अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप 24-25 फरवरी को 36 घंटे की अपनी पहली भारत यात्रा के लिए आ रहे हैं, इसलिए दो दिन तक मीडिया और भाषणों में “नमस्ते ट्रंप जी” ही गूंजता रहेगा। अपने पसंदीदा नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ द्विपक्षीय बैठकों और पारंपरिक रात्रिभोज तथा भोज के अलावा ट्रंप और मेलानिया ट्रंप अहमदाबाद में नवनिर्मित सरदार पटेल स्टेडियम में केमचो शैली की शानदार भारतीय आवभगत का आनंद भी उठाएंगे। स्टेडियम में उनके रंगारंग स्वागत के लिए भारी भीड़ जुटने का अनुमान है।
मोहब्बत भरे पलों के लिए ट्रंप परिवार का इंतजार कर रहे “प्रेम के इकलौते स्मारक ताजमहल” को भी खूबसूरत बनाया जा रहा है। वहां अमेरिका की प्रथम महिला मेलानिया ही नहीं बल्कि उनकी बेटी इवांका और दामाद जैरेड कुशनर भी पहुंचेंगे। ट्रंप पहले ही प्रधानमंत्री मोदी के हवाले से कह चुके हैं कि 70 लाख भारतीय उनका स्वागत करेंगे। हमारे यहां आबादी की कोई कमी नहीं है, इसलिए इतने लोगों को खड़ा करना बड़ा काम नहीं होगा और राजनीतिक सभाओं में अक्सर ऐसा होता भी है। लेकिन पश्चिम के राजनेताओं के लिए यह बहुत बड़ी बात है क्योंकि उनके अपने देशों में उन्हें सुनने के लिए 5000 लोगों का जुटना भी बड़ी बात तथा उससे भी बड़ी चुनौती हो सकती है। हरियाणा में तो एक गांव ने उनका ध्यान खींचने के लिए अपना नाम ही ‘ट्रंप विलेज’ रख लिया है ताकि वहां बुरी हालत में जी रहे 12,000 लोगों को इस यात्रा में कुछ धन मिल जाए। लेकिन शायद इस बार उनकी किस्मत नहीं खुलेगी।
कुछ आलोचकों का कहना है कि गरीबी ढकने के लिए दीवारें खड़ी करने पर जो 100 करोड़ रुपये के करीब खर्च किए जा रहे हैं, उनसे झुग्गियों को हमेशा के लिए खूबसूरत बनाया जा सकता था और वहां रहने वालों को राहत मिल सकती थी। बहरहाल ट्रंप को दीवारें पसंद हैं और यहां उन्हें सुंदर चित्रकारी वाली दीवार मिलेगी। लेकिन शानदार चीज तो शानदार ही होती है और वह जितनी ज्यादा शानदार होगी, ट्रंप उतने ही ज्यादा खुश हो सकते हैं। पूरी संभावना है कि प्रधानमंत्री मोदी अपनी चिरपरिचित शैली में राष्ट्रंपति ट्रंप और उनकी पत्नी का स्वागत करेंगे।
ट्रंप अपने देश में ही भारतीय समुदाय की ताकत देख चुके हैं। “हाउडी मोदी” के दौरान खास तौर पर उन्हें यह ताकत महसूस हुई थी, जहां टैक्सस में एक स्टेडियम में वह भारतीय प्रधानमंत्री के साथ घूमे थे और जिसका उन्हें सीधा फायदा भी हुआ था। अमेरिका में लगभग 40 लाख भारतवंशी रहते हैं, जिनमें अधिकतर बेहद प्रभावशाली और सफल गुजराती हैं। इसीलिए भारत में ट्रंप को ऐसी यादें मिल सकती हैं, जो वह लंबे समय तक भुला नहीं पाएंगे क्योंकि ट्रंप यूं भी आत्ममुग्ध ही रहते हैं। इतना ही नहीं, उनकी चुनावी सभाओं के दौरान भी इसका फायदा होगा, जहां वे विदेश में भी भारी भीड़ आकर्षित करने का दावा कर सकते हैं। इसी हफ्ते ट्रंप दावा कर चुके हैं कि सोशल मीडिया फॉलोअर्स के मामले में वह अव्वल नंबर हैं और प्रधानमंत्री मोदी दूसरे नंबर पर हैं हालांकि मामला उलटा भी हो सकता है यानी मोदी अव्वल नंबर हो सकते हैं। लेकिन हम “अतिथि देवो भव” में विश्वास करते हैं, इसलिए ट्रंप का दिल से स्वागत किया जाएगा। इसमें कोई दोराय नहीं कि यहां तमाशा ज्यादा होगा, लेकिन तमाशे से परे भी बहुत कुछ है और हमें याद रखना चाहिए कि कोई भी रिश्ता एकदम सटीक नहीं होता। भारत-अमेरिका संबंधों की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि ट्रंप के “अमेरिका फर्स्ट” और मोदी के “इंडिया फर्स्ट” में तालमेल कैसे बिठाया जाए क्योंकि रणनीतिक रूप से अहम और गहरे होते इस रिश्ते में आगे की तस्वीर इसी से साफ होगी।
ट्रंप को सौदे करना पसंद है और इसलिए एकदम अड़ियल रुख के साथ शुरुआत कर वह बातचीत के उस बिंदु पर पहुंचते हैं, जहां उनके लोगों को पूरा फायदा होता है। व्यापार युद्ध और देशों तथा अंतरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा अमेरिकी हितों के साथ कथित भेदभाव होते देख उन्होंने उन सभी को सीधे निशाना बनाया। चीन, यूरोपीय संघ, कनाडा, रूस, ईरान, भारत, विश्व व्यापार संगठन, संयुक्त राष्ट्र उनका राजनयिक आक्रोश झेल चुके हैं। उनके पास अमेरिका की बात झेलने या उससे लड़ने के अलावा कोई चारा नहीं था। दोनों ही सूरतों में इकतरफा प्रतिबंधों से व्यापार तनाव और भी बढ़ चुके हैं।
भारत अपनी परेशानियों से घिरा है। ट्रंप भारत को विकसित देश मानते हैं और इसीलिए वह भारत को तरजीही प्रणाली के तहत 5.6 अरब डॉलर के जीएसपी लाभ नहीं देना चाहते और विश्व व्यापार संगठन समेत बाजारों में तरजीही, विशेष तथा अलग से प्रवेश भी नहीं देना चाहते। वह भारत “किंग ऑफ टैरिफ्स” बताकर उस पर अमेरिकी हितों को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाते हैं। दोनों देशों ने एक-दूसरे के सामान पर ऊंचे कर या शुल्क लगाए हैं। इस मामले में भारत को अमेरिकी ज्यादतियों का जवाब देने के लिए मजबूर होना पड़ा। हार्ली डेविडसन मोटरसाइकल दुनिया भर में पसंद की जाती हैं, लेकिन ट्रंप को भारत में उन पर ऊंचे शुल्क लगाया जाना पसंद नहीं आया। यह बात अलग है कि शुल्क से बचने के लिए इस मोटरसाइकल के कम ताकत वाले मॉडलों को ही भारत में असेंबल किया जाता है।
ऐसा लगता है कि हीरो होंडा से मशहूर हुए हीरो मोटोकॉर्प के चेयरमैन पवन मुंजाल ने प्रस्तावित गठबंधन के जरिये स्थिति संभालने की कोशिश की है, लेकिन सरकार ट्रंप की पसंदीदा बाइक पर शुल्क घटाने के दबाव तले घुटने टेक रही है। स्टेंट तथा चिकित्सा उपकरणों, ई-कॉमर्स, डेटा स्थानीयकरण और नए जमाने की तकनीकों की बात क्या करें, बेरी, बादाम, अखरोट और डेरी उत्पादों के साथ भी ऐसा ही हो रहा है। अमेरिका के साथ भारत का व्यापार बढ़कर 142 अरब डॉलर हो चुका है, जिसमें भारतीय सामान के निर्यात की 16 प्रतिशत और आईटी तथा बीपीओ सेवाओं की लगभग 50 प्रतिशत हिस्सेदारी है। लेकिन अब भारत कई उत्पादों पर सीधे और कई पर ईरान एवं रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के कारण दंडात्मक शुल्क की चुनौती झेल रहा है। चूंकि सेवाएं विशेषकर सॉफ्टवेयर सेवाएं भारत के लिए अहम हैं, इसीलिए लोगों तथा पेशेवरों की आवाजाही भी जरूरी है। इस लिहाज से एच1बी तथा अन्य वीजा श्रेणियों में नई शर्तों और नियमों का भारतीय सेवा निर्यात पर सीधा असर पड़ रहा है।
अमेरिका भारत की ऊर्जा सुरक्षा में भी बड़ा साझेदार बनना चाहता है। नया व्यापार समझौता अपरिहार्य है, लेकिन दरारें और अविश्वास बहुत अधिक है तथा बातचीत पेचीदा है, जिसमें बहुत मेहनत लगनी है। इसीलिए भरपूर कोशिश के बावजूद छोटा-मोटा समझौता होने की संभावना भी नहीं लगती। ट्रंप ने खुद ही कहा है कि उनके दोबारा चुनाव जीतने के बाद बड़ा और बहुत अहम सौदा (व्यापार) हो सकता है। ट्रंप भारतीय उद्योग जगत के नेताओं से भी बात करेंगे और उन्हें अमेरिका में निवेश का न्योता देते हुए वह कुछ ढिलाई बरत सकते हैं।
रणनीतिक सहयोग का एक मुख्य क्षेत्र गहराते रक्षा एवं सुरक्षा संबंध भी हैं। दोनों देश पिछले कुछ समय में अपने नाटो साझेदारों से भी अधिक सैन्य अभ्यास करते रहे हैं। दोनों के बीच अधिक भरोसा बहाल करने वाले और एक-दूसरे के साथ काम सुनिश्चित करने वाले कई अहम समझौते किए गए हैं, जिनमें संचार क्षमता तथा सुरक्षा समझौता (कॉमकासा) एवं लेमोआ तथा 2$2 संवाद भी शामिल हैं। अमेरिका की दक्षिण एशिया रणनीति में भारत का अहम मुकाम है, जो हिंद-प्रशांत में बढ़ते संपर्क से भी पता चलता है। अमेरिका भारत को रक्षा उपकरण एवं उन्नत तकनीक का प्रमुख आपूर्तिकर्ता बनकर उभरा है। 17 अरब डॉलर से अधिक के उपकरण भारत आए हैं। रक्षा प्रणालियों की सुगम आपूर्ति के लिए वह भारत को नाटो देश की तरह मानता है।
उनकी यात्रा के दौरान भी हेलीकॉप्टरों तथा एकीकृत वायु रक्षा शस्त्र प्रणाली की आपूर्ति के लिए कई अरब डॉलर के सौदों पर हस्ताक्षर किए जाने की संभावना है। अमेरिका भारत को बड़ा बाजार मानता है। लेकिन बाजार बहुत प्रतिस्पर्द्धी नहीं है और यहां प्रवेश भी आसान नहीं है, इसलिए वह “साम, दाम, दंड, भेद” की सभी चालें आजमाता है। ये चालें खुद को सबसे अच्छा सौदागर मानने वाले ट्रंप की खास शैली बन गई हैं। लेकिन मोदी-ट्रंप दोस्ती शयद इस यात्रा के दौरान तीखेपन को शायद कुछ कम कर दे।
आमने-सामने की बातचीत और प्रतिनिधि स्तर की बातचीत में पाकिस्तान, ईरान और पश्चिम एशिया तथा इजरायल-फलस्तीन संघर्ष के लिए ट्रंप की योजना एवं नए विश्व क्रम में चीन और रूस की भूमिका समेत कई मसले आएंगे। चूंकि कुशनर भी आ रहे हैं, इसलिए वह सदी के समझौते के पीछे के तर्क समझाएंगे। भारत ने दोनों पक्षों से यह समझौता खारिज नहीं करने का अनुरोध किया है। इसके साथ ही हिंद-प्रशांत पर चर्चा को भी अधिक बल दिया जा सकता है। अनुच्छेद 370 और सीएए तथा धार्मिक स्वतंत्रता के मसले कितने भी घरेलू क्यों न हों, बातचीत से बाहर शायद ही होंगे क्योंकि अमेरिकी मानवाधिकार तबका ट्रंप पर ये मुद्दे उठाने का दबाव डाल रहा है। इसी तरह वह भारत से इमरान खान के साथ बातचीत शुरू करने का अनुरोध कर सकते हैं, जबकि वह भारत का यह रुख अच्छी तरह जानते हैं कि “बातचीत और आतंकवाद” साथ-साथ नहीं चल सकते। यह भी सच है कि ट्रंप ने आतंकवाद के मसले पर पाकिस्तान को लगातार लताड़ा है और भारत का लगातार समर्थन किया है। अमेरिका ने ओबामा के समय से ही संयुक्त राष्ट्र पटल पर भारत का स्वागत किया है।
राष्ट्रपति ट्रंप की इस यात्रा में बेशक तमाशा ज्यादा है, लेकिन रणनीतिक रूप से यह महत्वपूर्ण है। ट्रंप अक्सर अपने पूर्ववर्तियों से बढ़कर काम करना पसंद करते हैं, इसीलिए उम्मीद है कि दोबार चुने जाने पर वह दो बार भारत आने का ओबामा का रिकॉर्ड भी तोड़ देंगे। आखिरकार सबसे महान लोकतंत्र की यहां भारत में सबसे बड़े लोकतंत्र से मुलाकात होती है।
Translated by Shiwanand Dwivedi (Original Article in English) [3]
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