चीन-पाकिस्तान इकोनामिक कॉरिडोर पर पाकिस्तान की कैबिनेट कमेटी (सीसीओसीपीईसी) ने सोमवार, 22 फरवरी 2021 को अपने रक्षा मंत्रालय और गृह मंत्रालय दोनों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि पाकिस्तान की नौसेना और तटरक्षक गार्ड ग्वादर में रियलस्टेट की 116 एकड़ जमीन को तत्काल खाली कर दे,जिस पर वह पिछले कई दशकों से अपना कब्जा जमा रखा है। कैबिनेट कमेटी का यह निर्देश कम से कम दो कारणों से असामान्य है।
पहला, पूरी दुनिया के देशों में उसकी नौसेना और तटरक्षकों के जिम्मे उस देश की समुद्री सीमा और समुद्री हितों की रक्षा की जवाबदेही होती है। इसके मुताबिक ये दोनों संगठन सुनिश्चित करते हैं कि जिस स्थान को उन्होंने अपने ‘ऑपरेशन बेस’ के रूप में चयन किया है, वह उन्हें इष्टतम लाभ के साथ सफलतापूर्वक सौंपे गये अभियान के दायित्व को पूरा करने में सहयोग करे। अत: महज सीपीईसी का समंजन करने के लिए पाकिस्तानी नौसेना और तटरक्षकों से ग्वादर में स्थित उनके स्थायी बेस को खाली कराना राष्ट्रीय सुरक्षा को नजरअंदाज करना है,यह किसी भी तरह से इसका कोई मायने भी नहीं है, इसीलिए, जहां तक इस फैसले की बात है, तो उसको लेकर यह विश्वास करने के अच्छे कारण हैं कि चीजें, जो सतह पर दिखाई देती हैं, उसकी बजाय यह कहीं गहरी हैं।
दूसरा, पाकिस्तान सरकार में अक्सर यह सुनने को मिलता है की सेना को क्या करना चाहिए। यह आखरी बार आज से 4 साल से भी ज्यादा वक्त पहले हुआ था, जब डॉन के रिपोर्टर सिरिल अलमेडा ने पाकिस्तानी सेना और संसद के वरिष्ठ सदस्यों के बीच हुई एक गोपनीय बैठक का आंतरिक विवरण प्रकाशित कर दिया था। उसमें यह खुलासा किया गया था कि कैसे “एक मुंहफट और अभूतपूर्व चेतावनी में नागरिक सरकार ने सैन्य नेतृत्व को पाकिस्तान के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ते अलगाव के बारे में सूचित किया था और सरकार द्वारा किए गए अनेक महत्वपूर्ण कार्यों पर सर्वानुमति की मांग की थी।” ‘डॉन लीक’ के नाम से जाने वाली इस घटना ने एक बड़ा संकट पैदा कर दिया था-अलमेडा को तो ‘एग्जिट कंट्रोल लिस्ट’ (नियंत्रण सूची से बाहर) में रख दिया गया था, संघीय सूचना और प्रसारण मंत्री परवेज राशिद को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था, इसके परिणामस्वरूप तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की स्थिति भी उलट-पुलट गई थी।
सबसे ताज्जुब की बात यह थी सीसीओसीपीईसी रक्षा मंत्रालय रक्षा मंत्रालय द्वारा अगस्त 2020 को किए गए अनुरोध स्वीकार करने के लिए राजी प्रतीत नहीं होती“पिशकुआन में 84 (पाकिस्तानी नौ सेना के लिए आवंटित वैकल्पिक स्थल) एकड़ जमीन के बदले बंदरगाह के करीब ग्वादर ईस्टबे (पूर्वी खाड़ी) से लगी आगे की तरफ से 84 एकड़ जमीन पाकिस्तानी नौसेना के ही कब्जे में रहने दिया जाए।” इससे भी अधिक हैरत की बात यह है कि पाकिस्तानी नौसेना ने, जिसने हाल में ही रावल लेक में अवैध तरीके से निर्मित नेवी सेलिंग क्लब को बचाने के लिए जी-जान से लड़ाई लड़ी थी, वह अपने बेस को खाली कर देने और इसके बजाय ग्वादर में और कहीं अपना अड्डा बना लेने के सीसीओसीपीईसी के फैसले से जरा भी क्षुब्ध प्रतीत नहीं होती।
समुद्र की तरफ रुख वाले नौसैनिक अड्डे के बने रहने देने की पाकिस्तानी नौसेना की इस वैध मांग को भी खारिज कर देने के सीसीओसीपीईसी के असामान्य से लगने वाले निर्भीक फैसले के पीछे दो ही कारण हो सकते हैं। एक तो यह देश की विधायिका में सहसा आई दृढ़ता का नया बोध हो सकता है और सेना के ऊपर संवैधानिक अधिकारों का आचरण हो सकता है, लेकिन यह तर्क यहां काम करता नहीं लगता। दूसरा कारण (जो अधिक विश्वसनीय है) यह है कि फैसला कुछ अतिसामान्य बाहरी दबाव में लिया गया है, जिसकी वजह से पाकिस्तानी सेना भी इसका विरोध नहीं कर सकी। तो क्या इस मसले पर पाकिस्तानी नौसेना का चुप्पी साधे रखना इसका संकेत है कि ‘ऊंट के थुथने’ की कहानी का आधुनिक संस्करण पाकिस्तान में दोहराया जा रहा है?
सुविज्ञ पाठकों को यह अच्छी तरह याद होगा कि यह कहानी एक अरब की है, जो अपने टेंट में आराम फरमा रहा था कि तभी मरुथल में तूफान उठ खड़ा हुआ और बालू का गुब्बार हर तरफ नाचने लगा। यह देख कर उसके ऊंट ने अपने मालिक से अपने थुथने को टेंट के भीतर रखने की इजाजत मांगी ताकि सहारा के गर्दो-गुब्बार से वह अपनी नाक बचा सके। अरब मालिक ने उस पर सहानुभूति जताते हुए इसकी इजाजत दे दी। लेकिन अंत में हुआ यह कि ऊंट धीरे-धीरे सरकते-सरकते पूरे टेंट में पसर गया, उस पर अपना कब्जा जमा लिया और मालिक टेंट से बेदखल हो गया। इसी तरह, मौजूदा कहानी में, चीनी ‘ड्रैगन’ शनै:-शनै: किंतु निश्चित गति और तरीके से पाकिस्तान की ‘टेंट’ में अपनी जगह बना रहा है और उसे अरब मालिक की तरह उसकी ही जगह से बेदखल कर रहा है। लेकिन इस दृष्टिकोण को पुष्ट करने वाले एक नहीं अनेक कारण हैं। उनमें कुछ बिंदु हैं :
इस्लामाबाद और रावलपिंडी दोनों ने ही बार-बार स्पष्ट रूप से कहा था कि राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता सर्वोच्च है और इस पर कोई समझौता नहीं हो सकता। हालांकि यह कहते हुए कि पाकिस्तान “अंतरराष्ट्रीय तकाजों” (शिष्ट भाषा में, पेइचिंग की बाहें मरोड़ने की नीति) को पूरी करने के लिए ग्वादर में रक्षा-मंत्रालय की जमीन को “चीनी रियायत धारकों” को सौंप देगा, समुद्री मामलों के मंत्रालय ने कुछ और ही संकेत दिया है। ऐसे में जो लोग अभी भी यह महसूस करते हैं कि सीपीईसी और बीआरआई परियोजनाओं के साथ ‘कोई तार नहीं जुड़े’ हैं, उन्हें अब जाग जाना चाहिए और कॉफी का स्वाद लेना चाहिए क्योंकि पेइचिंग ने अपनी पाई-पाई वसूलने का काम पहले ही शुरू कर चुका है और इस लेख में ऊपर विवेचित यह मसला आइसबर्ग (हिमशैल) की एक बूंद मात्र है!
प्रधानमंत्री इमरान खान इसे कभी कुबूल नहीं करेंगे लेकिन इसमें खारिज करने वाली कोई बात नहीं है कि चीनी धुनों पर उनके नाच ने पाकिस्तान का भला कम, नुकसान ज्यादा किया है। ‘ड्रैगन’ को खुश रखने की कोशिश में उन्होंने इस्लामाबाद के तथाकथित “कश्मीर पर सिद्धांतिक रुख” को खत्म कर दिया है कि जम्मू-कश्मीर एक “विवादित भूभाग” है। यह छिपा हुआ नहीं है कि पेइचिंग ऐसा कोई विवाद नहीं चाहता है, जो कि अवैध रूप से कब्जे वाले और एक “विवादित भू भाग” कहे जाने वाले पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) को लेकर सीपीईसी में अड़ंगा डाले।
इसीलिए पेइचिंग छिपे तौर पर इस्लामाबाद पर यह दबाव डालता रहा है कि वह गिलगित-बालटिस्तान (जीबी) को अपने एक प्रांत का दर्जा दे जिससे कि इस क्षेत्र को पाकिस्तान का हिस्सा बनाया जा सके, जिससे कि यह “विवादित भूभाग” की परिधि में नहीं आएगा। वास्तव में, यह पेइचिंग के पुरजोर दबाव का ही नतीजा था कि 2016 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने गिलगित-बालटिस्तान को पाकिस्तान के एक प्रांत का दर्जा दिए जाने का फैसला कर लिया था।
हालांकि, तब पाकिस्तान के इस प्रस्ताव की चौतरफा कड़ी आलोचना की गई थी। यहां तक कि पाकिस्तान समर्थित ऑल पार्टी हुर्रियत कान्फ्रेंस तथा जम्मू-कश्मीर में काम करने वाले अन्य अलगाववादी संगठनों ने भी गिलगित-बालटिस्तान को सूबे का दर्जा देने के प्रस्ताव की निंदा की थी। जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के चेयरमैन यासीन मलिक ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को अपने एक खत में लिखा था, “यह (गिलगित-बालटिस्तान को सूबा बनाने का प्रस्ताव) जम्मू-कश्मीर को लेकर विवाद को और जटिल बनाएगा। अगर पाकिस्तान गिलगित-बालटिस्तान पर अपनी संप्रभुता का दावा करेगा तो दिल्ली को भी कश्मीर को भारत के साथ मिलाने का राजनीतिक और नैतिक अधिकार मिल जाएगा। इस प्रकार, पाकिस्तान एक ही स्ट्रोक में भारत को कश्मीर पर अपने अधिकार जताने में मदद कर देगा।” यह महसूस करते हुए कि अगर इस प्रस्ताव पर अमल किया गया तो जम्मू-कश्मीर को “विवादित भूभाग” बताए जाने के पाकिस्तान के पहले से ही ढीले-ढाले नैरेटिव को और झकझोर देगा, लिहाजा, शरीफ ने पाकिस्तान के व्यापक हित में अपने इस प्रस्ताव को ताक पर रखने का फैसला किया।
हालांकि, इमरान खान पेइचिंग के दबाव में झुक गए और कड़े विरोध के बावजूद उस दिशा में आगे बढ़ते हुए गिलगित-बालटिस्तान को प्रांतीय दर्जा दे दिया। उनके इस कदम ने दरअसल पाकिस्तान के कश्मीर नैरेटिव पर अंतिम आघात किया है। इसके पहले, कश्मीर की जनता को दिए अपने एक संदेश में इमरान खान ने घोषणा की थी कि दुनिया कश्मीरियों के साथ खड़े हो या न हो, पाकिस्तान उनके साथ खड़ा रहेगा, जो वास्तव में इस बात की गंभीर याद दिलाता है कि कश्मीर मसले पर पाकिस्तान बिल्कुल अलग-थलग पड़ गया है और स्वयं खान ने पाकिस्तान के कश्मीर नैरेटिव के खात्मे का फातहा पढ़ दिया है!
अब चीनी ‘ड्रैगन’ ने अपना थुथना पूरी तरह से पाकिस्तानी ‘टेंट’ में घुसेड़ दिया है, ऐसे में कोई वेट एंट वॉच ही कर सकता है।
Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English) [3]
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[1] https://www.vifindia.org/article/hindi/2021/march/26/seepeeeesee-paakistaan-ke-tent-mein-cheenee-draigan
[2] https://www.vifindia.org/author/col-nilesh-kunwar
[3] https://www.vifindia.org/2021/march/02/cpec-chinese-dragon-in-pakistans-tent
[4] http://cpecinfo.com/wp-content/uploads/2020/01/gwadar-pic.jpg
[5] http://www.facebook.com/sharer.php?title=सीपीईसी : पाकिस्तान के ‘टेंट’ में चीनी ‘ड्रैगन’ &desc=&images=https://www.vifindia.org/sites/default/files/gwadar-pic_0.jpg&u=https://www.vifindia.org/article/hindi/2021/march/26/seepeeeesee-paakistaan-ke-tent-mein-cheenee-draigan
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