चतुष्टय (क्वाड) का वर्तमान विकास एक जबरदस्त सुरक्षा संहिता के रूप में उभरा है और मालाबार के ऩौ सैन्य अभ्यास में आस्ट्रेलिया के शामिल होने से यह भारत और अंतरराष्ट्रीय जगत में मीडिया का ध्यान प्रचुरता में अपनी ओर खींचा है। विश्लेषकों का एक बड़ा समूह इसकी पद्धति को लेकर वही घिसा-पिटा सवाल किया है कि चीन के उद्भव और क्षेत्रीय मामलों में उसकी बढ़ती आग्रहिता को देखते हुए चतुष्टय का आयोजन उपयुक्त है या नहीं। इसी तरह, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (जो जोए बाइडेन के लिए जल्द ही पद खाली करने वाले हैं) ने चीन की हिंस्र कारोबारी गतिविधियों को लेकर कुपित हो कर उसके विरुद्ध मोर्चा खोलने की घटना ने विद्वानों और राय बनाने वालों का उसी तरह ध्यान खींचा है। जारी विमर्शों के दरम्यान, चीन और आस्ट्रेलिया के बीच बढ़ते तनाव, जो पिछले महीनों में काफी सघन हुआ है, को मीडिया तथा भारत में चिंतकों से जुड़ी अग्रणी वेबसाइटों में उस मात्रा में अपेक्षित कवरेज नहीं मिला है। आस्ट्रेलिया के इस बयान ने बीजिंग को आगबबूला कर दिया है कि कोरोना वायरस के उद्गम-स्रोत की वैश्विक जांच कराने की मांग करने पर चीन से उसका तनाव बढ़ गया है,जिसके बाद उसने आस्ट्रेलिया से आयात होने वाले वस्तुओं पर कर लगा दिया है। प्रस्तुत आलेख यह समझने का प्रयास करता है कि किन कारणों से आस्ट्रेलिया अन्य देशों के साथ चीन के खिलाफ खड़ा हो गया, और उसके दंडात्मक प्रावधानों का आस्ट्रेलिया के साथ भविष्य के व्यापार-संबंधों पर क्या असर पड़ेगा।
वर्तमान संदर्भ को समझने के लिए आस्ट्रेलिया-चीन संबंधों के विकास की पहले यहां थोड़ी चर्चा जरूरी है। 1960 और 1970 के दशकों में जापान के अपने यहां खनिजों के विशाल भंडारों और कच्चे माल का पता चलने के बाद वह इन वस्तुओं की आस्ट्रेलिया को आपूर्ति करने के साथ उसके लिए निर्यात का एक सम्मोहक बाजार हो गया था। 1980 के मध्य दशक तक तो जापान आस्ट्रेलिया के सबसे बड़े कारोबार साझेदार के रूप में उभर चुका था। आस्ट्रेलिया की निर्यात विशेषज्ञता जापान की आयात विशेषज्ञता से हूबहू मेल खाती थी, क्योंकि आस्ट्रेलिया जापान के मैनुफैक्चरिंग उद्योगों को कच्चे माल की आपूर्ति कर देता था। तो यह दोनों के लिए परस्पर फायदेमंद स्थिति थी। इस तरह ऑस्ट्रेलिया और जापान के संबंध जबर्दस्त तरीके से एक दूसरे के अनुपूरक थे। यह लेखक इस मसले पर अपना एक लघु शोध प्रबंध (डिसर्टेशन) पहले भी लिख चुका है।1 ऑस्ट्रेलिया का निर्यात व्यापार तब बिगड़ा जब जापान “गायब हुए दशकों” (लॉस्ट डिकेड्स)2 में जा फंसा। इसने जापान की वस्तुओं की मांगों में जबर्दस्त गिरावट ला दिया। ऑस्ट्रेलिया के लिए सुखद रहा कि उसके द्बारा की जा रही वस्तुओं की आपूर्ति और मैनुफैक्चरिंग उद्योगों को अपने बहुमूल्य कच्चे माल से पेट भरने के साथ-साथ चीन का भी आर्थिक अभ्युदय हो रहा था। जापान की ही भांति ऑस्ट्रेलिया का चीन के साथ आयात की विशेषज्ञता विनिर्मित उत्पादों तक सीमित थी। कोरोना वायरस के प्रकोप ने द्विपक्षीय फायदे की स्थिति को फिलहाल गड़बड़ कर दिया है।
ऑस्ट्रेलिया एवं चीन के बीच व्यापार में मौजूदा तनाव से यह पहलू सीधे संबंधित नहीं है, लेकिन ऑस्ट्रेलिया के एशियाई राष्ट्रों के प्रति परिवर्तित दृष्टिकोण को समझने के संदर्भ में महत्वपूर्ण है क्योंकि कच्चे पदार्थों के निर्यात में सहसा नई समृद्धि आ जाने से ऑस्ट्रेलिया का ज्यादा कारोबार पश्चिमी राष्ट्र के साथ होने लगा है। वह अपने को पश्चिमी राष्ट्रों के साथ ही पहचाने जाने में गौरवान्वित महसूस करता है। 1979 में ऑस्ट्रेलियाई अर्थशास्त्री और वहां की नेशनल यूनिवर्सिटी में जीवनपर्यंत प्रोफेसर रहे एच.डब्ल्यू. ऑन्ट के साथ हुए एक पत्र व्यवहार में उसकी आर्थिक नीतियों का पता चलता है। प्रो. ऑन्ट ने ही ऑस्ट्रेलिया सरकार की आर्थिक नीतियों पर बहुत मजबूत प्रभाव डाला था। उन्होंने जोर देकर इसको रेखांकित किया था कि ऑस्ट्रेलिया अपने को एक एशियाई देश के रूप में पहचाने जाने का लगातार प्रतिकार करता आया है। वह अपने भाग्य को पश्चिमी देशों के साथ जोड़ना चाहता है। लेकिन हाल के घटनाक्रमों से पता चलता है कि ऑस्ट्रेलिया के अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण में एक नाटकीय परिवर्तन आया है। वह एशियाई देशों के साथ अपने आर्थिक संबंधों को विस्तार देने के अलावा उसने एशियाई देशों के साथ अपने सुरक्षा हितों को भी साझा किया है। यह उसके द्विपक्षीय नौ सैन्य अभ्यास और मालाबार में नौसैन्य अभ्यासों में शामिल होने एवं चतुष्टय सुरक्षा समूहों के सदस्य बनने में जाहिर हुआ है।
तो, ऑस्ट्रेलिया कोरोनोवायरस की वैश्विक जांच की मांग के लिए अन्य लोगों से कैसे जुड़ता है और कैसे चीन से उसका द्विपक्षीय संबंध पटरी से उतर जाता है? वस्तुओं और सेवाओं में ऑस्ट्रेलिया के आयात-निर्यात कारोबार में 2016 में 0.6 फीसद की वृद्धि हुई थी। किंतु इसके बाद के वर्षों में यह 11 फीसद बढ़कर 763 बिलियन डॉलर का कारोबार हो गया था।3 चीन, हांगकांग और ताइवान के बाजारों में ऑस्ट्रेलियाई वस्तुओं और सेवाओं की जबर्दस्त मांग थी। साथ ही, आसियान क्षेत्र, जापान, दक्षिण कोरिया और भारत में इसकी काफी मांग थी। इन मांगों ने 2017 में दो समूह के देशों के लिए दोतरफा व्यापार (टू वे ट्रेड्स) को बढ़ाकर क्रमश:15 फीसद और 21 फीसद करते हुए उसे 217 बिलियन डॉलर और 286 बिलियन डॉलर तक पहुंचा दिया। 2017 में एशिया-प्रशांत क्षेत्र (एशिया और महासागर क्षेत्र) में ऑस्ट्रेलिया का दोतरफा व्यापार (आयात-निर्यात) 71 फीसद तक हुआ था। डॉलर के संदर्भ में कहें तो विगत 10 वर्षों में ऑस्ट्रेलिया का एशिया-प्रशांत क्षेत्र में कारोबार उछलकर 253 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया, जबकि इस अवधि में समूचे यूरोप और अमेरिका का कुल हिस्सा 33 फीसद से घटकर 26 फीसद तक आ गया।4
एशिया क्षेत्र के अंतर्गत ऑस्ट्रेलिया के 15 बड़े बाजारों में से 12 बाजारों में लगभग 500 बिलियन डॉलर मूल्य का व्यापार होता है। इन पांच ऑस्ट्रेलियाई कारोबार साझेदारों का सकल व्यापार 2017 में 53 फीसद था : इनमें चीन के साथ सकल कारोबार के 24 फीसद के साथ 183 बिलियन डॉलर का था। इसी प्रकार, ऑस्ट्रेलिया के बाकी दोतरफा व्यापार के साझीदार जापान के साथ उसके कुल व्यापार का 9.4 फ़ीसद के साथ 72 बिलियन डॉलर मूल्य का था। इसी तरह, ऑस्ट्रेलिया के दूसरे बड़े कारोबारी सहयोगी के रूप में अमेरिकी बाजार को पीछे छोड़ते हुए अमेरिका के बाद 68 बिलियन डॉलर का कारोबार किया था। दक्षिण कोरिया के साथ 55 बिलियन डॉलर का और भारत के साथ पांच में सबसे बड़े कारोबारी साझेदारी के रूप में 27 बिलियन डॉलर का कारोबार किया।
निर्यात व्यापार की संरचना लौह अयस्क पर आधारित थी और कोयला, प्राकृतिक गैस, शराब, गो-मांस और निजी स्तर की यात्राओं (शिक्षा को छोड़कर) पर संकेंद्रित थी। बड़े आयात में निजी कारोबारी सेवाएं, यात्री मोटरवाहनों, परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पादों, दूरसंचार उपकरणों और कल-पुर्जे शामिल थे। आयात-निर्यात व्यापार की इतनी पुख्ता बुनियाद के साथ आस्ट्रेलिया द्वारा वायरस की जांच की मांग किए जाने के बाद ऑस्ट्रेलिया और चीन के बीच तेजी से बढ़ते व्यापार के भी विनष्ट हो जाने का खतरा उत्पन्न हो गया है।
आस्ट्रेलिया द्वारा कोरोना वायरस की स्वतंत्र जांच की मांग मामले में चीन के दबाव पर प्रारंभिक प्रतिरोध जताने के बाद ऑस्ट्रेलिया जब अमेरिकी अंधानुकरण(बैंडवैगन) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) में शामिल हो गया और चीन के तीखे लहजे में प्रस्ताव को खारिज करने के बावजूद झुकने से इनकार कर दिया तो व्यापार विवाद को लहकाने के लिए इतनी चिनगारी पर्याप्त थी क्योंकि दोनों तरफ से धमकियां और प्रतिशोध की बातें की जाने लगी थीं।
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरीसन ने भी जोर देकर कहा कि चीन के खारिज किए जाने के बावजूद उनका देश कोरोना वायरस की जांच की मांग को लेकर प्रतिबद्ध है। बीजिंग ने ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्री मैरिज पायने की तरफ से जांच की मांग को बेबुनियाद और और तार्किक करार देते हुए उसे खारिज कर दिया।5 हालांकि इससे बिल्कुल अप्रभावित मॉरिसन ने इस मसले को लोक स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण मानते हुए जांच की अपनी मांग पर अड़े रहे। मॉरिसन ने इस मसले पर पीछे हटने से इनकार कर दिया क्योंकि चीन अपने प्रांत बुहान में इस वायरस के फैलने के बाद उसकी घोषणा को लेकर पारदर्शी नहीं था। चीन की तरफ से उसका प्रोपेगेंडा करने वाले अखबार “ग्लोबल टाइम्स” में प्रकाशित अपने आलेख में लेखक वांग वेनवेन ने आस्ट्रेलिया पर अमेरिका का “क्षुद्र पिछलग्गू” होने का और “वायरस नीति पर अमेरिका के अंधानुकरण”में शामिल होने का आरोप लगाया।6 लेकिन इन सबसे अलग, ऑस्ट्रेलिया की सामरिक नीति संस्थान के विश्लेषक एलेक्स जोसेक ने कहा कि वायरस से निपटने में बीजिंग की पारदर्शिता में कमी चिंता का विषय है और इसकी स्वतंत्र जांच की अनिवार्यता पूरी तरह न्यायोचित है। इसके बाद चीन ने एलेक्स और क्लाइव हैमिल्टन को एंट्री एंड एग्जिट लॉ ऑफ रिपब्लिक ऑफ चाइना के तहत अपने यहां आने पर पाबंदी लगा दी।7
इसके बाद चीन की तरफ से “आर्थिक ज़बरदस्ती” की धमकी दी गयी। ऑस्ट्रेलिया में चीन के राजदूत चेंग जिंगे ने संकेत दिया कि प्रतिक्रिया में चीनी उपभोक्ता आस्ट्रेलिया के गो-मांस, शराब, पर्यटन और विश्वविद्यालयों में पठन-पाठन का बहिष्कार कर सकते हैं।8 जब व्यापक जन स्वास्थ्य का मामला सामने आया है तो आस्ट्रेलिया निर्यात पर दुष्प्रभाव पड़ने की चीन की धमकी के आगे झुकता हुआ नहीं दिखना चाहता है। चीन को अपने हितों के प्रति संवेदनशील होने की जरूरत है क्योंकि ऑस्ट्रेलिया उसके लिए मुख्य संसाधनों और ऊर्जा का “अहम आपूर्तिकर्ता” है, जो चीन की मैन्युफैक्चरिंग संवृद्धि और निर्माण में सहायक है। चीन के साथ खराब होते संबंधों के प्रसंग में, ऑस्ट्रेलिया ने उसके बाजार पर अपनी निर्भरता को कम करने के प्रयास में भारत और यूरोपियन यूनियन समेत अन्य बाजारों को खोजना शुरू कर दिया है। 2018-19 में यूरोपियन यूनियन के साथ ऑस्ट्रेलिया का कारोबार A$114.3 बिलियन ऑस्ट्रेलियन डॉलर था और भारत के साथ A$30.3 बिलियन डॉलर थाI ऑस्ट्रेलिया इन अंकों को और बढ़ाने की सोच रहा है। यद्यपि चीन के साथ बढ़ते राजनयिक तनाव के बीच ऑस्ट्रेलिया और चीन के बीच दोतरफा व्यापार बढ़कर 20 फीसद हो गया है।9
चीन के साथ ऑस्ट्रेलिया का व्यापार तकरार होने से उसकी बहुत सारी कंपनियों ने केवल बीजिंग पर ही फोकस करते रहने के बजाय अब एशिया के अन्य हिस्सों पर भी ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित हुई है। जापान और दक्षिण कोरिया की कंपनियों ने चीन के बाहर अन्य एशियाई देशों जैसे वियतनाम, फिलीपींस, बांग्लादेश, थाईलैंड और भारत में अपने उत्पादों के आधार तलाशने शुरू कर दिए हैं, जिससे आपूर्ति श्रृंखलाएं फिर से निर्मित होने लगी हैं और ऑस्ट्रेलिया भी उनके साथ इसी रणनीति के साथ आ मिला है। ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बैंकिंग समूह एएनजेड, जो ऑस्ट्रेलिया का सबसे बड़ा बैंक है, उसके सीईओ शाइने इलियट ने ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में काम करने वाली कंपनियों के साथ एशिया में संभावित अवसरों के बारे में बातचीत शुरू कर दी है।10
तभी से ऑस्ट्रेलिया की वायरस की जांच की मांग के चलते उसके और चीन के बीच तनाव दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। चीन ने ऑस्ट्रेलिया पर “राजनीतिक पैंतरेबाजी” आरोप लगाया है। चीन ने ऑस्ट्रेलिया को जिस तरह से दंडित करने का फैसला किया है, वह कोविड-19 की जांच की मांग पर एक प्रतिशोधात्मक कार्रवाई लगती है। विदेश मंत्री पायने ने जब 19 अप्रैल को जांच की पहली बार मांग की तो इसके दूसरे ही दिन चीन ने जांच की मांग को “राजनीतिक रूप से प्रेरित और संदेहास्पद” करार दिया। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने उन पर आक्रमण करते हुए इसे “एकदम गैर जवाबदेह” करार दिया। इसके बाद, चीनी राजदूत चेंग जिंगे ने 27 अप्रैल को वुल्फ बैरियर कूटनीति के तहत जांच की मांग को “खतरनाक” बताया और धमकी दी कि चीनी उपभोक्ता ऑस्ट्रेलिया के दौरे का बहिष्कार करेंगे और चीनी छात्रों को आस्ट्रेलिया पढ़ने आने से रोक दिया जाएगा। इसके 2 हफ्ते के बाद 10 मई को, चीन ने ऑस्ट्रेलिया से जौ आयात पर 80 फीसद कर लगाने की धमकी दी।
आस्ट्रेलिया चीन को 1.5 बिलियन डॉलर से 2 बिलियन डॉलर मूल्य के जौ का निर्यात करता है। यह चीन को निर्यात किए जाने वाले तीन सिर्फ कृषि उत्पादों में से एक है। जौ का आम तौर पर उपयोग ब्रेड्स, सूप और खिचड़ी (स्टीव) बनाने में होता है, लेकिन बड़े पैमाने पर इसे पशुओं के चारे के रूप में उगाया जाता है तथा बियर जैसे अल्कोहल के लिए माल्ट स्रोत के रूप में काम आता है। इसके पहले, ऑस्ट्रेलिया को अपने जौ के उत्पादन को डंप करने का दोषी ठहराया गया था, जिससे कि आयात किये जाने वाले देशों की तुलना में अपने देश में कम कीमत पर उसे बेचा जा सके। इस तरह से विदेशों को निर्यात करने वाली कंपनियों को भारी “नुकसान” उठाना पड़ा था। इसी समय के आसपास, चीन ने कोरोना वायरस की जांच पर विरोध के बहाने ऑस्ट्रेलिया से जौ के आयात पर भारी कर लगाने की धमकी दी थी।11 फिर 12 मई को चीन ने ऑस्ट्रेलिया से होने वाले गो-मांस के आयात को निलंबित कर दिया था और इसके चार बूचड़खानों को काली सूची में डाल दिया था। इस वजह से ऑस्ट्रेलिया के 3.5 बिलियन डॉलर के गो-मांस निर्यात पर काफी प्रतिकूल असर पड़ा था। इसलिए कि ऑस्ट्रेलिया उन चार बूचड़खानों से देश के सकल गो-मांस के एक तिहाई से ज्यादा चीन को निर्यात करता है। शुरुआती ना-नुकुर के बाद कि यह प्रतिबंध कोरोना वायरस की जांच की मांग के खिलाफ बदले की कार्रवाई के रूप में लगाया गया है, चीन के अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक अधिवक्ता वीहुआन ज़ाओ ने बाद में इसकी पुष्टि कर दी कि यह प्रतिबंध कोविड-19 की जांच की मांग से ही जुड़ा हुआ है।
चीन जल्दी ही बैकफुट पर आ गया, जब 17 मई को दुनिया के 62 देश कोरोना वायरस के उद्गम की जांच की मांग में शामिल हो गए। इसके अगले दिन चीन ने जौ के आयात पर 80 फीसद कर लगा दिया जिससे कि उसके दाम में बनावटी बढ़ोतरी हो गई। अब तो पूरी तरह से व्यापार युद्ध शुरू हो गया था। इसके बाद आस्ट्रेलिया ने जौ के निर्यात के लिए भारत, सऊदी अरब और कुवैत जैसे बाजारों की तरफ रुख करना शुरू कर दिया। 19 मई तक दुनिया के 120 देश डब्ल्यूएचओ में कोविड-19 की जांच-प्रस्ताव के सह-प्रायोजक हो गए थे। ऑस्ट्रेलिया चीन की डराने-धमकाने वाली नीति का सामना करने के लिए अपने को तैयार कर लिया था।
चीन के प्रतिशोधात्मक कदमों और व्यापार प्रतिबंधों ने ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर डाला है। रोजगार के घटते अवसरों के चलते उसकी अर्थव्यवस्था पहले से ही मंदी के दौर से गुजर रही थी, ऑस्ट्रेलिया ने अपने को घिरा हुआ पाया। ऑस्ट्रेलिया को डर हुआ कि इसके बाद चीन उसके लौह अयस्क, कोयला और प्राकृतिक गैस के निर्यात पर भी कर बढ़ा सकता है। व्यापार की लड़ाइयों का असर शेयर बाजार के उतार पर जल्द ही दिखने लगा था, जिसने आगे चलकर आर्थिक संवृद्धि को और कमजोर कर दिया। नीति-निर्माताओं को भी चीनी प्रतिशोध की दूसरी लहर का डर सता रहा है।
प्रतिशोधात्मक कदमों ने जल्द ही अन्य क्षेत्रों को भी अपनी जद में ले लिया था, जब चीन ने ऑस्ट्रेलिया से 400 मिलियन डॉलर के गेहूं के आयात को भी प्रतिबंधित करने की धमकी दी थी, जिससे बार्ली, चीनी, रेड वाइन,लकड़ी,कोयला, झींगा मछली,तांबा अयस्क और तांबा जैसी निर्यात की जाने वाली उपभोक्ता वस्तुओं की सूची शीर्ष कर के दायरे में आ गई। इन उत्पादों पर लगे कड़़े टैक्स जल्दी ही अपने प्रभाव दिखाने लगे जबकि इन वस्तुओं के दामों का भुगतान पहले ही किया जा चुका था और ये वस्तुएं चीन के बंदरगाहों पर काफी पहले पहुंच भी चुकी थीं।12
ऑस्ट्रेलिया ने भी चुप न बैठते हुए चीन के साथ एंटी डंपिंग कारोबार-प्रतिद्वंदिता शुरू कर दी। ऑस्ट्रेलिया के एंटी डंपिंग कमीशन ने चीन में बने स्टील के हौज पर एंटी डंपिंग कर लगाने का निर्णय किया। जल्दी ही चीन के उत्पादों के विरुद्ध एंटी डंपिंग की आठ कार्रवाइयां कर दी गईं। चीन के कुछ उत्पादों पर करों को बढ़ाकर 78 फीसद तक कर दिया गया।13 उन सभी वस्तुओं का ब्योरा यहां स्थानाभाव के कारण विस्तार से देना संभव नहीं है।
व्यापार झगड़े के जारी रहने का असर 3 नवंबर से 10 नवंबर तक चलने वाली शंघाई अंतरराष्ट्रीय आयात प्रदर्शनी में ऑस्ट्रेलिया की भागीदारी पर भी पड़ा है, जहां चीनी अधिकारियों की तरफ से ऑस्ट्रेलिया की विविध वस्तुओं पर असरकारी कारोबारी प्रतिबंध लगाने के मौखिक निर्देश दिए गए थे। इससे चीन की कारोबारी व्यवस्था की पारदर्शिता और उसकी सही मंशा को लेकर चिंता होती है।14 चीन सरकार की खुद के मुक्त व्यापार की हिमायती और प्रतियोगी देशों के प्रति भी सद्भाव जताने वाली उसकी प्रचारित छवि की पोल खुल गई। इस घटनाक्रम ने उसके पाखंड और दोहरे मानकों का बुरी तरह पर्दाफाश कर दिया।
कारोबारी क्षेत्र में जारी तनावों का ऑस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालयों के क्रिया-कलापों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है, क्योंकि वे “चीनी समस्या से आई विपत्ति” का सामना कर रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया के कुछ विश्वविद्यालय चीनी छात्रों से मिलने वाले राजस्व पर बुरी तरह निर्भर हैं। कारोबारी झगड़े के चलते चीनी छात्रों के नामांकन में भारी कमी आई है, इसके चलते इन विश्वविद्यालयों पर “भारी वित्तीय जोखिम” आने से इनके बंद होने का खतरा उत्पन्न हो गया है।15 अगर सरकार इस संकट से निपटने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाती है तो ये विश्वविद्यालय जो चीनी छात्रों से मिलने वाले राजस्व पर अब तक निर्भर रहते आए हैं, उनका भविष्य धुंधला हो सकता है। अगर सरकार सब्सिडी देकर उनका संकट दूर करने की कोशिश करती है तो यह बोझ देश के करदाताओं पर ही पड़ेगा, जिन्हें इसका बिल चुकाना पड़ेगा। इससे यह मालूम होता है कि दो देशों के बीच उत्पन्न व्यापार विवादों का विपरीत असर केवल कारोबार और आर्थिक विनिमय के मामले तक ही नहीं सीमित रहता बल्कि इसका व्यापक और अधिप्लावन प्रभाव जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी पड़ता है।
द्विपक्षीय समझौते दक्षिणाभिमुख हुए हैं, इसके लिए दोनों पक्षों की तरफ से परस्पर विश्वास और इसी प्रकार के सामान्य वातावरण बनाए रखने के लिए काफी प्रयास करने की जरूरत है। अगर द्विपक्षीय संबंधों को फिर से सही रास्ते पर लाना है तो बड़ी मात्रा में परस्पर लेन-देन की दरकार होगी ताकि द्विपक्षीय नुकसान की भरपाई की जा सके। इस काम में सच्चाई लाजिमी होगी। अगर चीन किसी खास देश और क्षेत्र, दोनों के प्रति अपने बाहरी क्रिया-कलापों, जिनको लेकर सवाल हैं, को नहीं बदलता है; तथा उनके भरोसे एवं विश्वासों को फिर से अर्जित नहीं करता है तो ऐसे में आस्ट्रेलिया के लिए यह असंभव प्रतीत होता है कि वह अपने हितों को सीधे उन राष्ट्रों के साथ जोड़ने से बाज आएगा, जो लोकतांत्रिक मूल्यों, अंतरराष्ट्रीय कानूनों एवं वैश्विक नियम-कायदों का आदर करते हैं, के बजाय अपने हितों को किसी अधिकारवादी व्यवस्था के साथ जोड़ेगा, जिसका चीन सिद्धांतत: और व्यवहारत: दोनों रूपों में प्रतीक देश है। अब इसका कोई मतलब नहीं कि आस्ट्रेलिया को कुछ अर्थों में अपने आर्थिक हितों का घाटा उठाना पड़ेगा। फिलहाल तो नीचे की तरफ गोता लगाते संबंधों की वापसी निकट भविष्य में दिखाई नहीं देती।
2018,https://www.austrade.gov.au/news/economic-analysis/australias-two-way-trade-with-the-world-was-up-11-to-763-billion-in-2017
Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English) [10]
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Links:
[1] https://www.vifindia.org/article/hindi/2020/december/12/aastreliya-cheen-sambandh-kaarobaar-par-takaraar-se-bhaaree-giraavat
[2] https://www.vifindia.org/author/prof-rajaram-panda
[3] https://www.globaltimes.cn/content/1186211.shtml
[4] https://www.abc.net.au/news/2020-09-24/australian-scholars-banned-from-entering-china-state-media-says/12698410
[5] https://www.reuters.com/article/us-health-coronavirus-australia-china-idUSKCN22A14H
[6] https://au.finance.yahoo.com/news/china-australia-trade-tussle-022759773.html
[7] https://www.aspistrategist.org.au/did-australia-start-the-anti-dumping-trade-contest-with-china/?utm_medium=email&utm_campaign=Weekly%20The%20Strategist&utm_content=Weekly%20The%20Stra
[8] https://www.scmp.com/economy/china-economy/article/3108787/china-australia-relations-looming-ban-aussie-goods-clouds
[9] https://au.finance.yahoo.com/news/australian-universities-financial-risk-chinese-students-063559457.html
[10] https://www.vifindia.org/article/2020/november/16/australia-china-relations-nosedive-over-trade-frictions
[11] https://uploads-ssl.webflow.com/5d806e13e4875adaf508efa9/5dc2050d378ad51a8768e48f_china-us-trade-war-1000x0-c-default-p-800.jpeg
[12] http://www.facebook.com/sharer.php?title=आस्ट्रेलिया-चीन संबंध : कारोबार पर तकरार से भारी गिरावट&desc=&images=https://www.vifindia.org/sites/default/files/5dc2050d378ad51a8768e48f_china-us-trade-war-1000x0-c-default-p-800 (1).jpeg&u=https://www.vifindia.org/article/hindi/2020/december/12/aastreliya-cheen-sambandh-kaarobaar-par-takaraar-se-bhaaree-giraavat
[13] http://twitter.com/share?text=आस्ट्रेलिया-चीन संबंध : कारोबार पर तकरार से भारी गिरावट&url=https://www.vifindia.org/article/hindi/2020/december/12/aastreliya-cheen-sambandh-kaarobaar-par-takaraar-se-bhaaree-giraavat&via=Azure Power
[14] whatsapp://send?text=https://www.vifindia.org/article/hindi/2020/december/12/aastreliya-cheen-sambandh-kaarobaar-par-takaraar-se-bhaaree-giraavat
[15] https://telegram.me/share/url?text=आस्ट्रेलिया-चीन संबंध : कारोबार पर तकरार से भारी गिरावट&url=https://www.vifindia.org/article/hindi/2020/december/12/aastreliya-cheen-sambandh-kaarobaar-par-takaraar-se-bhaaree-giraavat