बांग्लादेश के विदेश मंत्री एके अब्दुल मोमिन ने हाल ही में कहा कि ‘भारत के साथ बांग्लादेश के बेहद मजबूत तथा ऐतिहासिक रिश्ते हैं और चीन के साथ बांग्लादेश के आर्थिक रिश्ते हैं। हमें दोनों की तुलना नहीं करनी चाहिए।’ उन्होंने यह भी कहा कि ‘हमारी जीत भारत की जीत है’ और ‘हमारे विकास का मतलब भारत का विकास है’।1 दोनों के बीच द्विपक्षीय रिश्तों की स्थिति के बारे में कुछ तीखी राजनीतिक बयानबाजी और बेकार के मीडिया विवाद के बाद इन बयानों ने मरहम का काम किया।1
इसमें कोई शक नहीं कि दोनों पड़ोसियों यानी भारत और बांग्लादेश में दक्षिण एशिया के किन्हीं भी दो देशों के मुकाबले काफी कुछ एक जैसा है। उनके रिश्ते इतने व्यापक और गहरे हैं कि उन्हें शब्दों में समेटना बहुत मुश्किल है। इसमें कोई संदेश नहीं कि कई मामलों में समानता के कारण ये दोनों देश एकदम अनूठे बन गए हैं। नोबेल से सम्मानित रवींद्रनाथ ठाकुर दोनों देशों के राष्ट्रीय नायक हैं। उन्हें जितना सम्मान भारत में मिलता है, बांग्लादेशी भी उन्हें उतने ही गर्व से अपना बताते हैं। इसके अलावा उपमहाद्वीप में दोनों देशों की ऐतिहासिक विरासत भी एक ही है। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रिश्तों की गहराई, एक-दूसरे पर आर्थिक निर्भरता और भू-राजनीतिक हितों के कारण भारत और बांग्लादेश राजनीतिक रूप से एक दूसरे के लिए बहुत अहमियत रखते हैं।
इसका यह मतलब नहीं है कि भारत और बांग्लादेश ने उतारचढ़ाव नहीं देखे हैं और साझी सीमाओं एवं सांस्कृतिक-भाषाई समागम उन्हें राजनीतिक रूप से बांधने में नाकाफी रहा है। साझा नदियों के जल बंटवारे जैसे विवादों और सीमा पर हत्याओं ने परेशान किया है मगर विभिन्न द्विपक्षीय गठबंधनों में प्रगति और विकास भी झलकता है और ये गठबंधन अब भी जारी हैं। भारत और बांग्लादेश के संबंध लंबे समय से मजबूत बने हुए हैं तथा दोनों ने मिलकर दक्षिण एशियाई पड़ोस में उप-क्षेत्रीय पहल की संभावनाएं भी साथ मिलकर खंगाली हैं।
2010 में सहयोग की रूपरेखा पर हस्ताक्षर कर भारत और बांग्लादेश ने पुरानी मुश्किलों को पीछे छोड़कर नई शुरुआत की और उसके बाद से पिछले दशक में दोनों मील के कई पत्थर छू डाले हैं। ऊर्जा व्यापार से लेकर घनिष्ठ होते आर्थिक संबंधों तक विभिन्न पहलों से दोनों देशों के बीच व्यापार संतुलन ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच गया है। साथ ही भारत से करीब 10 अरब डॉलर की मदद मिलने के कारण सीमा पार बुनियादी ढांचे में जबरदस्त तेजी आई है। इसके अलावा मल्टीमोडल परिहवन गलियारे, तटवर्ती जहाजरानी अंतर्देशीय जल परिवहन, भूतल परिवहन प्रणाली एवं रेलवे में भी तेजी से सुधार हो रहा है।
भारत और बांग्लादेश निस्संदेह उस स्तर पर पहुंच गए हैं, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। लेकिन विडंबना यह है कि सरकारों तथा राज्यों के बीच आपसी संबंध मजबूत हो गए और जनता के बल पर बने संबंध पीछे छूटते गए। लोगों खासकर ढाका की जनता में सरकारों के रिश्तों पर असंतोष पनप रहा है। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं। सबसे पहले तो भारत ही वह कारण है, जिसके कारण बांग्लादेश की दोनों सबसे बड़ी पार्टियां एक दूसरे के खिलाफ ताल ठोक रही हैं और अतीत में चुनाव अभियान में भी भारत मुद्दा बना है। अवामी लीग और विपक्षी गठबंधन की वैचारिक बुनियाद एकदम अलग होने के बाद भी भारत के मामले में उनके रुख में बहुत अधिक फर्क दिख रहा है। अक्सर बांग्लादेश के बारे में भारत की मंशा से पनपी बेचैनी ऐसी धारणा बनाती है, जो एक-दूसरे से बहुत अलग होती हैं। अतीत के अनुभवों से जन्मी ये धारणाएं प्रवासियों (यानी बांग्लादेशियों) भारतीय नेताओं की कड़वी बातों और एनआरसी को लागू करने के प्रयासों के कारण हाल के दिनों में और भी पक्की हो रही हैं क्योंकि बांग्लादेशियों को एनआरसी के नतीजे समझ आ रहे हैं। बांग्लादेश के एक नेता ने हाल ही में एक भारतीय अखबार के साथ साक्षात्कार में जो तेवर दिखाए थे, उनसे पता चलता है कि पड़ोसी कितनी गलतफहमी पाल रहे हैं।
दूसरी बात यह है कि भारत और बांग्लादेश के बीच के सियासी सरोकार उनके द्विपक्षीय रिश्तों के बाकी सभी पहलुओं पर भारी पड़ जाते हैं। 1947 से पहले और 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संघर्ष के दौरान के साझे इतिहास के कारण ऐतिहासिक संदर्भों ने द्विपक्षीय संबंधों को गाढ़ा राजनीतिक रंग दे दिया है। इसीलिए राजनीतिक खाका दोनों देशों के बीच होने वाले बाकी घटनाक्रम को ढक लेता है। ऐसे में लाजिमी है कि आर्थिक संभावनाएं दोनों खेमों में बनने वाले राजनीतिक समीकरणों से पीछे छूट जाती हैं। वैसे दक्षिण एशिया की राजनीति में यह आम बात है और भारत तथा बांग्लादेश के बीच अन्य सभी बातों को राजनीतिक संदर्भ ढक लेते हैं।
लेकिन क्या दोनों पड़ोसियों को अब सियासी उठापटक से आगे नहीं देखना चाहिए?
जब से ढाका ने भारत की सुरक्षा चिंताओं को दूर किया और नई दिल्ली ने भी बदले में बांग्लादेश की कुछ पुरानी मांगों पर काम किया तो साझी संपन्नता का वायदा दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों का आधार बन गया। इसी वायदे को आधार बनाकर संकीर्ण समझ के साथ धारणा बनाने के बजाय दोनों को एक दूसरे की जरूरतों तथा प्राथमिकताओं को व्यापक नजरिये के साथ समझना चाहिए। द्विपक्षीय सीमापार विकास परियोजनाओं एवं परिवहन प्रणालियों को पूरी तरह क्रियान्वित करने से लोगों को भरपूर फायदा मिलेगा और वे गठबंधन की जरूरत तथा लाभ को अधिक सकारात्मक नजरिये के साथ समझ सकेंगे। लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरी यह है कि सरकारें अपनी चिंताओं को बेलाग और पारदर्शी तरीके से एक-दूसरे के सामने रखें ताकि अधिक सकारात्मक संदेश जाए और वह संदेश जमीन तक यानी आम जनता तक पहुंचे।
भारत और बांग्लादेश शांति, मैत्री और सहयोग के वायदे के साथ विकास करती दो एशियाई ताकतें हैं, जिन्हें एक-दूसरे के साथ और क्षेत्र के बाहर एवं भीतर दूसरे सहयोगियों के साथ करीब रहते हुए काम करना चाहिए। दोनों समझदार पड़ोसियों को स्पर्द्धा के बजाय सहयोग की संभावना बढ़ाने और उसका फायदा उठाने के लिए काम करना चाहिए। इस समय शक्ति संतुलन की जरूरत है किसी को अछूत मान लेने की नहीं और शक्ति संतुलन इस समय की जरूरत है और जरूरी नहीं कि दो देशों के रिश्ते नफे-नुकसान पर ही हों।
Translated by Shiwanand Dwivedi (Original Article in English) [4]
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[2] https://www.vifindia.org/author/sreeradha-datta
[3] https://www.thedailystar.net/frontpage/news/relations-delhi-beijing-must-not-be-compared-1942017
[4] https://www.vifindia.org/2020/august/17/India-and-bangladesh-the-rock-solid-neighbours
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