वायु शक्तिः सैन्य अभियान सपोर्ट के लिए जमीनी आक्रमण क्षमता बढ़ाना अपरिहार्य
Brig Gurmeet Kanwal

भारतीय वायु सेना की ताकत का प्रदर्शन करने के लिए किये जाने वाले आयरन फिस्ट अभ्यास की पूर्व संध्या पर हाल ही में एयर मार्शल बीएस धनोआ ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि दो मोर्चों पर लड़ाई लड़ने के लिए वायु सेना के पास पर्याप्त संख्या नहीं है। यह एक ऐसी बात है जिसका सार्वजनिक रूप से कहा जाना अपने आप में एक दुर्लभ बात है। भारतीय वायु सेना की स्क्वाड्रन संख्या 39.5 से कम होकर 32 रह गई है जिसके कारण जमीनी स्तर पर लक्ष्य पर प्रहार करने और नेस्तानाबूत करने की वायु सेना की ताकत बहुत बुरे तरीके से प्रभावित हुई है। हाल ही में वाशिंगटन डीसी स्थित ‘कार्नेज एंडोवमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस’ के सीनियर रिसर्च असोसिएट और प्रसिद्ध दक्षिण एशिया विश्लेषक डा. एश्ले जे. टेलिस ने ‘ट्रबल्स दे कम इन बटालियन्स’ नाम के अपने एक विशेष लेख में सेना को सही मात्रा में और समयबद्ध एयर सपोर्ट की जरूरत पर जोर देते हुए भारतीय वायु सेना में व्यापक सुधार करने पर बल दिया है। टेलिस लिखते हैं कि ‘दुनिया की अन्य वायु सेनाओं की तरह भारतीय वायु सेना कभी भी एयर सपोर्ट (वायु सहायता) के मामले को उतनी प्राथमिकता नहीं दे पाई जितने की जरूरत है। यह बात समझ से बाहर है कि दुश्मन की धरती पर निम्न स्तर के हमलों के दौरान जरूरी एयर सपोर्ट में भी भारतीय वायु सेना अपेक्षाकृत थोड़े महंगे बहुउद्देश्यीय विमानों का इस्तेमाल करने के लिए क्यों प्रतिबद्ध दिखाई नहीं देती है। बजाय इसके वो अपने पुराने मिग 21 जैसे विमानों को मोर्चे पर लगाती है जिनके पुराने डिजायन के कारण ये पर्याप्त संख्या में हथियार ले जाने में अक्षम होने के कारण इस तरह के अभियान में इनके प्रयोग को बिल्कुल बेतुका बनाते हैं।’

भारत के चीन और पाकिस्तान के साथ अनसुलझे सीमा विवादों के कारण भारतीय उपमहाद्वीप में भविष्य में युद्ध हो सकता है। यह युद्ध मुख्य रूप से जमीन पर लड़ा जाएगा। भारतीय वायु सेना के लिए तकनीकी योग्यता और जमीन पर लक्ष्य को कब्जाने और सटीकता से नष्ट करने का कौशल विकसित करना बहुत जरूरी है। ये सही है कि बहुउद्देश्यीय लड़ाकू विमान बहुत महंगे होते हैं और भारतीय वायु सेना को सामरिक युद्ध क्षेत्र में जमीनी लक्ष्यों को नष्ट करने में इनके वहां प्रयोग का खतरा मोल नहीं लेना चाहिए जहां आमतौर पर वायु सुरक्षा प्रणाली मौजूद होती है।

1999 की गर्मियों में हुए कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय वायु सेना के युद्धक विमानों ने हवा से जमीन पर हमलों के द्वारा पाकिस्तानी सेना को विफल करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मुंथो ढालो स्थित रसद शिविर को नष्ट करने के दृश्य को राष्ट्रीय टेलीविजन पर बार-बार प्रसारित किया गया था। अफगानिस्तान, बाल्कन्स, चेचेन्या, इराक, लीबिया और हाल ही में इस्लामिक स्टेट के खिलाफ लड़ाई में जमीन पर हमला करने वाले युद्धक विमानों ने उल्लेखनीय परिणाम हासिल किए हैं, विशेष रूप से सटीक निर्देशित हथियारों का प्रयोग करते समय परिणाम बहुत बेहतरीन रहे हैं।

जमीनी बलों के साथ सटीक ढंग से तालमेल करते हुए वायु शक्ति का प्रयोग सैन्य बलों की ताकत को कई गुणा बढ़ा देता है और जीत का मार्ग प्रशस्त करता है। लक्ष्यों को गहराई से साधना और जमीनी बलों को लगातार सटीक एयर सपोर्ट का प्रावधान अब पारंपरिक युद्ध की रणनीति और तकनीक का अभिन्न अंग बन गया है।

लक्ष्य पर तत्काल विभिन्न श्रेणी के हथियारों की आपूर्ति और आक्रमण की वायु सेना की क्षमता संयुक्त अभियानों को बढ़ा रही है। दूसरे खाड़ी युद्ध के दौरान अमेरिकी सेना द्वारा सटीक एयर सपोर्ट को एक बेहतरीन कौशल के स्तर पर इस्तेमाल किया गया था। हवा से जमीन पर हमले किसी भी अन्य युद्ध की तुलना में कहीं अधिक तीव्रता से किए गए थे और 15-20 मिनट के अविश्वसनीय समय में बड़ी तत्परता से प्रतिक्रिया दी गई।

आधुनिक युद्ध के समय युद्ध क्षेत्र में वायु हमलों के महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता है। जमीन पर हमला करने वाले विमान व युद्धक हैलीकॉप्टर 1000 पाउंड के हथियारों और बमों का कुछ ही मिनटों में आसानी से लक्षित स्थान पर इस्तेमाल कर सकते हैं जबकि वहीं 155 मि.मि. मध्यम रेज बोफोर्स आर्टिलरी की 18 गनों को इस काम में 15-30 मिनट का समय लगता है।

कठिन परिस्थितियों में विशेष रूप से मैदानों में होने वाले तेज गति के यंत्रीकृत अभियानों में सटीक हवाई हमले से एक पूरा दिन बचाया जा सकता है। 1971 में पाकिस्तान के साथ हुआ लोंगेवाला युद्ध इसका बेहतरीन उदाहरण है। और यह भी एक सत्य है कि जब अपने जवानों की आंखों के सामने युद्ध क्षेत्र में इस तरह के हमले होते हैं और जवान उन्हें खुद अपनी आंखों से सामने होता हुआ देखते हैं तो उनके मनोबल पर इसका बहुत गहरा मनोवैज्ञानिक असर होता है और उनका मनोबल बढ़ता है।

भविष्य के युद्धों में विरोधी की युद्ध मशीनरी को नष्ट करना एक प्रमुख सैनिक लक्ष्य होगा। जमीनी हमलों के लिए निर्धारित भारतीय वायुसेना के विमानों को वांछित परिणाम हासिल करने के लिए बड़े पैमाने पर सटीक निर्देशित हथियारों से लैस करने की आवश्यकता है। अलग-अलग बंकरों, बख्तरबंद लड़ाकू वाहनों और अन्य लक्ष्यों को सटीक निर्देशित हथियार प्रणाली के बिना नष्ट करना संभव नहीं है। आधुनिक युद्धक विमान सुपरसोनिक गति से उड़ान भरते हैं लेकिन साथ ही उनके सामने युद्ध क्षेत्र में इस्तेमाल किए जाने वाली वायु रक्षा प्रणालियों से उत्पन्न खतरों की चुनौतियांं भी होती हैं। ये हाथ से इस्तेमाल किए जाने वाले या कंधे पर रखकर चलाए जाने वाले स्ट्रिंगर्स और अन्य हथियार हो सकते हैं। साथ ही रॉकेट या गैटलिंग मशीनगनों से पैदा होने वाले खतरों के कारण विमान कई बार नजदीक से सटीक निशाना लगाने की स्थिति मे नहीं होते हैं। केवल लेजर और टीवी गाइडेड बम व हवा से जमीन पर मार कर सकने वाले मिसाइल वारहेड ही लक्षित जगह पर सटीकता से निशाना साध सकते हैं लेकिन ये सामान्य गोला-बारुद के मुकाबले काफी महंगे होते हैं।

कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय वायु सेना द्वारा लक्ष्य केंद्रित सटीकता से लगातार किए गए ताबड़तोड़ हमलों ने स्थिति को भारत में पक्ष में बदल कर रख दिया। इन हमलों ने दुश्मन के अस्थायी बंकरों को लगभग पूरी तरह से नष्ट कर दिया जिससे थल सेना के लिए कई स्थानों पर होने वाला प्रतिरोध लगभग खत्म हो गया। जिसके चलते दुश्मन द्वारा कब्जाए गए टाइगर हिल और कई अन्य स्थानों पर बहुत कम नुकसान के बाद फिर से कब्जा कर लिया गया। सीमित या छोटे युद्धों में जमीनी और हवाई शक्ति के प्रभावी तालमेल ने निसंदेह जीत सुनिश्चित की है। भारत की सैन्य क्षमताओं को देखते हुए भविष्य में युद्ध करने और जीतने के लिए भारतीय वायु सेना को जमीनी सैन्य बल को सपोर्ट देने के लिए अपने हथियारों और उपकरणों की उपयुक्तता का अाकलन करने की बहुत जरूरत है।

एक निष्पक्ष विश्लेषण करने के से पता चलेगा कि जमीन पर कार्रवाई करने की क्षमता में व्यापक सुधार करने की बहुत जरूरत है। भारत को अपनी क्षमताओं में जरूरत के हिसाब से सुधार करने के लिए तत्काल एक सघन और लक्ष्य केंद्रित अभियान शुरू करने की जरूरत है।

मुख्यरूप से भारत को अपनी वायुसेना की स्क्वाड्रनों में बढ़ोतरी करनी चाहिए जो विशेषीकृत और जमीनी हमलों के लिए खासतौर पर बनाए गए विमानों से सुसज्जित हो। इसके लिए अमेरिका के ए-10 थंडरबोल्ट या रूस के एसयू-39 जैसे विमान उपयुक्त हो सकते हैं। ये विमान अपक्षेाकृत धीमी गति पर काम कर सकते हैं और सटीकता से हमला करने में सक्षम कई टन पे लोड को एक साथ ले जा सकते हैं जिनमें हवा से जमीन पर सटीकता से मार करने वाली मिसाइले और बम शामिल हैं। साथ ही ये दुश्मन के वायु रक्षा प्रणाली से होने वाले नुकसान को भी काम हद तक कम करने में सक्षम हैं।

पहले खाड़ी युद्ध में अमेरिकी वायु सेना द्वारा निभाई गई भूमिका के बारे में बाते हुए जनरल रॉबर्ट एस स्केल्स जूनियर लिखते हैं कि 'एक बार जब ए-10 ने जमीन पर अपनी विनाशकारी कार्रवाई शुरू कर दी तो इसने 30 एमएम गन के सपोर्ट से भी प्रभावी कार्रवाई की'।

जमीनी हमले के लिए विशेषरूप से तैयार किए गए विमानों की लागत मिराज-2000 और राफेल एमएमआरसीए जैसे बहुउद्देश्यीय विमानो की तुलना में काफी कम है। यह निश्चित है कि आने वाले दशकों में भारतीय वायु सेना को जमीनी अभियान चलाने के लिए जमीनी सैन्य बल की मदद के लिए सटीक हथियारों से उन्हें सपोर्ट देने की जरूरत होगी।

हवाई कार्रवाई के लिए विशेषीकृत विमानों को प्राप्त करने की प्रक्रिया को तत्काल शुरू करने की आवश्यता है ताकि मिराज-27 विमानों के सेवानिवृत होने से पहले ही उन्हें वायु सेना में शामिल किया जा सके। इसके साथ ही सटीक निर्देशित हथियारों की संख्या को भी व्यापक स्तर पर बढ़ाए जाने की जरूरत है ताकि सेना के पास 30 फीसदी से ज्यादा स्टॉक के लक्ष्य को हासिल किया जा सके। अब मानव रहित लड़ाकू विमानों और लड़ाकू ड्रोन विमानों को भी व्यापर स्तर पर सेवा में शामिल करने का समय आ गया है ताकि जमीनी अभियानों को प्रभावी बनाया जा सके।

जाहिर सी बात है कि भारतीय वायु सेना अपने वर्तमान छोटे से बजट में जमीनी कार्रवाई के लिए तैयार नए विशेष विमानों को खरीदने में सक्षम नहीं है। बल्कि एक बार इसके लिए निर्विवाद रूप से पर्याप्त मात्रा मेंं अतिरिक्त जरूरी धन भारतीय वायु सेना को मुहैया कराना होगा ताकि वह इन विमानों को अपने बेड़े में शामिल कर सके।

(लेखक रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान (आईडीएसए) नई दिल्ली में विजिटिंग फैलो हैं)


Translated by: Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)
Published Date: 27th April 2016, Image Source: http://indiatoday.intoday.in
(Disclaimer: The views and opinions expressed in this article are those of the author and do not necessarily reflect the official policy or position of the Vivekananda International Foundation)

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