बंदूकें खामोश हो गई हैं, लड़ाकू विमान अपने ठिकानों पर वापस आ गए हैं। 21 मई 2021 को गाजा पट्टी में इजरायल और हमास के बीच नवीनतम संघर्ष में बिना शर्त युद्ध विराम की घोषणा हुई और इसके बाद दोनों पक्षशांत बैठकर अपना नफा-नुकसान गिन रहे हैं। 11 मई को हमास द्वारा इजरायली क्षेत्र में रॉकेटों की बौछार दागने से इस संघर्ष की शुरूआत हुई। इजरायली रक्षा बलों द्वारा तुरंत जवाबी कार्रवाई की गई और गाजा पट्टी में हमास के ठिकानों पर मिसाइलों और हवाई हमलों द्वारा सटीक और दंडात्मक हमला किया गया। पूरे संघर्ष में मानवीय क्षति की गणना की जाए तो इसमें 60 बच्चों सहित 200 से अधिक फिलिस्तीनियों की मौत हो गईजबकि इजरायल की ओर से 13 लोगों की जान चली गई। दुनिया भर में फैली कोविड-19 महामारी के बीच इस क्षेत्र के लोगों को उम्मीद है कि यह नाजुक युद्ध विराम बरकरार रहे और इस नवीनतम संघर्ष से सभी पक्षों को 1948 में इज़रायल के जन्म के बाद से चल रहे फिलिस्तीन मुद्दे का शांतिपूर्ण समाधान खोजने की प्रेरणा मिले।
वर्तमान संघर्ष, यह किस तरह शुरू हुआ और इसके प्रभावों के बारे में हालांकि बहुत कुछ लिखा जा रहा है; यह लेख इस बात पर केंद्रित है कि यह संघर्ष 'अभी क्यों' हुआ और इससे अधिक लाभ किसे मिला।
वर्तमान संघर्ष की शुरुआत के लिए कई कारक जिम्मेदार है। मुद्दा यह है कि 13 अप्रैल को यरुशलम के पुराने शहर में दमिश्कगेट पर इजराइली पुलिस द्वारा बैरिकेडिंग की गई जिससे रमज़ान के पवित्र महीने के पहले दिन फिलिस्तीनी अरब अल-अक्सा मस्जिद में नमाज़ अदा नहीं कर पाए। इस मस्जिद को मुसलमानों के लिए तीसरा सबसे पवित्र स्थान माना जाता है और इसकी बैरिकेडिंग के चलते व्यापक गुस्सा और विरोध प्रकट हुआ। उसके बाद भी रमजान के पूरे महीने में लगातार और छिटपुट विरोध/संघर्ष होते रहे। 07 मई को रमजान के आखिरी शुक्रवार को अल-अक्सा मस्जिद में शाम की नमाज के बाद इजरायलीपुलिस और फिलिस्तीनी आपस में भिड़ गए और इजरायली पुलिस मस्जिद में घुस गई और सैकड़ों फिलिस्तीनी घायल हो गए। 10 मई को हमास ने इज़रायल को अलअक्सा मस्जिद क्षेत्र के साथ-साथ शेख जर्राह से अपनी सेना वापस लेने की चेतावनी दी। इसके बाद 10/11 मई की रात को हमास द्वारा इज़रायल पर राकेटों को दागे जाने से युद्ध की चिंगारी भड़क उठी।
इजरायल में पूर्वी यरुशलम के शेख जर्राह के आसपास चल रहा संपत्ति विवादसंघर्ष की ज्वाला भड़काने वाला एक दूसरा मुद्दा था। विभिन्न फिलिस्तीन निवासी इस कारण अपने घरों से संभावित बेदखली को लेकर उद्वेलित थे। यह संपत्ति विवाद आखिर क्या है? यह कुछ फिलिस्तीनी परिवारों और 1967 से वहां आकर बसे इज़रायलीयहूदियां के बीच भूमि-स्वामित्व का मामला था। 10 मई 2021 को इज़रायल के उच्चतम न्यायालय में इस मामले की सुनवाई होनी थी। 07 मई को शेख जर्राह के आसपास भूमि-स्वामित्व के मामले में फिलिस्तीनी निवासियों और दक्षिणपंथीइजरायली नागरिकों के बीच झड़पें हुईं। अशांति के कारण मामले की सुनवाई स्थगित कर दी गई थी परंतु तब तक नुकसान हो चुका था।
आइए 'अभी क्यों' का अन्वेषण और विश्लेषण करें। शेख जर्राह के आसपास जमीन के स्वामित्व अधिकार का मामला नया नहीं है। यह उस समय की बात है जब 1956 में जॉर्डन ने यरुशलम के पुराने शहर पर कब्जा करने के बाद शेख जर्राह में कब्जाई गई संपत्ति को 28 फिलिस्तीनी परिवारों को पट्टे पर दे दिया था। 1967 के अरब-इजरायल युद्ध के बाद इज़रायल ने कानून पारित किया जिसमें 1967 से पहले जॉर्डन या ब्रिटेन द्वारा जबरदस्ती बेदखल किए गए यहूदी परिवारों को यह अनुमति दी गई कि वे मूल संपत्ति के स्वामित्व के प्रमाण प्रस्तुत कर संपत्ति के अधिकारों के लिए दावा कर सकते हैं। इस तरह यह मुद्दा नया नहीं था। इज़रायल उच्चतम न्यायालय द्वारा सुनवाई के लिए 10 मई का दिन ही क्यों तय किया गया, यह एक दिलचस्प संयोग हो सकता है।
पहली झड़प तब शुरू हुई जब 13 अप्रैल को रमजान महीने के पहले दिनइजरायली पुलिस नेफिलिस्तीनियों को उनके पवित्र स्थल पर नमाज अदा करने से रोका। यह भी एक दिलचस्प संयोग था। दूसरी बड़ी झड़पों और 07 मई को रमजान के आखिरी शुक्रवार को इजरायलीबलों द्वारा मस्जिद में प्रवेश करने में भी तारीखों का एक और दिलचस्प चयन/संयोग दिखता है। किसी भी मुसलमान के लिए दो बातें तर्क से परे हैं; रमजान का पवित्र महीना और अल-अक्सा मस्जिद का महत्व। क्या यह ऐसा तर्क है कि इज़रायल हिंसक प्रतिक्रिया भड़काना चाहता था?
इसमें अमेरिकी-इजरायल संबंध भी महत्वपूर्ण कारक हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में बिडेन के पदासीन होने से इज़रायल पूर्ववर्ती राष्ट्रपति ट्रंप के कार्यकाल में मिलने वाले बेहिचक समर्थन के बारे में अनिश्चित महसूस कर रहा था। ईरान परमाणु वार्ता शुरू करने और फिलिस्तीन की आर्थिक सहायता को इज़रायली संबंधों से अलग करने के प्रतिबिडेन प्रशासन की तत्परता ने इज़रायली हितों को चोट पहुंचाई। 07 अप्रैल को बीबीसीन्यूज़ ने रिपोर्ट किया कि “अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन के प्रशासन ने फिलिस्तीनियों को 235 मिलियन डालर (171 मिलियन पौंड) सहायता प्रदान करने की योजना बनाई है जिसमें डोनाल्डट्रंप द्वारा सहायता में की गई कटौती का कुछ हिस्सा बहाल किया गया है। इस सहायता का दो-तिहाई हिस्सा फिलिस्तीनी शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी, यूएनआरडब्ल्यूए को प्राप्त होगा। 2018 में 360 मिलियन डालर की अमेरिकी वित्तीय सहायता गंवाने के बाद से इस एजेंसी को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहाथा। श्री बिडेनइज़रायल के साथ लंबे समय से गतिरोध में फंसी शांति वार्ताओं में फिलिस्तीनियों का “विश्वसनीय जुड़ाव बहाल करना” चाहते हैं।1 दिलचस्प बात यह है कि यह घोषणा वर्तमान संघर्ष की चिंगारी भड़कने से ठीक एक सप्ताह पहले की गई थी।
इस संघर्ष के संबंध में ईरान कारक भी दिलचस्प है। इस अवधि में यूरोपीय संघ और ईरान के बीच वियना में जेसीपीओए या ईरान परमाणु समझौते को दोबारा चालू करने की संभावना पर बातचीत चल रही थी। हालांकि इस बातचीत का कोई ठोस नतीजा नहीं निकला। 11 अप्रैल को ईरान के नतांज परमाणु संयंत्र में बड़े विस्फोट के समाचार सामने आए। ईरान ने इसके लिए इजरायल को जिम्मेदार ठहराया।2 ईरान ने हालांकि सैन्य रूप से जवाबी कार्रवाई नहीं की परंतु इज़रायलमें हमास को दिए गए अवसर इसने अवश्य ही लाभ उठाया होगा। स्पष्ट है कि इज़रायल में हुए संघर्ष सेईरान में 18 जून को होने वालेराष्ट्रपति चुनावों में ईरान के शीर्ष नेतृत्व और कट्टरपंथियों को ही अधिक लाभ मिल सकता है।
22 मई को निर्धारित फ़िलिस्तीनी विधायिका चुनाव भी इन सब में महत्वपूर्ण मुद्दा है। फिलिस्तीनी प्राधिकरण के राष्ट्रपति महमूदअब्बास ने 29 अप्रैल को इसे अचानक रद्द कर दिया। हमास ने सोचा कि उसकी स्थिति बेहतर है और इसलिए इन चुनावों को रद्द करना राजनीतिक रूप से उसके लिए नुकसानदेह था। इसके बाद इसका समय और स्थिति का सैन्य रूप से लाभ उठाने की हमास की तत्परता स्पष्ट हो जाती है। इसलिए07 मई की झड़पें और इज़रायली सुरक्षा बलों द्वारा मस्जिद में घुसना हमास के लिए सही अवसर था।
अब्राहम समझौते भी इसमें बड़ा मुद्दा हैं। इन समझौतों से इज़रायल अरब दुनिया के करीब आया और साथ ही इस वर्ष की शुरूआत में जीसीसी संकट का समाधान हुआ और कतर जीसीसी की छत्रछाया में वापस आ गया। इन दोनों घटनाक्रमों से यह खतरा खड़ा हो गया कि वृहत् इस्लामिक दुनिया में फिलिस्तीन का आंदोलन कमजोर पड़ सकता है। इसके साथ ही मार्च 2021 में इस क्षेत्र में अपने संबंधों का विस्तार करने संबंधी मिस्र और इज़रायल की वार्ताओं की खबरें3 भी फिलिस्तीन के लिए कोई सकारात्मक घटना नहीं है।
इजरायल के मोर्चे में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक अखाड़ा अर्थात वहां का राष्ट्रीय चुनावचल रहा था। एक वर्ष में हुए चार चुनावों में प्रधानमंत्री नेतन्याहू बहुमत हासिल करने में विफल रहे। 07 मई को अलअक्सा मस्जिद पर इजरायली सेना द्वारा धावा बोलने से ठीक तीन दिन पहले 04 मई की अंतिम तिथि तक वह सरकार बनाने के लिए निर्धारित संख्या प्राप्त करने में विफल रहे।4 क्या यह भी संयोग हो सकता है?
आइए अब संघर्ष के उद्देश्यों और परिणामों पर चर्चा करें। नेतन्याहू के अपने शब्दों में नेतन्याहू ने कहा कि वह "इस ऑपरेशन को तब तक जारी रखने के लिए कृत संकल्प थे जब तक कि इसका उद्देश्य: इज़रायल के नागरिकों के लिए शांति और सुरक्षा बहाल करना, हासिल नहीं हो जाता।"5 क्या युद्ध विराम होने तक इजरायल के सैन्य अभियानों ने उन उद्देश्यों को हासिल किया है? क्या हमास इतना कमजोर हो गया है कि निकट भविष्य में इजरायल के लिए कोई सैन्य खतरा नहीं है? क्या हमासका शीर्ष नेतृत्व मिटा दिया गया है? दुर्भाग्य से इन अधिकांश प्रश्नों का उत्तर 'नहीं' है।
अंततः आखिर इससे किसे और कितना लाभ हुआ?इज़रायल और विशेष रूप से प्रधान मंत्री नेतन्याहू ने जरूरी होने पर दंडात्मक सैन्य कार्रवाई करने की स्पष्टइच्छाशक्ति का प्रदर्शन किया है और वह राष्ट्रीय समर्थन हासिल करने में सफल रहे हैं। युद्ध हमेशा ही देशों के नेताओं के लिए जनाधार बढ़ाने के अवसर होते हैं और इज़रायल भी बाकियों से अलग नहीं है। दूसरी ओर हमास ने भी फिलिस्तीनी और अरब नेतृत्व के बीच अपनी स्थिति में सुधार किया है। फिलिस्तीन विधायिका के होने वाले चुनाव में यह जीत सकता है। इसके अलावा इस संघर्ष के परिणामस्वरूप गाजा पर जमीनी हमला या कब्जा नहीं हुआ जिसकी पहले आशंका थी। यह भी हमास के लिए सकारात्मक परिणाम है। इधर ईरान ने पृष्ठभूमि में चुपचाप अपनी भूमिका निभाते हुए (शायद) नटांज हमले का बदला लिया है और हमास के प्रति उसके खुले समर्थन से उसे मुस्लिम दुनिया में महत्वपूर्ण बढ़त हासिल हुई है जबकि ज्यादातर अन्य महत्वपूर्ण मुस्लिम देशों ने फिलिस्तीन को बेहद मामूली समर्थन दिया है।
सैकड़ों जानें चली गईं और हजारों परिवार बेघर हो गए, क्या यह सब इतने छोटे से समय में इतने सारे दिलचस्प संयोगों का परिणाम है? जब इस संघर्ष से उठी गर्द बैठ जाएगी तो इसके फैलनेके कारणों और समय पर बहस होती रहेगी।
Translated by Shivanand Dwivedi (Original Article in English) [8]
Links:
[1] https://www.vifindia.org/article/hindi/2021/june/25/gaaja-sangharsh-2021-abhe-kyon-kise-mila-phaayada
[2] https://www.vifindia.org/author/col-rajeev-agarwal
[3] https://www.bbc.com/news/world-middle-east-56665199
[4] https://www.bbc.com/news/world-middle-east-56715520
[5] https://www.aa.com.tr/en/middle-east/egypt-israel-hold-talks-to-boost-cooperation/2170998
[6] https://www.business-standard.com/article/international/netanyahu-misses-deadline-political-future-in-question-121050500060_1.html
[7] https://www.nbcnews.com/news/world/israel-gaza-fighting-rages-diplomatic-pressure-ceasefire-builds-n1267894
[8] http://manage.vifindia.org/article/2021/may/27/gaza-conflict-2021-why-now-who-gains
[9] https://cdn.dnaindia.com/sites/default/files/styles/full/public/2021/05/12/973671-israeli-air-strikes-southern-gaza-reuters.jpg
[10] http://www.facebook.com/sharer.php?title=गाजा संघर्ष 2021: अभी क्यों, किसे मिला फायदा?&desc=&images=https://www.vifindia.org/sites/default/files/973671-israeli-air-strikes-southern-gaza-reuters_0.jpg&u=https://www.vifindia.org/article/hindi/2021/june/25/gaaja-sangharsh-2021-abhe-kyon-kise-mila-phaayada
[11] http://twitter.com/share?text=गाजा संघर्ष 2021: अभी क्यों, किसे मिला फायदा?&url=https://www.vifindia.org/article/hindi/2021/june/25/gaaja-sangharsh-2021-abhe-kyon-kise-mila-phaayada&via=Azure Power
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