भारत ने 22 अक्टूबर को जयनगर-कुर्था सीमा पार रेल लाइन नेपाल को सौंप दिया। इससे दोनों देशों के बीच वस्तुओं की ढुलाई, सेवाओं के सुचारु होने और लोगों की आवाजाही में काफी सहुलियत होने की उम्मीद है। एक बार नेपाल सरकार द्वारा इस से संबंधित कानूनी बाधाओं को दूर करने और आवश्यक रसद का प्रबंधन करने के बाद यह रेल लाइन चालू हो जाएगी।
यह कनेक्टिविटी परियोजनाओं की श्रृंखला में से एक है,जिसे दोनों देशों ने पिछले एक दशक में शुरू किया है। भारत को अक्सर पड़ोसी देशों में विकास परियोजनाओं में देरी की आलोचना का सामना करना पड़ता है, जो आंशिक रूप से सच है और इसका भारतीय पक्ष को अहसास है। इसलिए दोनों देशों ने पिछले कुछ वर्षों में विकास परियोजनाओं को गति देने के लिए सक्रिय कदम उठाए हैं, जिनके कुछ सकारात्मक परिणाम दिखाई दे रहे हैं। कई परियोजनाओं को निर्धारित समय के भीतर पूरा कर लिया गया है तो कुछेक समय सीमा से पहले भी संपन्न किया जा चुका है।
उपर्युक्त 34.9 किमी जयनगर-कुर्थ खंड भारतीय सहायता के तहत बनाए जा रहे 68.72 किमी जयनगर-बिजलपुरा-बरदीबास रेल लिंक का हिस्सा है। इस जयनगर-कुर्थ खंड पर आठ स्टेशन और पड़ाव (हॉल्ट्स) हैं, जिनमें नेपाल का ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल जनकपुर भी शामिल है। भारत में रेलवे का व्यापक घरेलू नेटवर्क है, हालांकि यह अभी नेपाल सहित अनेक पड़ोसी देशों से नहीं जुड़ा है जबकि ऐसी रेलवे लाइनें तो दशकों पहले बन जानी चाहिए थीं।
कनेक्टिविटी परियोजनाओं में तेजी लाने के लिए, द्विपक्षीय तंत्र की बैठकें नियमित आधार पर हो रही हैं। नेपाल और भारत ने जयनगर-कुर्था खंड पर यात्री ट्रेन सेवाओं को शुरू करने के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) पर हस्ताक्षर करने को लेकर 7 अक्टूबर को भारत-नेपाल सीमा पार रेलवे पर संयुक्त कार्य समूह और परियोजना संचालन समिति की एक बैठक की थी। बैठक के दौरान दोनों पक्षों ने रक्सौल और काठमांडू के बीच प्रस्तावित ब्रॉड गेज रेलवे लाइन के अंतिम स्थान सर्वेक्षण (एफएलएस) के लिए एक और ऐतिहासिक निर्णय के लिए एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं।
प्रस्तावित रक्सौल-काठमांडू रेलवे लाइन को दो देशों के बीच एक रणनीतिक परियोजना के रूप में जाना जाता है, जिससे दोनों देशों के बीच संपर्क को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। दोनों देशों ने 2018 में, रक्सौल-काठमांडू रेलवे लाइन के समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए, जिस पर 3.15 बिलियन डॉलर लागत होने की उम्मीद है। रक्सौल-काठमांडू रेलवे लाइन को गति मिलने की उम्मीद है क्योंकि इस प्रस्तावित रेलवे लाइन बनाने के मार्ग में कोई दुर्गम भौगोलिक इलाका नहीं आता है।
रक्सौल-काठमांडू रेलवे लाइन की पूर्व-व्यवहार्यता अध्ययन का काम पहले ही पूरा हो चुका है। इसके बाद, अन्य सीमा पार रेलवे परियोजनाओं को भी आगे बढ़ाने की तैयारी चल रही है। दोनों देशों ने संयुक्त कार्यदल की बैठक में 18.6 किलोमीटर लंबे जोगबनी-विराटनगर रेल लिंक को पूरा करने और इसके शीघ्र संचालन के काम में तेजी लाने पर सहमति जताई है।
नेपाल-भारत रेलवे लाइनों का निर्माण भूगोल और लागत दोनों की दृष्टि से माकूल है। हालाँकि, नेपाल-भारत सीमा के साथ पांच बिंदुओं पर रेलवे के बुनियादी ढांचे के विकास पर एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर 2010 में हस्ताक्षर किए गए थे, लेकिन इसके कार्यान्वयन में देरी हुई थी।
जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, पिछले कुछ वर्षों में रेलवे लाइनें बनाने के मामले में प्रगति हुई है। भारत और चीन दोनों के साथ रेलवे लाइनों का निर्माण नेपाल सरकार की मुख्य प्राथमिकता है। नेपाल और चीन केरुंग-काठमांडू रेलवे लाइन के निर्माण के लिए बातचीत कर रहे हैं, हालांकि उसमें इतनी प्रगति नहीं हुई है। इस रेलवे लाइन में पूंजी निवेश के तौर-तरीकों को लेकर दोनों देश में मतभेद है।
रेल संपर्क की तरह ही सड़क परियोजनाओं में भी तेजी से प्रगति हुई है। भारत द्वारा वित्त पोषित तराई सड़क परियोजनाओं के मामले में अच्छी प्रगति हुई है। कुल 14 रोड पैकेज में से 13 सड़कों को बनाने का काम पूरा हो चुका है। कोविड-19 महामारी के बावजूद, तराई में सड़कों के निर्माण में अच्छी प्रगति हुई है।
एकीकृत चेक पोस्ट, जिसे आइसीपी के रूप में जाना जाता है, उसका निर्माण एक अन्य क्षेत्र है जहां पिछले कुछ वर्षों में प्रगति हुई है। तीन आइसीपी का काम पूरा हो चुका है और अतिरिक्त आइसीपी निर्माणाधीन हैं। इसी तरह, नेपाल-भारत क्रॉस-बॉर्डर पेट्रोलियम पाइपलाइन एक अन्य कनेक्टिविटी परियोजना है, जिस पर प्रकाश डाला जाना चाहिए। दक्षिण एशिया की पहली सीमा-पार पेट्रोलियम उत्पाद पाइपलाइन का उद्घाटन भारत एवं नेपाल के प्रधानमंत्रियों द्वारा 10 सितम्बर 2019 को किया गया था। दोनों देशों के बीच इसके अतिरिक्त पेट्रोलियम पाइपलाइन परियोजनाओं को विकसित करने पर भी द्विपक्षीय वार्ता चल रही है।
जलमार्ग भी संपर्क का एक अन्य क्षेत्र है,जहां दोनों देश एक दूसरे के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। भारत पहले ही नेपाल को गंगा नदी पर तीन अंतर्देशीय जलमार्गों का उपयोग करने की अनुमति देने पर सहमत हो गया है। यदि इसे अमल में लाया जाता है, तो नेपाल की पारगमन लागत कम हो जाएगी।
काठमांडू-नई दिल्ली बस सेवा पहले से ही चालू है। महामारी के कारण सेवा आंशिक रूप से प्रभावित हुई थी, जो अब फिर से शुरू हो गई है। दोनों देशों के शहरों के बीच अन्य बस सेवाएं भी चालू हैं।
भारत एवं नेपाल के बीच द्विपक्षीय निरीक्षण तंत्र बने हुए हैं, जो नियमित रूप से संपर्क परियोजनाओं में आने वाली बाधाओं पर नजर रखते हैं और उनका समाधान करते हैं। इसलिए, दोनों देशों के बीच अन्य शेष संपर्क परियोजनाओं को गति मिलने की उम्मीद है। 2016 में गठित तंत्र नियमित रूप से विकास परियोजनाओं की देखरेख कर रहा है।
आने वाले दिनों में नेपाल और भारत को अन्य कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट पर काम करना चाहिए। पिछले पांच वर्षों में, नेपाल और भारत ने अपने संबंधों में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं लेकिन विकास परियोजनाएं आगे बढ़ रही हैं। दोनों देश इस दिशा में सतर्क दिखते हैं कि राजनीतिक स्तर पर उभरने वाले मतभेद पूरे द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित नहीं करे। यह भावना आने वाले दिनों में भी अवश्य ही बनी रहनी चाहिए।
(भट्टराई काठमांडू स्थित पत्रकार और राजनीतिक टिप्पणीकार हैं। उनकी अंतरराष्ट्रीय मामलों में गहरी दिलचस्पी है।)
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