जब हम मंगोलिया की बात करते हैं तो हमें वहाँ हाड़ कंपानेवाली ठंड, इसकी भारत से दूरी और इसकी सुंदरता ही ज़ेहन में उभरती है। यह एक ऐसा देश है, जहाँ भारतीयों से लोग शायद बौद्ध धर्म से उनके संबंध और हिमालयन हेरिटेज के कारण प्रेम करते हैं। मंगोलियाई लोग अपनी गर्मजोशी और आतिथ्य के लिए जाने जाते हैं। यहाँ के लोगों से जब भी आप मिलते हैं तो ‘सेन-बाई-नू’ शब्द से अभिवादन यहाँ के लोगों की सरलता और भरपूर जीवंतता का परिचय कराता है। चीन और रूस मंगोलिया के पड़ोसी हैं। सोवियत संघ के विघटन के बाद यहाँ -30 डिग्री की ठंड में 1990 के दशक में प्रदर्शन हुए थे और इस देश ने लोकतंत्र को इसके बाद अपनाया था। कुछ करने की इच्छा रखने वाले यहाँ के लोग अध्यात्म में भी उतना ही दिलचस्पी रखते हैं। हालाँकि, जेम्स बेकार III, जो उस समय 1992 में अमेरिका के विदेश मंत्री थे, ने अमेरिका को मंगोलिया का पड़ोसी बताया था पर तथ्य यह है कि पिछले कई वर्षों में भारत उनका वास्तविक रणनीतिक और आध्यात्मिक पड़ोसी बन गया है। यहाँ के भिक्षुओं ने गंगाजल को गंगूर झील में मिलाकर इस आध्यात्मिक एका को सुनिश्चित किया है।
वर्ष 1990 में भारत ने रिंपोचे कुशोक बाकूला को मंगोलिया का राजदूत नियुक्त किया जिसके बाद दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंध को पूरी तरह बदल दिया। उन्होंने मंगोलिया के गौरवशाली बौद्ध अतीत की आध्यात्मिक रिकवरी का कार्य शुरू किया जिसे 70 सालों के कम्युनिस्ट शासन के दौरान पृष्ठभूमि में धकेल दिया गया था। कम्युनिस्ट शासन की समाप्ति के बाद शुरुआती वर्षों के दौरान उलनबाटर की पहाड़ी पर मौजूद ख़ूबसूरत गंडन बौद्ध विहार से धार्मिक यातना सहे मोंगोलों को लोकतंत्रात्मक सरकार की स्थापना का आह्वान किया गया। इस अवधि के दौरान भारत ने मंगोलिया की ओर अपना दोस्ताना हाथ बढ़ाया और वहाँ वजीफ़े, सांस्कृतिक सहयोग के साथ-साथ राजदूत बाकूला की उपस्थिति में मठों का जीर्णोद्धार सुनिश्चित किया गया। मंगोलों को इससे बहुप्रतिक्षित आध्यात्मिक मदद मिली। उनको भगवान की तरह आदर दिया जाता था। मुझे याद है ब्रिटिश और अमेरिकन राजदूत मुझसे कहा करते थे : बाकूला रिंपोचे की यहाँ नियुक्ति करके भारत ने एक तरह से तख़्तापलट कर दिया है”। न केवल भारत ने मंगोलिया को साल में दो इंडियन टेकनिकल एंड इकोनोमिक कोआपरेशन (आईटीईसी) छात्रवृत्ति दी बल्कि प्रसिद्ध भारतीय न्यायविद् जगदीश भगवती ने उनके संविधान को तैयार करने में मदद की। इस समय, मंगोलिया के लिए भारत में 150 से अधिक छात्रवृत्ति उपलब्ध है, जिसके परिणामस्वरूप वहाँ भारत में प्रशिक्षित विशेषज्ञ और प्रशासन और उद्योग में कार्यरत देखे जा सकते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 2015 की यात्रा से (पहली बार किसी भारतीय पीएम की यह यात्रा थी) भारत और मंगोलिया के बीच आपसी सहयोग बढ़ा और एक रणनीतिक साझेदारी की शुरुआत हुई। उन्होंने मंगोलिया में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए $ 1 अरब की सहायता की भी घोषणा की थी। इसके तहत एक तेल रिफाइनरी परियोजना वर्तमान में चल रही है। वहाँ इस समय चल रही पेट्रोकेमिकल रिफाइनरी परियोजना के लिए 236 मिलियन डॉलर की अतिरिक्त सहायत दी गई जो मंगोलिया को उसकी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने में सहायता करेगी। सूचना प्रौद्योगिकी में सहयोग अभी भी एक ऐसा क्षेत्र है जहां मंगोलिया सहयोग और विशेषज्ञता विकसित करने के लिए उत्सुक है। भारत ने रासायनिक प्रौद्योगिकी संस्थान (ICT) से संबंधित एक उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करने और आउटसोर्सिंग के लिए मंगोलिया से सहमति व्यक्त की थी, जिसके लिए 2011 में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल की यात्रा के दौरान 20 मिलियन डॉलर का अनुदान देने की घोषणा की गई। इस परियोजना पर काम शायद शुरू हो चुका है।
मंगोलियाई राष्ट्रपति खल्तमगीन बत्तुलगा, जो कि सामबो कुश्ती चैंपियन और जूडो प्रेमी हैं, को राष्ट्रपति ने 19-23 सितंबर, 2019 के दौरान भारत की राजकीय यात्रा के लिए आमंत्रित किया। वे वर्तमान में एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे हैं जिसमें वरिष्ठ अधिकारी और व्यापारी शामिल हैं। यद्यपि दोनों देशों के बीच व्यापार और निवेश अभी क्षमता से नीचे है, लेकिन राष्ट्रपति बत्तुलगा और उनके प्रतिनिधिमंडल ने भारत-मंगोलिया बिजनेस फोरम में हिस्सा लिया जो सही दिशा में एक कदम है। मंगोलिया भारतीय कंपनियों के लिए एक केंद्र बनना चाहता है और उसकी इच्छा है कि ग्रामीण संचार और प्रौद्योगिकी उसके ग्रामीण इलाक़ों को दूर संचार तकनीक से लैश करे और उनको आपस में जोड़े। वहाँ सौर ऊर्जा प्रचुर मात्रा में है और वह इस क्षेत्र में सहयोग की इच्छा रखता है क्योंकि भारत अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के माध्यम से इस क्षेत्र में अग्रणी बनकर उभरा है और उसके अपने महत्वाकांक्षी वैकल्पिक और नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएं भी हैं। ताँबा और यूरेनियम सहित मंगोलिया के खनन क्षेत्र में असाधारण सहयोग की संभावनाएं हैं। इसके लिए अपेक्षित संस्थागत तंत्र की स्थापना कर दी गई है और अब इसमें गति लाने की ज़रूरत है। रक्षा, अंतरिक्ष, परमाणु ऊर्जा और सुरक्षा संरचनाएं ऐसे क्षेत्र हैं जहां दोनों देश मिलकर बहुत कुछ कर सकते हैं। भारत-मंगोलिया संयुक्त युद्धाभ्यास - नोमैड एलिफ़ेंट का आयोजन हर वर्ष होता है। यह पिछले साल उलानबटार में आयोजित किया गया था। सहकारी क्षेत्र में, भारत के पास मंगोलिया में बड़े पैमाने पर किसानों और दूध उत्पादकों के बीच अपने अनुभव साझा करने के मौक़े हैं।
राष्ट्रपति बत्तुलगा ने पीएम मोदी से हाल ही में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के साथ-साथ इस महीने की शुरुआत में व्लादिवोस्तोक में 5वें सुदूर पूर्वी आर्थिक मंच की बैठक के दौरान मुलाकात की थी, जो दर्शाता है कि दोनों देशों के बीच गर्मजोशी क़ायम है। पीएम मोदी ने ट्वीट किया, “एक बहुप्रतिक्षित आध्यात्मिक मित्र और विकास में साझीदार साथी के साथ संपर्क में हैं। मंगोलिया के राष्ट्रपति खल्तमगीन बत्तुलगा के साथ वार्ता की। हमने द्विपक्षीय संबंधों की समीक्षा की और अपने लोगों के आपसी लाभ के लिए सहयोग बढ़ाने के तरीकों पर विचार-विमर्श किया,” । यह इस यात्रा के दौरान जारी रहा, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने अपने मंगोलियाई अतिथि के साथ विस्तृत चर्चा की। भारत ने राजधानी शहर उलानबटार में प्रदूषण स्तर को कम करने में मदद करने पर भी सहमति व्यक्त की।
1955 में राजनयिक संबंध स्थापित करने के बाद से लगभग सभी लोकसभा अध्यक्षों, कम से कम तीन उपाध्यक्षों और दो राष्ट्रपतियों ने मंगोलिया का दौरा किया। पीएम मोदी राजनयिक संबंधों की 60वीं वर्षगांठ के अवसर पर उलानबाटर जाने वाले पहले पीएम थे। यह ध्यान देनेवाली बात है कि भारत ने मंगोलिया को संयुक्त राष्ट्र और गुटनिरपेक्ष आंदोलन में शामिल किया था। मंगोलिया ने अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ-साथ विस्तारित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में एक योग्य स्थायी सीट के लिए भारत की उम्मीदवारी का समर्थन किया है। भूटान के साथ दोनों देशों ने बांग्लादेश की मान्यता के लिए संयुक्त राष्ट्र में पहल की थी। इस तरह दोनों देशों के बीच राजनीतिक तालमेल की बात स्पष्ट है और पारस्परिक लाभ के लिए इसे आगे भी बनाए रखा जा सकता है। आपदा प्रबंधन, सांस्कृतिक आदान-प्रदान, पशु स्वास्थ्य और डेयरी के साथ-साथ बाहरी अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग के क्षेत्र में कई समझौता ज्ञापनों (एमओयू) पर दोनों देशों ने हस्ताक्षर किए गए हैं।
पिछले वर्ष, हमने लद्दाख की स्वायत्तता के समर्थक संत राजदूत रिनपोछे बाकूला की 100 वीं वर्षगांठ मनायी।उन्होंने द्विपक्षीय संबंधों को समृद्ध करने की ललक और मंगोलिया में उनके मठ, हमेशा हमारे आध्यात्मिक बंधन और राष्ट्रों की शांति, विकास और प्रगति के लिए आशा की ज्योति की तरह रहे हैं। मंगोलिया की भौगोलिक स्थिति और भारत के उद्देश्यों को देखते हुए राष्ट्रपति बत्तुलगा की भारत यात्रा हमारे रणनीतिक उद्देश्यों और इस बारे में दोनों देशों के बीच साझेदारी की ज़रूरत के अनुरूप होगा।
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