विश्व के अधिकांश देश मई माह के द्वितीय रविवार को “मातृदिवस” के रूप में मनाते हैं। हमारा देश भारत भी इस विश्व का एक अभिन्न एवं महत्वपूर्ण अंग है एवं भारत में भी प्रत्येक वर्ष मई माह के द्वितीय रविवार को यह पवित्र दिवस मनाया जाता है। कहते हैं समय के साथ परिवर्तन आवश्यक है।
किन्तु, क्या और कितना परिवर्तन आवश्यक है यह भी अत्यधिक विचारशील प्रश्न है। न जाने कितने युग बदल गए, शताब्दियाँ बीत गई, और आज समय में एक बहुत बड़ा बदलाव आ गया है।
आधुनिक युग के श्रेष्ठ विद्वान, वैज्ञानिक,विभिन्न विचारकों इत्यादि का कहना है, कि आज हमारा देश पहले से अधिक विकसित हुआ है, विभिन्न क्षेत्रों में हमने विकास के नए आयाम स्थापित ये हैं,आज हम विश्व में प्रत्येक क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । और यदि देखा जाय तो कहीं हद तक यह बातें सही भी हैं, किंतु यह पूर्ण सत्य भी नहीं है । क्योंकि यदि यह पूर्ण सत्य है, तो कुछ शताब्दियों पूवॆ तक संपूर्ण विश्व पर राज करने वाला भारत आज भी एक विकासशील देश क्यों है? यदि यह पूर्ण सत्य है, तो कुछ शताब्दियों पूर्व विश्व-गुरु माना जाने वाला भारत आज अपने ही देश में ज्ञानप्रसारित करने में क्योंअसमर्थ है? क्या इसके पीछे सरकार का हाथ है ?
क्या किसी भी देश में होने वाले प्रत्येक अच्छे-बुरे, सामाजिक-असामाजिक, उत्कृष्ट-अनुत्कृष्ट प्रत्येककृत्यों के लिए सिफॆ उस देश की सरकार की ही सम्पूर्णरूप से जिम्मेदार होती है?
अपने देश को विकसित,उत्कृष्ट, उत्तम संसाधनों इत्यादि से युक्त रहने योग्य एवं अपराध मुक्त बनाने में वहां के नागरिकों की कोई भूमिका नहीं होती है ,क्या ?
आज हमारे समाज में दिन-प्रतिदिन भयंकर एवं निरंकुश अपराध बढ़ते जा रहे हैं, क्या इसके लिए सिर्फ और सिर्फ सरकारें जिम्मेदार हैं? सत्य तो यह है कि आज के इस आधुनिक परिपेक्ष्य में इन बढ़ते अपराधों के पीछे अकेले सरकार ही नहीं, यद्यपि नकारात्मक एवं निरंकुश परवरिश से संचालित होने वाले आधुनिक परिवार हैं। समाजकी सबसे छोटी इकाई परिवार होती है और इस परिवार का आधार पिता और माँ उसी परिवार की आत्मा होती है । मां को जीवन की प्रथम पाठशाला भी कहा जाता है। यह सत्य है कि ईश्वर मां को अद्भुत शक्तियां प्रदान करता है।
एक माँबिना वाणी का प्रयोग किए भी सिर्फ अपने विचारों के द्वारा ही अपनी संतान को अपनी सोच के अनुसार शिक्षित कर उक्त आकार प्रदान कर सकती है। और इसका सर्वोत्तम उदाहरण हमारे महाकाव्य महाभारत में अभिमन्यु द्वारा प्राप्त की गई चक्रव्यूह भेदन कि वह शिक्षा है, जो उसने अपनी मां सुभद्रा के गभॆ में ही अर्जित कर ली थी।
माँ की शिक्षा और ज्ञान में एक अद्भुत एवं अविश्वसनीय शक्ति है और इसमें कोई संदेह नहीं है।
महाभारत काल की एक अन्य श्रेष्ठ माता जिन्हें पंचमहाकन्याओं में भी विशेष स्थान प्राप्त हुआ है अर्थात "माता कुंती" जिन्होंने ईश्वर से न सिफॆ अपने लिये आजीवन कष्टों की याचना की थी यद्यपिकिसी भी प्रकार के असंख्य कष्टों का सामना करने के पश्चात भी अपने धमॆ एवं कर्तव्य परायणता से कभी न ओझल होने की अति महत्वपूर्ण शिक्षा अपनी संतानों को देते हुए प्रत्येक पथ पर उनके प्रत्येक कष्टों की साक्षी भी बनी।
एक मां के द्वारा दी गयी शिक्षा एवं परवरिश अपनी संतान को कितना प्रभावित करती है इसका सर्वोत्तम उदाहरण हमें भारत के महाकाव्य रामायण से मिलता है धरती का सवॆशक्तिशाली योद्धा, महादेव का महानतम भक्त, ब्राह्मणशिरोमणि ऋषि पुलस्त्यके कुल में जन्मा कालविजयी रावण को उसकीमां केकसी की नकारात्मक परवरिश एवं अहंकारयुक्त शिक्षाओं ने एक भयंकर राक्षस बना दिया। और वहीं दूसरी ओर रघुकुल की महारानी माता कौशल्याकी सरलता एवं उदारता, माता सुमित्रा की दृढ़ता एवंमाता कैकयी के त्याग ने एक साधारण से राजकुमार को भगवान बना दिया, और इसी अतुलनीय स्नेह, समपॆण, वात्सल्य और त्याग के आगे राम को स्वणॆ से जड़ित लंका भी तुच्छ नज़र आई।
वाल्मिकी रामायण में इसका अति सुन्दर उदाहरण मिलता है।
अनुवाद : "लक्ष्मण! यद्यपि यह लंका सोने की बनी है, फिर भी इसमें मेरी कोई रुचि नहीं है। (क्योंकि) जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान हैं।
ऐसी एक नहीं किंतु असंख्य मातायें रही हैं, भारत के इतिहास में जिनकी श्रेष्ठ परवरिश, संस्कार एवं शिक्षा पद्धति ने भारत को विश्व गुरु बनाने में अतुलनीय योगदान दिया। जिनमें से यहां कुछ विशेष उदाहरण प्रस्तुत है:
अपनी अंतिम श्वास तक अत्यधिक कष्टों का सामना करने के पश्चात भी, अपनी अद्भुत वीरता का परिचय देकर मुगलों से लोहा लेने वाले तथा मुगल शासक अकबर के आगे कभी ना हार मारने वाले तत्कालीन एकमात्र शूरवीर शासक महाराणा प्रताप के जीवन को भी इन उत्तम आदर्श एवं सिद्धांतों से सुसज्जित करने में “महारानी जैवन्ता बाई जी” की अत्यधिक महत्वपूर्ण एवं सशक्त भूमिका रही।
और बात जब प्रताप की हो रही है, तो यह वीर सपूत ही ना होता यदि इनके पिता राणा उदय सिंह को “पन्ना नाम की शेरनी धाय मां” ने अपने हृदय के स्थान पर शिला रखकर अपनी आंखों के सामने अपने नन्हे पुत्र चंदन की बलि देकर ना बचाया होता।
मराठा साम्राज्य के संस्थापक एवं हिंदु स्वराज्य के पुरजोर समर्थक शिवाजी राजे के जीवन को अद्भुत, अदम्य साहस एवं विभिन्न ज्ञानमयी गुणों से परिपूर्ण करने में “माता जीजाबाई” का सर्वोत्तम योगदान रहा।
मातृशक्ति की उत्कृष्ट श्रेणीमें माता गुजरी का एक विशेष एवं सर्वमहत्वपूर्ण स्थान है। सिख सम्प्रदाय के दशम एवं अन्तिम गुरू गुरुगोविन्दसिंह जी की महान मां “माता गुजरी” का साहस भारत के इतिहास में अद्वितीय माना गया है। यह वह अकल्पनीय माँ थी जिन्होंने देश सेवा एवं समस्त देशवासियों एवं धर्म की रक्षा हेतु न सिर्फ़ अपने पति यद्यपि अपने पुत्र एवं चारों पौत्रों को भी शहीद पथ का साहसिक मार्ग स्वयं दिखाया और माता गुजरी के इस अदम्य साहस ने इतिहास में इस मां को एक अद्वितीय स्थान प्रदान किया।
स्वामी विवेकानंद की अतुलनीय विचारधारा, उनके प्रेरक प्रसंग, एवं उनके सर्वोत्तम ज्ञान के लिए आज न सिर्फ भारत यद्यपि सारा संसार उन्हें अपना प्रेरणाश्रोत मानता है।
उन्होंने स्वयं स्वाभिमान पूर्वक अपने समस्त श्रोताओं के समक्ष अपने ज्ञान के विकास के लिए अपनी माता "श्रीमती भुवनेश्वरी देवी" के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए कहा था कि,
“न मातुः परदैवतम्।।” भावार्थ: माँ से बढ़कर कोई देव नहीं है।
शहीद भगत सिंह को शायद सभी जानते हैं किंतु इस शहीद को भारत मां के लिए हंसते-हंसते विदा कर देने वाली “मां विद्यावती” से आज भी अधिकांश जनमानस अनभिज्ञ है।
भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से अलंकृत वो असंख्य संतानें जिन्होंने भारत को विभिन्न स्तर पर श्रेष्ठ, सफल एवं विश्व गुरु बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया,उन सभी महान सचरित्रसंतानों के सर्वोत्तम, आचार- विचार और संस्कार के पीछे ईश्वर का सर्वोत्तम वरदान, मातृ शक्ति की प्रतीक, वात्सल्य, सेवा, परोपकार, त्याग, उत्सगॆ की शक्तिस्वरूपा असंख्य महान माताओं का भी अविस्मरणीय योगदान रहा है।
किन्तु आधुनिक युग में हमारा भारत अब इंडिया बन चुका है और भारत की माताएं इंडिया में अधिकांश माता आज के इस युग में माँ से मम्मी बन चुकी हैं। समय के अनुसार परिवर्तन आवश्यक है और इसमें कोई संदेह नहीं है। आज, समय से भी तेज दौड़ने वाले इस युग में हम विभिन्न परिवर्तनों को स्वीकार करके ही विश्व के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकते हैं और इसी श्रंखला में विश्व गुरु बनने के लिए आज हमारा देश एक और अति महत्वपूर्ण परिवर्तन चाहता है। आज हमारे देश को विश्व गुरु बनने के लिए जिन खोए हुए महापुरुषों जैसे स्वामी विवेकानंद, सम्राट अशोक, महाराणा प्रताप,शिवाजी राजे, लक्ष्मीबाई,भगत सिंह, गार्गी, अपाला, घोषा, इत्यादि की आवश्यकता है, इन सभी को इंडिया की मम्मी ढूंढकर पुनः दे सकती है या नहीं? इस संदभॆ में कुछ भी कहना कठिन होगा किंतु “भारतीय माताओं के अतुलनीय आचार-विचार, संस्कार,शिक्षा, अदम्य साहस एवं वात्सल्य में पुनः इस भारत की उत्कृष्ट धरती को ऐसे पवित्र एवं महान आत्माओं से सुसज्जित करने की अपार एवं विशेष शक्ति है।”
क्योंकि यह एक अकाट्य सत्य है, कि हमारे जीवन को उचित या अनुचित प्रारूप देने में मां की भूमिका मुख्य होती है।
"अतः हमारे समाज से किसी भी प्रकार की नकारात्मकता या अपराध का अंत कोई भी सरकार नहीं, किंतु संस्कार अवश्य कर सकते हैं।"
इस मातृ दिवस पर हमारी भारत माता के साथ-साथ भारत की प्रत्येक माता को हृदयपूर्ण अभिनंदन एवं शुभकामनायें।
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