महात्मा गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 ईस्वी में हुआ था। यह उल्लेखनीय है कि उनके जन्म के 150 वर्षों के बावजूद लोग-बाग गांधी जी को पढ़ते हैं और इस उम्मीद में उनका अध्ययन करते हैं कि मौजूदा कठिनाइयों से निकलने का वे कोई न कोई हल अवश्य बताएंगे। इस गांधी जयंती के अवसर पर हमें दुनिया के हालात पर नजर डालनी चाहिए और गांधीवादी विचारधाराओं की प्रासंगिकता का अनुभव करना चाहिए। यहां सवाल उठता है कि क्या गांधी जी के मूल दर्शन-सत्य और अहिंसा-इस मौजूदा विश्व को अधिक शांत, सुरक्षित और सुखी बनाएगा?
इस बात की शिद्दत से महसूस किया जा रहा है कि बेशुमार भौतिकवादी प्रगतियों के बावजूद यह दुनिया कहीं न कहीं कोई कमी महसूस कर रही है। धन के बढ़ते अंबारों ने भी लोगों के खुशहाल होने, संतुष्ट होने और खुशी होने की वजह नहीं लाई है। आमदनी की असमानताएं और तीक्ष्ण हुई है। निर्धनता, भूख, रोग और हिंसा का विश्व में प्रकोप बढ़ता ही जा रहा है। जलवायु परिवर्तन ने मानव जाति के अस्तित्व पर ही संकट ला दिया है। और अब यह कोरोना वायरस ने असंख्य राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक अनिश्चितताओं को जन्म दिया है।
इन सबके बीच गांधीवादी विचारधारा और दर्शन के प्रति लोगों की आस्था अभी बनी हुई है, इसका कोई मतलब नहीं है कि वे कितने आदर्शवादी प्रतीत होते हैं। संयुक्त राष्ट्र आम सभा में पारित एक प्रस्ताव के बाद पूरा विश्व सन् 2007 के बाद से उनके जन्मदिन 2 अक्टूबर को ‘अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस’ के रूप में मनाता है। 2019 में महात्मा गांधी के 150वीं जन्म शताब्दी के अवसर पर संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव ने कहा था कि महात्मा गांधी के सिखाए गए पाठ ही संयुक्त राष्ट्र का मूल एजेंडा है; जैसे विकास, शांति और सहयोग। सर्वोदय का गांधी जी का विचार संयुक्त राष्ट्र संघ के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम “एजेंडा 2030” का प्राक्कथन है। सर्वोदय का मतलब समाज के अंतिम व्यक्ति तक की भलाई की कामनाओं से संबंधित है ताकि समय और समाज में कोई पीछे न छूट जाए। गांधी का चरित्र विशाल था। उनकी क्रियाशीलताओं के आयाम बेहद व्यापक व्यापक थे, जिसका फैलाव राजनीति से शुरू होकर स्त्रियों की दशा को समुन्नत करने के सरोकार से लेकर धर्म तक था। गांधीजी अनथक सुधारक रहे हैं, सत्य के प्रबल आग्रह ही रहे हैं, एक महान योद्धा, शाति के उपदेशक, नैतिकतावादी, जिज्ञासु, एक महान योगी, एक महान आत्मा, कतार में खड़े अंतिम व्यक्ति के अधिकारों के लिए लड़वैया, विकेंद्रित अर्थव्यवस्था के पैरोकार, सत्य का अन्वेषी और इन सब से भी परे गांधी जी बहुत कुछ थे। वह अपने वैध अधिकारों के लिए योद्धा रहे हैं।
यद्यपि संघर्ष के संदर्भ में गांधीजी की मुख्य क्रियाशीलता दक्षिण अफ्रीका में नस्लीय अन्याय और भारत में ब्रिटिश राज के खिलाफ स्वतंत्रता का उनका संग्राम था, लेकिन वह अपने जीवन काल में ही विश्व के आइकन हो गए थे। आज तो गांधी विश्व में वर्तमान में सभी तरह के प्रतिनिधि आंदोलनों को प्रेरित करते हैं। लोग अपनी परिस्थितियों से तालमेल बैठाने या उन्हें अपने अनुकूल करने तथा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए गांधीवादी विचारों को सहजता से अपनाते रहे हैं। उनके विचारों के अनुयायियों में मार्टिन लूथर किंग जूनियर, नेल्सन मंडेला, हो ची मीन्ह, अब्दुल गफ्फार खान ऐसे विश्व के कद्दावर नेता हैं, जो दमन के अहिंसक प्रतिरोध की गांधीवादी पद्धतियों से बेहद प्रभावित रहे हैं और उनका अनुकरण किया है। जलवायु परिवर्तन के अभियानी, पर्यावरण और पारिस्थितिकियों के चैम्पियन अपने लक्ष्यों के लिए गांधीवादी विचारों और पद्धतियों का आह्वान करते रहे हैं। गांधी जी के लेखन का अनुवाद विश्व की अनेक भाषाओं में हुआ है। आलम यह है कि सैकड़ों हजारों किताबें तो उनके जीवन और कर्मों पर लिखी और प्रकाशित की गई है। गांधी जी विविधताओ से भरे विन्यासों में अनगिनत सरोकारों को निरंतर प्रेरित-प्रभावित करते रहे हैं। यह भी एक वजह है कि विश्व के 100 से ज्यादा देशों ने गांधी जी पर आदर के साथ डाक टिकट जारी किए हैं। उनको पूरी तरह से समझने के लिए किसी को उनके राजनीतिक क्षितिज के पार देखने की और उनके आध्यात्मिक संदेशों को समझने की जरूरत होगी। वैसे खुद गांधी जी के लिए आध्यात्मिकता और राजनीति अविच्छिन्न है और उसे जीवन के किसी भी आयाम से अलग नहीं किया जा सकता।
गाँधी जी का आर्थिक चिंतन अपरंपरागत है। खादी की वकालत करते हुए उन्होंने संदेश दिया कि हर एक व्यक्ति को अवश्य ही उत्पादक होना चाहिए। इसी तरह, ग्रामीण अर्थव्यवस्था का पक्ष लेते हुए उन्होंने उत्पादन के विकेंद्रीकरण के फायदे पर जोर दिया था। न्यासीकरण की पैरोकारी करते हुए वह इस सत्य को रेखांकित कर रहे थे कि जो धन अर्जित किया जाता है, उसे केवल भावी पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखा जाता है। ये उनके कुछ क्रांतिकारी विचार हैं, जिनका क्रियान्वयन आज के युग में कठिन है। यद्यपि यह नैतिक रूप से मजबूत और तार्किक रूप से व्यावहारिक है। ऐसे समय में जब विश्व विस्थापन और अनियोजित शहरीकरण से बदहाल है, विकेंद्रित उत्पादन और गांव को उत्पादन की एक इकाई बनाने के उनके विचार निश्चित ही प्रासंगिक हैं।
गांधी जी ने शिक्षा के उन तरीकों का विरोध किया था, जो किसी व्यक्ति को उसकी जड़ से लोगों को उखाड़ देती है। उन्होंने मशीनों और प्रौद्योगिकियों का इस आधार पर विरोध किया था कि वे मनुष्य को अपना दास बना लेते हैं। लिहाजा, मनुष्यों का शोषण करने वाली प्रौद्योगिकी के तिरस्कार की आवश्यकता है। जो प्रौद्योगिकी अमानवीय हो उसे अवश्य ही बंद कर दिया जाना चाहिए। गांधी जी आधुनिकता के विरोधी नहीं थे, लेकिन वे उसकी शोषणकारी प्रवृत्ति के खिलाफ थे।
गांधी जी निरे शांतिवादी ही नहीं थे। वह कायर कहलाने के बजाए अपने अधिकारों की रक्षा के लिए अस्त्र-शस्त्र उठाने और हिंसा करने तक के हिमायती थे। उन्होंने दमन और शोषण के विरुद्ध प्रबल लड़ाई लड़ी। लेकिन इस संग्राम में उनका हथियार अहिंसा ही होता था। अहिंसा डरपोकपन या कायरता नहीं है। अहिंसा व्यक्ति के नैतिक साहस और चरित्र के आंतरिक बल की मांग करती है। अहिंसा एक शक्तिशाली बल है। अहिंसक सत्याग्रह प्रतिरोध की अभिव्यक्ति की एक पद्धति है, एक तरीका है।
गांधी जी ने दमन और अन्याय के चलन के विरुद्ध तीन किस्म की प्रतिक्रियाओं को रेखांकित किया था। उनका कहना था कि इनके खिलाफ हमारी एक प्रतिक्रिया तो यह हो सकती है कि हम कायर हो जाएं। कायरता का यह तरीका दूसरों की गलती को, उसकी ज्यादतियों को सहन करना या इस सामना करने के बजाय भाग खड़ा होना है। दूसरा विकल्प अन्याय और दमन के खिलाफ खड़ा होना है और अपने बाहुबल से संघर्ष करना है। यह दूसरा तरीका, गांधी जी कहते है, अत्याचार को स्वीकार करने या पीठ दिखाकर मैदान छोड़ देने से बेहतर है। लेकिन वह तीसरा रास्ता सब में बेहतर है। वह सर्वाधिक साहस मांगता है और और संपूर्ण रुप से अहिंसक तरीकों से मुकाबला का आग्रह करता है।
गांधी जी ने सत्य और अहिंसा के अपने सिद्धांतों को पुरातन भारत के हिंदूवाद, बौद्ध धर्म और जैन धर्म की सनातनी शिक्षाओं, यहां तक की न्यू टेस्टामेंट, टॉलस्टॉय, रूसो, अर्नाल्ड और थोरो के आधार पर गढ़े थे। वे यहीं तक नहीं रुके, उन्होंने उनके अवदानों को निष्ठा से व्यवहारिक स्वरूप भी दिया। किताबी ज्ञान से संतुष्ट न होते हुए गांधी ने अपने अनुभवों से सीखा। उन्होंने सत्य और अहिंसा के मूल से अपने उपकरण और औजार निर्मित किए, जिनका दमन के प्रति जनसंघर्ष, लोगों को लामबंद करने, प्रतिरोध को धार देने और व्यवस्था के वांछित रूपांतरण के व्यावहारिक लक्ष्यों के लिए उनका इस्तेमाल किया जाएगा।.
महात्मा गांधी ने अपने अनुभवों और अनुप्रयोगों के बल पर सार्वभौम सत्य का वरण किया था। अहिंसक असहयोग नैतिकता के बल पर आधारित था जो आंदोलनकारियों के लिए एक आम उपकरण बन गया। गांधी का स्पष्ट मानना था कि अहिंसक प्रतिरोध के पास एक नैतिक बल होता है, जब सत्याग्रही इसे खो देते हैं तो उनका प्रतिरोध हिंसक हो जाता है। इस पाठ को दुनिया भर के आंदोलनकारियों ने ग्रहण किया है।
गांधी जी की सबसे बड़ी विशेषता उनका अंतिम आदमी के पक्ष में खड़े होने की प्रतिबद्धता थी। उनका दूसरा आयाम यह था कि वह निरंतर अपने को परिमार्जित करते रहते थे। उन्होंने वही बताया, जिन पर वह विश्वास करते थे और जिन पर वे स्वयं अमल करते थे। इन आचरणों ने उनमें इतना नैतिक बल भर दिया जिससे कि उनके कट्टर विरोधी भी उनको नजरअंदाज करने का साहस नहीं कर पाते थे। वह अंतिम सांस लेने तक कुछ न कुछ सार्थक बदलाव का प्रयास करते रहे थे। यह सब वह ताकत के जोर पर नहीं, किसी हुकुमनामे के जरिए नहीं बल्कि सत्य और अहिंसा के नैतिक बल के आधार पर करते थे।
गांधी जी के लिए आध्यात्मिकता, नैतिकता, राजनीति और अर्थशास्त्र अविभाज्य थे। उनकी दृष्टि में राजनीति से धर्म का बनावटी बंटवारा समस्या पैदा करता है। उनका कहना था कि धर्म को कर्मकांड से नहीं समझा जा सकता बल्कि इसे एथिक्स, प्रेम और सेवा, कर्तव्य और उत्तरदायित्व की भावनाओं से ही भली भांति समझा जा सकता है। गांधी जी घोर राष्ट्रवादी थे,लेकिन उनका राष्ट्रवाद अनन्य और समावेशी दोनों था। उनका राष्ट्रवाद किसी अन्य के राष्ट्रवाद के प्रति विरोधपूर्ण नहीं था।
गांधी जी के लिए बिना स्वदेशी के स्वराज की कल्पना दूभर थी। वे मानते थे कि अर्थशास्त्र में स्वदेशी और औद्योगिक जीवन से पलायन भारत के लिए विध्वंस साबित होगा। इसी तरह, विदेशी भाषा और विदेशी विचारों में दीक्षित होना सर्वसाधारण से कट जाना है। गांधीजी दूसरे के धर्म को अपनाने को नैतिक स्खलन मानते थे। हमें उनके विचारों की रोशनी की फिर से आवश्यकता है, जब हम आत्मनिर्भर भारत और आत्मनिर्भरता की खोज कर रहे हैं। और किन्ही बातों के अलावा यह स्वराज और उनके विचार इस समस्याग्रस्त समय से पार पाने में विश्व के काम आ सकते हैं। उन्होंने हमें स्वदेशी के प्रति अंध भक्त होने के खतरों के प्रति भी आगाह किया था। किसी वस्तु को उसके विदेशी मूल के होने पर बायकाट करने और ऐसे काम में समय जाया करने या उसके लिए प्रयास करना जो देश के लिए उपयुक्त नहीं हो, अपराध है। गांधी जी के लिए स्वदेशी की जड़ अहिंसा, प्रेम और निस्वार्थ सेवा में थी। गांधी जी का सबसे प्रबल संदेश है कि हमारा प्रत्येक आचरण नैतिक रूप से शुद्ध होना चाहिए। साध्य की अपेक्षा साधन ज्यादा महत्वपूर्ण है। वे अपने जीवन में भागवद्गीता के संदेशों से गहरे प्रभावित थे। अनासक्ति का सबक उन्होंने गीता के पाठ से ही ग्रहण किया था। किंतु भारतीय चिंतन परंपरा में कहीं गहरे धंसे हुए थे।
गांधी जी का मूल सीख सत्य और अहिंसा थी। सत्य और अहिंसा के उनके दर्शनों को समझे बिना कोई भी गांधी को नहीं समझ सकता है। यह विचार भारतीय चिंतन और दर्शन से अनुप्राणित है। इन्हें भली-भांति समझने और उन्हें प्रसांगिक बनाने की आवश्यकता है। हम गांधी जी का आदर इसलिए भी करते हैं कि उन्होंने इन विचारों के आधार पर एक व्यावहारिक जीवन दर्शन विकसित किया था। अधिकतर लोग इन विचारों से अपने को जोड़ते हैं, लेकिन जीवन में उनके अनुसार बरतने में कठिनाई का अनुभव करते हैं। गांधी जी आज के दौर में भी प्रासंगिक हैं। यही वजह है कि हम उन्हें निरंतर स्मरण करते हैं, तब भी जब हम उनका अनुकरण करने में अपने को असमर्थ पाते हैं।
Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English) [3]
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[2] https://www.vifindia.org/author/arvind-gupta
[3] https://www.vifindia.org/article/2020/october/01/gandhi-s-contemporary-relevance
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