अमेरिकी राष्ट्रपति जोए बाइडेन का चार फरवरी को विदेश मंत्रालय में दिया गया भाषण दो बातों को लक्ष्य कर तैयार किया गया था।1 घरेलू स्तर पर अमेरिकियों को उसकी श्रेष्ठता के बारे में फिर से आश्वस्त करने और दुनिया को यह संकेत देने के लिए कि अमेरिका ने “वैश्विक नेतृत्व” देने की अपना कार्यभार फिर से ग्रहण कर लिया है। बाइडेन ने कूटनीति पर जोर देते हुए विश्व के साथ फिर से संलग्नता पर बल दिया है। उनकी भाव-भंगिमा अपने पूर्ववर्त्ती डोनाल्ड ट्रंप के “अमेरिका फर्स्ट” के दृष्टिकोण से बिल्कुल भिन्न थी। ट्रंप ने अपने रुख के कारण अमेरिका के परंपरित सहयोगियों को नजरअंदाज कर दिया था और उनके साथ मुठभेड़ की स्थिति ला दिया था। इससे गठवंधन की एकता को नुकसान पहुंचा था, लिहाजा अब उसकी भरपाई करना बाइडेन की शीर्ष वरीयता होगी।
राष्ट्रपति के भाषण ने पूरी दुनिया के साथ अमेरिका के संबंधों की एक रूपरेखा तय कर दी है। बाइडेन के नेतृत्व में, अमेरिका लोकतंत्र की हिफाजत करेगा एवं बहुआयामी संस्थाओं के साथ पुनर्संलग्न होगा। उनकी विदेश नीति मानवाधिकार को बढ़ावा देने तथा व्यक्ति की स्वतंत्रता को संरक्षित करने के लक्ष्य से लबरेज होगी। अमेरिकी विदेश नीति में उदारवादी मोड़ साफ दिख रहा है।
अमेरिकी राजनय की प्राथमिकताएं होंगी-अधिकारवाद की विकसित लहर, जलवायु परिवर्तन की लड़ाई, समानता के अधिकारों के चैम्पियन, शरणार्थियों के प्रति अधिक से अधिक मानवीय दृष्टिकोण रखने, बलशाली अर्थव्यवस्था का निर्माण, प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अमेरिकी परम्परागत धार को बनाये रखना आदि-आदि।
बिना अपने शब्दों में कटौती किये, बाइडेन ने शत्रु और प्रतिद्वंद्वी के रूप में रूस और चीन की पहचान की। उनका भाषण रूस के संदर्भ में काफी रूखा था, जिसे बड़ा शत्रु करार दिया गया था। बाइडेन ने उसे चेताया, “अपने बड़े हितों और अपने लोगों की हिफाजत के लिए हम रूस पर कर लगाने से हिचकेंगे नहीं।”2
चीन की एक प्रतिद्बंद्वी के रूप में पहचान की गई है, जो वैश्विक व्यवस्था के उल्लंघन तथा अनैतिक क्रिया-कलापों के संरक्षण के जरिये अमेरिका की वैश्विक सर्वोच्चता को चुनौती दे रहा है। बाइडेन ने घोषित किया, “हम चीन के आर्थिक दुर्व्यवहारों का सामना करेंगे; इसके आक्रामक, बलात कार्रवाइयों का जवाब देंगे; ...मानवाधिकारों पर उसके कुठारघात, बौद्धिक सम्पदा, और वैश्विक गवर्नेंस आदि मसले पर उसे खारिज करेंगे।”3
लेकिन बैरियों के साथ बातचीत करने या संबंध बनाने से इनकार भी नहीं किया गया है। बाइडेन ने स्पष्ट किया कि जहां अमेरिका के हित की बात होगी, वहां वह अपने रिपुओं और प्रतिद्वंद्वियों से भी संबंध रखेगा। यह भी रेखांकित करने की जरूरत है कि द्विपक्षीय संबंधों के बावजूद अमेरिका और रूस नई स्टार्ट नीति को अगले पांच साल तक के लिए बढ़ाने पर राजी हो गए हैं।
बाइडेन ने अपने दोस्त देशों में कनाडा, मैक्सिको, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, दक्षिण कोरिया, जापान, आस्ट्रेलिया और सऊदी अरब के नाम लिये हैं। आश्चर्यजनक रूप से इस श्रेणी में इस्राइल को छोड़ दिया गया है। सेना की तरफ तख्तापलट किये जाने को लेकर हो रही आलोचना के कारण बर्मा को बाइडेन की सूची से बाहर रखा गया है। उत्तरी कोरिया, अफगानिस्तान, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र, और जेसीपीओए का भी उनके भाषण में उल्लेख नहीं किया गया है। बाइडेन ने स्पष्ट किया कि अमेरिकी विदेश नीति में अन्य मसलों के साथ जलवायु परिवर्तन, शरणार्थी समस्या, एलजीबीटीक्यू के अधिकारों, अप्रवासन और साइबर सुरक्षा पर फोकस किया जाएगा।
वास्तविकता की तरफ झुकने का संकेत देते हुए, बाइडेन ने कहा कि रक्षा मंत्री अमेरिकी सेनाओं की विश्व में तैनाती के मसले की समीक्षा करेंगे। इस बीच, अमेरिकी सेना जर्मनी से वापस नहीं बुलाई जाएगी लेकिन इस क्रम में अफगानिस्तान का नाम नहीं लिया गया है। यह देखना बाकी है कि क्या अमेरिका ट्रंप सरकार के तालिबान से किये गये समझौते की भावना को ध्यान में रखते हुए अफगानिस्तान से पूरी तरह हट जाएगी। यमन में जंग को समर्थन देना रुकेगा। ईरान से संभावित खतरों को देखते हुए सऊदी अरब को समर्थन दिया जाएगा। भाषण में न तो हिन्द-प्रशांत क्षेत्र का उल्लेख किया गया है और न ही एशिया-प्रशांत का। किंतु विदेश मंत्री टोनी ब्लिंकन ने सीनेट की कार्यवाही के दौरान इन मसलों पर विस्तार से प्रकाश डाला था।
विश्व में अपना प्रभाव फिर से जमाने के लिए अमेरिका बहुपक्षीय संस्थाओं की तरफ लौटेगा। बाइडेन ने पहले ही कार्यकारी आदेश पारित कर दिया है कि अमेरिका पेरिस जलवायु समझौते के प्रति प्रतिबद्ध है और डब्ल्यूएचओ के प्रति भी, जहां से अमेरिका ने अपना नाता तोड़ लिया था। वैश्विक महामारी औऱ स्वास्थ्य के अन्य मसले को विदेश नीति में उच्च वरीयता दी जाएगी।
बाइडेन का इस बात पर जोर था कि अमेरिकी विदेश नीति को घरेलू नीतियों की सेविका होनी चाहिए। राजनय को देश के मध्य वर्गों के हितों की सेवा करनी चाहिए। अमेरिकी कम्पनियों के बौद्धिक सम्पदा अधिकारों की रक्षा की जाएगी।
बाइडेन की विदेश नीति की धुरी होगी-लोकतंत्र को प्रोत्साहन देना। वह आने वाले महीनों में दुनिया के लोकतांत्रिक देशों का तथा जलवायु में बदलाव को लेकर शिखर सम्मेलनों का आयोजन करेंगे। इसमें जलवायु परिवर्तन पर शिखर सम्मेलन में भागीदार देशों से जलवायु के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरी करने के लिए उन्हें और महत्वाकांक्षी होने के लिए बाध्य किया जाएगा।
बाइडेन ने इस तथ्य का भी संज्ञान लिया है कि अमेरिकी कारोबार और कम्पनियों को चीन से काफी मार सहनी पड़ी है। यह देखना वाकई दिलचस्प होगा कि ऐसे समय में जब चीन अपनी समग्र राष्ट्रीय ताकत बढ़ा रहा है और कई क्षेत्रों में अमेरिकी सर्वोच्चता को खुली चुनौती दे रहा है, बाइडेन विदेश नीति के अपने एजेंडे को किस तरह से क्रियान्वित करेंगे।
इसमें बहुत थोड़ा संदेह है कि बाइडेन विश्व में अमेरिकी प्रभुता के अचल विश्वास से निर्देशित हो रहे हैं। उन्होंने विधि अपने पूर्ववर्त्तियों से अलग हो सकती है, लेकिन वह अधिकतर अमेरिकियों से इस मामले में अलग नहीं हैं कि जो मानते हैं कि अमेरिका की नियति है, विश्व का नेतृत्व करना।
बाइडेन ने जो कहा है, उसे सुन कर उनके सहयोगियों को प्रसन्नता हुई होगी। लेकिन पकवान का प्रमाण उसके खाने में सन्निहित होता है। साक्ष्य तो यह है कि अमेरिका के प्रति उनके सहयोगियों का विश्वास हिला हुआ है। वह उनसे अधिक व्यावहारिक और ठोस उपायों की बाट जोह रहे हैं, जो गठबंधनों को ज्यादा मजबूती देगा।
हालांकि बाइडेन का संक्षिप्त भाषण उनकी पूरी विदेश नीति की बानगी नहीं है। उनका प्रशासन विदेश नीति को समग्रता प्रदान करने के पहले विषय के सभी आयामों का विवेकसम्मत पुनरावलोकन करेगा। इसलिए, किसी को भी उनके भाषण में भारत का उल्लेख न होने को ज्यादा तूल नहीं देना चाहिए।
भारत को यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि वह मौजूदा भारत-अमेरिकी संबधों की दशा की गारंटी नहीं ले सकता। भारत बाइडेन के चीन को लेकर उनके सरोकारों से सहमत होगा, जबकि उसने इसका खुले रूप में इजहार नहीं किया है। हिन्द-प्रशांत क्षेत्र भारत की विदेशनीति का महत्वपूर्ण स्तंभ हो गया है। भारत यह सावधानी से देखेगा कि हिन्द-प्रशांत क्षेत्र को लेकर अमेरिकी नीति का विकास किस रूप में होता है।
भारत औऱ अमेरिका लोकतांत्रिक मूल्यों, कानून का शासन औऱ मानवाधिकार के मसले पर साझेदार हैं। आतंकवाद, कट्टरता, बहुपक्षीयवाद आदि मसलों पर भी हमारे रुख एक जैसे हैं। इस प्रकार, भारत औऱ अमेरिका के बीच बहुत कुछ साझा है। हमें इन समानताओं पर अपने संबंधों का निर्माण करना चाहिए। हालांकि, बाइडेन के विभिन्न वक्तव्यों से गुजरते हुए भी, भारत को जलवायु परिवर्तन, कारोबार, और यहां तक कि घरेलू मसलों पर भी दबाव झेलने के लिए तैयार रहना चाहिए। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि भारत के आंतरिक मामलों में अमेरिका कोई दखल नहीं देगा।
बाइडेन प्रशासन ने पाकिस्तान को लेकर अपनी नीतियां स्पष्ट नहीं की हैं। यह याद रखा जाना चाहिए कि बाइडेन ही सरपरस्ती में ही 2008 में कैरी-लुगार विधेयक पेश किया गया था (2009 में यह कानून पारित हुआ था), जिसके तहत पाकिस्तान को बिलियंस डॉलर्स की सैन्य और वित्तीय सहायता मिलने का रास्ता साफ हुआ था। इस मदद के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर करते हुए पाकिस्तान ने बाइडेन को अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान “हिलाल ए पाकिस्तान” से अक्टूबर 2008 में नवाजा था। इसी पृष्ठभूमि में पाकिस्तान बाइडेन के इस कार्यकाल में अपने संबंध बेहतर होने की उम्मीद पाले बैठा है।
पुतिन को लेकर बाइडेन की सीधी और तीखी आलोचना भारत के लिए अच्छा शकुन नहीं है, जिसकी रूस के साथ विशेष सामरिक साझेदारी है।
लोकतंत्र होने के कारण, भारत को निश्चित ही लोकतांत्रिक देशों के लिए होने वाले अमेरिकी शिखर सम्मेलन में भाग लेना चाहिए। ठीक उसी क्षण, लोकतंत्र को किसी देश में सत्ता परिवर्तन तथा अन्य देशों के घरेलू मामलों में दखल देने का एक बहाना नहीं बनाया जाना चाहिए।
खैर, ये तो बाइडेन प्रशासन के शुरुआती दिन हैं। हालांकि उसने श्रीगणेश अच्छा किया है। बहुत सारी महत्वपूर्ण नियुक्तियां की गई हैं। राजनय को पुन: ऊर्जस्वित करने के लिए उसे भरपूर अहमियत दी गई है। अमेरिकी विदेश नीति की मुकम्मल तस्वीर तो तब उभरेगी जब विदेश नीति और रक्षा नीति की समीक्षा हो जाएंगी।
बाइडेन आदर्शवाद को अमेरिकी विदेश नीति में वापस लाने का प्रयास कर रहे हैं। यह काम ट्रंप की विदेश नीति के बिल्कुल विर्पयय है, जो ट्रांसनेशनलिज्म पर आधारित था।
भारत को ट्रंप के कार्यकाल में द्विपक्षीय संबंधों में हासिल चमक को बनाये रखने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। अमेरिका के साथ भारतीय राजनयिक संलग्नता के क्षेत्र और गुणवत्ता को परिमाणात्मक रूप से विस्तारित करने की आवश्यकता है। हमने भारत में किसानों के धरना-प्रदर्शनों के अभियानों तथा इंटरनेट पर प्रतिबंध के मामले में अमेरिका के स्पष्ट उद्धरणों से पहले ही अवगत हो चुके हैं। यहां तक कि संविधान के अनुच्छेद की समाप्ति के बाद नागरिक प्रतिबंध को लेकर ट्रंप प्रशासन को असहज पाया गया था।
बाइडेन प्रशासन को उसके कार्यकाल की शुरुआत में ही भारत के संवेदनशील मसलों के बारे में अवश्य ही अवगत कराया जाना चाहिए। बाइडेन ने कुछ विशेष मसलों पर खास राजनयिकों की नियुक्तियां की हैं। भारत को इस पर विचार करने की जरूरत है कि अनेकानेक मसलों पर वह अमेरिका के साथ किस तरह सघनता और प्रभाविता के साथ पेश आएगा। भारत भी अमेरिका से प्रेरित हो कर जलवायु बदलाव, पश्चिम एशिया, अफगानिस्तान, हिन्द-प्रशांत इत्यादि क्षेत्रों में अपने विशेष राजदूत नियुक्त कर सकता है। इस तरह, वह दुनिया के साथ व्यापक रूप से अपनी राजनयिक संलग्नता को बढ़ा सकता है।
Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English) [4]
Links:
[1] https://www.vifindia.org/article/hindi/2021/march/03/baiden-kee-videsh-neeti-kee-praathamikataen-bhaarat-par-inake-prabhaav
[2] https://www.vifindia.org/author/arvind-gupta
[3] https://www.whitehouse.gov/briefing-room/speeches-remarks/2021/02/04/remarks-by-president-biden-on-americas-place-in-the-world/
[4] https://www.vifindia.org/2021/february/07/biden-s-foreign-policy-priorities-implications-for-india
[5] http://www.facebook.com/sharer.php?title=बाइडेन की विदेश नीति की प्राथमिकताएं : भारत पर इनके प्रभाव &desc=&images=https://www.vifindia.org/sites/default/files/USA-BIDEN-STATE-DEPARTMENT_0.jpg&u=https://www.vifindia.org/article/hindi/2021/march/03/baiden-kee-videsh-neeti-kee-praathamikataen-bhaarat-par-inake-prabhaav
[6] http://twitter.com/share?text=बाइडेन की विदेश नीति की प्राथमिकताएं : भारत पर इनके प्रभाव &url=https://www.vifindia.org/article/hindi/2021/march/03/baiden-kee-videsh-neeti-kee-praathamikataen-bhaarat-par-inake-prabhaav&via=Azure Power
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