स्वामी विवेकानंद के जीवन पर माता सीता और भगवान राम का प्रभाव
Nikhil Yadav

वर्ष 2024 का प्रथम महीना भारत ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए शुभ और ऐतिहासिक बनने जा रहा है, अक्टूबर और नवंबर मास के दिनों में जो दीपावली उत्सव का उत्साह सम्पूर्ण हिन्दू समाज में रहता है वही उत्साह इस बार जनवरी मास में भी महसूस किया जा रहा है। जैसी उमंग अयोध्यावासियों में प्रंभु श्री राम के वर्षो के वनवास के बाद अयोध्याजी आगमन पर दिखी थी वैसा ही उत्साह और हर्ष 2024 के प्रथम दिन से आम जनमानस में "राम मंदिर" के प्राण प्रतिष्ठा के लिए उत्पन हो रहा है। वर्षो के इंतजार के बाद 22 जनवरी 2024 को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की उपस्तिथि में श्री राम जन्मभूमि पर "राम मंदिर" का प्राण प्रतिष्ठा होगा और प्रभु श्री राम को मंदिर के मुख्य गर्भगृह में स्थापित कर दिया जाएगा। यह ऐतिहासिक पल हज़ारों वर्षो पुराणी सनातन संस्कृति के गौरवशाली पलों में दर्ज होगा, "राम मंदिर" एक संस्कृति केंद्र है जिसकी जरुरत हिंदू समाज को वर्षो से थी।

भगवान राम के आज विश्व भर में करोड़ो अनुयाई है, घर-घर में "रामायण और "राम कथा" का गुणगान है। लेकिन वातावरण हमेशा ऐसा अनूकूल नहीं रहा, समय समय पर विदेशी आक्रांताओं का भारत पर राजनैतिक शासन रहा और उन्होंने सनातन धर्म और संस्कृति को धूमिल करने की अंगिन प्रत्यन करे। वर्षो के मुग़ल और अंग्रेजी शासन ने भारतीयों के अंदर अपनी संस्कृति और धर्म के प्रति एक निराशा का वातावरण जागृत कर दिया था। इस अंधकार के दौर में प्रभु श्री राम के ही एक अनुयाई ने मोर्चा संभाला , वे है वीर सन्यासी स्वामी विवेकानंद जिन्होंने भारतीय संस्कृति को भारतीयों के सामने पुनः प्रतिष्ठित किया और विश्व भर में उसकी पताका फेहरा दी।

रामायण से परिचय

स्वामीजी के जीवन में पवित्र "रामायण" का परिचय उनकी माँ भुवनेश्वरी देवी ने करवाया। माँ उनको बाल्यकाल में रामायण से सम्बंधित अनेकों कहानियाँ सुनती जो स्वामीजी को बहुत आकृष्ट किया करती थी।[1]
स्वामीजी का राम कथा के प्रति इतना लगाव था की बचपन में वह अपने घर के पास होने वाली हर रामायण पाठ में बहुत ही आनंद से सहभागी होते थे। उनके रामायण पाठ सुनने के लिए स्वामीजी अपने प्रिय खेल भी छोड़ देते थे और पाठ को सुनकर वह आनंद का अनुभव करते थे और रात दिन का अंतर भूल जाते थे।[2]

पश्चिम को रामायण का सन्देश

माता सीता और प्रभु श्री राम का गुणगान उन्होंने पश्चिम में खूब किया। स्वामी विवेकानंद के जीवन पर माता सीता और प्रभु श्री राम का कितना गहरा असर रहा है। यह हमे उनके पश्चिम के दूसरे प्रवास के दौरान अमेरिका में स्तिथ शेक्सपियर क्लब , पेसिडिना, कैलिफ़ोर्निया में जनवरी 31,1900 को "रामायण" शीर्षक पर दिए हुए व्याख्यान से पता लगता है। यह व्याख्यान इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह "रामायण" पर प्रश्चिम के श्रोताओं के सामने पश्चिम की भूमि पर दिया हुआ व्याख्यान है। स्वामीजी रामायण को संक्षिप्त रूप में शुरू से अंत तक बताते है। व्याख्यान के अंत में स्वामीजी कहते है कि "यह है भारत का महान् आदि काव्य । राम और सीता भारतीय राष्ट्र के आदर्श हैं। सभी बालक-बालिकाएँ, विशेषतः कुमारियाँ सीता की पूजा करती हैं। भारतीय नारी की उच्चतम महत्त्वाकांक्षा यही होती है कि वह सीता के समान शुद्ध, पतिपरायणा और सर्वसहा बने। इन चरित्रों का अध्ययन करने पर तुमको सहज ही प्रतीत होने लगता है कि भारतीय और पाश्चात्य आदर्शों में कितना महान् अन्तर है।"[3] स्वामीजी ने "रामायण" पर दिए व्याख्यान से माता सीता और प्रभु श्री राम का आदर्श जीवन पश्चिम के सामने रखकर भारत के हज़ारों वर्षो की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परंपरा का परिचय करवाया।

स्वामी विवेकानंद और अयोध्या धाम

आज अयोध्या धाम प्रभु श्री राम का स्वागत करने को तैयार है इस ऐतिहासिक नगरी में स्वामी विवेकानंद जी का भी आगमन हुआ था। स्वामीजी अपने परिव्राजक जीवन के दौरान अपने गुरु भाई स्वामी अखंडानंद के साथ अयोध्या आये थे और अयोध्या धाम में अपने गुरु भाई के साथ उन्होंने कुछ दिन आनंदपूर्वक निवास किया था। उन्होंने सरयू नदी के पास स्थित माता सीता और प्रभु राम जी के मंदिर के दर्शन करके आशीर्वाद लिया और श्री जानकीवर शरण ( मंदिर के मेहनत) से धर्म और अध्यात्म सम्बंधित विषयों पर चर्चा भी की।[4] स्वामीजी ने अयोध्या के साधु संतो से भी परिचय किया और संतो द्वारा भगवान राम की लीला स्वामीजी बहुत ही आनंदपूर्वक सुनते थे।[5]

स्वामीजी अपने व्याख्यानों में भी अयोध्या धाम का वर्णन करते थे। स्वामीजी कहते है "भारतवर्ष में अयोध्या नाम की एक प्राचीन नगरी थी, जो आज भी विद्यमान है। भारत के मानचित्र में तुमने देखा होगा, जिस प्रान्त में इस नगरी का स्थान- निर्देश किया गया है, उसे आज भी अवध ही कहते हैं। यही प्राचीन अयोध्या थी। वहाँ पुरातन काल में राजा दशरथ राज्य करते थे।"[6]

भारत के आदर्श माता सीता और प्रभु श्री राम

अपने पश्चिम के प्रथम ऐतिहासिक प्रवास के बाद स्वामीजी जब 1897 में भारत वापस आये तो उनके सामने एक चट्टान सी समस्या सामने खड़ी थी,यह समस्या थी भारतीय युवा संतति के अंदर वर्षों के विदेशी अत्याचारों, दमन और संस्कृत हमलों के कारन खोये हुए आत्म सम्मान और आत्म गौरव को पुनः जागृत करना। स्वामीजी ने युवाओं के अंदर आत्म विश्वास जागृत करने के लिए उनको भारत देश के महापुरुषों के जीवन और उपलब्धियों से अवगत करवाया।

अपने 1897 में मद्रास में दिए भाषण "भारत के महापुरुष" में स्वामीजी माता सीता और प्रभु श्री राम का श्रेष्ठ , प्रेरणादायी और आदर्श जीवन युवाओं के सामने रखते है, वह कहते है" प्राचीन वीर युगों के आदर्शस्वरूप, सत्यपरायणता और समग्र नैतिकता के साकार मूर्तिस्वरूप, आदर्श तनय, आदर्श पति, आदर्श पिता, सर्वोपरि आदर्श राजा राम का चरित्र हमारे सम्मुख महान् ऋषि वाल्मीकि के द्वारा प्रस्तुत किया गया है।"[7]

स्वामीजी आगे कहते है " और सीता के विषय में क्या कहा जाए! तुम संसार के समस्त प्राचीन साहित्य को छान डालो, और मैं तुमसे निःसंकोच कहता हूँ कि तुम संसार के भावी साहित्य का भी मन्थन कर सकते हो, किन्तु उसमें से तुम सीता के समान दूसरा चरित्र नहीं निकाल सकोगे। सीताचरित्र अद्वितीय है।"[8] स्वामीजी जिन्होंने दुनिया के लग- भग एक दर्जन देशों का प्रवास किया था वह भारत वासियों को कहते है की माता सीता भारतीय स्त्रियों के लिए आदर्श है। स्वामीजी माता सीता को राष्ट्रीय देवी कि संज्ञा देते है। स्वामीजी कहते है " भारतीय स्त्रियों को जैसा होना चाहिए, सीता उनके लिए आदर्श हैं। स्त्रीचरित्र के जितने भारतीय आदर्श है, वे सब सीता के ही चरित्र से उत्पन्न हुए हैं, और समस्त आर्यावर्त-भूमि में सहस्त्रों वर्षों से वे स्त्री-पुरुष-बालक सभी की पूजा पा रही है। महामहिमामयी सीता, स्वयं शुद्धता से भी शुद्ध, धैर्य तथा सहिष्णुता का सर्वोच्च आदर्श सीता सदा इसी भाव से पूजी जाएँगी। जिन्होंने अविचलित भाव से ऐसे महादुःख का जीवन व्यतीत किया, वही नित्य साध्वी, सदा शुद्धस्वभाव सीता, आदर्श पत्नी सीता, मनुष्यलोक की आदर्श, देवलोक की भी आदर्श नारी पुण्यचरित्र सीता सदा हमारी राष्ट्रीय देवी बनी रहेंगी। .............. प्रत्येक हिन्दू नर-नारी के रक्त में सीता विराजमान है, हम सभी सीता की सन्तान lहै।"[9] स्वामीजी के यह शब्द हमे उनकी माता सीता और प्रभु श्री राम के व्यक्तित्व की समझ और उनके प्रति अपनी श्रद्धा,भक्ति,आदर और प्रेम की भावना दर्शाता है।

हनुमान जी की पूजा हर घर में हो : स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के जीवन पर हनुमान जी का भी अद्भुत प्रभाव था। जब बाल्यकाल में स्वामीजी को यह जानकारी मिल की हनुमान जी तो अमर है और अभी भी वह वनों में निवास करते है ; तो वह घर के पास स्थित केले के बाग में इस आशा से पहुंचे की हनुमान जी उनको वह दर्शन देंगे। स्वामीजी के गुरु भाई स्वामी शिवानंद जी से हमे पता लगता है की स्वामी विवेकानंद चाहते थे की भारत के हर घर में हनुमान जी की पूजा होनी चाहिए क्योंकि हनुमान जी जैसे व्यक्तित्व हमारी मन को मजबूत बनता है; आत्मशक्ति का विकास करता है। [10]

स्वामी विवेकानंद आज लाखों युवाओं की प्रेरणा है और उनकी प्रासंगिकता वर्ष दर वर्ष बढ़ रही है लेकिन यह जानना महत्वपूर्ण हो जाता है की स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुष की प्रेरणा भी माता सीता और प्रभु श्री राम है। इन दोनों के जीवन को स्वामीजी ने अपने लिए ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण भारत राष्ट्र के लिए आदर्श बताया। अब इतने वर्षों बाद अयोध्या धाम में निर्माण होने जा रहा "श्री राम मंदिर" भी हर भारतवासी और सनातन परंपरा में विश्वास करने वाले व्यक्ति के लिए प्रेरणा का केंद्र बनेगा। जो माता सीता , भगवान राम , लक्ष्मण जी और हनुमान जी के आदर्शों से रूबरू भी करवाएगा और अपने जीवन में आत्मसात करने के लिए प्रेरणा का स्त्रोत भी बनेगा।

संदर्भ

[1]प्रव्राजिका मुक्तिप्राणा (2014) परिव्राजक विवेकानंद, प्रकाशिका प्रव्राजिका अमलप्राणा साधारण सचिव रामकृष्ण सारदा मिशन दक्षिणेश्वर, कोलकाता - 700076 पृष्ट 4
[2]धर , शैलेन्द्रनाथ (2019) स्वामी विवेकानंद समग्र जीवन दर्शन : प्रथम खंड , विवेकानंद केंद्र हिंदी प्रकाशन विभाग , ' योगक्षेम ', गीता भवन , जोधपुर, पृष्ट 52 - 53
[3]विवेकानंद साहित्य (1963). " सप्तम खंड " स्वामी तत्त्वविदानन्द अध्यक्ष , अद्वैत्य आश्रम , मायावती , चम्पावत , उत्तराखंड , हिमालय पृष्ट 144
[4]धर , शैलेन्द्रनाथ (2019) स्वामी विवेकानंद समग्र जीवन दर्शन : प्रथम खंड , विवेकानंद केंद्र हिंदी प्रकाशन विभाग , ' योगक्षेम ', गीता भवन , जोधपुर, पृष्ट 379
[5]प्रव्राजिका मुक्तिप्राणा (2014) परिव्राजक विवेकानंद, प्रकाशिका प्रव्राजिका अमलप्राणा साधारण सचिव रामकृष्ण सारदा मिशन दक्षिणेश्वर, कोलकाता - 700076 पृष्ट 70
[6]विवेकानंद साहित्य (1963). " सप्तम खंड " स्वामी तत्त्वविदानन्द अध्यक्ष , अद्वैत्य आश्रम , मायावती , चम्पावत , उत्तराखंड , हिमालय पृष्ट 135
[7]स्वामी विवेकानंद (1948) भारतीय व्याख्यान , प्रकाशक स्वामी स्वामी ब्रह्मस्थानन्द अध्यक्ष, रामकृष्ण मठ रामकृष्ण आश्रम मार्ग धन्तोली, नागपुर- 440 012 पृष्ट 185
[8]स्वामी विवेकानंद (1948) भारतीय व्याख्यान , प्रकाशक स्वामी स्वामी ब्रह्मस्थानन्द अध्यक्ष, रामकृष्ण मठ रामकृष्ण आश्रम मार्ग धन्तोली, नागपुर- 440 012 पृष्ट 185
[9]स्वामी विवेकानंद (1948) भारतीय व्याख्यान , प्रकाशक स्वामी स्वामी ब्रह्मस्थानन्द अध्यक्ष, रामकृष्ण मठ रामकृष्ण आश्रम मार्ग धन्तोली, नागपुर- 440 012 पृष्ट 185-186
[10]धर , शैलेन्द्रनाथ (2019) स्वामी विवेकानंद समग्र जीवन दर्शन : प्रथम खंड , विवेकानंद केंद्र हिंदी प्रकाशन विभाग , ' योगक्षेम ', गीता भवन , जोधपुर, पृष्ट 52 - 53

(The paper is the author’s individual scholastic articulation. The author certifies that the article/paper is original in content, unpublished and it has not been submitted for publication/web upload elsewhere, and that the facts and figures quoted are duly referenced, as needed, and are believed to be correct). (The paper does not necessarily represent the organisational stance... More >>


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