सोशल मीडिया के अभ्युदय ने आधुनिक लोकतंत्र को अनेक मोर्चों पर चुनौतियां दी हैं-चाहे यह हिंसा के लिए प्रलोभन का मामला हो, सांप्रदायिक घृणा फैलाने का या निजता की सुरक्षा की चिंता हो या खबरों के फर्जीवाड़े का; इसने लड़ाई का एक नया मैदान बना दिया है। फेसबुक और टिवटर जैसे सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म ने पूरी दुनिया में लोकतांत्रिकरण के लिए उठने वाले स्वरों में अपना बड़ा योगदान दिया है। दुर्भाग्य से, पूंजीवाद और सूचना के उपनिवेशीकरण की समानांतर ताकतें राष्ट्रीय सुरक्षा और लोकतंत्रों में कानून के शासन को गढ़ा है। अमेरिकी प्रौद्योगिकी के दिग्गज बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी वकालत करते हैं, वे लोकतंत्र के सिद्धांतों के पुनर्लेखन के सोशल मीडिया की अभूतपूर्व शक्ति पर प्रश्न उठाते रहे हैं। मीडिया के पारंपरिक स्रोतों जैसे अखबार और रेडियो ने पत्रकारिता के रूप में नागरिक विमर्श को पूर्वाग्रह-रहित बनाया था। इन दिनों मुख्यधारा का मीडिया सोशल मीडिया पर बनने वाले आख्यानों (नैरेटिव) से निर्देशित होता है। सोशल मीडिया के अवतार ने लोकतंत्र को कमजोर कर दिया है: किसी भी लोकतंत्र का एक आवश्यक अवयव जागरूक नागरिक राष्ट्रीय सुरक्षा के मसलों और लाभ की चिंताओं के चौराहे पर खड़ा है। प्रस्तुत आलेख इस तथ्य का विवेचन करता है कि कैसे सोशल मीडिया देश की सुरक्षा एवं उसकी स्थिरता पर खतरों के जरिए मांग और आपूर्ति की व्यापक पूंजीवादी प्रतिमान का पूरक है।
बुनियादी स्तर पर, सोशल मीडिया ने मुख्यधारा के मीडिया में कटाव ला दिया है, और गतिमान एवं व्यावसायिक खबरों की संस्कृति का पोषण-संवर्द्धन किया है। सोशल मीडिया के कारोबारी ढांचे की दूरी एक अवधारणा के इर्द-गिर्द घूमती है: सोशल मीडिया कंपनियां प्लेटफॉर्म हैं और वे किसी खबर या सूचना की रचयिता नहीं हैं। सारा ओटस अपने एक आर्टिकल में इसको विश्लेषित करती हैं,"अमेरिकी कम्युनिकेशन डीसेंसी एक्ट की धारा 230 कहती है।1 "एक अंतरसंवादी कंप्यूटर सर्विस प्रदाता या उपयोगकर्ता किसी अन्य कंटेंट प्रदाता द्वारा दी गई सूचना को प्रकाशित करने या उसका वक्ता के रूप में नहीं माना जाएगा।"2 अमेरिकी कम्युनिकेशन डीसेंसी एक्ट ने प्रौद्योगिकी के दिग्गजों को सूचनाओं के दुष्प्रचार,फर्जी खबरों के प्रसार औऱ चुनावों को हैक करने के आरोपों से दूर रहने को कहता है। इसके अतिरिक्त, फेसबुक, टि्वटर या इंस्टाग्राम जैसे मंच आधुनिक कारोबारी दुनिया के तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) बन गए हैं। “लाइक वॉर : दि वेपन ऑफ सोशल मीडिया” के लेखक द्वय पीटर सिंगर और इमर्सन ब्रुकिंग ने व्हार्टन (Wharton) को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि "सोशल मीडिया वह जगह है, जहां हम कारोबार करते हैं। वे वहां हैं, जहां अपडेट को सेट करते हैं। फिर भी, वे इस युद्ध का स्थान भी बन गए हैं, और ये युद्ध राजनीतिक अभियान से लेकर सैन्य अभियानों, बाजार की लड़ाई तक सारे युद्ध हो गए हैं3; इसके नाम लिए जा सकते हैं।"4
विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन की तरफ से आयोजित एक वेबिनार में देवसेना मिश्रा ने सोशल मीडिया के कंटेंट के निर्माताओं और उपभोक्ताओं के पारस्परिक संबंध को विश्लेषित किया है। वह सुझाती हैं कि सोशल मीडिया कंपनियां मानव मनोविज्ञान को समझने के लिए बिलियन डॉलर की राशि अनुसंधान और विकास में खर्च करती हैं।5 नेटफ्लिक्स की एक हालिया डॉक्यूमेंट्री ‘द सोशल डिलेमा’ में बताया गया है कि किस तरह पर्सनलाइज्ड ऍल्गोरिथम निर्देशित करता है और नियंत्रण करता है, जिसे उपयोगकर्ता सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर देखते हैं। परिणास्वरूप, यह यूजर्स को अनुमानित बनाता है, जिसमें बारिकियों की कमी होती है और जिससे कुछ लोगों को फायदा मिलता है। सोशल मीडिया का प्लेटफॉर्म उपयोगकर्ता के एक क्लिक के जरिए राजस्व पैदा करता है, जो वे देखना चाहते हैं या जिन पर विश्वास करते हैं, उन विषय-वस्तु को उनके सामने परोस देता है।
सोशल मीडिया फेसबुक, टिवटर, इंस्टाग्राम या यूटूब के प्रभाव में अभूतपूर्व बढोतरी हुई है6, इसलिए कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर रचे जाने वाले और उनका उपभोग किए जाने वाले विषय वस्तु का दायरा काफी फैलाव लिए होता है-उनमें घर से लेकर कानून और नीतियों तक के विचार शामिल होते हैं। इसके उपयोगकर्ता को उनके व्यापक अनुसरणकर्ताओं (फालोअर्स) होने के कारण भुगतान किया जाता है। ये प्रभावक अपनी लाइक और फालोअर्स बढ़ाने के लिए बिना किसी जवाबदेही के व्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में अपनी टिप्पणी कर सकते हैं। इंस्टाग्राम और टिवटर पर ब्लू टिक एवं यूटूब पर ऑनर बैज प्रतिष्ठा तथा हैसियत के प्रतीक हो गए हैं कि राज्य एवं गैर-राज्य खिलाड़ी जैसे आतंकवादी संगठन या शत्रु देश इसे अपना हथियार बना सकते हैं।
सोशल मीडिया की कंपनियां मुनाफे की पूंजीवादी प्ररेणा के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा सरोकारों में संतुलन बैठाने में सक्षम नहीं रही हैं। चूंकि सोशल मीडिया जनता का ध्यान अपनी ओर खींचने की प्रतिद्वंदिता से भरा होता है, वह सूचना-युद्ध और भ्रामक प्रचार का सहज ही उपकरण बन जाता है। सोशल मीडिया जबकि बे-आवाजों को आवाज देता है, तो इसका उपयोग समाज के ध्रुवीकरण के लिए भी किया जाता है।
टॉम हॉजकिंसन के साथ एक इंटरव्यू में “10 आरग्यूमेंट फॉर डीलिटिंग योर सोशल मीडिया अकाउंट राइट नाउ” किताब के लेखक जारोन लैनियर कहते हैं कि कैसे "एक व्यक्ति की अपने आसपास की दुनिया के प्रति स्वतंत्र इच्छा से दी जाने वाली प्रतिक्रिया में कुछ हद तक रचनात्मकता और अप्रत्याशितता शामिल होती है।”7 इसके अतिरिक्त एक व्यक्ति के विचार बदलते रहते हैं और उसमें विकास या परिपक्वता उन चीजों पर निर्भर करती है, जिसे भी खोज सकते हैं। सोशल मीडिया ऍल्गोरिथम विरोधी विचारों के संपर्क को कम करके इस वृद्धि को रोकते हैं क्योंकि इससे उनका राजस्व उत्पन्न नहीं होगा। ऍल्गोरिथम के उपयोग के परिणामस्वरूप एक बहुत विशेष तरीके की बाह्यता आती है, जिसका सामना आधुनिक राज्य को करना पड़ता है: प्रतिद्ंवद्वी विचारों के प्रति लोगों के बीच बढ़ती असहिष्णुता और मुद्दे पर रचनात्मक संवाद करने के बजाए समाज में हिंसा को बढ़ावा देने जैसी चुनौतियां उभरी हैं। सोशल मीडिया का ध्यानाकर्षण मॉडल भी एक देश को अलगाववादी समूहों की करतूतों के लिहाज अरक्षित बनाता है, जो झूठी सूचनाओं को प्रकाश की गति जैसी तेजी से फैला कर लोगों की भारी भीड़ को लामबंद कर सकते हैं।
भारत जैसे विशाल और व्यापक लोकतंत्र में, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बाहरी ताकतों एवं आंतरिक अलगाववादी तथा अतिवादी समूह असहिष्णुता और ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के भारतीय सभ्यतागत मूल्यों पर आघात पहुंचाने में सफल होते रहे हैं। टि्वटर, फेसबुक और यूटूब8 जैसे सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल भारत और उसकी सरकार के विरुद्ध सूचना-युद्ध में किया जाता रहा है। बाहरी शत्रु जैसे चीन और पाकिस्तान ने सोशल मीडिया पर भारत विरोधी आख्यानों पर जोर दिया है। चीन के साथ सीमा पर ताजा झड़पों के दौरान भारतीय सैनिकों के मनोबल का ह्रास करने का प्रयास किया है। स्क्रॉल में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, चीनी टि्वटर योद्धा ने भारतीय वायुसेना की क्षमता का मजाक उड़ाने के लिए मीम्स का इस्तेमाल किया, जिसका मतलब था कि चीन पर हवाई हमले की कूव्वत भारत में नहीं है।9 उसके अलावा, पाकिस्तान द्वारा सोशल मीडिया का इस्तेमाल भारत के कश्मीर में मानवाधिकार के उल्लंघन की झूठी घटनाओं के लिए उसे दोषी ठहराने में किया जाता है। दि इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक लेख में तिलक देवसर विश्लेषित करते हैं, "पाकिस्तान का मुख्य मकसद "ब्रांड इंडिया" के मुख्य उपादानों-एक समावेशी एवं धर्मनिरपेक्ष समाज, लोकतांत्रिक राजनीति, निर्णय लेने वाली सरकार, एक विकासशील आर्थिक महाशक्ति और मजबूत विदेश नीति-पर हमले कर-करके उसे ध्वस्त करना है।"10
ज्यादा दिन नहीं हुए, जब भारत की सुरक्षा एजेंसियों ने खालिस्तान के साथ सहानुभूति रखने वाले औऱ किसानों के विरोध प्रदर्शन के प्रति पाकिस्तान समर्थित 1200 टि्वटर एकांउट की शिनाख्त की थी। इनमें से कई एकाउंट स्वचालित बॉट थे, जिनका उपयोग गुमराह करने वाली सूचनाओं और किसानों के प्रदर्शनों के बारे में उकसावे वाली टिप्पणियों को साझा करने और उन्हें प्रसारित करने में किया जाता था, जैसा कि फर्स्टपोस्ट की रिपोर्ट में कहा गया है।11 पकड़े गए हैशटैग और हैंडल खुलासा करते हैं कि आपराधिक हिंसा को बढ़ावा देने और लोक व्यवस्था को प्रभावित करने के लिए किसानों के संहार की साजिश रची गई थी। हालांकि, सूचना प्रौदयोगिकी मंत्रालय के निर्देश पर टि्वटर ने उन खातों को बंद कर दिया था, लेकिन इसके कुछ ही घंटे बाद उसने खुद ही फिर से चालू कर दिया। इसके अतिरिक्त, किसानों के प्रदर्शन के समर्थन में विदेशी सेलेब्रिटिज के ट्विटर के प्रति इसके सीईओ जैक डोरसी की पसंद ने इन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की तटस्थता और उनके इस देश के कानून के भी ऊपर खुद को समझने को लेकर कई सवाल खड़े किए हैं।
जैसा कि सोशल मीडिया कम्पनियां और एएल (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) समय के साथ बहुत शक्तिशाली एवं समुन्नत होती गई हैं। इसलिए लाजिमी है कि सोशल मीडिया को लेकर नियमन बनाए जाएं, उनका कराधान किया जाए। एक अल्पकालिक उपाय के रूप में, कानून निर्माताओं का फोकस इस बात पर होना चाहिए कि सूचना प्रौद्योगिकी कानून राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरे, जिसमें डेटा चोरी एवं समाज के ध्रुवीकरण से बचाव की चिंता भी शामिल है, को किस तरह कम कर सकते हैं। कट्टरता के जोखिम के घटाने के लिए, आईटी कम्पनियों को इंस्टाग्राम एवं यूटूब पर नियोक्ता एवं नियुक्तों के बीच एक कांट्रैक्ट की वकालत करनी चाहिए ताकि भिन्न हितों वाले समूह उनका गलत इस्तेमाल न कर सकें। इसके अलावा, डिजिटल साक्षरता की महती आवश्यकता है, खास कर बढ़ती युवा आबादी के बीच। भारत के पास पूरी दुनिया के देशों की तुलना में सबसे ज्यादा आबादी युवाओं की है; अत: किसी तरह की भूल को रोकने के लिए उपाय करना अपरिहार्य है। नीति-निर्माताओं का लक्ष्य बोलने की स्वतंत्रता का लोकतांत्रिकरण करना एवं निर्दोष लोगों को लामबंद करने के फिराक में लगे निहित स्वार्थ वाले समूहों से उन्हें संरक्षण भी प्रदान करना होना चाहिए। नये सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के नवाचार और विकास भारत को अंततोगत्वा एक वैश्विक आह्वान देगा।
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Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English) [11]
Links:
[1] https://www.vifindia.org/article/hindi/2021/june/11/social-media-dilema-poonjeevaad-se-raashtreey-suraksha-tak
[2] https://www.vifindia.org/author/Anushka-Saraswat
[3] https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC7212244/
[4] https://knowledge.wharton.upenn.edu/article/singer-weaponization-social-media/
[5] https://www.youtube.com/watch?v=DXcJhJMceNw
[6] https://biz30.timedoctor.com/call-center-statistics
[7] http://web.archive.org/web/20200928135946/https://www.idler.co.uk/article/social-media-is-destroying-your-free-will/
[8] https://scroll.in/article/965378/in-social-media-battle-against-india-chinese-users-borrow-memes-from-pakistani-twitterverse
[9] https://indianexpress.com/article/opinion/columns/india-pakistan-information-war-campaign-6524734/
[10] https://www.firstpost.com/india/farmers-protest-centre-orders-twitter-to-block-1178-accounts-for-spreading-misinformation-9281801.html
[11] http://www.vifindia.org/2021/may/28/the-social-media-dilemma-from-capitalism-to-national-security
[12] https://www.media-diversity.org/wp-content/uploads/2020/12/shutterstock_1780467770-773x517.jpg
[13] http://www.facebook.com/sharer.php?title=सोशल मीडिया डिलेमा : पूंजीवाद से राष्ट्रीय सुरक्षा तक &desc=&images=https://www.vifindia.org/sites/default/files/shutterstock_1780467770-773x517_0.jpg&u=https://www.vifindia.org/article/hindi/2021/june/11/social-media-dilema-poonjeevaad-se-raashtreey-suraksha-tak
[14] http://twitter.com/share?text=सोशल मीडिया डिलेमा : पूंजीवाद से राष्ट्रीय सुरक्षा तक &url=https://www.vifindia.org/article/hindi/2021/june/11/social-media-dilema-poonjeevaad-se-raashtreey-suraksha-tak&via=Azure Power
[15] whatsapp://send?text=https://www.vifindia.org/article/hindi/2021/june/11/social-media-dilema-poonjeevaad-se-raashtreey-suraksha-tak
[16] https://telegram.me/share/url?text=सोशल मीडिया डिलेमा : पूंजीवाद से राष्ट्रीय सुरक्षा तक &url=https://www.vifindia.org/article/hindi/2021/june/11/social-media-dilema-poonjeevaad-se-raashtreey-suraksha-tak