खास है प्रधानमंत्री तोबगे की भारत यात्रा
Dr Rishi Gupta

भूटान के नव-निर्वाचित प्रधानमंत्री शेरिंग टोबगे अपनी पाँच दिवसीय यात्रा पर भारत आए। प्रधानमंत्री टोबगे की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने जनवरी 2024 में हुए आम चुनावों में जीत हासिल की और फरवरी में पदभार संभालने के बाद वह अपनी पहली विदेश यात्रा पर भारत आए जो नव-निर्वाचित प्रधानमंत्रियों द्वारा पहली विदेश यात्रा के लिए भारत आने की परंपरा को जारी रखता है। यात्रा के दौरान उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विदेश मंत्री एस जयशंकर के अलावा कई गणमान्य उद्योगपतियों से भी बातचीत की। फेडरैशन ऑफ इंडियन चैम्बर ऑफ कॉमर्स एण्ड इंडस्ट्रीज़ में अपने वक्तव्य में प्रधानमंत्री तोबगे ने कहा कि “यह यात्रा मेरे लिए बहुत भावनात्मक रही है, जो प्रधानमंत्री मोदी के साथ मुलाकात के कारण है, साथ ही मैं दिल्ली में दोस्तों के बीच फिर से आया हूँ यह अत्यंत हर्ष की बात है।”

अपने एक ट्वीट में प्रधानमंत्री तोबगे प्रधानमंत्री मोदी को अपना ‘मित्र’ संबोधित करते हुए लिखा कि “प्रधान मंत्री मोदी से मिलकर बहुत अच्छा लगा। मैंने भूटान को उनके दृढ़ समर्थन के लिए धन्यवाद दिया और हमने भूटान और भारत के बीच संबंधों को मजबूत करने के लिए कई मुद्दों पर चर्चा की। प्रधानमंत्री मोदी जी भी जल्द ही भूटान का दौरा करने पर सहमत हुए।” भारत में चुनावी गरमाहट के बीच प्रधानमंत्री मोदी का प्रधानमंत्री तोबगे का भूटान न्योता स्वीकार करना दो देशों के बीच खास संबंधों को दर्शाता है। अप्रैल के पहले हफ्ते में होने वाली यह भूटान यात्रा प्रधानमंत्री मोदी के दूसरे कार्यकाल की आखिरी यात्रा होगी जो बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि अपने पहले कार्यकाल के शुरू में ही प्रधानमंत्री मोदी अपनी पहली विदेश यात्रा पर भूटान गए थे जिसने उनकी सरकार की पड़ोसी प्रथम नीति की प्रतिबद्धता को दर्शाया था।

भूटान के साथ भारत के संबंध केवल दोनों देशों के बीच मित्रता और पड़ोसी प्रथम नीति द्वारा चिह्नित नहीं हैं, बल्कि यह शांतिपूर्ण संबंधों का तत्व है जिसने पिछले सात दशकों में उनके द्विपक्षीय संबंधों को परिभाषित किया है। भारत और भूटान के बीच राजनयिक संबंध 1968 में स्थापित हुए थे । भारत-भूटान द्विपक्षीय संबंधों का मूल ढांचा 1949 में हस्ताक्षरित मित्रता और सहयोग संधि है जिसे दोनों देशों ने फरवरी 2007 में सामयिक बनाने के लिए संशोधित किया था । सात दशकों से भारत भूटान का प्रमुख विकास भागीदार बना हुआ है। भारत सरकार की भूटान को दी जानी वाली सहायता में विकास, कृषि और सिंचाई, स्वास्थ्य, औद्योगिक विकास, सड़क परिवहन, ऊर्जा, नागरिक उड्डयन, शहरी विकास, मानव संसाधन विकास, छात्रवृत्ति, शिक्षा और संस्कृति जैसे क्षेत्र शामिल हैं। प्रधानमंत्री मोदी और प्रधानमंत्री तोबगे ने भेंटवार्ता के दौरान इन्हीं बुनियादी ढांचे और द्विपक्षीय साझेदारी के विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति की समीक्षा की। साथ ही दोनों नेताओं ने भारत-भूटान मित्रता को और मजबूत करने की अपनी प्रतिबद्धता जताई।

सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हिमालय की तलहटी में स्थित, भूटान हिमालय में भारत के हितों की रक्षा करने में एक प्रमुख भागीदार रहा है, खासकर जब चीन जैसे देश लगातार आक्रामकता बनाए हुए हो। यह भारत और भूटान के बीच विशेष संबंध ही हैं की भूटान अपने उत्तरी पड़ोसी चीन के साथ राजनयिक संबंध नहीं रखता, भले ही बीजिंग राजनयिक संबंधों को औपचारिक रूप देने के लिए थिम्पू पर लगातार दबाव डाल रहा है । चूंकि भूटान चीन द्वारा किए गए तिब्बत पर अतिक्रमण का साक्षी रहा है इसलिए वह चीन के साथ एक खास दूरी बनाए हुए है और अपनी विदेश और सुरक्षा नीतियों पर भारत के साथ मित्रवत बातचीत करता रहा है । लेकिन हाल के दिनों में कुछ बदलाव देखे गए हैं जिनमें भूटान और चीन के बीच चल रही सीमा विवाद पर बातचीत शामिल है। तमाम सामरिक विशेषज्ञ भूटान और चीन के बीच हो रही इस बातचीत को हिमालय में बदलते सामरिक समीकरणों का एक चिंतास्पद संकेत मानते हैं।

यह कहना गलत होगा की भारत चीन की भूटान से बढ़ती नजदीकियों को लेकर चिंतित नहीं है। भारत भूटान-चीन सीमा विवाद पर चल रहे वार्तालाप पर पैनी नजर रखे हुए है और इसका सीधा संबंध भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा से है। ज्ञात है की 2017 में ढोकलाम विवाद में भारत ने भूटान की तरफ से चीनी फ़ौज को भूटानी भूभाग से वापस भेजने का काम किया था । चूँकि ढोकलाम क्षेत्र भारत को उसके उत्तर-पूर्व से जोड़ने वाले सँकरे सिलीगुड़ी गलियारे के करीब है और ऐसे में भूटान और चीन के बीच चल रही सीमा वार्ता से निकलने वाले किसी भी समाधान का भारत की सुरक्षा पर सीधा प्रभाव होगा।

हालाँकि, भूटान चीन के साथ किसी भी निर्णय पर आने से दिल्ली को विश्वास में रखेगा लेकिन क्या भारत निकलने वाले समाधान को लेकर सहज होगा, यह देखने वाली बात होगी। साथ ही, भूटान-चीन के बीच कोई भी समाधान भारत के प्रति भूटान की नीतियों को कितना पुनः परिभाषित करेगा, यह भी देखना महत्वपूर्ण होगा। खासकर, अगर भूटान चीन के साथ राजनयिक संबंध बनाने पर समझौता करता है, तो यह भारत को भूटान के साथ चली आ रही विदेश और सुरक्षा नीतियों को पुनः परिभाषित करने पर मजबूर कर देगा।

प्रधानमंत्री टोबगे ने हमेशा से भारत के साथ मजबूत संबंधों की वकालत करते आए हैं और उनका प्रधानमंत्री बनकर वापस आना भूटान का भारत के साथ विचारशील और सशक्त संबंध बनाए रखने में मददगार साबित होगा । लेकिन भारत को इस बात पर ध्यान देने की आवश्यकता है की चीन की गतिविधियों पर पैनी नजर रक्खे खासकर चीन द्वारा चल रहे भूटान के युवाओं को प्रभावित करने के प्रयासों पर । आज भूटान एक नई ऊर्जा और राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में विकसित हो रहा है जिसमें युवाओं की आकांक्षाओं का एक खास महात्म्य हैं जिसे समझने में भारत को किंचित देर नहीं करनी चाहिए । इन सभी चिंताओं के बीच, प्रधानमंत्री मोदी की आने वाली भूटान यात्रा भारत-भूटान संबंधों में एक नई ऊर्जा का संचार करेगी।

(The paper is the author’s individual scholastic articulation. The author certifies that the article/paper is original in content, unpublished and it has not been submitted for publication/web upload elsewhere, and that the facts and figures quoted are duly referenced, as needed, and are believed to be correct). (The paper does not necessarily represent the organisational stance... More >>


Image Source: https://www.flickr.com/photos/meaindia/53588664076/in/album-72177720315456946/

Post new comment

The content of this field is kept private and will not be shown publicly.
6 + 5 =
Solve this simple math problem and enter the result. E.g. for 1+3, enter 4.
Contact Us