हिंद-प्रशांत क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय पक्षों का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश कर रहा है, जिसके कारण क्षेत्रीय ताकतों के लिए हिंद महासागर की अहमियत बढ़ गई है। भारत और चीन साझे जलीय क्षेत्र में अधिक प्रभाव जमाने की होड़ में लगे हैं, जिसके कारण इस क्षेत्र में जटिलताएं बढ़ गई हैं और उनकी गतिविधियां तथा उपस्थिति बढ़ने की संभावना भी बढ़ गई है। ऐसी स्थिति में द्वीपीय देश मालदीव में हाल का घटनाक्रम भारत तथा क्षेत्रीय स्थिरता के लिहाज से अच्छा है।
पिछले सितंबर में मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) के नेता सोलिह के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के साथ ही भारत-मालदीव द्विपक्षीय संबंध एक बार फिर सजीव हो उठे। एमडीपी ने कुछ अरसा पहले ही पीपुल्स मजलिस (संसद) में बहुमत (87 में से 65 सीट) हासिल की थीं, जिसके बाद द्विपक्षीय संबधों का और भी बेहतर होना तय लग रहा है। मालदीव में पहली बार किसी राजनीतिक दल को दो-तिहाई बहुमत प्राप्त हुआ है, जिसके कई सकारात्मक प्रभाव हुए हैं। घरेलू मोर्चे पर इतनी बड़ी संख्या में सीटें लाने का मतलब है कि जनता ने एमडीपी की अगुआई वाली सरकार में भरोसा दिखाया है। 2008 में बहुदलीय लोकतंत्र आने के बाद से पिछले एक दशक में किसी भी इकलौते राजनीतिक दल या गठबंधन को इतना भारी जनादेश प्राप्त नहीं हुआ है और इससे पता चलता है कि अधिक लोकतांत्रिक व्यवस्था एवं निष्पक्ष प्रणाली के लिए घरेलू सुधार आरंभ करने एवं पूर्ववर्ती सरकार द्वारा अपनाई गई विदेश नीति की समीक्षा के अपने चुनावी वायदों को पूरा करने की राष्ट्रपति सोलिह की कितनी क्षमता है।
एमडीपी के मुख्य चुनावी मुद्दों में ‘एजेंडा 91’ शामिल था, जिसके तहत विधायी सुधार भी होंगे और स्थानीय परिषदों को कानूनी अधिकार एवं अधिक वित्तीय साधन भी सुनिश्चित होंगे। चुनावी वायदों में न्यूनतम वेतन विधेयक पेश करना, बेरोजगारी लाभ देना, कर प्रणाली में सुधार करना और न्यायपालिका में सुधार करना भी शामिल था। सोलिह की जीत से पहले पिछली दबंग सरकार ने लोकतांत्रिक तत्वों को नष्ट कर दिया था और व्यवस्था में भारी भ्रष्टाचार दिख रहा था। हैरत की बात नहीं है कि वैसी राजनीतिक स्थिति में भारत मालदीव से दूर हो गया था और बेहद दोस्ताना रिश्तों वाले पड़ोसियों - दिल्ली और माले - के बीच संवाद मुश्किल से ही होता था। हालांकि भारत के दक्षिणी छोर पर बसे लक्षद्वीप द्वीपसमूह से कुछ सौ किलोमीटर दूर स्थित मालदीव के रणनीतिक लाभ को कोई भी कम करके नहीं आंक सकता, लेकिन माले पर प्रभाव डालने की भारत की क्षमता पिछले पांच वर्ष में कमजोर पड़ी थी और माले ने जो नए मैत्री संबंध बनाए थे, उनमें भारत हाशिये पर चला गया था।
अतीत में भारत और मालदीव के बीच बेहद मजबूत द्विपक्षीय सहयोग रहा है, जो रक्षा एवं सामाजिक आर्थिक घटनाक्रम में भी दिखा है। प्रधानमंत्री मोदी ने साझेदारी और भी गहरी करने का भारत का संकल्प दोहराया है और दोनों पक्षों ने मत्स्यपालन विकास, पर्यटन, परिवहन, कनेक्टिविटी, स्वास्थ्य, शिक्षा, सूचना प्रौद्योगिकी, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा और संचार समेत विभिन्न क्षेत्रों में साथ काम करने का फैसला किया है। लगभग 30,000 भारतीय तो मुख्य रूप से पर्यटन एवं स्वास्थ्य क्षेत्रों में ही काम कर रहे हैं। इसके साथ ही रिश्तों में एक बार फिर गर्मजोशी आने से पिछली सरकार के समय के अनिश्चितता भरे दौर को भुला दिया गया है।
क्षेत्र में दिलचस्प घटनाक्रम को देखते हुए भारत के पास मालदीव के साथ अधिक गहरे संबंध बनाने के कई कारण हैं। मालदीव में एक बार फिर लोकतांत्रिक प्रणाली की स्थापना और घनिष्ठ द्विपक्षीय संबंधों की बहाली मुख्य रूप से भारत के लिए हितकारी होगी। प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपति सोलिह की हालिया जीत पर पिछले हफ्ते उन्हें भेजे बधाई संदेश में उम्मीद जताई कि इस दौर में लोकतांत्रिक प्रक्रिया मजबूत होगी और द्वीपीय राष्ट्र में लोकतांत्रिक संस्थाएं सुदृढ़ होंगी। घनिष्ठ संबंध बनाने और द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के लिए उसका दायरा बढ़ाने में दोनों पक्षों की स्पष्ट दिलचस्पी है ताकि मालदीव की जनता को स्पष्ट लाभ मिल सकें और क्षेत्र में शांति तथा सुरक्षा बरकरार रह सके।
राष्ट्रपति सोलिह ने सत्ता संभालने के फौरन बाद भारत के करीब रहकर काम करने और नए उभरते सकारात्मक माहौल के मुताबिक चलने में रुचि होने का संकेत किया था। छह महीने से भी कम समय में उच्च स्तर के तीन दौरे हो चुके हैं, जिनकी शुरुआत राष्ट्रपति सोलिह के शपथ ग्रहण समारोह के लिए प्रधानमंत्री मोदी की माले यात्रा से हुई। जल्द ही राष्ट्रपति सोलिह भारत आए और इस वर्ष मार्च में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भी मालदीव की यात्रा की।
इस प्रकार पिछली कुछ द्विपक्षीय यात्राओं के दौरान कुछ प्रमुख समझौते हुए हैं:-
मालदीव के विदेश मंत्री शाहिद ने माले की ‘भारत प्रथम नीति’ और भारतीय सुरक्षा एवं सामरिक चिंताओं के प्रति अपने देश की संवेदनशीलता को दोहराया, जिससे भारत द्वारा मालदीव को 1.4 अरब डॉलर का कर्ज देने के लिए सटीक आधार तैयार हुआ। माले के भारीभरकम राजकोषीय ऋण को देखते हुए इस सहायता की बहुत अहमियत होगी। मझोली आय वाले देश मालदीव की लगभग 7 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था और 4.8 प्रतिशत वृद्धि दर में ज्यादातर योगदान पर्यटन और मत्स्यपालन क्षेत्रों का ही है। पिछले कुछ वर्षों में देश को भारी ऋण संकट से गुजरना पड़ा है और उसका चालू खाते का घाटा लगभग 17.1 प्रतिशत है। माले को रियायती कर्ज पर 1.5 से 2 प्रतिशत की ब्याज दर पर और मालदीव में भारीभरकम बुनियादी ढांचा विकास की योजनाओं के बदले चीन से सॉवरीन गारंटी वाले ऋण पर लगभग 6 से 7 प्रतिशत की ब्याज दर पर राजी होना पड़ा था। चीन की इन परियोजनाओं में माले को हुलहुले द्वीप से जोड़ने वाला चार लेन का साइनामाले ब्रिज और हुलहुमाले में बड़े स्तर की आवासीय परियोजना शामिल हैं, जिसके लिए चीन ने 3.2 अरब डॉलर का बिल भी पकड़ा दिया। वास्तव में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की हाल में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक बढ़ते सार्वजनिक ऋण को संभालना ही निकट भविष्य में माले के लिए मुख्य चुनौती होगी। चीन कह चुका है कि वह भुगतान की शर्तों पर नए सिरे से बातचीत भर करेगा, लेकिन मालदीव के वित्त मंत्री इब्राहिम अमीर ने सभी अधूरी परियोजनाओं की समीक्षा करने और ब्याज दरें घटाने की मंशा जताई है। अब सोलिह के पास मजलिस में ताकत है, जिसके कारण वह माले को पेइचिंग के साथ बांधने वाली विभिन्न परियोजनाओं के कारण गहरा रहे ऋण संकट की समीक्षा कर सकेंगे और विकास तथा वृद्धि के लिए नए साझेदार भी तलाश पाएंगे।
कर्ज के अलावा मालदीव पर्यावरण संबंधी अन्य मुद्दों के साथ समुद्र के स्तर में लगातार बढ़ोतरी की समस्या से भी जूझ रहा है और इस छोटे से द्वीपीय देश के सामने मौजूद कई आसन्न खतरों से निपटने में भारत की मदद कारगर साबित होगी। माले शहर की सड़कें भारतीय एलईडी बल्बों से रोशन हो रही हैं और भारत तथा मालदीव को सुनिश्चित करना होगा कि दोनों में से किसी देश में चाहे सरकार बदल जाए मगर साझेदारी की रोशनी और भी तेज होती रहेगी। यह द्विपक्षीय साझेदारी दोनों देशों के लिए जितनी महत्वपूर्ण है, उतनी ही महत्वपूर्ण क्षेत्र में शांति बनाए रखने के लिए भी है।
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