिलीजेज वीडियो अलीज्डली शोइंग इंडियन जिहादिस्ट्स फाइटिंग इन सीरिया”, द इंडियन एक्सप्रेस, 20 मई 2016।
  4. “कमिंग टु अवेंज बाबरी, कश्मीर, गुजरात, मुजफ्फरनगरः आईएसआईएस वीडियो”, द इंडियन एक्सप्रेस, 21 मई 2016।
  5. “एक्सप्लोसिव्स लिंक्स हैदराबाद टु पेरिस एंड ब्रसेल्स”, द टाइम्स ऑफ इंडिया, 1 जुलाई 2016।

Translated by: Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)
Published Date: 9th August 2016, Image Source: http://indiatoday.intoday.in
(Disclaimer: The views and opinions expressed in this article are those of the author and do not necessarily reflect the official policy or position of the Vivekananda International Foundation)

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