प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और प्रथम महिला जिल बिडेन के निमंत्रण पर अमेरिका की अपनी ऐतिहासिक यात्रा पर हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह अमरीका यात्रा इस परिवर्तनकारी युग में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय आश्वासन और विश्वास की निरंतरता को चिह्नित करती है । आज भारत, रक्षा और रणनीतिक मोर्चे पर अमेरिका को लेकर अपनी ऐतिहासिक हिचकिचाहट को न केवल खारिज कर रहा है बल्कि नए आयामों पर भी कार्य कर रहा है । स्पष्ट रूप से, मोदी प्रशासन इस बात पर साफ़ है की भारत के लिए क्या महत्वपूर्ण है और भारत पारस्परिक रूप से लाभकारी सहयोग में उन्हें कैसे प्राप्त करना चाहता है, इस पर आवाज उठाने से बिलकुल भी हिचकिचा नहीं रहा है।
आज, भारत वैश्विक समुदाय की जरूरतों और आकांक्षाओं के अनुरूप अपनी दृष्टि को सामने लाने में अधिक खुला और मुखर है, और प्रधान मंत्री मोदी गुटनिरपेक्ष आंदोलन और रणनीतिक स्वायत्तता के ऐतिहासिक लबादे को भारत पर और ज्यादा ढकने के मूड में नहीं रहे हैं जैसा कि पिछले प्रशसनों ने किया। आज का भारत संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ संलग्नता पर सवालों को न ही टाल रहा है और न ही इस बात को जाहिर करने में कतरा रहा है कि आज का भारत शांति और शक्ति दोनों में समन्वय रखने में विश्वास रखता है।
भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय रणनीतिक सहयोग पिछले लगभग दो दशकों में धीरे-धीरे बढ़ा है, लेकिन हाल के वर्षों में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। यह साफ़ है कि भारत ने एशिया में दोनों देशों के हितों के अभिसरण के बीच अमेरिका के साथ रक्षा और उच्च-प्रौद्योगिकी क्षेत्र में संबंधों को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए परमाणु सहयोग जैसे मुद्दों पर हिचकिचाहट के युग से खुद को बदल दिया है जो अभूतपूर्व और सराहनीय है।
प्रधानमंत्री मोदी अपनी यात्रा के दौरान अमरीकी कांग्रेस को भी सम्बोधित करेंगे और यह दूसरा अवसर होगा। अपने प्रथम कार्यकाल के फौरन प्रधानमंत्री मोदी ने वर्ष 2016 में अपनी अमरीकी यात्रा के दौरान अमरीकी कांग्रेस में ऐतिहासिक सम्बोधन दिया था जिसमे उन्होंने भारत-अमरीका मैत्री कि एक ठोस नींव रखी थी जो दूरदर्शी थी और उसी दूरदर्शिता को आज के भारत-अमरीका द्विपक्षीय सहयोग का आधार माना जा सकता है। प्रधानमंत्री उन गिने शक्तिशाली विश्व नेताओं में होंगें जिन्हें अमेरिकी कांग्रेस को संबोधित करने के लिए दूसरी बार निमंत्रित किया गया है । यह प्रधानमंत्री मोदी की विश्व प्रसिद्धि को दर्शाता है और साथ ही उनके प्रगतिवादी और अत्याधुनिक भविष्यवादी विचारों को पूरा करने की प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है।
प्रधानमंत्री मोदी की अमरीकी यात्रा के दौरान सेमीकंडक्टर, साइबरस्पेस, एयरोस्पेस, सामरिक बुनियादी ढांचे और संचार, वाणिज्यिक अंतरिक्ष परियोजनाओं, क्वांटम कंप्यूटिंग,औद्योगिक और रक्षा क्षेत्रों में आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस के अनुप्रयोग जैसे विभिन्न विषयों पर बात-चीत करने की उम्मीद है। प्रधान मंत्री मोदी ने अमेरिका की यात्रा पर अपने बयान में कहा कि "हम मानते हैं कि भविष्य की वैश्विक अर्थव्यवस्था इस बात से निर्धारित होगी कि लोकतंत्र इन उभरती प्रौद्योगिकियों को हमारे पक्ष में काम करने के लिए तैयार कर सकता है या नहीं, चाहे वह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) या क्वांटम या 5G या 6G या सेमीकंडक्टर्स, बायोटेक्नोलॉजी और अन्य चैत्र।" ऐसी ही कुछ बात अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने भी कही। ऐसे में यह साफ़ है विश्वास के इस साझा प्रौद्योगिकी पारिस्थितिकी तंत्र को बनाने के लिए भारत, अमेरिका के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर की शक्ति और इक्छा रखता है।
भारत के लिए, यह यात्रा कई दशकों के उस खालीपन को भी भरती है जहां भारतीय राजनीतिक अभिजात वर्ग की गहरी जड़ें अमेरिका के साथ सहयोग की संभावनाओं के बारे में लगातार निराशावाद, चीन के साथ गठबंधन के बारे में गैर जिम्मेदाराना आशावाद और रूस पर अति-निर्भरता के बारे में लगातार निराशावाद से भरी थीं।
इस यात्रा भारत की सॉफ्ट और हार्ड पावर क्षमताओं के मामले में भारत की कूटनीति के बदलते आयामों को प्रदर्शित करती है। अपनी यात्रा के पहले दिन, प्रधानमंत्री 21 मई को संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस समारोह में शामिल होंगे। यह भारत की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा, स्वस्थ जीवन शैली और "वसुधैव कुटुंबकम" जिसका अर्थ 'विश्व एक परिवार है' की भारत की विचारधारा को प्रतिबिंबित करेगा। ज्ञात हो की यह भारत की कूटनीतिक सफलता और प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों का ही परिणाम था कि 21 मई को संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मान्यता दी गई। इसलिए प्रधानमंत्री की अमरीकी यात्रा का इससे बेहतर समय नहीं हो सकता था।
आज का भारत जो दृढ़ संकल्पित है, भविष्यवादी है, उत्पादन छमता में अग्रणी और व्यापार करने में सक्षम है और वह अमेरिका सहित समान विचारधारा वाले देशों के साथ भरोसे के एक स्वस्थ तकनीकी पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण को एक नयी उम्मीद देता है । इसलिए, भारत और अमेरिका के बीच आज का बहुमुखी द्विपक्षीय सहयोग भारत के कूटनीतिक इतिहास में एक निर्णायक क्षण है जहां यह अपनी सही क्षमताओं, योगदान और सहायक दृष्टिकोण के आधार पर वैश्विक राजनीति में अपनी भूमिका तलाशता है। कोविद-19 एक ऐसा चरण था जहां भारत न केवल अपने लोगों की रक्षा करने में दिन रात एक किये बल्कि एंटीबायोटिक दवाओं को भेजकर अमरीका जैसे विक्षित देशों की सहायता भी की। इसलिए इस बात में कोई दो राय नहीं है की आज का भारत तन्मयता के साथ वैश्विक विकास में अपनी भागेदारी को समझ रहा है।
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