जुलाई के अंतिम पखवाडे़ में जब संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति और महासभा अध्यक्ष वोल्कान बोजकिर की मुलाकात हुई थी, तभी यह तय हो गया था कि अगस्त महीने में मिली अध्यक्षता की कमान में भारत समुद्री सुरक्षा, आतंकवाद और शांति-सुरक्षा को सर्वोपरि रखना चाहता है। सोमवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने उसी तर्ज पर समुद्री सुरक्षा के सभी पहलुओं पर एक खुली चर्चा की, जो भारत की अभूतपूर्व पहल थी। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन समेत कई शासनाध्यक्ष, राष्ट्राध्यक्ष व वरिष्ठ अधिकारी इसमें शामिल हुए। समुद्री सुरक्षा आज सुरक्षा के तमाम मसलों में सबसे ऊपर व अनिवार्य है। समुद्री डाकुओं के खतरे, अवैध तरीके से सीमा पार, हथियारों व नशे का कारोबार, आतंकी हमले, प्रदूषण जैसे न जाने कितनी चुनौतियां हमारे सामने हैं। चूंकि समुद्र पूरी दुनिया के लिए जरूरी हैं, और मछली पकड़ने से लेकर कारोबार करने और आवागमन जैसी न जाने कितनी जरूरतों के लिए हमारी उन पर निर्भरता है, इसलिए यह आवश्यक है कि समुद्र की सुरक्षा से जुड़ी तमाम चुनौतियों का मिलकर सामना किया जाए।
भारत के लिहाज से देखें, तो हमारी समुद्री सीमा 7,000 किलोमीटर से भी अधिक लंबी है। नई-नई तकनीक की आमद ने इसकी सुरक्षा को और जटिल बना दिया है। हमारा ज्यादातर समुद्री व्यापार हिंद महासागर से होता है, जहां चीन एक मजबूत खिलाड़ी बनता जा रहा है। लिहाजा, भारत की सुरक्षा रणनीति में समुद्री सुरक्षा काफी अहम है। सोमवार की बैठक में भारत ने चीन का खुलकर नाम तो नहीं लिया, लेकिन उचित ही ‘सागर’ की चर्चा की। सागर, यानी सुरक्षा एवं क्षेत्र में सभी के लिए विकास। 2015 में भारत ने अपना यह नजरिया पेश किया था। यह नजरिया दोतरफा आपूर्ति शृंखला सुनिश्चित करने, किसी एक देश पर निर्भरता को रोकने और क्षेत्र के सभी साझेदार देशों के लिए समृद्धि सुनिश्चित करने का भरोसा देता है। खुले समुद्र की परिकल्पना को साकार करने के लिए भी ऐसा किया जाना जरूरी है। यहां ‘खुले समुद्र’ का मतलब यह नहीं है कि समुद्र में नियम-कानून लागू नहीं होंगे; जैसे अभी मछली पकड़ने में होता है। चीन जैसे देश अपनी सीमा से हजारों किलोमीटर दूर जाकर मछली पकड़ने का काम करते हैं। इस कारण कई जगहों पर मछलियां कम हो गई हैं। यहां खुले समुद्र का अर्थ है, अबाध आवाजाही। समुद्री सीमा को लेकर अब भी कई देश एक-दूसरे के आमने-सामने हैं। भारत का भी बांग्लादेश से समुद्री सीमा विवाद रहा है, जिसे हमने कुछ वर्ष पहले सुलझा लिया। मगर ऐसा सामंजस्य कई देश नहीं बना पा रहे। इसीलिए भारत समुद्र को ‘कॉमन’ बनाने का पक्षधर है, जिसका मतलब है, समुद्र सबके लिए है, और उस पर सबका अधिकार है। भारत ने उन समुद्री गलियारों की सुरक्षा की भी वकालत की, जो वैश्विक व्यापार के लिहाज से काफी अहमियत रखते हैं। ऐसे गलियारों में यदि कोई हादसा हो जाता है, तो पूरा आवागमन रुक जाता है, जिसकी कीमत तमाम देशों को चुकानी पड़ती है। फिर, समुद्री पर्यावरण, विशेषकर प्लास्टिक प्रदूषण भी एक बड़ा मसला है। जलवायु परिवर्तन के कारण तो समुद्री तूफान की मारकता और आवृत्ति कई गुना बढ़ गई है।
इन तमाम चुनौतियों से पार पाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पांच रास्ते बताए हैं- जहाजों और नाविकों की सुरक्षा, समुद्री विवादों का अंतरराष्ट्रीय कानूनों के मुताबिक समाधान, नॉन स्टेट एक्टर्स पर प्रतिबंध, तेल टैंकरों से रिसते तेल जैसे समुद्री प्रदूषणों पर रोक और समुद्री कनेक्टिविटी पर जोर। यह सही है कि इन चुनौतियों का हल मुश्किल है, क्योंकि चीन, अमेरिका व रूस के मत अलग-अलग हैं। पर सच यह भी है कि समुद्री सुरक्षा के अधिकांश बिंदुओं पर सहयोग या तो बन चुका है या होने को है। अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन (आईएमओ) इसमें अहम भूमिका निभा रहा है। हां, दक्षिण चीन सागर जैसे इलाकों में चीन की मनमानी रोकने के लिए घनिष्ठ सहयोग की दरकार है, जो अभी अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में नहीं दिख रही। सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष के रूप में भारत की एक बड़ी चुनौती इस दिशा में सहयोग बढ़ाने की भी है। स्थितियां बेशक जटिल हैं, पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग के बिना इनका हल निकल भी नहीं सकता।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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