प्रधानमंत्री ने 19 मार्च को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में वित्त मंत्री के नेतृत्व में एक आर्थिक टास्क फोर्स के गठन की घोषणा की, जो कोरोना वायरस संकट के खिलाफ भारत की प्रतिक्रिया सुनिश्चित करे।
Covid-19 संकट को 2008-2009 के वित्तीय संकट से भी बड़े संकट के रूप में माना जा रहा है। वैश्विक आर्थिक वृद्धि अपनी वर्तमान दर 3 प्रतिशत प्रति वर्ष से घटकर 1.5 प्रतिशत या इससे भी कम होने की आशंका है, यह सब निर्भर करता है कि यह समस्या कब तक बनी रहती है। सबसे बुरी स्थिति में पूरी दुनिया मंदी या आर्थिक अवसाद में भी फंस सकती है।
घर पर बैठे लाखों लोग अपनी नौकरी जाने के डर से सहमे हुए हैं। इस वायरस ने नागरिक उड्डयन, व्यापार, पर्यटन, मनोरंजन, हॉस्पिटैलिटी, टूरिज्म, विनिर्माण, शिपिंग और संबद्ध क्षेत्रों को बुरी तरह प्रभावित किया है। बड़े स्तर पर नौकरियों में गिरावट हो रही है। दुनियाभर में कई कंपनियों के दिवालिया होने की संभावना है। दुनियाभर के शेयर बाजारों में गिरावट आई है। तेल की कीमतों में पिछले कुछ हफ्तों में सौ फीसदी से अधिक गिरावट हुई है। अर्थव्यवस्था में नकदी की किल्लत हो रही है।
दुनिया ने पिछले 100 वर्षों में कई महामारियां देखी हैं, जिसने लाखों लोगों की जान ली है। 1919 में H1N1 स्पैनिश फ्लू जैसी महामारी लगभग 55 मिलियन लोगों की मौत का कारण बनी। 2009 में स्वाइन फ्लू के कारण दुनियाभर में 1,40,000 से 4,40,000 लोगों की मौत हुई। Covid 19 अधिक संक्रामक है और इसमें स्वाइन फ्लू से अधिक लोगों को प्रभावित करने की संभावना है। आधुनिक युग में एक-दूसरे से अत्यधिक संयुक्त रूप से जुड़ी दुनिया में महामारी बड़े पैमाने पर सामाजिक और आर्थिक संकट को जन्म दे सकती है।
जी7 देशों ने इस वायरस को लेकर एक बयान जारी किया है, लेकिन जी -20 देश इसपर चुप हैं। यूरोपीय संघ के देश, जो वायरस से बुरी तरह प्रभावित है, इसके खिलाफ एक उपयुक्त प्रतिक्रिया की तलाश में हैं। अमेरिका से इस विपदा के खिलाफ फैसला लेने में देर हो गई है। अधिकांश देशों को अपने स्तर पर जो कदम सही लग रहे हैं, वह उस लिहाज से इसपर कार्यवाही कर रहे हैं। विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंकों ने अपने कार्यों का समन्वय किया है, लेकिन विपदा से निपटने में वित्तीय नीतियों की भी एक सीमित भूमिका होती है।
संयुक्त रूप से एक वैश्विक प्रतिक्रिया कहीं गायब है। यह आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि संरक्षणवाद, राष्ट्रवाद और अतिवाद के उदय के कारण वैश्विक मुद्दों पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और अधिक कठिन हो गया है। वैश्विक सहयोग के बिना वैश्विक संकटों को नियंत्रित नहीं किया जा सकता है।
कई देशों ने दस अरब डॉलर से लेकर 1.2 ट्रिलियन डॉलर के बीच प्रोत्साहन राशि की घोषणा की है, जैसे अमेरिका। पश्चिमी देशों द्वारा घोषित प्रोत्साहन राशियों का आकार जीडीपी के 2 प्रतिशत से 16 प्रतिशत तक के बीच है। इन कदमों को बाजार में नकदी बढ़ाने, श्रमिकों को आय सहायता प्रदान करने, विनिर्माण क्षेत्र को प्रोत्साहन देने के लिहाज से उठाया गया है। यदि वायरस नष्ट होता जाता है, तो अर्थव्यवस्था बहाल होने लगेगी। हालांकि, यदि वायरस संक्रमण युक्त रहता है, तो प्रोत्साहन राशि अपनी समय- सीमा के बाद समाप्त हो जाएगी और पुनः राशि की आवश्यकता होगी।
राष्ट्रीय और वैश्विक दोनों स्तरों पर स्वास्थ्य और आर्थिक आपात स्थितियों से निपटने की आवश्यकता है। स्वास्थ्य संकट से तुरंत निपटना आवश्यक है। यदि वायरस नियंत्रित हो गया है, तो अर्थव्यवस्था बहाल होने लगेगी।
प्रधानमंत्री प्रभावी ढंग से नेतृत्व कर रहे हैं, लेकिन स्वास्थ्य, आर्थिक और वित्तीय संकट के लिहाज से अधिक व्यापक प्रतिक्रिया अभी तक सामने नहीं आई है। उच्च गुणवत्ता वाले बहुआयामी विशेषज्ञता द्वारा समर्थित एक मजबूत राजनीतिक नेतृत्व संकट से निपटने के लिए आवश्यक है, लेकिन उतना ही महत्वपूर्ण लोगों का सहयोग भी है। जनता को सरकार पर पूरा भरोसा और विश्वास होना चाहिए।
भारतीय प्रोत्साहन राशि का मूल विषय कोरोना वायरस के प्रसार को कम करना और रोकना, नौकरियों की रक्षा करना, अनौपचारिक क्षेत्र में कामगारों की जरूरतों को पूरा करना, ऋण कम करना, सबसे अधिक प्रभावितों को प्रत्यक्ष लाभ प्रदान करना और नौकरी प्रदान करने वाले क्षेत्रों को पुनर्जीवित करना है।
अन्य देशों की तरह, सरकार को तत्काल सकल घरेलू उत्पाद के 3 प्रतिशत (लगभग 90 बिलियन अमरीकी डॉलर ) के समानांतर एक पर्याप्त समेकित प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा करनी चाहिए, जो कई पहलुओं को सम्मिलित करेगा जैसे कि बुनियादी आय सहायता, नौकरी का आश्वासन, छोटे व्यवसायों को सहायता, अर्थव्यवस्था के प्रभावित क्षेत्र को सहायता, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर, ब्याज दर में कटौती, विनिर्माण के लिए उद्योग को प्रोत्साहन, कर भुगतान स्थगित करना, ऋण पुनर्गठन, श्रमिकों को अग्रिम मजदूरी का भुगतान, राज्यों को सहायता, महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को मजबूत बनाने हेतु कम ब्याज दरों पर बढ़ा हुआ ऋण देना, व्यवसायों के लिए सरकार द्वारा समर्थित ऋण, आदि। आरबीआई, वित्त मंत्रालय, वाणिज्य मंत्रालय, औद्योगिक उत्पादन विभाग, ग्रामीण विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय और संबंधित संस्थानों और एजेंसियों को अपने कार्यों में समन्वय लाना होगा।
आर्थिक प्रोत्साहन को सावधानीपूर्वक संरचना और क्रमबद्ध करना होगा। उद्योग जगत के साथ परामर्श के बाद सेक्टर-विशिष्ट समर्थन पैकेज पर काम करना होगा। पर्यटन, यात्रा, मनोरंजन, हॉस्पिटैलिटी, रियल एस्टेट जैसे श्रम प्रधान क्षेत्रों को पहले उपयुक्त प्रोत्साहन के माध्यम से पुनर्जीवित किया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री द्वारा घोषित आर्थिक टास्क फोर्स को तीव्रता से इसपर विवरण तैयार करना चाहिए। यह समय की मांग है।
विश्वास निर्माण के उपाय के रूप में सरकार को सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल से निरंतर निपटने हेतु कार्य करते हुए देखा जाना चाहिए। भारत जीडीपी का लगभग 1.3 प्रतिशत स्वास्थ्य पर खर्च करता है, जो कि पाकिस्तान द्वारा किए जाने वाले खर्च से कम है। कोरोनो वायरस को हेल्थ इमरजेंसी का संकेत मानते हुए, भारत को अपने सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे में तत्काल सुधार करना चाहिए। सरकार को यह घोषणा करनी चाहिए कि वह स्वास्थ्य पर अपने खर्च को दोगुना कर रही है। बढ़े हुए संसाधनों को कोरोना वायरस के खिलाफ परीक्षण सुविधाओं को बढ़ाने, सुरक्षात्मक उपकरण निर्माण, मास्क, कीटाणुनाशक और अन्य चिकित्सा आपूर्ति के उत्पादन में वृद्धि, आअस्पतालों में अधिक बेड की व्यवस्था, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण और उन्हें तैयार करने में खर्च किया जाएगा। आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को देश के पुर्नवासित स्वास्थ्य ढांचे में शामिल किया जाना चाहिए।
चिकित्सा उपकरणों और आपूर्ति के निर्माण की स्वदेशी क्षमता को तत्काल बढ़ाने की आवश्यकता है। हम अभी तक आवश्यक कच्चे माल, सक्रिय दवा सामग्री और चिकित्सा उपकरणों के आयात पर निर्भर हैं। वैश्विक आपूर्ति क्रम में व्यवधान ने भारत पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। सार्वजनिक स्वास्थ्य का पुनरुत्थान कौशल, प्रशिक्षण और विनिर्माण में मांग उत्पन्न करेगा। इस क्षेत्र में क्षमता के निर्माण के लिए वर्तमान संकट का उपयोग किया जाना चाहिए। चिकित्सा में शिक्षा की पूरी व्यवस्था, नर्सों के प्रशिक्षण आदि के लिए उदारीकरण की आवश्यकता है। एक वर्ष में ही हम अच्छे परिणामों की उम्मीद कर सकते हैं। कमजोर सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र की समस्याओं को संबोधित करने जैसा कदम देशवासियों को आश्वस्त करने की दिशा में सकारात्मक संदेश देगा।
भारत को देश में एक विश्वसनीय और मजबूत सामाजिक सुरक्षा प्रणाली की आवश्यकता है। हमने निर्धारित कार्रवाई किए बिना इसपर सिर्फ बाते की हैं। हमें वर्तमान संकट का उपयोग सामाजिक सुरक्षा के बुनियादी आय समर्थित मॉडल के निर्माण के लिए करना चाहिए जिसकी चर्चा एनडीए -1 सरकार के कार्यकाल में हो चुकी है। मनरेगा, पीएम किसान योजना, आयुष्मान भारत और कई अन्य योजनाओं को एक बुनियादी आय सहायता मॉडल बनाने के लिए संगठित किया जा सकता है, जो संकट के समय लोगों को सहारा दे सके।
कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (सीएसआर) फंड उपलब्ध हैं। सीएसआर नियमों को उदार बनाने की जरूरत है। श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा के निर्माण के लिए उद्योग जगत को सीएसआर निधियों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में अनौपचारिक क्षेत्र को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करने के लिए, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर की घोषणा की जानी चाहिए। यह उन लोगों को आश्वस्त करेगा जो विपदा के समय सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। अन्यथा, देश में सामाजिक रूप से अशांति बढ़ेगी।
भारत अनुसंधान एवं विकास की उपेक्षा कर रहा है। सार्वजनिक स्वास्थ्य के आरंभ के साथ अनुसंधान और विकास को तेज करने का यह समय है। एक वैक्सीन डेवेलपमेंट फंड की घोषणा की जानी चाहिए। निजी क्षेत्र को इसमें भागीदार बनाया जाना चाहिए। अनुसंधान और विकास पर भारत का खर्च लगभग 0.8% है, जो चीन के लगभग 3 प्रतिशत से बहुत कम है। हमें विभिन्न क्षेत्रों में उच्च गुणवत्ता वाली नौकरियां सृजित करने में सक्षम होना चाहिए। अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्र अनुसंधान एवं विकास व्यय की बढ़ोतरी के लिए तरस रहे हैं.
प्रोत्साहन पैकेज में राशि के लिए तेल की कीमतों में आई तेज गिरावट का उपयोग किया जाना चाहिए। पिछले साल भारत ने लगभग 110 बिलियन डॉलर का तेल आयात किया था। कोरोनो वायरस संकट के बाद तेल की कीमतें गिर गई हैं और गिरावट अब भी जारी है। यह गिरावट बहुत लंबे समय तक नहीं होगी, लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था को जो भी राहत मिले, उससे प्रोत्साहन पैकेज में राशि की जरूरत को पूर्ण किया जाना चाहिए। फिस्कल रिस्पांसिबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट एक्ट (FRBM) की सरकार के राजकोषीय घाटे पर प्रतिबंध में कम से कम एक वर्ष के लिए छूट दी जानी चाहिए। साथ ही सरकार को फिजूल खर्ची को कम करने का प्रयास करना चाहिए।
कोरोना वायरस ने दुनिया को बदलकर रख दिया है। यह सामाजिक और आर्थिक मॉडल को भी बदल देगा। जबकि वायरस के तत्काल प्रभाव को संभालना आवश्यक है, हमें तत्काल से परे जाकर, इस संकट को एक अवसर में बदलना चाहिए। भारत एक प्रगतिशील मॉडल, सर्वांगीण मॉडल के साथ आगे आ सकता है, जो समाज के सभी वर्गों को संबोधित करता है, जिसकी शुरुआत निचले पायदान पर खड़े गरीब से होती है।
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[1] https://www.vifindia.org/article/hindi/2020/march/27/coronavirus-sasthya-aaptakal-se-nipatana-naukriyo-ki-surksha
[2] https://www.vifindia.org/author/arvind-gupta
[3] https://www.vifindia.org/2020/march/20/the-need-for-a-comprehensive-indian-stimulus-package-to-tackle-health-emergency
[4] https://sm.mashable.com/t/mashable_in/photo/default/coronavirus-reaches-delhi-and-telangana-how-should-india-pre_eswz.960.jpg
[5] http://www.facebook.com/sharer.php?title=कोरोनावायरस: स्वास्थ्य आपातकाल से निपटने, नौकरियों की सुरक्षा और भविष्य के मद्देनजर एक टिकाऊ सामाजिक सुरक्षा प्रणाली बनाने के लिए एक व्यापक भारतीय प्रोत्साहन पैकेज की आवश्यकता है&desc=&images=https://www.vifindia.org/sites/default/files/coronavirus-reaches-delhi-and-telangana_0.jpg&u=https://www.vifindia.org/article/hindi/2020/march/27/coronavirus-sasthya-aaptakal-se-nipatana-naukriyo-ki-surksha
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