14 फरवरी 2019 को जम्मू-कश्मीर राजमार्ग पर वाहनों की आवाजाही के लिहाज से साफ दिन था। लंबे अरसे तक सड़क बंद रहने के बाद राजमार्ग खोला गया था। सड़कों का बार-बार बंद होना देखकर सेना को जम्मू से वापस घाटी में लाने की जरूरत थी। आतंकी गुट जैश-ए-मोहम्मद के एक आतंकवादी ने विस्फोटकों से लदी कार लेकर केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के काफिले में शामिल एक बस में टक्कर मार दी। टक्कर से हुए विस्फोट में 40 जवान शहीद हुए और कुछ बुरी तरह घायल हो गए।
इस कायराना हमले ने पूरी दुनिया को दहला दिया और जो भी जांच हुईं, उन्होंने हमले में पाकिस्तान की सक्रिय मदद होने की बात कही। भारत ने पाकिस्तान के खैबर पख्तूनवा प्रांत में स्थित बालाकोट में चल रहे जैश-ए-मोहम्मद के प्रशिक्षण शिविर पर हमला करने का बिल्कुल सही फैसला लिया। यह हमला भारतीय वायु सेना के मिराज-2000 विमानों के एक बेड़े ने 26 फरवरी 2019 को तड़के साढ़े तीन बजे किया। हमले पूर्वनियोजित थे और उनका निशाना नियंत्रण रेखा से 80 किलोमीटर पश्चिम में स्थित आतंकी प्रशिक्षण शिविर बने। 1971 के युद्ध के बाद पहली बार ऐसा हवाई हमला किया गया। बताया जाता है कि इसमें 12 मिराज-2000 शामिल थे, जिनकी मदद चार सुखोई 30 एमकेआई, हवा में रहकर शीघ्र चेतावनी देने एवं नियंत्रण करने वाले नेत्र और फाल्कन विमान, हेरन यूएवी तथा हवा में ही ईंधन भर देने वाले दो इल्यूशिन आईएल-78 विमान कर रहे थे। झांसा देने के लिए चार अन्य विमानों का इस्तेमाल किया गया, जिन्होंने पाकिस्तान वायु सेना का ध्यान दक्षिण की ओर खींचने के लिए जोधपुर से बाड़मेर और बहावलपुर की ओर उड़ान भरी। मिराज विमानों ने स्पाइस-2000 प्रिसिशन गाइडेड म्युनिशन (एकदम सटीक तरीके से लक्षित हथियार) का इस्तेमाल किया, जिनमें लक्ष्य की जानकारी भर दी जाती है और जिन्हें उपग्रह तथा इलेक्ट्रो ऑप्टिक से दिशा दी जा सकती है। कुल मिलाकर लक्षित शिविर पूरी तरह खत्म कर दिए गए और भारी संख्या में लोग इसमें हताहत हुए।
पाकिस्तान ने जवाब में 27 फरवरी 2019 की सुबह अपनी वायु सेना के विमान भेजे। विमान तीन समूहों में भेजे गए और सभी मेंढर-भिंबर, गली-झांगर-नौशेरा क्षेत्रों में उड़े। सबसे उत्तर में जेएफ-17 विमानों का समूह था और दक्षिण में एफ-16 के दो समूह थे। चुनौती का जवाब देने के लिए भारतीय वायु सेना ने सुखोई-30 एमकेआई, मिराज-2000 और मिग-21 बिजन का इस्तेमाल किया। एफ-16 ने एमरम मिसाइल दागी, जिसे हमारे विमानों ने नाकाम कर दिया। विंग कमांडर अभिनंदन ने एक एफ-16 विमान से लोहा लिया और हवा से हवा में मार करने वाली आर-73 मिसाइल से उसे मार गिराया। विंग कमांडर अभिनंदन का विमान भी गिर गया, लेकिन वे सुरक्षित निकल गए। कूटनीतिक दबाव के कारण पाकिस्तान विंग कमांडर को सुरक्षित लौटाने के लिए विवश हो गया। कुल मिलाकर भारत ने पाकिस्तान को वापस प्रभावी हमला करने की अपनी मंशा के साफ संकेत दे दिए। दिलचस्प है कि पाकिस्तान ने एक बार भी परमाणु हमला करने की धमकी नहीं दी। न ही पाकिस्तान के रणनीतिक परमाणु हथियारों (टीएनडब्ल्यू) या किसी समय पाकिस्तान के रणनीतिक योजना विभाग के महानिदेशक रहे जनरल खालिद किदवई की मशहूर ‘रेड लाइन्स’ का जिक्र किया गया।
ऐसे में 2016 के ‘सर्जिकल स्ट्राइक्स’ का दौर याद करना सही होगा। भारतीय सेना को 28 और 29 सितंबर की दरम्यानी रात को नियंत्रण रेखा के पार कई स्थानों पर सटीक लक्षित हमले करने के लिए बधाई दी जानी चाहिए। हालंाकि पाकिस्तान ने हमलों से इनकार किया और पत्रकारों को यह जताने के लिए नियंत्रण रेखा तक ले गया कि कुछ भी नहीं हुआ। लेकिन पाकिस्तान से लीक हुए रेडियो संदेश कुछ और ही बता गए। हमलों ने पाकिस्तानियों को भौंचक्का कर दिया और ढेरों पाकिस्तानी आतंकवादी मारे गए। पाकिस्तान ने अपनी स्लीपर सेल का इस्तेमाल किया और छिटपुट हमले कराए। इनके बाद 10 अक्टूबर को पांपोर के इलाके में हमला हुआ और भारी गोलीबारी के बावजूद आतंकी तीन दिन तक डटे रहे। भारत ने अपनी ओर से पूरा प्रयास किया कि तनाव और न बढ़े, लेकिन पाकिस्तान के इशारों पर काम कर रहे आतंकियों ने कोई कसर नहीं छोड़ी। इसके अलावा नियंत्रण रेखा पर युद्धविराम का उल्लंघन भी होता रहा, जिसका बिना तनाव बढ़ाए जवाब दिया गया।
भारत का सब्र ही तय करेगा कि यह स्थिति कब तक बरकरार रहेगी। भारत पाकिस्तान में आतंकी ढांचे को तोड़ने के लिए कमर कस चुका है। कूटनीतिक तौर पर इसके नतीजे नहीं निकले हैं और इसलिए हवाई ताकत, मिसाइल की ताकत, गोलीबारी, विशेष बलों के जरिये सैन्य विकल्प और दांव पेंचों के विकल्प पर विचार होना चाहिए। फिर पाकिस्तान की प्रतिक्रिया क्या होगी? क्या वह रणनीतिक परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करेगा?
उड़ी और बालाकोट हमलों के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने जिक्र किया कि दोनों देशों के पास परमाणु हथियार हैं। लेकिन पाकिस्तान की ओर से इसके एकतरफा इस्तेमाल की बात उन्होंने बिल्कुल भी नहीं कही। साथ ही रणनीतिक परमाणु हथियार या रेड लाइन्स का भी कोई जिक्र नहीं हुआ। पाकिस्तान के सभी आधिकारिक बयानों में कुछ हद तक सतर्कता देखी जा सकती है। इस सतर्कता को देखकर हम सोच सकते हैं कि पाकिस्तान का रणनीतिक परमाणु हथियार ‘नस्र’ कितना प्रभावी है।
जरूरी है कि पहले हम पाकिस्तान के पास मौजूद रणनीतिक परमाणु हथियार नस्र को समझें। बताया जाता है कि नस्र 60 किलोमीटर तक मार कर सकता है और इसका पहला परीक्षण 19 अप्रैल 2011 को हुआ था। यह प्रक्षेपण प्रणाली आर्टिलरी रॉकेट प्रणालियों की ही तरह है। माना जाता है कि इसे चीन के सिचुआन एयरोस्पेस कॉर्पोरेशन द्वारा तैयार की गई डब्ल्यूएस-2 वेइशी रॉकेट प्रणाली से बनाया गया है। चीन में तैयार ट्रांसपोर्ट इरेक्टर लॉन्चर पर चार मिसाइल लादी जा सकती हैं। इसके वॉरहेड (मिसाइल आदि का आगे वाला वह हिस्सा, जिसमें विस्फोटक होते हैं) में 361 मिलीमीटर व्यास और 840 मिमी लंबा बेलनाकार हिस्सा होने का अनुमान है और उसमें 660 मिमी लंबा शंक्वाकार हिस्सा भी है। पहला सवाल यह है कि वॉरहेड का आकार नस्र के हिसाब से छोटा किया गया है या नहीं। ऐसा किए जाने का कोई भी वैज्ञानिक सबूत नहीं है। इसी तरह हथियार का भी कोल्ड टेस्ट ही किया गया है और वे अनिश्चित हैं। अगला मुद्दा उसकी तैनाती का है। चूंकि हथियार का दायरा बहुत सीमित है, इसलिए हथियार को नियंत्रण रेखा या अंतरराष्ट्रीय सीमा से करीब 20 किलोमीटर दूर ही तैनात करना होगा। इससे अलग मुश्किल होंगी क्योंकि इसका इस्तेमाल विकेंद्रीकृत हो जाएगा।
मान लीजिए कि रणनीति परमाणु हथियार से 1,000 टन से कम ऊर्जा निकलती है तो यह समझना जरूरी है कि इसका इस्तेमाल कहां होगा। पहाड़ी इलाके में इसका कोई असर नहीं होगा; मैदान में पंजाबी जनरलों के दबदबे वाली सेना इसका इस्तेमाल करना नहीं चाहेगी क्योंकि इससे उनकी अपनी जमीन पर बरबादी आएगी। इसलिए इसके इस्तेमाल के लिए इकलौता मुफीद इलाका राजस्थान के सामने का रेगिस्तान है। मान लीजिए कि बख्तरबंद हथियारों वाली हमारी टुकड़ियां उस इलाके में तैनात होती हैं। इतने बड़े इलाके में घूम रही बख्तरबंद डिविजन को रोकने के लिए कम से कम 436 रणनीतिक परमाणु हथियारों की जरूरत होगी। पाकिस्तान के पास इस समय 120 परमाणु हथियार ही होने की संभावना है। मान लीजिए कि इसमें से 30 रणनीतिक परमाणु हथियार हैं। अगर बख्तरबंद टुकड़ी के खिलाफ करीब चार हथियार इस्तेमाल कर लिए जाते हैं तो अधिक से अधिक 20 जवानों की जान जाएगी।
भारत और पाकिस्तान दोनों के ही कई विशेषज्ञ कह चुके हैं कि इससे तबाही मच सकती है, जिसमें समूचा पाकिस्तान और भारत के कुछ इलाके नष्ट हो सकते हैं। पाकिस्तानी जनरल अच्छी योजना बनाते हैं और इतने समझदार हैं कि ऐसा कुछ नहीं करेंगे, जो उनके काबू से बाहर हो जाए। वे इस तरह काम करते रहेंगे, जिससे तनाव नहीं बढ़ेगा। लेकिन इससे एक पहेली तो तैयार हो ही गई है और पाकिस्तान को लगता है कि भारत उसकी वजह से पाकिस्तानी जमीन पर पारंपरिक हमला नहीं करेगा।
भारत द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ पूर्ण स्तर के जवाबी परमाणु हमले के बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है। ऐसा फैसला परमाणु कमान प्राधिकरण लेगा, जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं। इस सर्वोच्च संस्था की निर्णय लेने की प्रक्रिया को ध्यान में रखते हुए भारतीय सशस्त्र बलों को पाकिस्तान की परमाणु धमकी का जवाब देने के वैकल्पिक उपाय भी अपनाने चाहिए। हमारे देश को इस बात का श्रेय जाता है कि हर प्रकार के विमान, ड्रोन, बैलिस्टिक मिसाइल और क्रूज मिसाइल से निपटने के लिए बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस और रूसी एस-400 की येाजना हम पहले ही बना रहे हैं।
यह ध्यान रखना जरूरी है कि उनमें से कोई भी प्रणाली 60 किलोमीटर दायरे वाली पाकिस्तान की रणनीतिक परमाणु मिसाइल नस्र का पता लगाने और उससे जूझने में सक्षम नहीं है। नस्र एकल चरण वाला ठोस रॉकेट है और संभवतः ‘आयरन डोम’ या वैसी प्रणाली के जरिये ही उससे प्रभावी तरीके से निपटा जा सकता है। हमारे वैज्ञानिक प्रतिष्ठान को पाकिस्तान के रणनीतिक परमाणु हथियार का ब्योरा समझना चाहिए और उससे निपटने लायक हथियार प्रणाली तैयार करनी चाहिए। पाकिस्तान ने स्पष्ट रूप् से कहा है कि यदि भारत सक्रियता के साथ पारंपरिक सैन्य आक्रमण करता है तो वे नस्र का इस्तेमाल करेंगे। पाकिस्तान द्वारा नस्र से आक्रमण होने पर पूरी ताकत के साथ परमाणु हमला करने के मामले में भारत में दोराय होने की संभावना है, जिसे देखते हुए नस्र का जवाब जरूरी है ताकि हमारे सैन्य कमांडरों को मदद मिल सके। तोप के गोलों और रॉकेट का जवाब देना जैसे भारतीय सेना का काम है, वैसे ही हमें रणनीतिक परमाणु हथियारों के ऊपर बताए पहलू की दिशा में भी काम करना चाहिए ताकि बिना हिचक के हम पारंपरिक तरीके से हमला कर सकें।
नस्र का अभी तक कोल्ड परीक्षण ही हुआ है और इस्तेमाल के समय उसमें गड़बड़ होने का पूरा खतरा है। इसमें संदेह है कि वॉरहेड का आकार छोटा किया गया है या नहीं। मौजूदा स्वरूप में रणनीतिक परमाणु हथियार रॉकेट है और छोड़ने से पहले या उड़ान के दौरान उसे खत्म करना जरूरी होगा। किसी भी प्रकार के परमाणु हमले का सही जवाब देने में हम सक्षम हैं। लेकिन भारत पर छोड़े जाने वाले पारंपरिक अथवा परमाणु हथियार वाहक रॉकेट से निपटने के लिए भी कदम उठाए जाने चाहिए। इस खतरे से निपटने के लिए आयरन डोम जैसे हथियार तैयार किए जा सकते हैं। इसलिए यह मानना ठीक होगा कि पाकिस्तान पारंपरिक सेना के साथ या रणनीतिक परमाणु हथियारों के साथ भारत को धमकी देकर मनचाहा असर नहीं डाल पाएगा।
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