हिंद-प्रशांत के कुछ देशों के बीच 20 मार्च को कोविड-19 महामारी पर टेलीकॉन्फ्रेंस आयोजित की गई। बैठक अमेरिका ने बुलाई और उसमें भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, न्यूजीलैंड तथा वियतनाम आदि देशों ने हिस्सा लिया। बैठक का मकसद अपने-अपने देश की स्थिति, महामारी पर देशों की कार्रवाई तथा संकट के समय सहयोग करने के रास्तों की समीक्षा करना था। आधिकारिक बयान में कहा गयाः
“प्रतिभागियों से हर सप्ताह कॉन्फ्रेंस कॉल जारी रखने की अपेक्षा की जाती है, जिसमें टीके के विकास में सहयोग, वरिष्ठ नागरिकों के सामने आई चुनौतियों, जरूरतमंद देशों की सहायता और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर इसके असर को कम करने जैसे मुद्दों पर बात की जाएगी।”1
यह बैठक अहमियत रखती है क्योंकि हिंद-प्रशांत के झंडे तले यह अपनी किस्म की पहली बैठक है। पिछले कुछ वर्षों से अंतरराष्ट्रीय संबंधों में हिंद-प्रशांत शब्द को काफी वजन दिया जा रहा है। इस विचार पर आरंभ में कुछ शंका जताई गई, लेकिन बाद में यह चलन में शामिल होने लगा था। फिर भी कुछ ठोस नजर नहीं आया था। ब्लू डॉट अभियान, इंडो-पैसिफिक ओशन्स इनीशिएटिव जैसी कुछ घोषणाएं जरूर हुई थीं मगर ये अब भी कागजों पर ही हैं। एक विचार के तौर पर हिंद-प्रशांत अब भी आकार ही ले रहा है और इसकी भौगोलिक परिभाषा भी अलग-अलग है। इसे मोटे तौर पर हिंद महासागर और प्रशांत महासागर का क्षेत्र माना जाता है मगर इस क्षेत्र के भीतर मौजूद देशों की भी अपनी अलग-अलग प्राथमिकताएं हैं।
इन सैद्धांतिक समस्याओं और अलग-अलग विदेश नीतियों के कारण हिंद-प्रशांत विचार उस तरह परवान नहीं चढ़ सका, जिस तरह कल्पना की गई थी। इसीलिए इस बैठक का आयोजन संकेत देता है कि हिंद-प्रशांत को खारिज नहीं किया जा सकता। यह भी पता चलता है कि हिंद-प्रशांत देश आखिरकार कमर कस रहे हैं, जो वाकई में महत्वपूर्ण है। यह बैठक नहीं हुई होती तो लेखक ने हिंद-प्रशांत को खत्म करार दे दिया होता।
मगर इस समूह को वापस सक्रिय करने के लिए अभूतपूर्व स्तर के संकट की जरूरत पड़ गई। बैठक का आयोजन औपचारिक तौर पर ‘हिंद-प्रशांत’ के झंडे तले किया गया। इससे पहले विदेश मंत्री एस जयशंकर और अमेरिका के विदेश मंत्री माइकल पॉम्पिओ के बीच 14 मार्च को तथा पॉम्पिओ एवं जापान के विदेश मंत्री तोशीमित्सू मोतेगी के बीच 20 मार्च को भी कोविड-19 पर द्विपक्षीय बातचीत हुई थी।
दिलचस्प है कि इसमें शामिल होने वाले देश उस क्षेत्र में आते हैं, जो अमेरिका के हिंद-प्रशांत विचार के लिहाज से एकदम सटीक है। इसमें क्वाड समूह के भी चारों सदस्य हैं। यदि विभिन्न देशों से हिंद-प्रशांत के आधिकारिक दस्तावेज देखे जाएं तो पता चलेगा कि ये खास तौर पर पारंपरिक सुरक्षा के नजरिये से बनाए गए हैं चाहे वह संख्या की बात हो, सुरक्षा बल के ढांचे की बात हो या नौवहन की आजादी की फिक्र हो। सामुद्रिक सुरक्षा और पारदर्शी बुनियादी ढांचा विकास जैसे कुछ अपारंपरिक मुद्दे भी थे। फिर भी इसे हमेशा सैन्य विचार के तौर पर ही देखा गया (और वास्तव में यह था भी), इसीलिए कुछ देश इसमें शामिल होने के लिए तैयार नहीं थे। लेकिन कोविड-19 बैठक ने इस विचार को पूरी तरह पलट दिया है क्योंकि यह पहली बैठक है, जिसमें किसी गंभीर, अपारंपरिक और सच्चे अर्थों में अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मामले पर विचार किया जा रहा है। इसका मतलब यह नहीं है कि भू-सामरिक नजरिया हाशिये पर जा रहा है बल्कि इससे पता चलता है कि समूह बहुत कुछ और भी कर सकता है। अब तक समूह का उद्देश्य स्पष्ट नहीं था, जो ठीक भी था। लेकिन अब साफ हो गया है कि हिंद-प्रशांत ढांचा अंतरराष्ट्रीय, अपारंपरिक सुरक्षा मामले भी संभालेगा। माना जा सकता है कि इससे दूसरे देश भी हिंद-प्रशांत का हिस्सा बनने के लिए प्रोत्साहित होंगे।
ऐसा हुआ तो यह विशेष तौर पर भारत के हित में होगा क्योंकि भारत सरकार इस विचार को भौगोलिक विस्तार दे रही थी और इसके असैन्य मामलों पर अधिक जोर दे रही थी। भारत ने दक्षिण एशियाई सहयोग संघ (दक्षेस) के भीतर अंतरराष्ट्रीय कोविड-19 कार्यक्रम आरंभ किया था और ईरान को यानी हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) के भीतर के देश को सहायता देकर जताया था कि भारत आईओआर को अपने हित का प्रमुख क्षेत्र मानता है। उसने आईओआर में खुद ही पहल की, जहां उसने मलक्का की खाड़ी के पार बहुपक्षीय कदम उठाए और हिंद-प्रशांत में उसकी यही नीति होनी चाहिए।
अंतरराष्ट्रीय संबंधों में हरेक संकट एक अवसर होता है। इसी महीने चीन और आसियान के विदेश मंत्रियों ने एक बैठक की और आसियान के चिर-परिचित अंदाज में कोविड-19 महामारी के खिलाफ लड़ने और सहयोग करने के लिए तैयार हो गए। इस तरह चीन ने दिखाया कि दक्षिण पूर्व एशिया में उसका कितना दबदबा है। कुछ हद तक सिंगापुर और वियतनाम को छोड़ दें तो महामारी के जवाब में दक्षिण पूर्व एशिया की प्रतिक्रिया चिंताजनक रही है।
दूसरी ओर हिंद-प्रशांत समूह में जो देश शामिल हैं, उन्होंने महामारी के खिलाफ सही उपाय किए हैं। ये देश बाकी क्षेत्र और दुनिया के लिए आदर्श साबित होंगे। दक्षिण कोरिया को अतीत में महामारियों से निपटने का अच्छा खासा तजुर्बा रहा है। इस संकट में भी दक्षिण कोरिया (और ताइवान) ने अनुकरणीय कदम उठाए हैं। यह समूह इस बात का संकेत हो सकता है कि चीन के नेतृत्व वाले समूह के उलट अमेरिका के नेतृत्व वाला क्षेत्रीय समूह संकट में कितने प्रभावी तरीके से काम कर सकता है। चीन के दोस्त - पाकिस्तान, कंबोडिया, उत्तर कोरिया और बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव में उसके साझेदार ईरान और इटली इस संकट को काबू करने में अभी तक नाकाम साबित हुए हैं।
वियतनाम का इस समूह में शामिल होना भी मार्के की बात है। पिछले कई वर्षों में अमेरिका और वियतनाम के रिश्ते गहरे हुए हैं और उनमें सैन्य आयाम भी है। दक्षिण पूर्व एशिया के देश आम तौर पर चीन के साथ अपने रिश्तों को लेकर बहुत सतर्कता बरतते हैं। चीन कोविड-19 महामारी को कम करके दिखाने की पुरजोर कोशिश कर रहा है और वह अपेक्षा करता है कि उसके जनसंपर्क अभियान के तहत अन्य देश भी उसकी ही तरह चर्चा को धीमा करें और संकट को कम करके दिखाएं। इसके बाद भी वियतनाम कोविड-19 पर हिंद-प्रशांत बैठक में शामिल हुआ है। जब हिंद-प्रशांत पर आसियान आउटलुक जारी किया गया था तो सुना गया था कि समूह को दस्तावेज जारी करने में दिक्कत हुई क्योंकि इस आउटलुक की सामग्री पर समूह में मतभेद था। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि ये मतभेद आखिरकर सामने आ गए। वियतनाम इस टेलीकॉन्फ्रेंस में शामिल होने वाला इकलौता आसियान सदस्य है।
समूह को कुछ गंभीर कदम उठाने होंगे। इनमें से एक है ऐसी महामारी या प्राकृतिक आपदाओं के समय कामकाज के मानक यानी स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रसीजर्स (एसओपी) तैयार करना। मौजूदा संकट दुनिया के सामने अचानक आ गया, इसीलिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग में देर हो गई। अगली बार ऐसा कुछ भी होने पर बेहतर अंतरराष्ट्रीय सहयोग की अपेक्षा होगी। ये एसओपी हवाई अड्डों, जमीनी और समुद्री सीमाओं पर सूचना के प्रसार और जांच के मामले में अपनाए जा सकते हैं। इस सिलसिले में एक साझी संहिता बनानी होगी। इसी तरह ऐसे गंभीर संकट के समय और उसके बाद अर्थव्यवस्थाओं को बचाने पर भी गहन विचार करना होगा। आपूर्ति श्रृंखला तैयार करने पर भी नए सिरे से विचार करना चाहिए।
इस संकट ने दिखा दिया है कि स्वास्थ्य पेशेवर कितने जरूरी हैं। इसीलिए प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण के लिए क्षेत्रीय स्तर पर काम हो सकता है ताकि स्वास्थ्य व्यवस्थाओं पर जरूरत से ज्यादा बोझ नहीं पड़े। अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं के लिए सहयोग एवं मिल-जुलकर आर्थिक संसाधन जुटाने की जरूरत है। भारत औषधि क्षेत्र में अग्रणी है और उसे सस्ती दवाएं तैयार करने में महारत हासिल है। भारत के पास प्राकृतिक आपदाओं के समय तैनात करने के लिए हवाई एवं समुद्री संपत्तियां भी हैं। दक्षिण कोरिया ने महामारी को इसीलिए काबू में रखा है क्योंकि उसे सार्स के समय इससे निपटने का अनुभव हासिल है। ताइवान के पास शानदार स्वास्थ्य सेवा प्रणाली है। अमेरिका नवाचार और वैज्ञानिक विकास के मामले में आगे है। इनमें से हरेक देश की ताकत को इकट्ठा इस्तेमाल किया जाना चाहिए। मौजूदा संकट में समन्वय और सहयोग के लिए हिंद-प्रशांत मंच का उपयोग तो होना ही चाहिए लेकिन कोविड-19 संकट के कारण हिंद-प्रशांत देशों के बीच अभूतपूर्व स्तर का सहयोग भी होना चाहिए। आगे चलकर सहयोग और समन्वय में सक्रियता दिखानी चाहिए, जिसके लिए एसओपी की ही तर्ज पर संयुक्त रूप से राष्ट्रीय प्रणालियां और संगठन तैयार किए जाएं। फिर भविष्य में जब भी ऐसी आपदा आएगी, हमारे देश स्वयं ही सर्वोत्तम उपाय अपनाने लगेंगे। हिंद-प्रशांत को संस्थागत रूप प्रदान करने का यही सबसे अच्छा समय है।
जब तक हिंद-प्रशांत की मुक्त दुनिया जमकर सहयोग नहीं करेगी तब तक दूसरों को इसमें शामिल होने का कोई फायदा नहीं दिखेगा। हिंद-प्रशांत के लोकतांत्रिक देशों को यह तर्क झूठा साबित करना होगा कि दबंग सरकारें ही कोविड-19 जैसे संकट से निपट सकती हैं। आपदा के समय लोकतांत्रिक देशों को भी दस दिन के भीतर अस्पताल बनाने में सक्षम होना चाहिए।
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[1] https://www.vifindia.org/article/hindi/2020/may/01/कोविड-19-पर-हिंद-प्रशांत-बैठक
[2] https://www.vifindia.org/article/hindi/2020/may/01/%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A1-19-%E0%A4%AA%E0%A4%B0-%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A6-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A4-%E0%A4%AC%E0%A5%88%E0%A4%A0%E0%A4%95
[3] https://www.vifindia.org/author/amruta-karambelkar
[4] https://mea.gov.in/press-releases.htm?dtl/32592/Foreign+Secretarys+Conference+Call+with+counterparts+from+IndoPacific+Countries
[5] https://www.vifindia.org/article/2020/april/17/covid-19-aftermath-an-agenda-for-quad
[6] https://economictimes.indiatimes.com/news/defence/us-india-japan-australia-for-asean-led-mechanism-to-promote-rules-based-order-in-indo-pacific/articleshow/69610387.cms?from=mdr
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