संयुक्त राष्ट्र महासभा में 27 सितंबर, 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान द्वारा दिए गए भाषण एकदम विरोधाभासी हैं। दोनों प्रधानमंत्रियों ने अपने नजरिये और अपने देश की बात कही। मोदी ने भारत को विश्वास से भरे, प्रगतिशील राष्ट्र के रूप में प्रस्तुत किया, जबकि इमरान खान ने पाकिस्तान की ऐसी तस्वीर दिखाई, जिसकी जमीन पर आतंकवाद फलता-फूलता है, जो पश्चिम की ‘भेदभाव करने वाली’ नीतियों का शिकार है और जो कर्ज तथा गरीबी में फंसा हुआ है।
मोदी ने पाकिस्तान का नाम भी नहीं लिया, जबकि इमरान खान का भाषण कश्मीर और भारत के खिलाफ जहर से भरा था। भारत के प्रति इमरान खान की नफरत साफ जाहिर हो रही थी। दिलचस्प है कि 15 मिनट की तय अवधि के बजाय 45 मिनट तक बोलते हुए इमरान ने केवल अंतरराष्ट्रीय समुदाय को फटकारा और भारत को नैतिकता का दिखावा करने वाला बताया। बिना सब्र के और जुमलों से भरे अपने भाषण में उन्होंने बिना सोचे-समझे ‘तबाही’, ‘खून-खराबा’, ‘कयामत’, ‘तुष्टीकरण’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया। जहर भरे दुष्प्रचार के लिए संयुक्त राष्ट्र सभा के गरिमामय मंच का ऐसा दुरुपयोग शायद ही किसी देश के शीर्ष नेता ने किया होगा, जैसा इमरान खान ने किया।
उन्होंने बार-बार कश्मीर के लोगों को भारत के खिलाफ खड़े होने के लिए भड़काया। वह इतने पर ही नहीं रुके बल्कि कश्मीर का नाम लेकर बार-बार परमाणु युद्ध की धमकी भी दी। वह कश्मीर को परमाणु युद्ध भड़काने वाला बिंदु बताकर पश्चिम की सहानुभूति बटोरने की कोशिश कर रहे थे, जो कोशिश उनसे पहले के प्रधानमंत्रियों ने भी की थी मगर नाकाम रहे थे। परमाणु युद्ध का नाम लिए बगैर उसकी धमकी देते हुए उन्होंने कहा, “जब परमाणु शक्ति संपन्न देश आर-पार की लड़ाई लड़ते हैं तो उसके नतीजे सीमाओं के पार भी दिखते हैं। इसके नतीजे दुनिया को भुगतने होंगे।”1 उन्होंने मानवता की रक्षा के बजाय भारत के बाजार के लालच में पड़ने के लिए पश्चिम को झिड़का। संक्षेप में उन्होंने भारत के साथ दुनिया के रिश्तों को “तुष्टीकरण” करार दिया, जिसके गंभीर नतीजे होंगे।
इसके उलट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गरीबी खत्म करने और जनता का जीवन स्तर सुधारने के लिए अपनी सरकार द्वारा चलाए गए परिवर्तनकारी कार्यक्रमों पर बात की। उन्होंने यह दिखाने की कोशिश की कि विकासशील देशों के बीच भारत किस तरह अपने आप को बदल रहा है और दूसरों के लिए उदाहरण बन रहा है। कुशल राजनीतिज्ञ की तरह प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान या कश्मीर का जिक्र करने से परहेज किया और उसके बजाय बताया कि 450 गीगावाट अक्षय ऊर्जा तैयार करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित कर भारत किस तरह जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को कम करने में जुटा है। उन्होंने विश्व बंधुत्व यानी वैश्विक समुदाय को मजबूत करने के भारतीय दर्शन की बात की।2 उनके विपरीत इमरान खान ने उम्मा और इस्लामी समुदाय की संकीर्ण बात की।
मोदी ने महात्मा गांधी का सत्य और अहिंसा का संदेश तथा भारत के महान आध्यात्मिक गुरु विवेकानंद का शांति एवं सौहार्द का संदेश दोहराया। उन्होंने तमिल कवि करियन पुंगन-द्रा-नार की 3000 वर्ष पुरानी शिक्षा भी याद दिलाई, “सभी स्थान हमारे हैं और हरेक व्यक्ति भी अपना है।”3 इस तरह उन्होंने वैश्विक श्रोताओं को ही नहीं बल्कि भारत की जनता को भी प्राचीन तमिल कवि से परिचित कराया। मोदी ने अपने भाषण में जिन उच्च आदर्शों को भारत की नीतियों का पथप्रदर्शक बताया, वे इमरान की युद्ध भड़काने वाली बातों से एकदम उलट थे।
दोनों भाषण हमें यह भी बताते हैं कि भारत और पाकिस्तान किस रास्ते पर चल रहे हैं। भारत को प्रमुख और जिम्मेदार वैश्विक शक्ति बनने की उम्मीद है। यह महान अतीत और भविष्य की उच्च आशाओं वाला देश है। मोदी ने बताया कि किस तरह डिजिटल इंडिया और ऐसे अन्य कार्यक्रम भारत को बेहतर बनाएंगे। अपने भाषण में मोदी ने जल संरक्षण, बुनियादी ढांचे, वित्तीय समावेशन, और लोगों के लिए आवास तथा अपनी सरकार के क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम की बात की। उन्होंने आपदा से बचने वाले बुनियादी ढांचे के लिए अंतरराष्ट्रीय गठबंधन का आह्वान किया। उन्होंने बहुपक्ष व्यवस्था और संयुक्त राष्ट्र के लिए नई दिशाओं की जरूरत भी जताई।4
इसके विपरीत पाकिस्तान के प्रधानमत्री ने दुनिया को बताया कि उनका देश किस तरह आतंकवादियों को अपनी जमीन पर आश्रय देता है। उन्होंने शिकायत की कि किस तरह अमेरिका के ‘आतंक के खिलाफ युद्ध’ में शामिल होने पर पाकिस्तान के हजारों अरब डॉलर खर्च हो गए और अब वह आतंक को वित्तीय मदद देने मामले में फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) के सख्त सुझावों में फंस गया है। उन्होंने इस्लामी कट्टरपंथ के लिए सीधे पश्चिम को दोषी ठहराया। इमरान खान का भाषण पाकिस्तान की सभी मुश्किलों की तोहमत दूसरों के सिर पर मढ़ने के लिए ही था। उनकी शिकायत यह भी थी कि दुनिया पाकिस्तान की ‘पेड़ लगाने की’ कोशिशों की सराहना नहीं कर रही है। उन्होंने रकम मांगी ताकि पाकिस्तान अपने पर्यावरण की रक्षा कर सके। अनुच्छेद 370 को खत्म होने पर इमरान खान का होहल्ला खोखला है क्योंकि पाकिस्तान खुद गिलगित बाल्टिस्तान और तथाकथित ‘आजाद कश्मीर’ में लोगों के मानवाधिकार कुचलता रहता है।
कश्मीर मसले को अंतरराष्ट्रीय मसला बनाना ही पाकिस्तान की इकलौती कोशिश थी। दुनिया से आगे आने और कश्मीर को ‘बचाने’ की उनकी फरियाद पाकिस्तान की बढ़ती खीझ का और दुनिया में अलग-थलग पड़ने का सबूत है। ज्यादातर देशों को इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है क्योंकि वे कश्मीर को द्विपक्षीय समाधान वाला मसला मानते हैं।
मोदी अपने भाषण में पाकिस्तान का जिक्र करने से बचे और भारत ने इमरान खान के भाषण पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए उसे “घृणा भरा बयान” बताया। काफी कनिष्ठ भारतीय राजनयिक ने तीखे जवाब में कई सवाल दागे, जिन्होंने इमरान खान के पाकिस्तान की कलई खोल दी। उन्होंने पूछा, “क्या पाकिस्तान इस बात की पुष्टि कर सकता है कि उसके यहां संयुक्त राष्ट्र द्वारा आतंकवादी घोषित किए गए 130 आतंकी और संयुक्त राष्ट्र की सूची में दर्ज 25 आतंकी संगठन आज भी मौजूद हैं?”5 इमरान खान के पास इसका कोई भरोसे लायक जवाब नहीं होता।
दुनिया को कश्मीर मसले पर इमरान की अतिसक्रियता से कोई मतलब नहीं है, लेकिन भारत को इस बात पर सतर्कता बरतनी पड़ेगी कि इस अतिसक्रियता से उसे कितना नुकसान हो सकता है। हमने चीन को अपने “सदाबहार दोस्त” पाकिस्तान की मदद के लिए आते देखा है। संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण में चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने भी कश्मीर का मसला उठाया। उन्होंने कहा, “अतीत से चले आ रहे कश्मीर के विवाद को संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र, सुरक्षा परिषद प्रस्तावों एवं द्विपक्षीय समझौते के अनुसार शांतिपूर्वक और सही तरीके से सुलझाया जाना चाहिए।”6 चीन और पाकिस्तान स्पष्ट रूप से कश्मीर मसले पर एक-दूसरे के साथ हैं। यह खेद की बात है क्योंकि चीन भारतीय बाजार में मौके तलाश रहा है और भारत तथा चीन के नेताओं को भविष्य में अनौपचारिक शिखर वार्ता भी करनी है।
कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है। इसमें कोई शक नहीं है। फिर भी इमरान खान जैसे भाषणों द्वारा फैलाए जा रहे दुष्प्रचार को चीन जैसा देश मान लेगा क्योंकि शिनच्यांग में उसका अपना मानवाधिकार रिकॉर्ड अच्छा नहीं है। आम तौर पर भारत विरोधी रुख रखने वाले पश्चिमी मीडिया ने भारत का और भी विरोध शुरू कर दिया है क्योंकि कश्मीर में सुरक्षा कारणों से भारत सरकार ने प्रतिबंध लगा दिए हैं। जब प्रतिबंध हटेंगे तो भारत पर दबाव कम हो जाएगा। भारत को जम्मू-कश्मीर के घटनाक्रम पर जल्द ही नतीजे देने होंगे। भारत ने शुरुआती कदम तो उठाए हैं, लेकिन दोबारा उनकी समीक्षा करना भी उतना ही जरूरी है।
पाकिस्तान पर ध्यान नहीं देकर मोदी ने अपने भाषण में साफ जाहिर कर दिया कि भारत की दूसरी और अधिक जरूरी प्राथमिकताएं हैं। उसमें आतंकवाद से कठोरता से निपटने की क्षमता है। दोनों भाषण दिखाते हैं कि मोदी राजनीतिज्ञ के तौर पर उभर रहे हैं और इमरान खान का कद नीचा होता जा रहा है। इमरान खान के पास अपने देशवासियों या दुनिया को दिखाने के लिए कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है। वह अपना वजूद बचाने के लिए और दुनिया के सामने दिखने के लिए भारत विरोधी जुमलों और नफरत का ही सहारा ले रहे हैं।
Translated by Shiwanand Dwivedi (Original Article in English) [3]
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[2] https://www.vifindia.org/author/arvind-gupta
[3] https://www.vifindia.org/2019/september/30/contrasting-visions-of-modi-and-imran-khan
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