मध्य हिंद महासागर में रणनीतिक रूप से स्थित मालदीव में 30 सितंबर को राष्ट्रपति चुनाव हुए। प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव (पीपीएम) के विपक्षी उम्मीदवार मोहम्मद मुइज्जू ने अपने प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार और वर्तमान राष्ट्रपति मोहम्मद इब्राहिम सोलिह के खिलाफ 54 प्रतिशत वोटों के साथ जीत हासिल की। ऐसा माना जा रहा है नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू को सत्ता-विरोधी लहर से फायदा हुआ, जिसका मुख्य कारण कोविड-19 के दौरान पर्यटन पर निर्भर अर्थव्यवस्था में मंदी थी। साथ ही निर्वाचित राष्ट्रपति मुइज्जू ने राष्ट्रपति मोहम्मद सोलिह की " इंडिया फर्स्ट" नीति के खिलाफ जो आंदोलन चलाया उसका एक खास राजनीतिक फायदा हुआ। मुइज्जू ने “इंडिया आउट” आंदोलन के दौरान भारत पर अप्रत्यक्ष रूप से मालदीव की संप्रभुता भंग करने का आरोप लगाया और साथ ही तत्कालीन राष्ट्रपति सोलिह की “इंडिया फर्स्ट” नीति को गलत और मालदीव के खिलाफ बताया । निर्वाचित राष्ट्रपति मुइज्जू ने भारत विरोध के बीच चीन के साथ अपनी उन्मुखता को पूरी तरह से उजागर किया है ।
इस बार के चुनावों मे मालदीव की जनता काफी हद तक चुनावी मुद्दों पर विभाजित नजर आई जिसमे भारत और चीन के साथ दोस्ती एक महत्वपूर्ण पहलू था । निर्वाचित राष्ट्रपति ने चीन के साथ रिश्तों को मजबूत बनाने के लिए प्रतिबद्धता जताई है, जो उनकी पार्टी पीपीएम के राजनीतिक घोषणापत्र का हिस्सा था। इस संदर्भ में मोहम्मद मुइज्जू ने मालदीव में तैनात 75 भारतीय सैन्य कर्मियों को वापस भेजने की बात कही है जो सीधे तौर पर उनके भारत विरोध का एक सक्रिय कदम होगा । अल जज़ीरा को दिए अपने साक्षात्कार मे मुइज्जू ने कहा की “मालदीव की स्वतंत्रता और स्वायत्तता विदेशी सनिकों के मौजूदगी की वजह से खतरे मे है” और इस बात पर जोर दिया की “भारतीय सैन्य दल की मौजूदगी की वजह से ही मालदीव की जनता ने इस (मोहम्मद सोलिह) को दोबारा मौका नहीं दिया”। मोहम्मद मुइज्जू के इन बयानों से राजनीतिक भाव तो साफ है जिसमे चीन का प्रभाव साफ दिख रहा है लेकिन अगर भारतीय सैनिक टुकड़ी किसी भी तरह से एक मुद्दा है तो उसका कूटनीतिक वार्तालाप के तहत ही निष्कर्ष निकाला जा सकता है न की राजनीतिक बयानबाजी से ।
ज्ञात है कि भारत ने क्रमशः 2020 और 2013 में मालदीव को को डोर्नियर विमान और दो हेलीकॉप्टर उपहार में दिए थे । इन उपकरणों को संचालित करने और मालदीव की सेना को इस बारे में तकनीकी सहायता देने के लिए 75 भारतीय सैन्य कर्मियों को मालदीव सरकार ने समझौते के तहत बुलाया था । हालांकि निर्वाचित राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के अनुसार भारतीय सैन्य कर्मियों की संख्या इससे ज्यादा हो सकती है लेकिन सबसे बाद सवाल यह उठता है कि वर्षों से जिस मौजूदगी को मालदीव भारत की मदद और सहायता कहता रहा, ऐसा क्या हुआ की नव निर्वाचित राष्ट्रपति ने खुले तौर पर उनकी मौजूदगी की आलोचना की और खतरा बताया? आश्चर्य की बात यह है कि मोहम्मद मुइज्जू के पास इस तरह के कोई प्रमाण नहीं हैं जिनसे खतरे वाली बात साबित हो सके ।
निर्वाचित राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने इस समझौते को राजनीतिक उथल पुथल का मुद्दा बनाने मे कोई कसर नहीं छोड़ी है । पदासीन राष्ट्रपति सोलिह मानते थे की इस तरह की सैन्य उपस्थिति ने मालदीव की संप्रभुता से कोई समझौता नहीं किया, बल्कि आपदा की स्थिति में द्वीप राष्ट्र को इसका लाभ मिल है और मिलेगा । मोहम्मद मुइज्जू की बयानबाजी के विपरीत, भारत ने मालदीव मे विकास कार्यों को प्राथमिकता दी है जिसका श्रेय भारत की दूरदर्शी “पाड़ोसी पहले” नीति को जाता है । अगर नवनिर्वाचित राष्ट्रपति भारतीय सैन्य तकनीकी कर्मियों को वापस भेजते हैं तो यह समझौते का उल्लंघन और रिश्तों मे एक बड़ी दरार का कारण बनेगा । यह भी हो सकता है की मालदीव चीन के साथ इस तरह का कोई करार करे जो भारत की सुरक्षा दृष्टि से नुकसान का कारक होगा जिससे हिन्दी महासागर मे अशान्ति का माहौल बन सकता है ।
मुइज्जू की जीत का दूसरा महत्वपूर्ण कारक मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) का टूटना था। पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद राष्ट्रपति चुनावों के कुछ महीनों पहले ही एमडीपी से अलग हो गए और राजनीतिक मतभेदों के चलते नशीद ने अपने मित्र व राष्ट्रपति मोहम्मद सोलिह को समर्थन देने से इनकार कर दिया । ज्ञात है की 2019 के राष्ट्रपति चुनाव में नशीद ने सोलिह का समर्थन किया था और उनकी जीत में अहम भूमिका निभाई थी और राष्ट्रपति बनने के बाद सोलिह ने नशीद को अपना सलाहकार और मालदीव की संसद का अध्यक्ष नियुक्त किया था । नशीद ने राष्ट्रपति के तौर पर और पदस्थ राष्ट्रपति सोलीह के सलाहकार के तौर पर भारत के साथ संबंधों को सुधारने और मजबूत करने के लिए की पहल की थी और साथ ही संबंधों में एक नई स्थिरता और मजबूती देखी गई थी ।
नशीद ने एमडीपी से अलग होकर डेमोक्रेट पार्टी बनाई और इलियास लबीब को राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारा, जो दोहरे अंक के आँकड़े को छूने में विफल रहे । यदि नशीद ने एमडीपी से नाता नहीं तोड़ा होता और पार्टी में अपने सहयोगी राष्ट्रपति सोलीह का समर्थन किया होता, तो प्रजातान्त्रिक चुनावों की प्रक्रिया मे यह पहली बार होता की किसी राष्ट्रपति को दूसरे कार्यकाल का अवसर मिलता। इस बात मे कोई दो राय नहीं है की मालदीव में पूर्व राष्ट्रपति नशीद के पास छोटा लेकिन समर्पित मतदाता है क्योंकि वह 2008 मे लोकतंत्र आने के बाद पहले चुने हुए राष्ट्रपति बने थे और लोकतान्त्रिक मूल्यों के प्रति उनके विचार गंभीर और साहसी थे । नशीद को विश्व स्तर पर लोकतंत्र समर्थक चेहरे के रूप में देखा जाता है, जिन्होंने 2008 से 2012 तक मालदीव की सेवा की। वर्ष 2012 मे उन्हे राजनीतिक कारणों से इस्तीफा देना पद और बाद मे उन्हे आतंकवाद का दोषी पाए जाने के बाद उन्हें 13 साल की जेल हुई, लेकिन बाद में शीर्ष अदालत के फैसले के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया।
भारत और चीन दोनों ही देश हिंद महासागर में प्रमुख सैन्य और समग्र रणनीतिक उपस्थिति के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं क्योंकि हिंद महासागर संचार के महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों से युक्त विश्व व्यापार का एक प्रमुख प्रवेश द्वार है। भारत और चीन के लिए मालदीव में मजबूत उपस्थिति का मतलब होगा कि वह हिंद महासागर मे अपनी सामरिक पैठ को मजबूत कर पाएंगे । हालांकि चीन अपने भरसक प्रयासों से मालदीव मे अपनी पकड़ मजबूत करने का प्रयास करता रहा है लेकिन चीन इस बात से अवगत है की इस प्रक्रिया में, भारत को प्रकर्तिक रूप से एक बढ़त प्राप्त है जिसमे भारत और मालदीव के बीच की चीन की अपेक्षा कम भौगोलिक दूरी महत्वपूर्ण स्थान रखती है । दूसरी ओर भारत का जुड़ाव मालदीव के लोगों से सांस्कृतिक तौर पर मजबूत है जिसके चलते रिश्तों मे एक निरन्तरता पाई गई है । इसके विपरीत, एक दूरस्थ पड़ोसी के तौर पर चीन को मालदीव में समर्थन प्राप्त करने के लिए लिए पूरी तरह से राजनीतिक नेतृत्व पर निर्भर रहना पड़ता है जहां वह बल और अर्थ दोनों का उपयोग करता रहा है।
भारत के लिए, मालदीव, जो भारत के पश्चिमी तट पर मिनिकॉय से सिर्फ 70 समुद्री मील और भारत के पश्चिमी तट से 300 समुद्री मील की दूरी पर स्थित है, एक महत्वपूर्ण रणनीतिक स्थिति रखता है। यह भौगोलिक निकटता मालदीव को भारत के लिए अत्यधिक रणनीतिक महत्व देती है। साथ ही, भारत मालदीव में विकासात्मक परियोजनाओं में शामिल रहा है, जिससे मालदीव के लोगों के बीच भारत के प्रति सद्भावना बढ़ी है। भौगोलिक निकटता के कारण, भारत किसी भी आपदा की स्थिति में सर्वप्रथम आगे आया है चाहे वह 2014 में मालदीव मे पीने के पानी का संकट रहा हो हो या COVID-19 महामारी के दौरान दवाओं और टीकों की आपूर्ति करने का । अब तक, भारत ने मालदीव के साथ अपनी भौगोलिक और सांस्कृतिक निकटता का लाभ उठाया है, लेकिन कुछ दलों की बढ़ती राजनीतिक नापसंदगी और उनके ‘इंडिया आउट’ अभियान भारत के लिए एक चिंता का विषय हैं ।
भारत के अलावा सामरिक तौर पर अन्य देश भी मालदीव में चीनी गतिविधियों को नजदीक से देख रहे हैं । खासकर क्वाड देशों का समूह जिसमें भारत के अलावा अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया भी शामिल है । हाल के वर्षों में मालदीव ने कुछ महत्वपूर्ण दौरे देखे हैं, जिनमें अक्टूबर 2020 में अमेरिकी विदेश मंत्री माइकल आर. पोम्पिओ, मई 2023 में भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का दौरा और अगस्त 2023 में जापानी विदेश मंत्री हयाशी योशिमासा शामिल हैं। इन सभी देशों ने मालदीव के साथ मजबूत संबंधों का वकालत की है और यह खास भी है क्योंकि अमरीका की ‘हिन्द-प्रशांत रणनीति’ में मालदीव का एक महत्वपूर्ण स्थान है।
मार्च 2022 में अमेरिका ने मालदीव पर एक ‘एकीकृत देश रणनीति’ जारी की जिसमें साफ तौर से कहा गया है की “मालदीव हिंद महासागर के मध्य में प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग लेन पर स्थित है। ऐसे में एक सुरक्षित, स्थिर और संप्रभु मालदीव अमेरिका के लिए एक मूल्यवान भागीदार और अभिन्न अंग है। यही मूल्य मालदीव को एक स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र का एक अभिन्न बनाते हैं”। हालांकि मालदीव ने कभी भी खुले तौर पर ‘हिंद-प्रशांत रणनीति’ से किसी तरह से जुड़ने की बात नहीं कही है लेकिन अमरीका और मालदीव के बीच संयुक्त रक्षा और सुरक्षा समझौता हिंद महासागर में अमेरिका को एक महत्वपूर्ण मदद देता है । भारत ने दक्षिण एशियाई क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभुत्व को रोकने के लिए सितंबर 2020 के अमेरिका-मालदीव रक्षा समझौते का स्वागत किया है।
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू को अपने बधाई संदेश में इस बात पर प्रकाश डाला कि चीन “चीन-मालदीव संबंधों के विकास को बहुत महत्व देता है, और पारंपरिक मित्रता को आगे बढ़ाने के लिए नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के साथ काम करने के लिए तैयार है।” शी जिनपिंग ने इस बात पर भी जोर दिया की दो देश व्यावहारिक सहयोग को गहरा करें, और दोनों देशों के बीच भविष्योन्मुख व्यापक, मैत्रीपूर्ण सहकारी साझेदारी में नई प्रगति को बढ़ावा दें। चीन की आधिकारिक प्रतिक्रिया के बाद चीनी मीडिया की त्वरित प्रतिक्रिया से मुइज्जू के प्रति उत्साह दिख रहा है। निर्वाचित राष्ट्रपति मुइज्जू ने चीनी राजदूत वांग लिक्सिन से मुलाकात की और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) पर पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया और अपने अभियान वादों को पूरा करने में चीन के समर्थन का अनुरोध किया जिसमें भारत विरोध भी कथित तौर से शामिल है ।
निर्वाचित राष्ट्रपति मुइज़ू चीन के प्रति एक खास तरह के झुकाव का वादा करते हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं होना चाहिए की चीन के लिए सब कुछ आसान होगा । चीन को अभी भी मालदीव में लोगों की प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ सकता है जो चीन की दमनकारी नीतियों से और पाड़ोसी देश श्री लंका मे चीन की दमनकारी नीतियों और चालों से अवगत हैं । ऐसे मे हाल के वर्षों में, चीनी सहायता से होने वाली संभावित ऋण निर्भरता और सुरक्षा निहितार्थों के संबंध में मालदीव के लोगों के बीच चिंताएँ बढ़ गई हैं ।मालदीव पर चीनी कंपनियों की संप्रभु गारंटी का 935 मिलियन डॉलर और सीधे तौर पर चीन का अतिरिक्त 600 मिलियन डॉलर बकाया है । यह देखना दिलचस्प होगा कि चीन इसका निपटारा कैसे चाहेगा। हालाँकि, इसमें कोई संदेह नहीं है कि चीन मालदीव को अपनी महत्वाकांक्षी बीआरआई योजना के एक अनिवार्य घटक के रूप में देखता है और अपने स्वार्थों के लिए वह किसी भी तरह की नीति उपयोग मे ल सकता है। चिंता का विषय यह है की चीन को मालदीव मे नई सरकार का राजनीतिक समर्थन क्षेत्रीय सुरक्षा चिंताओं को बढ़ सकता है ।
प्रधानमंत्री मोदी नवनिर्वाचित राष्ट्रपति को बधाई देने वाले पहले कुछ विश्व नेताओं में से थे। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, "भारत समय-परीक्षणित भारत-मालदीव द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने और हिंद महासागर क्षेत्र में हमारे समग्र सहयोग को बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है।" इस साल की शुरुआत में, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मालदीव की अपनी यात्रा के दौरान द्विपक्षीय संबंधों की प्रशंसा की और विभिन्न परियोजनाओं की समीक्षा की थी । साफ तौर से भारत कहेगा की मालदीव एक मित्रवत व्यवहार के साथ आपसी तालमेल बनाए रक्खे जो दोनों ही पक्षों के लिए लाभकारी हो।
इस बीच, अपने चुनावी वादों के अनुरूप, नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मुइज्जू ने मालदीव में भारतीय राजदूत के साथ भेंट बैठक की, जहां उन्होंने कथित तौर पर संप्रभुता के सम्मान के सिद्धांतों के आधार पर मालदीव-भारत संबंधों को पुनर्जीवित करने की बात उठाई । हालांकि भारत की ओर से इस विषय पर कोई महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन निर्वाचित मुइज्जू की चुनावी अभियान के दौरान भारत की कथित चिंता का विषय है ।
भारत ने मालदीव में विभिन्न परियोजनाओं के तहत लगातार लगभग 1.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर की पर्याप्त सहायता देने का वादा किया है। विकासात्मक परियोजनाओं, विशेषकर ग्रेटर माले कनेक्टिविटी इनिशिएटिव के लिए भारत की महत्वपूर्ण वित्तीय प्रतिबद्धता को दो देशों के बीच घनिष्ठ संबंधों और सहयोग के संकेतक के रूप में देखा गया है । हालांकि मोहम्मद मुइज्जू ने मालदीव के लोगों को लाभ पहुँचाने वाली परियोजनाओं में बाधा न डालने की अपनी सरकार की प्रतिबद्धता व्यक्त की है, लेकिन उनके भारत विरोधी विचार मालदीव और भारत के बीच रक्षा और सुरक्षा साझेदारी के भविष्य पर महत्वपूर्ण चिंताएँ पैदा करता है।
मालदीव में बदलती राजनीतिक और भू-राजनीतिक स्थिति के बीच, पूर्व राष्ट्रपति सोलीह के शासनकाल के दौरान मालदीव-भारत संबंधों में देखी गई गतिशीलता में बदलाव देखा जा सकता है । लेकिन भारत के प्रति नीति में बदलाव का मतलब पूरी तरह से संबंधों को खत्म करना नहीं है, बल्कि सुविधाजनक रूप से मालदीव चीन समर्थक देश के तौर पर खुले तौर पर आगे आ सकता है । ऐसे में भारत को मालदीव के साथ अपनी नीतियों और जुड़ाव की समीक्षा करनी होगी। साथ ही, मालदीव में भारत की भूमिका अन्य क्वाड सदस्यों के लिए महत्वपूर्ण होगी । यह तो साफ है की क्वाड देश रणनीतिक इनपुट के लिए भारत पर भरोसा करते हैं, खासकर हिंद महासागर में चीनी गतिविधियों पर कड़ी नजर रखने में।
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