भारतीय सेना/आईटीबीपी एवं चीनी सेना (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी/पीएलए) के बीच एलएसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) पर चुशुल में 10 वें दौर की बातचीत के बाद एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुआ है। जिसके बाद से चरणबद्ध, समन्वित, सत्यापन के जरिए पैंगोंग त्सो के उत्तर और दक्षिण में, और रेजांगला-रिचेंला में सेना की तैनाती हटा ली गई है। इस रूप में पहली बार पैंगोंग त्सो के उत्तर में 8 किलोमीटर के दायरे में बफर क्षेत्र बनाया गया है, जो आमने-सामने के होने वाले टकराव को कम करता है। यह टकराव अक्सर होता रहा है और बढ़ते-बढ़ते झगड़े और मारपीट का कारण बनता रहा है। इन बफर इलाकों में सीमा के संबंधित दावों को चुनौती नहीं दी।
सीमाई मसले पर11वें दौर की बातचीत 9 अप्रैल 2021 को शुरू हुई,उसमें पीएलए और भारतीय सेना की तैनाती को लेकर एक ठहराव आया प्रतीत हुआ। इससे यह अहम सवाल पैदा हुआ कि-अब आगे क्या और कैसे? इसके 3 महीने बाद चीन, सीसीपी और पीएलए ने जुलाई 2021 में पार्टी की शताब्दी वर्षगांठ के आयोजन पर खुद को फोकस कर लिया। भारत के विदेश मंत्री जयशंकर ने एसएससी की जुलाई 2020 में हुई बैठक के पार्श्व में चीनी विदेश मंत्री वांग यी केसाथ बैठक की थी। बताया जाता है कि इस बैठक में वांग ने कहा, “…गलत या सही, जो कुछ भी चीन-भारत सीमा पर पिछले साल हुआ, वे घटनाएं पूरी तरह स्पष्ट हैं और इनकी जवाबदेही चीन पर नहीं डाली जा सकतीं। चीन इस मसले पर भारत के साथ दोनों पक्षों को स्वीकार्य होने वाले समाधान के लिए तैयार है, जिस के लिए तत्काल बातचीत और विमर्श किए जाने की जरूरत है।” प्रत्यक्ष रूप से और बिना किसी स्पष्टीकरण के चीन ने 2020-21 की सभी घटनाओं का दोष भारत पर मंढ़ दिया, इस तथ्य को नजरअंदाज करते हुए कि पूर्वी लद्दाख में उसने कई जगहों पर हदें पार की थीं और ऑक्साईचिन के लिए अपने रिजर्व डिवीजन को तैनात कर दिया था।
मोल्डो में, 12वें दौर की बातचीत 31 जुलाई 2021 को हुई, जिसमें गोगरा इलाके में सोग्त्सालु क्षेत्र से सेना की वापसी पर रजामंदी हुई,जिसकी प्रक्रिया अब पूरी हो गई है। गोगरा में सेना की वापसी के बाद जिस मसले ने विस्तृत रूप ले लिया, उन्हें इस आलेख में पांच बिंदुओं में समझाया गया है।
पहला, गोगरा में, 12वें दौर की बातचीत के बाद‘5 किलोमीटर नो-पेट्रोलिंग बफर जोन’ बनाया गया है, (टाइम्स ऑफ इंडिया, 7 अगस्त 2021)।इस सहमति की आलोचना हुई है। यह स्पष्ट है कि पूर्वी लद्दाख में, भूभाग की विचित्रताएं एवं पहचान योग्य विशेषताएं, दुश्मन फौजों की स्थिति और एलएसी पर विवादित दावे, जैसे कई आयाम हैं, और इसलिए नो-पेट्रोलिंग इलाकों के पस्पर दूरी के अंतर को इस एक अकेली व्यवस्था के सांचे में ढालना कठिन होगा। गश्ती स्थगन इसलिए किलोमीटर से नहीं नापा जा सकता, और यह क्षेत्रवार भूभाग की अपनी विशेषताओं के आधार पर भिन्न-भिन्न होगा, जो गश्ती-स्थगन को सरजमीन पर चिह्नित करेगा।
इस प्रकार, जून 2020 में, गलवान में, यह 4 किलोमीटर कहा गया था, पैंगोंग त्सो के उत्तरी किनारे पर 8 किलोमीटर के लगभग, पैंगोंग त्सो/ कैलाश रेंज की दक्षिणी रिज लाइन और अब गोगरा चौकी के 5 किलोमीटर पूरब की बात कही जा रही है। इस प्रकार, राकी नाला जो देप्सांग पठारी तक पहुंच बनाता है, उस पर 3-4 किलोमीटर का बफर जोन बॉटलनेक पर बना दिखाई देता है। ये गश्ती स्थगन भारतीय सेना के ‘हमारे एलएसी’ क्षेत्रों तक की निगरानी के हमारे अधिकारों से इनकार है, उसी तरह, यह चीन को भी ‘उसके एलएसी’ तक की पीएलए की पेट्रोलिंग से इनकार करेगा। निस्संदेह पीएलए का भारत के प्रति बना हुआ अविश्वास आगे भी रहेगा और इसलिए उचित ही, निगरानी एवं सत्यापन को सुनिश्चित करने वाले सघन प्रयास को बाध्य करेगा।
दूसरा, गोगर में सेना वापसी के साथ, जहां सेनाएं एक दूसरे के आमने-सामने खड़ी थीं, वहां भी लापरवाही एवं आकस्मिक रूप से गोलीबारी की आशंका कम हो जाती है। यह एलएसी केप्रायः बताए जा रहे एलओसी-करण विशेषणों पर भी पूरी तरह से विराम लगा देती है। नो-पेट्रोलिंग प्रतिबंध में जानबूझ कर किया गया कोई उल्लंघन अन्य मामलों को लहकाता है। यह एलएसी के नए प्रकार का मैनेजमेंट है, जिसमें विरोधी गश्ती दल से परस्पर कोई संपर्क नहीं होता, एलएसी के अंतिम सिरे पर कोई वर्चस्व नहीं होता और यह झड़पों और धक्कामुक्की को रोकता है, जो ऐसे विवादित क्षेत्रों में नियमित फीचर हुआ करते थे। किसी भी तरह से इसका यह मतलब नहीं है कि आगे अन्य नए विवादित स्थलों का बनना या उनका उभरना बंद हो जाएगा। पूर्वी लद्दाख, मध्य क्षेत्र और उत्तर-पूर्व इलाके में तो इसकी अपार संभावनाएं हैं, जिनके चलते वहां लगातार गश्ती जारी रखना, सेना का एवं इलेक्ट्रानिक वर्चस्व को बनाए रखना लाजिमी होगा, नहीं तो ऐसा न हो कि वे भी इसके बाद पीएलए के जूझारूपन एवं विस्तारवाद का एक निष्ठापूर्ण काम हो जाए।
तीसरा बिंदु स्थिति की पुनर्समीक्षा है,जो संकेत करती है कि गश्ती स्थगन पीएलए की योजना की अंतिम परिणति थी। भारतीय सशस्त्र सेना में फोकस लंबे समय से पश्चिमी सीमाओं, आतंक-प्रतिरोधक अभियानों एवं पश्चिमी लद्दाख (करगिल सेक्टर) एवं सियाचिन ग्लेशियर पर ही पर रहा है। पूर्वी लद्दाख में सेना की तैनाती में कमी पीएलए की पेट्रोलिंग पार्टी के लिए मुफीद होगा जो बिना किसी महत्त्वपूर्ण चुनौती के इच्छानुसार सीमा उल्लंघन में सक्षम होगी। विगत दशकों में और अभी, सैन्य दबाव निर्मित हुआ है, जिसने पीएलए के अतिक्रमणों पर उत्तरोतर अंकुश लगाने का काम किया है। झगड़े एवं धक्का-मुक्की बढ़ी है, और भारतीय सेना की ईकाइयां, उनके अफसर और टुकड़ियों ने मुंहतोड़ जवाब देने एवं स्थिति का कड़ाई से मुकाबला करने की अपनी क्षमता दिखाई है। इसने एलएसी पर वर्चस्व के चरित्र को 2020 के पहले ही बदल दिया था और यह स्पष्ट कर दिया था कि पूर्वी लद्दाख में दक्षिण चीन सागर नहीं दोहराया जा सकता! अगर गलवान में 15 जून 2020 की घटनाओं ने पीएलए के अनेक डर-आशंकाओं को मजबूत किया होगा तो उसके बाद के बने प्रबल दबावों एवं प्रदर्शित ‘मनोबल’ ने मसले को उसके सामने अवश्य ही स्पष्ट कर दिया होगा!
इसलिए अनुमान लगाया जा सकता है कि एलएसी के साथ ऑक्साईचिन में अहम निर्णय बिंदुओं के साथ गश्ती का स्थगन पीएलए की सोची-समझी योजना हो सकती है जो कि गलवान की पुनरावृत्ति को रोकेगी। यहां स्पष्ट हो जाता है कि यह स्थगन भारतीय सेना के गश्ती दल की एक उचित दूरी के साथ तैनाती सामान्य रूप से ऑक्साईचिन को 'ठीक' कर देगा!
चौथा, पूर्वी लद्दाख के प्रबंधन की नींव एलएसी के प्रोटोकोल्स एवं विश्वास निर्माण के उपायों (सीबीएम) पर टिकी है, जिस पर 1993, 1996, 2005 और 2013 में चार औपचारिक समझौते हो रखे हैं। यद्यपि एलएसी अपने आप में एक दोषपूर्ण अवधारणा है,1996 में सीबीएम की बुनियाद रखी गई थी, जो युद्ध नहीं करने के समझौते के समान था, विशेष कर एलएसी के दो किलोमीटर के दायरे में। इसी तरह, 2005 के समझौते में इस बात को शामिल किया गया था कि अगर दोनों पक्षों के जवान एलएसी के कारकों में भेद के कारण या किसी भी अन्य कारणों से आमने-सामने की स्थिति में आ भी जाते हैं, तो वे पस्पर आत्मसंयम रखेंगे, और आमने-सामने की स्थिति में वे एक दूसरे के विरुद्ध बल प्रयोग नहीं करेंगे या बल प्रयोग करने की धमकी नहीं देंगे, उस क्षेत्र में अपनी गतिविधियों को सीमित रखेंगे, उससे आगे नहीं बढ़ेंगे और साथ ही साथ, अपने-अपने ठिकानों पर लौट जाएंगे। यह स्पष्ट था कि संपर्क में आने वाले गश्ती दल द्वारा पालन किए जाने वाले प्रोटोकॉल और सीबीएम लंबे समय से विफल हो रहे थे, जिसकी परिणति 15 जून 2020 की गालवान घटना में हुई थी!
उपरोक्त प्रोटोकॉल एवं समझौते का गश्ती स्थगन के साथ क्या होता है? हालांकि फरवरी एवं जुलाई 2021में चुशूल एवं मोल्डो में हुए समझौते के बाद फिर हुआ गश्ती स्थगन मौजूदा औपचारिक समझौते से अलग हैं। हालांकि, गश्ती स्थगन एक नए सीबीएम हैं। अगर यह नया सीबीएम कुछ ठोस समय के लिए टिकता है, तब तो दूसरे समझौते को औपचारिक रूप दिया जा सकता है और सत्यापन के साथ स्पष्ट तरीके से विवेचित प्रोटोकॉल को क्रियान्वित किया जाना चाहिए। हालांकि विगत का इतिहास इन समझौतों के प्रति विश्वास तो नहीं जगाता, तथापि यह चीन को द्विपक्षीय एवं बहुराष्ट्रीय तरीके से बांधता है।
पांचवां, पीएलए द्वारा ऑक्साईचिन में तैनात मौजूदा सैन्यबल किसी परम्परागत धमकी की तरफ इंगित नहीं करता। पीएलए ने किसी भी मामले में भारत के साथ भविष्य के युद्ध का एसडब्ल्यूओटी विश्लेषण (या शुद्ध मूल्यांकन) किया होगा, और क्षेत्रीय युद्ध को 'डब्ल्यू' और 'टी' में वर्गीकृत पाया होगा। हालांकि,हवाई संचालन के बुनियादी ढांचे में सुधार की तेज गति है जिसमें चीन द्वारा वायु सेना, मिसाइलों एवं राकेट के उपयोग किए जाने के अशुभ संकेत हैं। ल्हासा-यिंग्ची रेल-लाइन और तिब्बत एवं शिंजियांग में सुपर हाइवे का निर्माण कम समय में सेना की लामबंदी के चक्र को पूरा किया जाने का संकेत है। चीन ने हालांकि,सामरिक समर्थन और रॉकेट बलों में जबरदस्त प्रगति की है, जो बड़े पैमाने पर युद्ध के नए विस्तारों पर जोर दे रहा है। पश्चिमी से उत्तरी युद्ध क्षेत्र तक की संरचनाओं का एक सही पुनर्संतुलन रहा है, जिनमें से कई इसके बाद स्थायी रूप से अत्यधिक ऊंचाई पर तैनात हैं। सशस्त्र बलों को भी युद्ध के पूरे स्पेक्ट्रम के लिए योजना बनानी होगी।
यह पूर्वी लद्दाख में बिना पेट्रोलिंग स्थगन के सीमा प्रबंधन के इस व्यापक रूप से संशोधित पैराडिग्म के प्रबंधन को सामने लाता है। गश्ती दल के संपर्क से हटने का पिछला पैराडिग्म लगभग तीन दशक तक चला था; तो अनुमान लगाया जा सकता है कि यह नया पैराडिग्म को उसी तरह लंबे समय तक चलेगा। इसमें लंबे समय तक चलने की एक नई मांग शामिल है! हालांकि यह ईकाइयों के राहत कार्यक्रमों पर तनाव डालेगाऔर शांति की अवधि को बहुत कम कर देगा-जो अपने आप में एक साधारण सैनिक की स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं और सामाजिक आवश्यकताओं के लिए अनिवार्य हैं। फिर रोड स्पेस और हवाई इंडक्शन का भी दबाव होगा।
राष्ट्रीय राइफल्स (आरआर) की एक यूनिट की पूर्वी लद्दाख में तैनाती एक सकारात्मक बदलाव रहा है। आरआर के समान रेजीमेंटल/कोर रोस्टर के आधार पर सैनिकों के टर्नओवर के साथ, सुपर हाई एल्टीट्यूड में स्थायी रूप से इकाइयों की तैनाती सबसे अच्छी हो सकती है। इसकी शुरुआत वायु रक्षा, तोप (एसएटीए) और इंजीनियर्स द्वारा की जा सकती है। इसके बाद, तोप, बख्तरबंद वाहनों, यंत्रकृत पैदल सेना एवं पैदल सेना की तैनात की जा सकती है। पिछले 25 वर्षों में युद्ध में आरआर इकाइयों में सामंजस्य और उनका अभियान प्रदर्शन इस अवधारणा की सफलता को और व्यवहार्यता को साबित करता है। स्थायी रूप से वहां स्थित इकाइयां उन इलाकों को, उनकी प्रतिकूलताओं को और जमीनी स्थिति की विशेषज्ञता और वहां के बारे में अपना ज्ञान रखेगी। शांति-क्षेत्र प्रोफाइल में सैन्य टुकड़ियों को बेहतर तरीके से प्रबंधित किया जा सकता है और इससे उनके आने-जाने के दबाव को भी कम करेगा।
निष्कर्ष यह कि पेट्रोलिंग स्थगन के साथ एलएसी का प्रबंधन एक महत्वपूर्ण बदलाव के लिए है। इस समय सीमा के व्यापक मुद्दे के बारे में भविष्यवाणी करना खतरे से भरा है। पीएलए के साथ शत्रुता की सबसे खराब स्थिति, यदि कभी हो, तो वह पहले की अवधारणा से काफी भिन्न हो सकती है। शांति के समय प्रबंधन और विस्तार में जैसे और जब यह घटित होता है, रणनीतिक योजना और तैयारियों में एक डिस्टिल्ड विजन और संतुलन आवश्यक है।
Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English) [3]
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[2] https://www.vifindia.org/author/Rakesh-Sharma
[3] https://www.vifindia.org/article/2021/august/09/eastern-ladakh-fixing-no-patrolling-buffer-areas
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