जापान के प्रधानमंत्री के पद-चिह्नों पर चलते हुए दक्षिणी कोरिया के राष्ट्रपति मून जे ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ शिखर वार्ता के उनके आमंत्रण पर 21 मई 2021 को वाशिंगटन का दौरा किया था, जिसमें दोनों नेताओं ने उत्तरी कोरिया के परमाणु हथियारों एवं प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रमों को लेकर क्षेत्र में एवं द्विपक्षीय संबंधों में भी घनीभूत हुए तनावों को कम करने के दीर्घकालिक लक्ष्यों को साधने की गरज से प्योंगयांग के साथ राजनयिक संबंध को “प्रगतिशील कदमों” के जरिए आगे बढ़ाने का संकल्प किया। “पूर्ण परमाणुनिरस्त्रीकरण” को अपना मुख्य “लक्ष्य”, बनाते हुए, बाइडेन ने राष्ट्रपति का पदभार ग्रहण करते ही उत्तर कोरिया के मसले को हल करने तथा प्योंगयांग के प्रति नीतियों को अपने सहयोगी दक्षिण कोरिया के साथ मिल कर समन्वित करने के लिए राजदूत संग किम को अपना विशेष दूत नियुक्त किया था। किम, उनके पहले बराक ओबामा के कार्यकाल में भी उत्तर कोरिया के साथ छह पार्टियों की बहुपक्षीय वार्ता में विशेष दूत की भूमिका निभाई थी, और फिलिपींस के राजदूत रहते हुए भी उन्होंने 2018 के सिंगापुर स्टेटमेंट में अपना महती योगदान दिया था।1` सुगा के बाद मून दूसरे विदेशी नेता थे, जिनकी बाइडेन ने अप्रैल में मेजबानी की थी।
बाइडेन के पूर्ववर्ती डोनाल्ड ट्रंप ने उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन तक पहुंचने के लिए निजी स्तर पर भी काफी प्रयास किए थे लेकिन सिंगापुर, पनमुनजोन और हनोई में तीन-तीन शिखर-वार्ताएं करने के बावजूद कोई अपेक्षित परिणाम नहीं निकल सका था। अब सवाल उठता है: क्या बाइडेन का दृष्टिकोण और रुख ट्रंप से अलग होगा? उत्तरी कोरिया के प्रति अमेरिकी-नीति की पूरी तरह समीक्षा करने के बाद बाइडेन ने जो तय किया है, वह ट्रंप की निजी-पहुंच एवं बराक ओबामा के प्योंगयांग के प्रति “रणनीतिक धैर्य” की नीति के बीच एक तीसरा रास्ता है।2 मून के वाशिंगटन दौरे ने दक्षिण कोरिया एवं अमेरिका के बीच 68 साल पुराने सहयोग-संबंध की पुनर्पुष्टि एवं उसकी सुदृढ़ता को दिखाया है।
इसके पूर्व, अमेरिका के पांच पूर्व राष्ट्रपतियों ने उत्तरी कोरिया के परमाणुनिरस्त्रीकरण को लेकर अलग-अलग तरीके से प्रयास किए हैं परंतु वे सब के सब फेल रहे हैं। व्हाइट हाउस में एशिया के सलाहकार कर्ट कैंपबेल ने माना कि उत्तर कोरिया के परमाणुनिरस्त्रीकरण का काम चुनौतीपूर्ण है, इसके बावजूद बाइडेन ने एक “नया और भिन्न दृष्टिकोण” अपनाया जाना पसंद किया है। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि प्रतिबंधों में ढील देना एवं प्योंगयांग को वार्ता की मेज पर लौटने के लिए प्रेरित करना, उन विकल्पों में एक है, जिसको बाइडेन खंगाल रहे हैं।
बाइडेन एवं मून ने उत्तर कोरिया के प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम को लेकर समान रूप से “गहरी चिंता” व्यक्त की है और बातचीत की कार्यनीति पर काम करने की योजना बनाई है। हालांकि सच्चाई तो यह है कि प्योंगयांग का ‘अपने किए वादों को एकतरफा तोड़ने का रिकार्ड रहा” है।3 अमेरिका, जापान और दक्षिणी अफ्रीका ने उत्तर कोरिया को परमाणु हथियार विहिन करने के लिए एक जैसी स्थिति है। दुर्भाग्य से उसके अनुरूप कुछ नहीं हुआ और बाइडेन को यह पता है। जापान एवं दक्षिणी कोरिया के बीच कटुतापूर्ण संबंध को देखते हुए, तीनों देशों के बीच एक साझा धरातल का बनना मायावी सा ही है। यह स्थिति प्योंगयांग के पक्ष में जाती है और इसके नेता किम ने उनके बीच बनी इस कमी को पूरी तरह अपने पक्ष में भुनाया है।
अगर बाइडेन एवं मून ने प्योंगयांग को पूरी तरह परमाणु हथियार विहिन करने की साझी प्रतिबद्धता को दोहराया है तो क्या जापान इस कार्यनीति से बाहर हो सकता है? उत्तर कोरिया के प्रति साझा कार्यनीति अपनाने के पहले, यह अपेक्षित है कि जापान एवं दक्षिणी कोरिया अपने बीच के ऐतिहासिक चिढ़ को दफन करें, जो दोनों को परेशान करती है। यह काम प्रशंसनीय हो सकता है पर संवेदना के आधार किए जाने वाले राजनीतिक नीति-निर्णय को देखते हुए इतना आसान भी नहीं है। राष्ट्र राज्य पहले औपनिवेशिक शासन के अधीन थे और बाद में आजाद हो गए। अब एक मुक्त एवं स्वतंत्र देश के रूप में उनसे यह उम्मीद नहीं की जाती वे लगातार अतीत में ही अटके रहें बल्कि उन्हें भविष्य की ओर देखना चाहिए। क्यों पूर्वी एशिया के ये दोनों देश भारत एवं वियतनाम जैसे देशों से किसी तरह का सबक या प्रेरणा नहीं लेते, जिनका एक जैसा ऐतिहासिक अतीत रहा है लेकिन आखिरकार वे विजयी के रूप में उभरे और उनसे मित्रतापूर्ण संबंध कायम किए, जिन्होंने कभी उन पर शासन किया था? भारत तो सदियों तक मुस्लिम शासकों की हुकूमत में भी रहा है, लेकिन आज उसके कई मुस्लिम देशों के साथ सघन आर्थिक, सांस्कृतिक एवं रणनीतिक संबंध हैं। इसी तरह की बात ब्रिटेन के साथ भी है, जिसने भारत पर दो सदियों तक राज किया था, लेकिन आज उसके साथ बहुआयामी संबंध हैं और बेहतर हें। बिल्कुल यही बात, वियतनाम के साथ है, उसने अमेरिका के साथ युद्ध के तीखे-कटु अनुभवों को काफी पहले दफन कर आगे बढ़ चुका है। यही फ्रांस के साथ उसके संबंध में है। फ्रांस एक अन्य विदेशी ताकत है, जिसने वियतनाम पर कभी शासन किया था। इस समय जापान एवं दक्षिणी कोरिया दोनों को ही ऐसे अनुभवों से अपने को समृद्ध करना चाहिए, जब दोनों ही उत्तर कोरिया के रूप में एक साझी चुनौती के रूबरू हैं।
प्रतीत होता है कि बाइडेन इस कठिनाई से जूझ रहे हैं और इसलिए वे उत्तर कोरिया की अपनी नीति की समीक्षा के लिए एक नए तरीके की मांग कर रहे हैं और एशिया के अपने दोनों सहयोगियों के साथ नजदीकी से काम कर रहे हैं ताकि उनके बीच किसी तरह की दरार न रह जाए। यह शायद दो महीनों के अंतराल में सुगा एवं मून के साथ बाइडेन की बैठकों का मुख्य मकसद रहा था। यह अभी देखना है कि उत्तर कोरिया के पूरी तरह परमाणु हथियारविहिन करने की बाइडेन की नई शैली की कूटनीति उनके पूर्ववर्तियों की तुलना में उपलब्धि हासिल करने में प्रभावी हो पाती है या नहीं। बाइडेन और मून के दृष्टिकोणों में ऐसे अंतर केवल किम को ही फायदा पहुंचाने का काम करता है और इस कार्ड का वह अपने पक्ष में नतीजे लाने में इस्तेमाल कर सकते हैं।
एक भिन्न स्तर से देखते हुए, बाइडेन को चीन के साथ संबंधों में गिरावट के मद्देनजर अपने इन दोनों एशियाई देशों के साथ संबंध को मजबूत करने की जरूरत है, इसी वजह से उन्होंने अपने संयुक्त वक्तव्य में ताइवान स्ट्रेट मसले का उल्लेख किया है। यह ताइवान को भी फिर से आश्वस्त करेगा। संयुक्त वक्तव्य में “ताइवान स्ट्रेट में शांति एवं स्थिरता बनाए रखने के महत्व पर जोर देते हुए इस तरह चीन का नाम न ले कर भी उसका जिक्र कर दिया गया है।4 बाइडेन-सुगा के अप्रैल में दिए गए संयुक्त वक्तव्य और फिर इसके बाद, मई की शुरुआत में जी-7 के विदेश मंत्रियों की बैठक सम्पन्न होने के बाद जारी किए गए वक्तव्य की पृष्ठभूमि और इसके बाद, बाइडेन-मून के संयुक्त वक्तव्य में क्वाड फ्रेमवर्क के दायरे में सहयोग के विशेष उल्लेख से स्पष्ट है कि अमेरिका पेइचिंग को एक मजबूत संदेश देना चाहता है कि वह अपनी आक्रामकता एवं गैरकानूनी गतिविधियों से बाज आए। हालांकि, पेइचिंग के लिए यह केवल विचारों की शक्तिविहिन अभिव्यंजनाएं मालूम होती हैं और इसलिए वह अपने शिंजियांग प्रांत में उइगर मुसलमानों के किए जा रहे दमन से उनके मानवाधिकारों के उल्लंघन एवं हांगकांग में लोकतंत्र पर किए जाने वाले प्रहारों से शायद ही बाज आए।
बाइडेन अमेरिका के छठे राष्ट्रपति हैं, जिन्हें उत्तर कोरिया के परमाणु हथियार के मसले से उलझना पड़ रहा है। कोरियाई प्रायद्वीप के पूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण का लक्ष्य हासिल करने के लिए अपने एक “नये एवं भिन्न दृष्टिकोण” को देखते हुए, बाइडेन के साध्य जटिल हैं। कर्ट कैंपबेल ने दक्षिण कोरिया की समाचार एजेंसी योनहाप को 18 मई को दिए अपने एक इंटरव्यू में कहा कि उत्तरी कोरिया के परमाणु निरस्त्रीकरण का मसला “विश्व के समक्ष एक सबसे कठिन राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौती है।”5 ट्रंप एवं किम के बीच पहले हुई तीन शिखर वार्ताएं विफल हो चुकी हैं, ऐसे में पहले से पर्याप्त बैक चैनल डिप्लोमेसी को सक्रिय किए बिना दूसरे शिखर सम्मेलन की अपेक्षा करना अपरिपक्वता होगी। किम का रुख बदला नहीं है कि जब तक अमेरिका उनके खिलाफ प्रतिबंधों में ढील नहीं देगा, वे कुछ भी नहीं देने जा रहे हैं और न करने जा रहे हैं-चरण दर चरण दृष्टिकोण में भी। हालांकि अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंध का मकसद उत्तरी कोरिया को परमाणु हथियार एवं प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रमों के लिए आवश्यक संसाधनों तक पहुंच को रोकना एवं संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के जरिए कुछ निश्चित वस्तुओं के निर्यात पर रोक लगाना था, लेकिन इन कदमों ने भी प्योंगयांग को अन्य स्रोतों, अधिकतर छिपे रूप से, सहायक सामग्री को हासिल करने से नहीं रोक पाया और उसने प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम में आगे के कार्यक्रम को जारी रखा और उसमें उन्नत स्तर को हासिल कर लिया। यह भी रिपोर्ट है कि प्योंगयांग का ईरान एवं म्यांमार के साथ गुप्त संपर्क है। इस संदेह को एकदम खारिज नहीं किया जा सकता, खास कर उत्तर कोरिया एवं म्यांमार में विगत में खुले तौर पर परमाणु संपर्क को देखते हुए।
मून के कार्यकाल में बस एक साल का समय ही शेष रह गया है। इसलिए उनके किसी पहल-प्रस्ताव का किम शायद ही उत्तर दें। व्हाइट हाउस की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में एशियाई मामलों के पूर्व निदेशक विक्टर चा का विचार है कि चूंकि मून के अपने पद पर बने रहने में बहुत थोड़ा समय रह गया है, इसलिए बातचीत की मेज पर हाल-फिलहाल लौटने में किम कोई दिलचस्पी जाहिर नहीं करते हैं।6 मून एक संयुक्त कोरियाई टीम को टोक्यो ओलंपिक में भेजने के लिए उत्सुक थे लेकिन खेल में भाग न लेने की प्योंगयांग की घोषणा से मून को धक्का लगा है।
मून की बाइडेन के साथ शिखर बैठक का एक अन्य महत्वपूर्ण परिणाम था अमेरिका का दक्षिण कोरिया के प्रक्षेपास्त्रों पर लगे प्रतिबंधों का हटाए जाने पर बनी रजामंदी। यह सीओल को लंबी दूरी की मिसाइल हासिल करने का रास्ता खोलेगा, जो कोरियाई प्रायद्वीप के बाहर उड़ सकता है, जिससे प्रक्षेपास्त्र-संप्रभुता का आनंद लिया जाए और अपनी रक्षा क्षमताओं को बढ़ाया जाए।7 हालांकि अभी दृष्टिगोचर नहीं है, पर इसे भुलाया नहीं जा सकता कि यह चीन को उत्तर देने के लिए अमेरिकी स्ट्रेटेजी का एक हिस्सा था। अब दक्षिण कोरिया महत्तर प्रक्षेपास्त्र संप्रभुता के आनंद के साथ, यह वाशिंगटन एवं पेइचिंग के बीच ताकत के बड़े खेल का आगाज करेगा।8 इसके पहले, द्विपक्षीय “मिसाइल गाइडलाइंस” के जरिए 800 किलोमीटर से अधिक दूरी तक मार करने वाली बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्रों को विकसित करने या अपने पास रखने पर दक्षिण कोरिया पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि मून ने प्रतिबंध को हटाए जाने पर बनी सहमति को अमेरिका के साथ अपने गठबंधन की मजबूती का “प्रतीकात्मक और वास्तविक” प्रदर्शन बताया। रक्षा शक्ति को बढ़ाने के अलावा, सुरक्षा बंधन का हटाया जाना दक्षिण कोरिया की “राजनयिक शक्ति” का विस्तार करेगा।
अमेरिका ने दक्षिण कोरिया पर पहली बार 1979 में प्रक्षेपास्त्र के विकास पर प्रतिबंध लगाया था, जब उसने इसके लिए अमेरिकी मिसाइल तकनीक हासिल करने की मांग की थी। सीओल ने इसकी एवज में मिसाइल की मारक क्षमता 180 किलोमीटर तक सीमित रखने एवं अधिकतम 500 किलोग्राम के युद्धक सामग्री वहन करने पर सहमत हो गया था। जब उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम के जारी रहने एवं प्रक्षेपास्त्र विकसित करने की धमकियां वास्तविक प्रतीत होने लगीं, सीओल एवं वाशिंगटन ने 2020 तक अपनी गाइडलाइंस में चार बार संशोधन कर प्रक्षेपास्त्र की मारक दूरी को बढ़ा कर 800 किलोमीटर कर दिया और उनमें लैस किए जाने बमों का वजन बढ़ा दिया और अंतरिक्ष प्रक्षेपण यान में ठोस ईंधन के उपयोग पर लगे प्रतिबंध को हटा कर उसका रास्ता साफ कर दिया। मून के दौरे में इस सहमति के बाद, उन सभी प्रतिबंधों को निरस्त कर दिया गया था। अब दक्षिण कोरिया इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलों एवं उन्नत पनडुब्बी से दागी जाने वाली बैलिस्टिक मिसाइलों समेत किसी भी किस्म की मिसाइल का विकास कर सकता था या उसे अपने पास रख सकता था। अब बड़े रणनीतिक लचीलेपन का आनंद लेते हुए, सीओल उत्तर कोरिया से मिलने वाली चुनौतियों से निबटने के लिए बेहतर तरीके से तैयार हो सकता है।
इस कहानी का एक दूसरा आयाम भी हो सकता है। दक्षिण कोरिया को रक्षा क्षेत्र में इस तरह से सशक्त किए जाने के अमेरिकी प्रयास पर चीन कोई मुरौव्वत करने नहीं जा रहा है। इसे वह वाशिंगटन के साथ अपने समस्याग्रस्त संबंधों के प्रिज्म से ही देखेगा। यह भी देखेगा कि अमेरिका उसके खिलाफ सीओल का इस्तेमाल कर अपना हिसाब चुकता करा रहा है।
दक्षिण कोरिया की सतह पर मार करने वाली मौजूदा मिसाइल ह्यूनमू-4 स्वदेश में विकसित सबसे लंबी दूरी 800 किलोमीटर तक मार करने वाली मिसाइलों में एक है। इसमें 2 टन विस्फोटकों से लैस होने वाली क्षमता का सफलतापूर्वक विकास 2020 में ही कर लिया गया था। इस क्षेत्र में सामरिक परिदृश्य को इस सरल तथ्य से आंका जा सकता है कि अधिकतम दूरी 800 किलोमीटर तक मारक क्षमता वाली मिसाइलें उत्तर कोरिया के किसी भी हिस्से को अपना निशाना बना सकती हैं, जो सीओल की स्वतंत्र प्रतिरोधक क्षमता को प्रदर्शित कर रही है। चांग यंग केउन, जो कोरिया एअरोस्पेस यूनिवर्सिटी में मिसाइल के विशेषज्ञ हैं, उनका विचार है कि अमेरिकी रुख में लचीलापन का संकेत है कि वह इसे कोरियाई प्रायद्वीप के पार देखता है क्योंकि पेइचिंग एवं सीओल के बीच महज 950 किलोमीटर की दूरी है। जाहिर है कि पेइचिंग इससे अवगत है कि चीन को रोकने के लिए अमेरिका एशिया-प्रशांत क्षेत्र में वायुरक्षा प्रणाली की स्थापना पर काम कर रहा है। इसीलिए, तथ्य यह है कि अपने सहयोगी की मिसाइल क्षमता में विस्तार अमेरिकी हितों की पूर्ति करेगा और इसे पेइचिंग एवं मास्को नजरअंदाज नहीं कर सकते। लेकिन इस क्षेत्र में तेजी से बदलते सुरक्षा परिदृश्य को देखते हुए जब राष्ट्र की प्राथमिकताएं उनके अपने राष्ट्रीय हितों के अनुरूप पुन: उन्मुख किया जा रहा है, ऐसे यह एक अपेक्षित रणनीति मालूम होती है।
अमेरिका के साथ अपने सहयोग-संबंध को मजबूत किए जाने का स्वागत करते हुए, दक्षिण कोरिया भी अपने को एक दुर्गम क्षेत्र में पा सकता है। बृहतर मिसाइल संप्रभुता के उपलब्ध विकल्प के साथ, उसका पेइचिंग के साथ संबंध तनाव के दायरे में आ सकता है, जैसा कि 2016 में हुआ था, जब इसने अमेरिका की टर्मिनल हाई अल्टीट्यूड एरिया डिफेंस (THAAD) की मिसाइल रक्षा प्रणाली की मेजबानी का निर्णय किया। सीओल अब जबर्दस्त तरीके से बड़ी ताकतें वाशिंगटन एवं पेइचिंग के खेल में उलझने का जोखिम है। किंतु उसकी संभावनाएं सीमित हैं।
बाइडेन और मून के बीच शिखर वार्ता का एक सकारात्मक परिणाम था, दोनों नेता का कोविड-19 की वैक्सीन की वैश्विक साझेदारी की पहल पर सहमत होना। बाइडेन ने सभी 550,000 लाख दक्षिण कोरियाई सैनिकों को "उनके लिए, साथ ही साथ अमेरिकी सेना की खातिर" पूर्ण टीकाकरण प्रदान करने का वचन दिया। कोविड-19 की वैक्सीन आपूर्ति के लिए अमेरिकी उन्नत तकनीक और दक्षिण कोरिया उत्पादन क्षमता के साथ एक समग्र वैश्विक वैक्सीन साझेदारी का गठन करने का निर्णय सराहनीय है। मून ने कहा कि यह प्रोजेक्ट विश्व की वैक्सीन आपूर्ति में बढ़ोतरी के जरिए कोविड-19 महामारी के तेजी से खात्मे में मददगार होगी।
जैसी कि मालूम है, मून एवं बाइडेन के बीच हुई शिखर वार्ता वादों से पूरी तरह लबालब था किंतु उनमें से बहुत थोड़े को निकट भविष्य में साकार होता हुआ महसूस किया जा सकता है। मून के साथ दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि वे बाइडेन के पूरे कार्यकाल के दौरान मौजूद नहीं रहेंगे। 2022 में दक्षिण कोरिया में चुनाव होने हैं और एक बार से अधिक शासन का मौका नहीं मिलने का प्रावधान मून को दोबारा दौड़ में शामिल होने से रोकेगा। इसका अभी आकलन करना अपरिपक्वता होगी कि कौन पार्टी उनकी उत्तराधिकारी होगी और कौन उनके पद पर आसीन होगा और कैसी नीतियां वह चुनेगा या चुनेगी। यह परिदृश्य बाइडेन के लिए एक नई चुनौती पेश करता है। दक्षिण कोरिया को वर्तमान के कई मसले-महामारी, वैक्सीन उत्पादन/सहयोग और वितरण, उत्तर कोरिया का परमाणु एवं मिसाइल के मसले, जापान के साथ तनावपूर्ण संबंध और इससे संबंधित कई सारे मसलों का क्षेत्र पर पड़ने वाले प्रभावों से निबटना होगा। फिर बाइडेन के साथ सहयोग या राय-विचार से तालमेल करना होगा।
Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English) [8]
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[1] https://www.vifindia.org/article/hindi/2021/july/27/vishleshan-baiden-moon-shikhar-vaarta-ka-nateeja-kya-raha
[2] https://www.vifindia.org/author/prof-rajaram-panda
[3] https://www.koreatimes.co.kr/www/nation/2021/05/120_309218.html
[4] https://www.globalsecurity.org/wmd/library/news/dprk/2021/dprk-210521-rfa01.htm?_m=3n%2e002a%2e3073%2eon0ao069c5%2e2ug1
[5] https://japan-forward.com/editorial-north-korea-clouds-u-s-south-korea-summit-whose-side-is-moon-on/
[6] https://www.koreatimes.co.kr/www/nation/2021/05/120_309216.html
[7] http://www.koreaherald.com/view.php?ud=20210522000114
[8] https://www.vifindia.org/article/2021/june/14/explained-what-outcome-of-biden-moon-summit
[9] https://static.straitstimes.com.sg/s3fs-public/styles/article_pictrure_780x520_/public/articles/2021/05/16/af_biden-moonjaein_1605.jpg?itok=14Uto8KJ&timestamp=1621166858
[10] http://www.facebook.com/sharer.php?title=विश्लेषण : बाइडेन-मून शिखर वार्ता का नतीजा क्या रहा?&desc=&images=https://www.vifindia.org/sites/default/files/af_biden-moonjaein_1605_0.jpg&u=https://www.vifindia.org/article/hindi/2021/july/27/vishleshan-baiden-moon-shikhar-vaarta-ka-nateeja-kya-raha
[11] http://twitter.com/share?text=विश्लेषण : बाइडेन-मून शिखर वार्ता का नतीजा क्या रहा?&url=https://www.vifindia.org/article/hindi/2021/july/27/vishleshan-baiden-moon-shikhar-vaarta-ka-nateeja-kya-raha&via=Azure Power
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