घरेलू कालेधन से निपटना
Prof R Vaidyanathan

कालेधन के दो प्रकार हैं घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय। ये दोनों किसी स्तर पर एक दूसरे से जुड़े हैं परन्तु इनको नियंत्रण के प्रकार अलग अलग होते हैं। भारत में कालाधन बहुत ज्यादा है और इतनी बड़ी मात्रा में कालाधन देश की आर्थिक व्यवस्था को अस्थिर करने के साथ सरकार की नीतियों को भी अप्रभावी बनाता है।

घरेलू कालेधन से निपटने के लिए दो सुझावों पर विचार किया जा सकता है।

यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि भ्रष्टाचार एवं रिश्वत में लगा पूरा धन, कालाधन पैदा करता है परन्तु कालाधन के और भी स्रोत हैं। जैसेकि आप डाक्टर के पास जाते हैं और उसे फीस के रूप में धन देते हैं और हो सकता है डाक्टर उसको अपनी आमदनी में दिखाये ही नहीं। इस प्रकार कालाधन पैदा हुआ बिना किसी भ्रष्टाचार के, और इसी प्रकार पैट्रौल खरीदते है और भुगतान नकदी में करते हैं तथा बेचने वाले से इसकी रसीद नहीं लेते हैं। इस प्रकार ज्यादातर कालेधन का आदान प्रदान नकद राशि में होता है। कालेधन का इस्तेमाल चुनावों में मतदाताओं को रिश्वत देने में भी किया जाता है। तमिलनाडू में पिछले विधानसभा चुनावों में चुनाव आयोग ने बहुत सी गाडि़यों को वोटरों को रिश्वत देने के लिए धन ले जाते हुए पकड़ा था इन गाडि़यों में एम्बूलैंस भी थी। कालेधन को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने की जरूरत पड़ती है और कभी कभी इसे काफी दूर भी ले जाना पड़ता है। इस स्थिति में बड़ी राशि के नोट जैसे 1000 रूपये के नोट ज्यादा उपयोगी साबित होते हैं। छोटे नोटों जैसे 10 और 100 रूपये के नोटोें के मुकाबले में क्योंकि बड़ी राशि के नोटों के द्वारा बड़ी मात्रा में धन छोटे आकार के बक्से में आराम से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है।

बहुत से देशों में धन के लेनदेन के लिए न्यूनतम एक रूपया एवं अधिकतम 100 रूपये के नोटों का ही चलन है। भारत में यह 1 और 1000 रूपये के रूप में है। इस प्रकार हमारे देश में कालेधन के पैदा होने में इस प्रकार के बड़े नोटों का भी योगदान है। इसको ध्यान में रखते हुए यदि 500 और 1000 रूपये के नोटों को अर्थव्यवस्था से हटा दिया जाये तो किसी को भी आर्थिक नुकसान नहीं होगा। इसके लिए सरकार को एक निश्चित समय सीमा जैसे 6 महीने की समय सीमा की घोषणा करनी चाहिए जिसमें देशवासी अपने 500 और 1000 रूपये के नोटों को किसी भी बैंक में जमा कराकर उसके बराबर 100 रूपये के नोटों में अपनी धनराशि वापस प्राप्त कर सकें। और इस प्रकार में बड़ी धनराशि के नोट रखने वालों से कोई प्रश्न नहीं पूछा जाना चाहिए क्योंकि सरकार का असली उद्देश्य कालेधन को वापस बैंकों में लाना ही है। इस प्रकार बड़े नोटों के रूप में कालाधन काफी कम हो जायेगा और छोटे नोटों के द्वारा काले धन को एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाना काफी मुश्किल हो जायेगा।

कालेधन को रोकने का दूसरा तरीका है कि एक तय सीमा से ज्यादा धनराशि को स्वयं या हिस्सेधारी वाली फर्म में रखने को अपराध की श्रेणी में मानना। इस समय भारत में कितनी भी धनराशि स्वयं के पास रखना अपराध नहीं माना जाता। कांग्रेसी शासन के समय भूतपूर्व टेलीकाॅम मंत्री सुखराम ने नोटों को अपने तकियों में छुपा रखा था। अब तक हमारा ध्यान केवल धन के लेनदेन तक ही सीमित है और इस प्रकार 20000 रूपये से ऊपर के लेनदेन को बैंकों के द्वारा किया जाना चाहिए। परन्तु अब हमारा ध्यान नकद धन के भंडारण एवं रखने पर भी होना चाहिए। इस समय पकड़े गये धन को आय के ज्ञात श्रोतों से मिला कर देखा जाता है कि क्या यह धन आय के श्रोतों से अर्जित धन के बराबर ही है। परन्तु अब समय आ गया है कि एक सीमा से ज्यादा नकद धन जैसे कि 20 लाख से ज्यादा धन को रखने को अपराध माना जाना चाहिए। यह एक दिलचस्प बात है कि 2012 में वित्त मंत्रालय के कालेधन पर एक सफेद पेपर में उस समय के वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी ने पेज 55 पर कहा है कि इस समय स्वयं के पास बड़ी मात्रा में धनराशि रखने या इसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने पर कोई नियंत्रण नहीं है। इस प्रकार के धन को रखने या इसे लाने ले जाने के बारे में किसी को सूचित करने या कोई स्पष्टीकरण देने की आवश्यकता भी नहीं है। सरकार को सुझाव प्राप्त हुए हैं कि मौजूदा इस प्रकार के कानून जिसमें 2011 का सिक्का मुद्रण तथा भारतीय रिजर्व बैंक कानून 1934 तथा फेमा कानून शामिल है में बदलाव किये जाने चाहिए और इस विषय पर बिल्कुल एक नया कानून बनाया जाना चाहिए जिसके द्वारा एक तय सीमा से ज्यादा पाया जाने वाला या एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाने वाला धन अपराध माना जाना चाहिए। इसके अलावा तय सीमा से ज्यादा पाये जाने वाले धन को सरकार द्वारा कब्जे में लिऐ जाने का भी अधिकार होना चाहिए। परन्तु इस प्रकार के कानून के लिए व्यापक राजनीतिक स्वीकृति होनी चाहिए जिससे यह लोकसभा में पास हो सके।

बहुत से विकसित देशों में तय सीमा से ज्यादा नकद धन रखने पर पाबंदी है परन्तु एटीएम एवं इलैक्ट्रौनिक कार्डों इत्यादि के कारण ये कानून अप्रभावी साबित हो रहे हैं। अमेरिका में नकद धन का लेन देन ज्यादातर नशीली दवाओं एवं वेश्यावृत्ति इत्यादि में किया जाता है। अब समय आ गया है जब सरकार को धन के रखने पर एक नया व्यापक कानून लाना चाहिए और देखना चाहिए कि लोकसभा में विपक्ष क्या इसे पास करवाने में सहयोग देता है।

इस प्रकार ऊपर सुझाये दोनों सुझाव कालेधन को पूरी तरह रोक तो नहीं सकते परन्तु इसे कम जरूर कर सकते हैं। विकसित देशों में भी कालाधन पूरी तरह समाप्त तो नहीं हुआ है हां कम जरूर हुआ है।


Translated by: कर्नल शिवदान सिंह
Published Date: 4th April 2016, Image Source: http://www.shutterstock.com
(Disclaimer: The views and opinions expressed in this article are those of the author and do not necessarily reflect the official policy or position of the Vivekananda International Foundation)

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