नेपाल के नए प्रधानमंत्री के पी शर्मा फरवरी, 2018 में पद संभालने के दो महीने के भीतर ही अपनी पहली आधिकारिक विदेश यात्रा (6 से 8 अप्रैल, 2018) पर भारत आए। उसके महीने भर बाद ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेपाल की तीन दिन (11 से 13 मई) की सरकारी यात्रा पर गए।
सर्वोच्च स्तर पर इतनी जल्दी-जल्दी ऐसी भेंट होना तो अजीब बात लगती ही है, लेकिन यह भी ध्यान रहे कि पिछले चार वर्ष में प्रधानमंत्री मोदी की यह तीसरी नेपाल यात्रा थी। काठमांडू में नवंबर, 2014 में संपन्न हुए दक्षेस सम्मेलन के लिए उनकी यात्रा भी इसमें शामिल है। यह भी महत्वपूर्ण बात है कि इन दोनों यात्राओं (प्रधानमंत्री ओली की भारत यात्रा और प्रधानमंत्री मोदी की नेपाल यात्रा) का उद्देश्य एक ही था - अपरिहार्य कारणों से कुछ अरसा पहले बिगड़े दोनों देशों के संबंध मजबूत करना।
पटना से प्रधानमंत्री मोदी जनकपुरी की पवित्र नगरी में पहुंचे, जानकी मंदिर में पूजा-अर्चना की, नागरिक अभिनंदन में बोले, रामायण सर्किट के लिए 100 करोड़ रुपये के विकास पैकेज की घोषणा की और नेपाल के प्रधानमंत्री के साथ मिलकर जनकपुर और उत्तर प्रदेश में अयोध्या के बीच सीधी बस सेवा को हरी झंडी दिखाई। नेपाल में प्रवास के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने उत्तर पश्चिम नेपाल के मस्तांग जिले में स्थित मुक्तिनाथ मंदिर और काठमांडू में पशुपतिनाथ मंदिर के दर्शन भी किए।
यात्रा के दौरान जो कामकाज हुआ, वह विदेश मंत्रालय द्वारा जारी बयान1 में बता दिया गया, जिसमें अन्य बातों के साथ कहा गया था किः-
• दोनों प्रधानमंत्रियों ने दोनों देशों के बीच गहरी दोस्ती और समझ को दर्शाने वाले गर्मजोशी भरे दोस्ताना माहौल में 11 मई, 2018 को प्रतिनधिमंडल स्तर की वार्ता की;
• उन्होंने अतीत में हुए सभी समझौते लागू करने के लिए प्रभावी उपाय उठाने पर सहमति जताई ताकि यात्रा के कारण संबंधों में आई गति बरकरार रहे;
• इस बात पर भी सहमति बनी कि कृषि, रेलवे संपर्क और आंतरिक जलमार्ग विकास के क्षेत्र में द्विपक्षीय कार्यक्रमों का सक्रिय क्रियान्वयन किया जाएगा;
• उन्होंने द्विपक्षीय संबंधों को नई ऊंचाइयों तक ले जाने के लिए साथ मिलकर काम करने और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए साझेदारी को समानता, आपसी विश्वास, सम्मान एवं आपसी लाभ के सिद्धांतों पर बढ़ाने का संकल्प भी दोहराया;
• द्विपक्षीय प्रक्रियाओं को नियमित रूप से आयोजित करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया, जिसमें विदेश मंत्री स्तर पर नेपाल-भारत संयुक्त आयोग और द्विपक्षीय संबंधों की समूची स्थिति की समीक्षा करना शामिल है। साथ ही आर्थिक एवं विकास सहयोग परियोजनाओं के तीव्र क्रियान्वयन की आवश्यकता भी बताई गई;
• उन्होंने व्यापार एवं आर्थिक संबंधों की महत्ता, बढ़ते व्यापार घाटे पर नेपाल की चिंता, अनधिकृत व्यापार पर नियंत्रण के लिए सहयोग, द्विपक्षीय व्यापार संधि की समग्र समीक्षा करने तथा पारगमन संधि और संबंधित समझौतों में संशोधन पर विचार करने की अहमियत पर भी जोर दिया ताकि भारतीय बाजार में नेपाल की पैठ बढ़ सके, कुल द्विपक्षीय व्यापार बढ़ सके और नेपाल के पारगमन व्यापार को मदद मिल सके;
• दोनों ने आर्थिक वृद्धि को तेज करने और लोगों के आवागमन को बढ़ावा देने में देने में संपर्क की उत्प्रेरक भूमिका को भी रेखांकित किया; वायु, भूमि एवं जल द्वारा आर्थिक तथा भौतिक संपर्क बढ़ाने के लिए कदम उठाने, नेपाल को अतिरिक्त वायुप्रवेश मार्ग उपलब्ध कराने के साथ नागरिक उड्डयन क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने की बात भी कही;
• जल संसाधनों जैसे नदी प्रशिक्षण कार्य, जलप्लावन तथा बाढ़ प्रबंधन, सिंचाई में सहयोग बढ़ाने तथा मौजूदा द्विपक्षीय परियोजनाओं कि क्रियान्वयन की गति बढ़ाने का निश्चय भी किया;
• साथ मिलकर उन्होंने नेपाल में 900 मेगावाट के अरुण-3 जलविद्युत संयंत्र की आधारशिला भी रखी। द्विपक्षीय विद्युत व्यापार समझौते के अनुरूप विद्युत क्षेत्र में द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने पर सहमति जताई।
प्रधानमंत्री मोदी के अन्य राजकीय कार्यों में राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी, उप राष्ट्रपति नंद बहादुर पुन से भेंट करना और पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा (एनसी) तथा पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड (माओवादी-मध्य) से मुलाकात शामिल हैं।
यात्रा के बाद दोनों प्रधानमंत्री ने सोशल मीडिया का प्रयोग भी किया, जहां प्रधामनंत्री मोदी ने ट्वीट किया कि ‘उनकी नेपाल यात्रा ऐतिहासिक रही’; इसके कारण उन्हें नेपाल की अद्भुत जनता से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ। उन्होंने यह भी कहा कि ‘नेपाल के प्रधानमंत्री ओली के साथ बातचीत उत्पादक रही। इस यात्रा के कारण भारत-नेपान संबंधों में नई ऊर्जा आई है।’2
प्रधानमंत्री के पी ओली ने अपने ट्वीट में कहा, “भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की सफल नेपाल यात्रा के दौरान मोदी जी ने ओर मैंने दोनों देशों के बीच लंबित कार्यों को समयबद्ध तरीके से निपटाने पर सहमति जताई है।”3
मूल्यांकन
प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा और प्रधानमंत्री ओली की अप्रैल की नई दिल्ली यात्रा का मूल्यांकन केवल हस्ताक्षर किए गए समझौतों अथवा जारी किए गए सहायता पैकेजों की संख्या के आधार पर नहीं होना चाहिए। पिछले वर्ष की दूसरी छमाही में नेपाल में हुए ऐतिहासिक चुनावों के फौरन बाद और प्रधानमंत्री ओली के पिछले कार्यकाल (अक्टूबर, 2015-अगस्त, 2016) में द्विपक्षीय संबंध तेजी से बिगड़ने के बाद हुए इन दोनों संवादों का संबंध सुधारने के लिहाज से विशेष महत्व है। ऐसा करना महत्वपूर्ण था और दोनों देशों ने इस बात को महसूस भी किया क्योंकि द्विपक्षीय संबंधों को वापस पटरी पर लाने के लिए हर प्रकार की असली और कथित गलतपफहमियों को दूर करना जरूरी था।
याद रखें कि अप्रैल में अपनी नई दिल्ली यात्रा के बाद प्रधानमंत्री ओली ने कहा था कि उनकी भारत यात्रा ‘महत्वपूर्ण तथा फलदायी’ रही और “द्विपक्षीय संबंध समानता तथा आपसी हितों के आधार पर नई दिशा में आगे बढ़ेंगे।” ओली ने एक महत्वपूर्ण बात यह भी कही कि वह नेपाल की धरती का इस्तेमाल भारत के हितों के खिलाफ नहीं होने देंगे। उनकी भारत यात्रा सफल रही और बातचीत अच्छी रही।4
विश्लेषक इस बात पर सहमत हैं कि दोनों यात्राओं के दौरान उनके उद्देश्य सराहनीय रूप से प्राप्त किए गए। जवाब में फौरन नेपाल यात्रा पर जाकर मोदी रिश्तों में आई गति को वास्तव में कायम रखना चाहते थे और ‘अतीत के मतभेदों को भुलाना चाहते थे।’ प्रधानमंत्री मोदी ने निश्चित रूप से अतिरिक्त प्रयास कर नेपाल के प्रधानमंत्री को एक बार फिर आश्वस्त किया कि उनकी सरकार नेबरहुड फर्स्ट नीति के तहत नेपाल के साथ अपने संबंधों को शीर्ष प्राथमिकता देती है।5 काठमांडू में नागरिक अभिनंदन के दौरान उन्होंने यह भी कहा, “नेपाल ने युद्ध से बुद्ध (शांति) तक की लंबी यात्रा तय कर ली है। आपने बैलट का रास्ता चुनने के लिए बुलेट को छोड़ दिया है। लेकिन यह मंजिल नहीं है। आपको बहुत आगे जाना है।” उन्होंने कहा, “आप माउंट एवरेस्ट के बेस कैंप तक पहुंच गए हैं और असली चढ़ाई अब करनी है, और जिस तरह शेरपा चोटी पर चढ़ने में पर्वतारोहियों की मजबूती से मदद करते हैं, उसी तरह भारत नेपाल के लिए शेरपा जैसा काम करने को तैयार है।”6
यात्रा से पहले नेपाली और भारतीय मीडिया में ये अटकलें जोरों पर थीं कि मोदी-ओली भेंट पर चीन का साया पड़ सकता है क्योंकि ओली और उनकी पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (सीपीएन)-यूनाइटेड माओइस्ट लेनिनिस्ट (यूएमएल) की सरकार तथा बड़ी गठबंधन साझेदार (सीपीएम-माओइस्ट सेंटर) का रुझान चीन के पक्ष में माना जाता है। मोदी की वुहान यात्रा से ठीक पहले चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ग्यावली के सामने प्रस्ताव रखा था कि आर्थिक गलियारा बनाने के लिए तीनों देशों के बीच त्रिपक्षीय सहयोग हो। मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग की ‘अनौपचारिक’ भेंट का स्वागत करते हुए ग्यावली ने शिन्हुआ से कहा, “आर्थिक विकास समेत विभिन्न क्षेत्रों में चीन और भारत के साथ त्रिपक्षीय सहयोग के विचार के लिए नेपाल सदैव तैयार है और सकारात्मक दृष्टि रखता है।”7 लेकिन यह कूटनीतिक हवाबाजी ही लग रही थी क्योंकि किसी को भी त्रिपक्षीय सहयोग के इस विचार को भारत का समर्थन मिलने की उम्मीद नहीं थी, कम से कम अभी तो नहीं। आधिकारिक बयानों अथवा सोशल मीडिया की पोस्ट में भी इस बात का कोई जिक्र नहीं था। ओली के ट्वीट में केवल इतना लिखा था कि वह चीन जाएंगे (लेकिन कोई ब्योरा नहीं दिया गया था)।
नेपाल में चीनी सहायता से कई परियोजनाएं चल रही हैं और कुछ अन्य परियोजनाओं के प्रस्ताव की खबर है। नेपाल ने चीन के वन बेल्ट वन रोड कार्यक्रम को मंजूर कर लिया है और इस बात की पूरी संभावना है कि इसके तहत नेपाल में चलने वाली अधिकतर चीनी रणनीतिक परियोजनाओं को बुनियादी ढांचे, संपर्क तथा बिजली परियोजनाओं की श्रेणी में रखा जाएगा। भारत के लिए भी यह मानना स्वाभाविक ही है कि नेपाल भारत की सामरिक चिंताओं और हितों का पूरा ध्यान रखेगा। भारत के लिए चीन से भी यह उम्मीद लगाना एकदम सही है कि वह इस बारे में भारत की चिंताओं का खयाल रखेगा।
खत्म करने से पहले दो अजीब घटनाओं का जिक्र करना ठीक होगा, जो प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा से ठीक पहले घटी थीं। 16 अप्रैल को नेपाल में विदेशी दूतावास की संपत्तियों पर दुर्लभ हमला हुआ और दक्षिण पूर्व नेपाल के विराटनगर शहर में भारतीय वाणिज्य दूतावास की इमारत के बाहर प्रेशर कुकर बम फट गया। दूसरी घटना में खंडबारी-9 में अरुण 3 जलविद्युत संयंत्र के दफ्तर की चहारदीवारी में विस्फोट हुआ, जिसमें मामूली नुकसान भी हुआ। उन घटनाओं में कोई भी हताहत नहीं हुआ और न ही किसी गुट ने उनकी जिम्मेदारी ली। दोनों प्रधानमंत्रियों द्वारा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये अरुण-3 की आधारिशला रखना यात्रा के दौरान प्रस्तावित था और वह काम आराम से हो गया।
प्रशासन ने करीब 11,000 सुरक्षाकर्मी तैनात किए थे और प्रधानमंत्री की मस्तांग में मुक्तिनाथ मंदिर की यात्रा से पहले विश्वप्रसिद्ध अन्नपूर्णा ट्रेकिंग मार्ग भी बंद कर दिया गया। उम्मीदकी जाती है कि अधिकारी ऐसी घटनाओं को गंभीरता से लेंगे, उनकी जांच करेंगे और भारत-नेपाल की नई पहलों को नाकाम करने की कोशिश में जुटी ताकतों को विफल करने के लिए समुचित कदम उठाएंगे।
संदर्भ
1विदेश मंत्रालय, नई दिल्ली
2डेक्कन हेराल्ड, 12 मई
3हिंदुस्तान टाइम्स, 13 मई
4इंडियन एक्सप्रेस, 12 मई
5द टाइम्स ऑफ इंडिया, 12 मई
6बिजनेस स्टैंडर्ड, 12 मई
7फर्स्ट पोस्ट, 7 मई
(लेख में संस्था का दृष्टिकोण होना आवश्यक नहीं है। लेखक प्रमाणित करता है कि लेख/पत्र की सामग्री वास्तविक, अप्रकाशित है और इसे प्रकाशन/वेब प्रकाशन के लिए कहीं नहीं दिया गया है और इसमें दिए गए तथ्यों तथा आंकड़ों के आवश्यकतानुसार संदर्भ दिए गए हैं, जो सही प्रतीत होते हैं)
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