15 अगस्त 2021 को एक नाटकीय घटनाक्रम में, तालिबान ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा कर लिया। हालांकि अफगानिस्तान से अमेरिका के निकलने एवं अपनी फौज की वापसी के बाद अफगान सरकार और उसकी नेशनल आर्मी के लड़खड़ाने की संभावना जताई जा रही थी, लेकिन घटनाचक्र इतनी तेजी से घुमेगा, इसका अंदाजा किसी को नहीं था। तालिबान के कमांड में किए गए ब्लिट्जक्रेग हमले ने उन्हें 10 दिनों से भी कम समय में काबुल पहुंचने और सरकार पर नियंत्रण करने में सक्षम बनाया। अफगानिस्तान सरकार के इस नाटकीय पतन के संभावित कारणों और इस घटना को प्रेरित करने में अमेरिका की अचानक फौज-वापसी के फैसले की भूमिका पर लंबे समय तक चर्चा की जाएगी, पर जिस तरह से यह समूचा घटनाक्रम सामने आया है, उसने सभी को चौका दिया है। विश्व के तमाम देशों में, कई अफ्रीकी देशों की चिंता है कि तालिबान की यह जीत अफ्रीका में मौजूद विभिन्न इस्लामी चरमपंथी समूहों को और उकसा सकती है। और इस उपमहाद्वीप की सुरक्षा और संरक्षा में भारतीय हितों को देखते हुए, वास्तव में भारत का बहुत कुछ दांव पर लगा है।
उप-सहारा अफ्रीका के इस्लामी चरमपंथी के समूह अल-कायदा और इराक में इस्लामिक स्टेट और अल-शम (ISIS) से भिन्न स्तर के संबंध हैं।[1] इन जिहादी समूहों का एक खास गुण यह है कि उनकी जड़ें किसी न किसी रूप में विभिन्न मध्य-पूर्व देशों से जुड़ी हैं, और वे ज्यादातर देशज उत्पाद हैं।[2] उन सभी समूहों ने स्थानीय स्तर पर अपनी बुनियाद को पुख्ता करने के लिए मस्जिदों और अन्य धार्मिक संस्थानों का लाभ उठाया है और गैर-मुसलमानों की भर्ती के जरिए अपने अनुयायियों की तादाद को बढ़ाने के लिए जातीय कार्ड का इस्तेमाल किया। सभी समूहों ने राजसत्ता से लोगों की एक जैसी सामाजिक शिकवा-शिकायतों की भावना का फायदा उठाया और जन-कल्याण में सरकारी प्रयासों की बनी खाई को अपने फायदे के लिए हिंसक गुटों में बदलने की कोशिशों को व्यवस्थित रूप दिया।
वर्तमान में, पश्चिम अफ्रीका का साहेल क्षेत्र कट्टरपंथी इस्लामवाद के खतरे के लिहाज से सबसे अधिक असुरक्षित बना हुआ है।[3] बुर्किना फासो, माली, नाइजर और नाइजीरिया जैसे देशों में इस्लामिक आतंकी सुरक्षा बलों और नागरिकों पर लगातार हमले कर रहे हैं। इन हमलों के चलते, जून 2021 तक, अकेले बुर्किना फासो में ही 921,000 से अधिक लोग बेघर हो चुके हैं। इसी तरह, माली में, लगभग 240,000 लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हुए हैं, जबकि नाइजर में, 489,000 लोगों को पलायन करने के लिए मजबूर किया गया था, जिनमें नाइजीरियाई और मालियन के शरणार्थी भी शामिल थे। नाइजीरिया में, 2020 में 7.7 मिलियन लोगों को आपातकालीन सहायता की आवश्यकता थी।[4] इनमें आधी तादाद महिलाओं की थी।[5]
बोको हरम अफ्रीका से उभरने वाला पहला प्रमुख आतंकवादी समूह था। मोहम्मद यूसुफ ने एक धार्मिक आंदोलन के रूप में बोको हरम का 2002 में, नाइजीरिया के मैदुगुरी क्षेत्र में गठन किया था, जो स्थानीय स्तर प्रसिद्ध उपदेशक और धर्मांतरण के काम से जुड़े थे।[6] इसके गठन के सात साल बाद 2009 में ही बोको हरम ने उत्तरी नाइजीरिया में हिंसक हमलों की अपनी पहली श्रृंखला शुरू की थी। जब नाइजीरियाई सुरक्षा बलों के हमले और जवाबी हमलों के परिणामस्वरूप इसके संस्थापक सहित इसके सैकड़ों सदस्यों मार दिए गए तो यह मान लिया गया कि समूह हार गया। हालाँकि, नाइजीरियाई सरकार की अपेक्षा के विपरीत, यूसुफ की मृत्यु से बोको हरम आंदोलन कमजोर पड़ने की बजाय, समूह की पहचान बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण बन गया। बोको हरम की विचारधारा के अनुयायी प्रतिशोध के लिए एकजुट हो गए और अगले ही साल वे ऑपरेशन के एक नए तरीके से लैस हो कर लौट आए, जो प्रतिक्रिया में पहले अधिक घातक और अधिक परिष्कृत थे।
चूंकि बोको हरम एक अंतरराष्ट्रीय संगठन में तब्दील हो चुका है।[7] वर्तमान में, यह अपने तीन अलग-अलग गुटों के माध्यम से पूरे साहेल और लेक चाड बेसिन क्षेत्र में काम कर रहा है: 2012 से अंसारू गुट और फिर पश्चिम अफ्रीका प्रांत में 2016 से इस्लामिक स्टेट (ISWAP) और मूल गुट जमात अहल अल-सुन्ना लिल-दावल-जिहाद (जेएएस) भी सक्रिय है। हालांकि ये तीनों समूह वैचारिक रूप से एक समान हैं किंतु गतिविधियों के परिचालन-निष्पादन के उनके तरीके भिन्न हैं।
माली एक और सहेलियन राष्ट्र है, जो इस्लामी आतंकवाद से बहुत परेशान है। माली के उत्तरी क्षेत्र, अल्जीरिया, नाइजर और मॉरिटानिया के सीमावर्ती इलाकों में स्थित हैं, वे हमेशा व्यापक गरीबी, कम तीव्रता के निरंतर संघर्ष और एक अत्यंत विशाल और खराब पुलिस वाले क्षेत्र से पीड़ित रहे हैं। इस पृष्ठभूमि में सुरक्षा के नए खतरे सामने आए हैं, जहां अल-कायदा इन द इस्लामिक मगरेब (एक्यूआइएम) और आइएसडब्ल्यूएपी जैसे आतंकवादी समूह, बोको हरम के अलग हुए गुट ने इस क्षेत्र में जबरदस्त तरीके दखल किया है और मादक पदार्थों की तस्करी, नागरिकों और सुरक्षा बलों दोनों पर हिंसक हमले करने,जबरन वसूली जैसी आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त है। इसने माली को अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक संघर्ष में एक और मोर्चा बना दिया है।
फ्रांसीसी सरकार माली में, 2013 से अपने आतंकवाद विरोधी सैन्य अभियान "ऑपरेशन बरखाने" के माध्यम से इस्लामी आतंकवादियों के खिलाफ वहां के नागरिकों को सुरक्षा प्रदान कर रही है। इसके अलावा, माली में संयुक्त राष्ट्र बहुआयामी एकीकृत स्थिरीकरण मिशन (मिनुस्मा) भी इस्लामी आतंकवाद के खिलाफ उनकी लड़ाई में माली सरकार का समर्थन कर रहा है।[8] जैसा कि, फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रोन ने 2022 तक ऑपरेशन बरखाने को समाप्त कर देने की अपनी योजना की घोषणा की है, जिससे न केवल माली के लिए, बल्कि पूरे साहेल क्षेत्र के लिए भी अफगानिस्तान के समान ही गंभीर सुरक्षा चिंताएं बढ़ गई हैं। हालांकि आठ यूरोपीय देशों को मिलाकर बना यूरोपीय सैन्य टास्क फोर्स,ताकुबा,फ्रांस के नेतृत्व में अपना काम करना जारी रखेगा, पर यह माली से नाइजर में स्थानांतरित हो जाएगा।[9] यह देश में व्यवस्था बनाए रखने के लिए MINUSMA पर अत्यधिक दबाव डालेगा और अमेरिकी फौज की वापसी के बाद अफगानिस्तान में जो हुआ, उन घटनाक्रमों को यहां भी दोहराए जाने की संभावना को एकदम को खारिज नहीं किया जा सकता है। यह पूरे क्षेत्र के लिए तबाही मचा सकता है और इसे अराजकता में घसीट सकता है।
अफ्रीका के सबसे पूर्वी देश सोमालिया भी इस्लामी समूह अल शबाब से गहराई से प्रभावित है, जो सोमालिया में अल कायदा का सहयोगी है। तालिबान की तरह, अल-शबाब भी पिछले 18 वर्षों से संयुक्त राष्ट्र समर्थित सोमालिया की सरकार से जंग जारी रखे हुए है और कथित तौर पर तालिबान की अफगानिस्तान में मिली फतह से बहुत उत्साहित है। अल-शबाब और अन्य सशस्त्र मिलिशिया की चुनौतियों से निपटने के लिए, दिसंबर 2006 से सोमालिया की राजधानी मोगादिशु और सोमालिया के अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के लिए अंतरराष्ट्रीय बलों को तैनात किया गया है। मार्च 2007 में, सोमालिया में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा अधिकृत अफ्रीकी संघ मिशन (AMISOM) ने भी मोगादिशु से संचालन शुरू किया है। 2011 में, अफ्रीकी संघ (एयू) और सोमाली बलों ने जीत का स्वाद चखा जब उन्होंने अल-शबाब को मोगादिशु से सफलतापूर्वक खदेड़ दिया। हालांकि, इस्लामी आतंकवादी समूह राजधानी की परिधि से सोमालिया के विभिन्न हिस्सों के साथ-साथ इसके अन्य पूर्वी अफ्रीकी पड़ोसी देशों में भी बमबारी करने और हिट-एंड-रन हमलों के साथ काम करना जारी रखता है।
वर्तमान में, "ट्रांज़िशन प्लान 2018" के अनुसार, सत्ता हस्तांतरण चल रहा है, [10] जहां अफ्रीकी यूनियनों के पांच देशों के टॉस्क फोर्स AMISOM के 19,400 सैनिक शामिल हैं। युगांडा, बुरुंडी, केन्या, इथियोपिया और जिबूती जैसे पांच देश सोमाली सशस्त्र बलों को सुरक्षा जिम्मेदारियों को स्थानांतरित कर रहे हैं। हालाँकि, अंतरराष्ट्रीय सैनिकों पर सोमाली सरकार की अधिक निर्भरता के चलते यह डर बन रहा है कि यहां भी सत्ता हस्तांतरण पूरा होने के बाद अफगानिस्तान के जैसे वाकयात न हो जाएं। यह सच है कि अल-शबाब के पास तालिबान के बराबर सैन्य शक्ति नहीं है। इसके अलावा, अफगान बलों की तुलना में सोमाली सेनाएं अधिक मजबूत हैं। जुलाई 2021 में, सोमाली सैन्य अभियानों ने आतंकवाद का मुकाबला करने में अपनी क्षमता का प्रदर्शन करते हुए अकेले ही 250 अल-शबाब आतंकवादियों को मार गिराया था। हालांकि, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के आदेश पर 2021 की शुरुआत में अमेरिकी बलों की वापसी होने और 2021 में अमेरिकी हवाई हमलों में उल्लेखनीय कमी आने से अल-शबाब को फायदा हुआ है और अफ्रीकी संघ शांति सेना की वापसी के बाद, समूह के तालिबान के रास्ते का अनुसरण करने की अत्यधिक संभावना है।[11]
दक्षिणी अफ्रीका के मोज़ाम्बिक में इस्लामिक आतंकवादी 2017 से ही सक्रिय हैं, जो लोगों से उनके जीवन की और आजीविका की भारी कीमत वसूल रहे हैं। मार्च 2021 में, आतंकवादियों ने मोज़ाम्बिक के उत्तरी प्रांत काबो डेलगाडो को जब्त कर लिया और फ्रांसीसी तेल की दिग्गज कंपनी टोटल एनर्जी को देश से बाहर निकलने के लिए मजबूर कर दिया। 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर की तरल प्राकृतिक गैस की परियोजना अफ्रीका में सबसे बड़ा निजी निवेश है।[12] इस समूह ने दावा किया है कि उसने 2017 के बाद से, 2500 नागरिक का जीवन ले लिया है, और आतंकवादी हिंसा के जारी रहने के कारण आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों (आइडीपी) की संख्या लगभग एक साल पहले के लगभग 70,000 से बढ़कर आज 700,000 के करीब पहुंच गई है। इस तदाद के एक मिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है।[13]
अंत में, इस्लामिक स्टेट की एक नवीनतम शाखा, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (ISIS-DRC) में इस्लामिक स्टेट की सहयोगी, मध्य अफ्रीका के सबसे बड़े देश, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में कट्टरपंथी इस्लामी उग्रवादियों के रूप में पैर जमा रही है। इस्लामिक स्टेट ऑफ डीआरसी, जिसे एलाइड डेमोक्रेटिक फोर्सेज (ADF) के रूप में भी जाना जाता है, ने पहली बार अप्रैल 2019 में औपचारिक रूप से हमले करने एवं उन पर अपना दावा जताना शुरू किया था। हालाँकि, इस बहुत ही कम समय में, ISIS-DRC, स्व-घोषित कांगो के "खिलाफत के सैनिक" ने दर्जनों कार्रवाइयों करने का अपना दावा किया है और 2020 में 849 से अधिक नागरिकों को मार डाला है।[14]14 अमेरिकी विदेश विभाग ने 10 मार्च, 2021 को, इसे एक आतंकवादी संगठन के रूप में नामजद किया और इस समूह के नेता, मूसा बालुकू, को एक विशेष रूप से नामित वैश्विक आतंकवादी के रूप में घोषित किया।[15]
इन इस्लामवादी समूहों के उतार-चढ़ाव, उनका अंतरराष्ट्रीय विस्तार और उनका अंतिम स्थानीय समावेशन एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक और रणनीतिक संदर्भ प्रदान करते हैं। इस समझ से जिहादी उग्रवाद से निपटने की कोशिशों का मुकाबला करने की रणनीतियों को निर्देशित करने की जरूरत है। कम साक्षरता दर और शिक्षा के बुनियादी ढांचे के अपर्याप्त होने के कारण शिक्षा मुहैया करने में एक दरार पैदा कर दी है, जिसने स्थानीय लोगों को, विशेष रूप से ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में, हिंसक उग्रवाद की तरफ खींचने के लिए लगभग हमेशा ही एक महत्त्वपूर्ण अवयव के रूप में काम किया है। कुछ मामलों में, मौजूदा बुनियादी ढांचे को जानबूझकर नष्ट कर दिया गया ताकि कट्टर धार्मिक सिद्धांतों को शिक्षा के प्राथमिक स्रोत के रूप में स्थापित किया जा सके। और, मस्जिदों का उपयोग न केवल युवाओं में कट्टरता को बढ़ावा देने के लिए किया जाता था, बल्कि विश्वसनीयता और वैधता के प्रतीक के रूप में भी किया जाता था।
इस्लामिक स्टेट के लिए लिखी गई किताब में, यूसुफ के बेटों ने दावा किया कि अल-कायदा का 9/11 का हमला उनके पिता के बोको हरम को स्थापित करने के फैसले के पीछे प्रमुख प्रेरणा था।[16]16 तालिबान की यह जीत एक और नए गुट के निर्माण या एक लंबे निष्क्रिय समूह के पुनरुद्धार की दिशा में एक और महत्त्वपूर्ण क्षण बन सकती है। यह इन जिहादी समूहों के बीच एक दूसरे से आगे निकलने के लिए एक अन्य नए गुट को जन्म दे सकता है अथवा काफी लंबे समय से निष्क्रिय पड़े समूह में नई जान फूंक सकता है। यह इन जिहादी समूहों के बीच एक दूसरे से आगे निकलने के लिए एक सूक्ष्म प्रतिस्पर्धा भी पैदा कर सकता है। चूंकि तालिबान ने यह सफलता हासिल कर ली है, इसलिए अन्य समूह भी अपना दमखम साबित करने की कोशिश कर सकते हैं।
वास्तव में, तालिबान की पाकिस्तान और अफगानिस्तान में पश्तून की लामबंदी उप-सहारा अफ्रीका में अन्य समूहों की सक्रियता को दर्शाती है। बोको हरम ने उत्तर-पूर्वी नाइजीरिया में कनुरी-भाषी समुदायों के जातीय और आदिवासी की परस्परता का शोषण किया है, जो नाइजीरिया की मुस्लिम आबादी का लगभग आठ प्रतिशत है।[17] इसी तरह, अल-शबाब ने इस दृष्टिकोण का इस्तेमाल न केवल अफ्रीका में बल्कि अमेरिका और यूरोप में सोमाली डायस्पोरा से भी लड़ाकों को जुटाने के लिए किया है।[18] और मोजाम्बिक के अंसार अल-सुन्ना के साथ भी ऐसा ही देखा जा सकता है, जिसने तेजी से हाशिए पर जा रहे एक अल्पसंख्यक जातीय समूह किमवानी के लोगों में अपना अधिकांश समर्थन हासिल किया है।[19] मोज़ाम्बिक एक ईसाई-बहुल देश है, जिसमें लगभग 18% मुस्लिम नागरिक मुख्य रूप से उत्तरी हिस्से में रहते हैं, जिसमें काबो डेलगाडो प्रांत भी शामिल है, और यहीं से अधिकांश हिंसा की उत्पत्ति हुई है।[20]
अप्रैल 2021 में, कई सैन्य हताहतों और नाइजर और नसरवा राज्यों में बोको हरम के विस्तार की पृष्ठभूमि में, नाइजीरियाई राष्ट्रपति बुहारी ने अफ्रीका कमांड (AFRICOM) को जर्मनी के स्टटगार्ट से अफ्रीका में स्थानांतरित करने पर अमेरिका से विचार करने का अनुरोध किया था। हालाँकि, संयुक्त राज्य अमेरिका ने नाइजीरिया या अफ्रीका के किसी अन्य हिस्से में कमान के स्थानांतरण पर विचार करने से इनकार कर दिया है। इसके साथ ही अफगानिस्तान में हाल की घटनाओं ने अफ्रीकियों के बीच संदेह पैदा कर दिया है कि संयुक्त राज्य अमेरिका केवल अपने राष्ट्रवादी हितों की रक्षा करने के प्रति सन्नद्ध है और यदि ऐसा हस्तक्षेप करना उसके अपने राष्ट्रीय और राजनयिक हितों के अनुरूप नहीं है, तो वह एक अफ्रीकी देश के जीवन और संपत्तियों को सुरक्षित करने के प्रति कोई भागीदारी नहीं करेगा।
इतनी बुरी परिस्थितियों के बावजूद, भारत अफ्रीका में निवेश का कम करने का जोखिम नहीं उठा सकता। आज भारत यहां तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, जो कुल अफ्रीकी व्यापार का 6.4 प्रतिशत है, जिसका मूल्य 2017-18 में 62.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। 2025 तक 1.52 बिलियन उपभोक्ताओं के उपभोक्ता आधार वाला महाद्वीप 5.6 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर की सीमा तक बाजार के अवसर प्रदान करने की संभावना है। इसके अलावा, 2020 तक, भारत ने 41 अफ्रीकी देशों को कुल 11 अरब 21 डॉलर का 181 लाइन ऑफ क्रेडिट दिया था।[21]
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वर्तमान सरकार के तहत, भारत ने राजनीतिक, रक्षा, वाणिज्यिक, अर्थव्यवस्था, वैज्ञानिक और तकनीकी सहयोग सहित विभिन्न क्षेत्रों में अफ्रीका के साथ अपने जुड़ाव को तेज करके अपनी अफ्रीका नीति को मजबूत किया है। यह 2015 में तीसरे भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन के दौरान स्पष्ट हुआ, जिसमें 41 अफ्रीकी राष्ट्राध्यक्षों ने भाग लिया था।[22] इसके बाद, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री द्वारा 34 निवर्तमान दौरे किए गए, जिनमें जुलाई 2018 में भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा महाद्वीप के तीन देशों के दौरे भी शामिल हैं।
जैसा कि भारत खुद को एक प्रमुख शक्ति के रूप में अफ्रीका में सक्रिय रूप से अग्रसर होना चाहता है, अफ्रीका अपनी वैश्विक महत्त्वाकांक्षाओं के लिए एक कन्डुएट एवं आउटलेट दोनों के रूप में महत्त्वपूर्ण है। मोदी सरकार ने कोविड से संबंधित व्यवधानों के बावजूद जुलाई 2018 में युगांडा की संसद में अपने संबोधन के दौरान भारतीय जुड़ाव के 10 मार्गदर्शक सिद्धांतों को रेखांकित किया था, इससे संभावना बनती है कि भारत के अफ्रीका की अपनी रणनीति को जारी रखेगा। आतंकवाद से सुरक्षा सुनिश्चित करना भारत की प्रमुख प्राथमिकताओं में से एक है, [23] जैसा कि मोदी ने कहा-
“हम आतंकवाद और उग्रवाद का मुकाबला करने में अपने सहयोग और पारस्परिक क्षमताओं को मजबूत करेंगे; अपने साइबरस्पेस को सुरक्षित और सुदृढ़ रखेंगे; और शांति को आगे बढ़ाने तथा और उसे बनाए रखने में संयुक्त राष्ट्र के प्रयासों का समर्थन करेंगे।"
वर्तमान में, अफ्रीका के साथ भारत का रक्षा सहयोग संयुक्त राष्ट्र शांति सेना में भाग लेने से लेकर भारतीय रक्षा स्कूलों में अपने सैनिकों को प्रशिक्षण देने, रक्षा अभ्यास आयोजित करने से लेकर आवश्यकता पड़ने पर उसे सुरक्षा प्रदान करने तक है। डीआरसी में मौजूद भारतीय शांति सैनिकों की सबसे बड़ी टुकड़ी के साथ लगभग सभी अफ्रीकी शांति अभियानों में भारतीय सैनिक शामिल हैं। शांति स्थापना मिशन के लिए भारतीय समर्थन में एमीसोम (सोमालिया में अफ्रीकी यूनियन मिशन) और माली को अफ्रीकी नेतृत्व वाले अंतर्राष्ट्रीय सहायता मिशन को वित्तीय सहायता भी शामिल है।
पिछले साल, फरवरी 2020 में, डेफएक्सपो के क्रम में, पहला भारत-अफ्रीका रक्षा मंत्रियों का सम्मेलन लखनऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ था। सम्मेलन के दौरान, कई अफ्रीकी देशों ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के साथ-साथ समुद्री सुरक्षा को बनाए रखने के लिए भारत के साथ अपने संबंधों को गहरा करने पर सहमति व्यक्त की और एक संयुक्त घोषणा के प्रति वचनबद्धता जाहिर की जो सूचना, खुफिया और निगरानी साझा करने की सुविधा प्रदान करेगा।[24] इसके अलावा, भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अफ्रीकी देशों को उनकी आतंकवाद विरोधी गतिविधियों में मदद करने के लिए सैन्य हार्डवेयर की एक श्रृंखला प्रदान करने का वादा किया।[25] इस संवाद में 38 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था, जिनमें से 12 अफ्रीकी देशों के रक्षा मंत्री थे।
इस साल, मार्च 2021 में, भारत ने आतंकवाद के खतरों का मुकाबला करने के लिए द्विपक्षीय स्तर पर कार्रवाई शुरू कर दी है। 4 और 5 मार्च को, भारत और नाइजीरिया ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) स्तर पर अपनी पहली रणनीतिक और आतंकवाद-रोधी वार्ता आयोजित की थी, जब नाइजीरियाई NSA मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) बाबागना मोंगुनो ने नई दिल्ली में अपने भारतीय समकक्ष अजीत डोभाल से मुलाकात की थी। दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों ने पहले से चले आ रहे घनिष्ठ और रणनीतिक साझेदारी के ढांचे के भीतर, स्थानीय स्तर पर साइबर स्पेस के माध्यम से आतंकवाद, उग्रवाद, कट्टरता से खतरों का मुकाबला करने के लिए रणनीतियों पर चर्चाएं कीं।[26]
इसके बाद भारतीय विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने नैरोबी की यात्रा की, जहां उन्होंने जून 2021 में केन्या-भारत संयुक्त आयोग की बैठक के तीसरे सत्र की सह-अध्यक्षता की। इस बैठक का फोकस समुद्री सुरक्षा, इंडो-पैसिफिक, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई और अफ्रीकी राष्ट्र के बिग फोर एजेंडा के लिए भारत-केन्या साझेदारी पर था। बैठक के दौरान दोनों देश हिंद महासागर क्षेत्र की अधिक रक्षा, सुरक्षा और समृद्धि के लिए आतंकवाद से संबंधित क्षमताओं और जागरूकता को बढ़ाने और साझा करने के महत्त्व पर सहमत हुए।[27]
आखिरकार, जुलाई 2021 में, भारत की अध्यक्षता में ब्रिक्स काउंटर टेररिज्म वर्किंग ग्रुप (CTWG) ने ब्रिक्स काउंटर टेररिज्म एक्शन प्लान को अंतिम रूप दिया, जिसमें आतंकवाद की रोकथाम करने और उसका मुकाबला करने, कट्टरता निवारण, आतंकवाद के वित्तपोषण, आतंकवादियों द्वारा इंटरनेट के दुरुपयोग रोकने से संबंधित कई विशिष्ट उपाय शामिल थे। आतंकवादियों की आवाजाही पर अंकुश लगाने, सीमा नियंत्रण, आसान लक्ष्यों की सुरक्षा करने, सूचना साझा करने, क्षमता का निर्माण करने, अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने के तौर-तरीके आदि पर भी विचार किया गया था।[28] इस योजना को जल्द ही अपनाए जाने की संभावना है और यह भारत और दक्षिण अफ्रीका दोनों को अफ्रीका के साथ-साथ दक्षिण एशिया में आतंकवाद से लड़ने के लिए एक मजबूत प्रोत्साहन देगा।
अक्टूबर 2000 में, तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अमेरिकी कांग्रेस में अपने संबोधन में कहा था कि जब तक दुनिया के किसी भी हिस्से में आतंकवाद कायम है, कोई भी देश इससे सुरक्षित नहीं है और इसलिए सभी देशों को आतंकवाद से मुकाबला करने के लिए परस्पर सहयोग करना चाहिए।[29] समुद्री सुरक्षा और आतंकवाद का मुकाबला मौजूदा पीएम नरेन्द्र मोदी की समग्र विदेश नीति का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। यह तब और स्पष्ट हुआ, जब 26 मई 2014 को उन्होंने अपने पहले शपथ ग्रहण समारोह के दौरान; मॉरीशस को आमंत्रित किया था, जो दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (सार्क) के बाहर का एकमात्र देश था। इसके बाद उन्होंने सेशेल्स और मॉरीशस की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान, उन्होंने अपनी हिंद महासागर नीति, "सागर" (SAGAR) में क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास का परिचय दिया, जिसका स्पष्ट उद्देश्य समुद्री डकैती, आतंकवाद और अन्य हिंसक अपराधों का मुकाबला करने के लिए अफ्रीकी तटीय देशों के साथ सामूहिक प्रयासों को मजबूत करना है। वास्तव में, अधिकांश अफ्रीकी देश अभी भी इन कट्टरपंथी इस्लामी समूहों की चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए तैयार नहीं हैं और उन्हें भारत के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय समुदायों के समर्थन की आवश्यकता होगी। हालांकि, अफगानिस्तान से अमेरिकी बलों की हालिया वापसी राष्ट्रीय हित पर स्थापित राजनीतिक यथार्थवाद को दर्शाती है, भारत को अफ्रीकी महाद्वीप के साथ अपने जुड़ाव के विभिन्न आयामों पर प्रतिबिंबित करना चाहिए।
अफ्रीका में विभिन्न विदेशी मिशनों में कर्मचारियों की कम संख्या के साथ, उचित धन की कमी और अपर्याप्त सैन्य उपस्थिति के साथ, यह स्पष्ट है कि निकट भविष्य में भारत सुरक्षा प्रदाता नहीं बन सकता है और महाद्वीप में अपनी स्थिति का दावा नहीं कर सकता है, बल्कि उसे अपने सहयोगियों को अफ्रीका में सक्रिय और सतर्क रहने के लिए मनाने की जरूरत है। वास्तव में, भारत अभी भी सूक्ष्म स्तर पर अफ्रीकी महाद्वीप में सुरक्षा और रक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र के साथ-साथ संयुक्त राज्य अमेरिका पर निर्भर है। अब, अफगानिस्तान से अमेरिकी बलों की अचानक वापसी ने भारतीय मूल के व्यक्तियों (पीआइओ), व्यवसायों और अन्य हितधारकों के बीच भय पैदा कर दिया है क्योंकि इन जिहादियों के सत्ता में आने के बाद उनके विरुद्ध प्रतिशोध का जोखिम बढ़ जाता है।
महाद्वीप के लिए अपनी ऐतिहासिक प्रतिबद्धता के आधार पर, इन देशों में महिलाओं और बच्चों की रक्षा भारत का नैतिक दायित्व भी है, जिसे अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के विमर्श से अक्सर हटा दिया जाता है। सुरक्षा प्रदान करने में भारत सरकार की विफलता पीआइओ के साथ-साथ उसके स्थानीय सहयोगियों के बीच एक भयानक छाप छोड़ सकती है। यह अंततः इन देशों के साथ भारत की भविष्य की भागीदारी को बाधित करेगा और अफ्रीका में उसके राष्ट्रीय हितों और सॉफ्ट पॉवर को खतरे में डालेगा। अब तक हासिल किए गए लाभों की रक्षा के लिए, भारत को अत्यधिक सतर्क रहना चाहिए और हाल के घटनाक्रमों के बिना पर अपनी आतंकवाद विरोधी नीति को फिर से डिजाइन करना चाहिए। निष्क्रियता की अवसर-लागत बहुत अधिक है, जैसा कि अफगानिस्तान में देखा गया है।
[1]अल्वी हयात, “टेररिज्म इन अफ्रीका: दि राइज ऑफ इस्लामिस्ट इक्सट्रीज्म एवं जिहादिज्म” इनसाइड टर्की, vol. 21, no. 1, 2019, pp. 111–132.
[2]ज़ल्कर्नैन, मोहम्मद मिस्टर (2020) "नेचर ऑफ होम-ग्रोन टेररिज्म थ्रेट इन घाना," जर्नल ऑफ टेररिज्म स्टडीज: Vol. 2 : No. 2 , आर्टिकल 1.
[3]यूनाइटेड नेशन सिक्युरिटी कौंसिल-प्रेस रिलीज। SC/14245. सिचुएशन इन वेस्ट अफ्रीका, साहेल ‘इक्सट्रीम्ली वोल्टाइल एज टेररिस्ट एक्सप्लाइट एथनिक एनिमोसिटिज, स्पेशल रिप्रेजेंटेटिव वार्न्स सिक्युरिटिज कौंसिल। https://www.un.org/press/en/2020/sc14245.doc.htm#_ftn1 [3]
[4]यूनाइटेड नेशन सिक्युरिटी कौंसिल: S/2020/585. एक्टिविटिज ऑफ दि यूनाइटेड नेशनंस ऑफिस फॉर दि वेस्ट अफ्रीका एंड साहेल रिपोर्ट ऑफ दि सेक्रेटरी-जनरल https://undocs.org/s/2020/585 [4]
[5]वही।
[6]लोइमियर, रोमन (2012), ‘बोको हरम: दि डेवलपमेंट ऑफ ए मिलिटेंट रिलिजिएस मूवमेंट इन नाइजीरिया ’, अफ्रीका स्पेक्ट्रम, Vol.47, Nos. 2–3, pp. 137–155
[7] “ग्लोबल टेररिज्म इंडेक्स2015”, इंस्टिट्यूट फॉर इकोनॉमिक एंड पीस, 17 नवम्बर 2015,http://economicsandpeace.org/wp-content/uploads/2015/11/Global-Terrorism-In¬dex-2015.pdf.
[8]यूनाइटेड नेशन सिक्युरिटी कौंसिल: S/RES/2584 (2021). रिजॉल्यूशन 2584 (2021) एडोप्टेड बाइ दि सिक्युरिटी कौंसिल एट इट्स 8809 मीटिंग, ऑन 29 जून 2021. https://undocs.org/en/S/RES/2584(2021)
[9]नौरीन चौधरी फिंक एंड आर्थर बुटेलिस। बिटवीन ए रॉक एंड ए हार्ड प्लेस: कांउटर टेररिज्म एंड पीस कीपिंग इन साहेल जुलाई 20, 2021.https://theglobalobservatory.org/2021/07/between-a-rock-and-a-hard-place-counterterrorism-and-peacekeeping-in-the-sahel/
[10]संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद: S/2018/674. के महासचिव द्वारा सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष को 5 जुलाई 2018 को लिखा गया पत्र https://undocs.org/S/2018/674 [5]
[11]इंस्टिट्यूट फॉर दि स्टडी ऑफ वार (ISW).रिजिनल एक्टर्स आई थ्रेट्स एंड ऑपरचुनिटिज इन तालिबान टेकओवर। अगस्त 21, 2021. https://www.criticalthreats.org/analysis/regional-actors-eye-threats-and-opportunities-in-taliban-takeover [6]
[12]फ्रेंकोइस डी ब्यूपुय, पॉल बुर्कहार्ट और बोर्गेस न्हामिर, “टोटल सस्पेंड्स $20BN एलएनजी प्रोजेक्ट इन मोजाम्बिक इंडेफिनिटली”, अलजजीरा, 26 अप्रैल 2021 https://www.aljazeera.com/economy/2021/4/26/total-suspends-20bn-lng-project-in-mozambique-indefinitely [7]
[13]यूएन न्यूज। मोजाम्बिक: काबो डेलगाडो डिस्पलेसमेंट कुड रिच 1 मिलियन, यूएन ऑफिसिएल वार्न। 22 मार्च 2021, https://news.un.org/en/story/2021/03/1087952 [8]
[14]कैंडलैंड,टी., फिंक, ए., इंग्रान,एच.जे., पूले, एल., विडिनो, एल., एंड वीस, सी.(2021)। ल'एटाटिसलामिकीन आरडी कांगो, जॉर्ज वाशिंगटन प्रोग्राम ऑन इक्सट्रीज्म। https://extremism.gwu.edu/sites/g/files/zaxdzs2191/f/The%20Islamic [9] %20State%20in%20Congo%20French.pdf
[15]अमेरिकी विदेश मंत्रालय। स्टेट डिपार्टमेंट टेररिस्ट डिजिनेशन ऑफ आइएसआइएस एफिलिएट्स एवं लीडर्स इन दि डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ दि कांगो एंड मोजाम्बिक। 10 मार्च 2021. https://www.state.gov/state-department-terrorist-designations-of-isis-affiliates-and-leaders-in-the-democratic-republic-of-the-congo-and-mozambique/ [10]
[16]अयमेन जवाद अल तमिमि। “दि इस्लामिक स्टेट वेस्ट अफ्रीका प्रोविंस बनाम अबू बकर शेकाउ: फुल टेक्सट, ट्रांसलेशन एवं एनालिसिस”। 5 अगस्त 2018. http://www.aymennjawad.org/21467/the-islamic-state-west-africa-province-vs-abu [11]
[17]क्लाउड मोबउ, इन ‘बिटवीन दि ‘कनूरी’ एंड अदर्स’, इन विर्जिन कोलोम्बियर एंड ओलिवियर रॉय (संपादित), ट्राब्स एंड ग्लोबल जिहादिज्म,ऑक्सफोर्ड स्कॉलरशिप, 2018
[18]औदुबुलमा बुकार्ती, “दि वेस्ट इन अफ्रीकन वायलेंट इक्सट्रीमिस्ट्स डिस्कोर्स”, हडसन इंस्टिटयूट, 28 अक्टूबर 2020, https://www.hudson.org/research/16467-the-west-in-afri¬can-violent-extremists-discourse
[19]मकाइता नोएल मुतासा और साइप्रियन मुचेमवा, “अंसार अल सुना मोजाम्बिक: इज इट दि बोको हरम ऑफ साउदर्न अफ्रीका?”, जर्नल ऑफ एप्लाइड सिक्युरिटी एप्रोच, 24 फरवरी 2021. https://www.tandfonline.com/doi/full/10.1080/19361610.2021.1882281?needAc-cess=true [12]
[20]अमेरिकी विदेश विभाग। अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर 2019 की रिपोर्ट: मोजाम्बिक https://www.state.gov/wp-content/uploads/2020/05/MOZAMBIQUE-2019-INTERNATIONAL-RELIGIOUS-FREEDOM-REPORT.pdf [13]
[21]विदेश मंत्रालय। प्रश्न संख्या.2120 अफ्रीका के साथ घनिष्ठ संबंध के लिए विशेष उपक्रम, 12 मार्च 2020.https://mea.gov.in/rajya-sabha.htm?dtl/32522/QUESTION+NO2120+SPECIAL+INITIATIVES+FOR+CLOSER+RELATIONSHIP+WITH+AFRICA
[22]विदेश मंत्रालय। वही।
[23]विदेश मंत्रालय। प्रधानमंत्री का युगांडा के राजकीय दौरे के क्रम में युगांडा संसद को उद्बोधन। 25 जुलाई 2018 https://mea.gov.in/Speeches [14] Statements.htm?dtl/30152/Prime+Ministers+address+at+Parliament+of+Uganda+during+his+State+Visit+to+Uganda
[24]विदेश मंत्रालय। भारत-लखनऊ उद्घोषणा: प्रथम भारत-अफ्रीका रक्षा मंत्री सम्मेलन, 2020। https://mea.gov.in/bilateral-documents.htm?dtl/32378 [15]
[25]पीआइबी दिल्ली- लखनऊ में डिफेएक्सपो 2020 के साथ प्रथम भारत-अफ्रीका रक्षा मंत्री सम्मेलन, https://pib.gov.in/PressReleaseIframePage.aspx?PRID=1602238 [16]
[26]विदेश मंत्रालय। भारत-नाइजीरिया रणनीतिक एवं आतंकवाद निरोधक संवाद। 5 मार्च 2021 https://www.mea.gov.in/press-releases.htm?dtl/33593/India__Nigeria_Strategic_and_CounterTerrorism_Dialogue [17]
[27]विदेश मंत्रालय। विदेश मंत्री के केन्या दौरे के क्रम में भारत-केन्या संयुक्त वक्तव्य (12-14 जून, 2021) https://www.mea.gov.in/bilateral-documents.htm?dtl/33918/IndiaKenya_Joint_Statement_on_the_Visit_of_External_Affairs_Minister_to_Kenya_June_1214_2021 [18]
[28]विदेश मंत्रालय। भारत। ब्रिक्स के आतंकवाद निरोधक कार्यकारी समूह की 6ठी बैठक। https://mea.gov.in/press-releases.htm [19] dtl/34089/6th_Meeting_of_the_BRICS_Counter_Terrorism_Working_Group
[29]डोवल, अजित, के.सी. 2007। इस्लामिक टेररिज्म इन साउथ एशिया एंड इंडियाज स्ट्रेटेजिक रिस्पांस। पॉलिसिंग,1: 65
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[2] https://www.vifindia.org/author/Samir-Bhattacharya
[3] https://www.un.org/press/en/2020/sc14245.doc.htm#_ftn1
[4] https://undocs.org/s/2020/585
[5] https://undocs.org/S/2018/674
[6] https://www.criticalthreats.org/analysis/regional-actors-eye-threats-and-opportunities-in-taliban-takeover
[7] https://www.aljazeera.com/economy/2021/4/26/total-suspends-20bn-lng-project-in-mozambique-indefinitely
[8] https://news.un.org/en/story/2021/03/1087952
[9] https://extremism.gwu.edu/sites/g/files/zaxdzs2191/f/The%20Islamic
[10] https://www.state.gov/state-department-terrorist-designations-of-isis-affiliates-and-leaders-in-the-democratic-republic-of-the-congo-and-mozambique/
[11] http://www.aymennjawad.org/21467/the-islamic-state-west-africa-province-vs-abu
[12] https://www.tandfonline.com/doi/full/10.1080/19361610.2021.1882281?needAc-cess=true
[13] https://www.state.gov/wp-content/uploads/2020/05/MOZAMBIQUE-2019-INTERNATIONAL-RELIGIOUS-FREEDOM-REPORT.pdf
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[17] https://www.mea.gov.in/press-releases.htm?dtl/33593/India__Nigeria_Strategic_and_CounterTerrorism_Dialogue
[18] https://www.mea.gov.in/bilateral-documents.htm?dtl/33918/IndiaKenya_Joint_Statement_on_the_Visit_of_External_Affairs_Minister_to_Kenya_June_1214_2021
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[23] http://twitter.com/share?text=अफगानिस्तान में तालिबान की जीत और अफ्रीका में इस्लामिक उग्रवाद के विरुद्ध भारत की आतंकवाद-निरोधक नीति&url=https://www.vifindia.org/article/hindi/2021/october/20/afghanistan-me-taliban-ki-jeet-aur-africa-me-islamic-ugarvad-ka-virudh-bharat-ki-atankwad-nirodhak&via=Azure Power
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