पाकिस्तानी संसद ने 1 मार्च को संयुक्त सत्र में सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें आतंकवाद को भ्रम में आत्मसंकल्प मान लेने का पाकिस्तान का पुराना रुख दोहराया गया। प्रस्ताव में पुलवामा आतंकी हमले की निंदा नहीं की गई। उसके बजाय उसमें पाकिस्तान के खिलाफ भारत के आरोप को ‘निराधार’, ‘राजनीति से प्रेरित’ और ‘चुनावी गणित से चलने वाला’ बताया गया और उसकी निंदा की गई।
प्रस्ताव में इस बात पर पाकिस्तानी गुस्सा भी नजर आया कि विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज को इस्लामी सहयोग संगठन (ओआईसी) के सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए न्योता भेजा गया था। उसने इस बात पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई कि ओआईसी के विदेश मंत्रियों की बैठक में भारत को विशिष्ट अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया।
प्रस्ताव विदेश मंत्री कुरैशी ने प्रस्तुत किया मगर संसद के संयुक्त सत्र की मांग विपक्ष ने की थी। पुलवामा हमले के बाद सऊदी शहजादे मुहम्मद बिन सलमान की यात्रा के दौरान सरकार ने किसी भी सरकारी कार्यक्रम या राजकीय भोज में विपक्षी नेताओं को आमंत्रित नहीं किया था। भारत के जवाबी हमले के बाद राष्ट्रीय आम सहमति बनाने की उसकी हड़बड़ी से उसकी घबराहट सामने आ गई। वह ‘टकराव कम करने’ के लिए राजनीतिक आड़ चाहता था, जैसा प्रस्ताव के अंतिम अनुच्छेद में कहा भी गया था।
बिगड़ती आर्थिक स्थिति के बावजूद आतंकवाद को पाकिस्तान का समर्थन जारी है। जनवरी में संयुक्त अरब अमीरात के शहजादे के पाकिस्तान दौरे और फरवरी में सऊदी शहजादे के दौरे से संकट के समय पाकिस्तान को उदारता भरी मदद मिली। इससे माहौल सुधरा। लेकिन स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान की वित्त वर्ष 2018-19 की पहली तिमाही की रिपोर्ट कहती है कि देश की वृहद आर्थिक स्थिति ‘चुनौतीपूर्ण’ बनी हुई है। रिपोर्ट जुलाई-सितंबर 2018 की बात करती है, जबकि इमरान खान की सरकार ने अगस्त में ही काम करना शुरू किया था।
रिपोर्ट कहती है कि सात वर्षों में पहली बार वित्त वर्ष 2019 की पहली तिमाही में ही बड़े स्तर पर विनिर्माण कम हुआ। देश में औसत से कम वर्षा के कारण पानी की किल्लत बढ़ गई, जिससे कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन भी कमतर रहा और हालत ज्यादा खराब हो गई। सिंध में पानी की उपलब्धता को ‘खतरनाक’ बताया गया है।
स्टेट बैंक ऑफ पाकिसन की रिपोर्ट बताती है कि राजकोषीय घाटा ज्यादा रहा क्योंकि राजस्व संग्रह उतनी तेजी से नहीं बढ़ा, जितनी तेजी से खर्च बढ़ रहा है। कुल राजकोषीय घाटा 541.7 अरब रुपये पर पहुंच गया, जो वित्त वर्ष 2019 की समान अवधि के आंकड़े से लगभग 100 अरब रुपये अधिक है। पिछले वर्ष 12.4 प्रतिशत रहने वाली निर्यात वृद्धि दर वित्त वर्ष 2019 की पहली तिमाही में घटकर केवल 3.8 प्रतिशत रह गई और कच्चे तेल के वैश्विक मूल्य में 50.9 प्रतिशत बढ़ोतरी के कारण आयात बिल उछल गया। आंकड़ों में कुछ गड़बड़ है क्योंकि मई से अक्टूबर के बीच तेजी से बढ़ने के बाद कच्चे तेल की कीमत नवंबर से गिरती गई थी।
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था वित्त वर्ष 2018 में 5.8 प्रतिशत बढ़ी थी, जो 13 वर्षों में सबसे अधिक वृद्धि दर थी किंतु उसके बाद से उसमें ठहराव आ रहा है। पाकिस्तान का बजट चक्र जुलाई से जून तक चलता है। इसलिए वित्त वर्ष 2018 की उच्च वृद्धि दर का सेहरा नवाज शरीफ सरकार के आखिरी दौर के सिर बंधता है। वृद्धि दर कम होने के कारण प्रधानमंत्री इमरान खान के लिए ‘नया पाकिस्तान’ पर सामाजिक व्यय बढ़ाने का अपना वायदा पूरा करना वाकई मुश्किल होगा।
पुलवामा हमले के दिन 14 फरवरी को कराची स्टॉक एक्सचेंज 40,506 अंक पर था, जो बालाकोट पर भारतीय वायु सेना के हमले के दिन यानी 26 फरवरी को 38,821 अंक तक लुढ़क गया। अगले दिन जब पता चला कि भारतीय मिग 21 के साथ मुकाबले में पाकिस्तान को एफ-16 विमान नष्ट हो गया है तो एक्सचेंज 38,692 अंक तक गिर गया। पिछले एक वर्ष की बात करें तो कराची स्टॉक एक्सचेंज 43,829 अंक से करीब 10 प्रतिशत गिरकर 39,539 अंक ही रह गया है।
अर्थव्यवस्था बिगड़ती है तो विदेश में जोखिम नहीं लिए जा सकते। लेकिन पूर्व से लेकिन पश्चिम तक पड़ोसियों के साथ रिश्ते में पाकिस्तानी सेना का गणित इस बात का ध्यान नहीं रख रहा है। अफगानिस्तान में स्थिति बदलती रहती है। पाकिस्तानी सेना ने शीत युद्ध के काल में मिले अपने ‘अग्रिम मोर्चे’ के दर्जे का फायदा उठाया और अमेरिका से बढ़िया सैन्य मदद हासिल की। 2001 के बाद से अमेरिका की उदारता भरी मदद के बावजूद इसने अफगानिस्तान को स्थिर करने के अमेरिकी प्रयासों को नाकाम करने की सफल कोशिश की है। अब ट्रंप प्रशासन अपनी सेना कम करने की तैयारी कर रहा है तो पाकिस्तान खुद पर निर्भर तालिबान को उकसाने में लगा है ताकि अधिक से अधिक फायदा मिल सके। वह पाकिस्तानी जमीन से काम करने वाले आतंकी गुटों को ईरानी सुरक्षा बलों पर हमला करने से रोकने का इच्छुक भी नहीं दिख रहा है।
पाकिस्तान ने पुलवामा से क्या सबक सीखे हैं? इसमें ठोस नतीजे पर पहुंचना जल्दबाजी होगी। लेकिन जंग का हवाल देकर भी भारत को जवाबी हमले से रोकने में नाकाम रहने के बाद पाकिस्तान ने ‘तनाव कम करने’ की बात शुरू कर दी। अब उसे इस बात का भरोसा नहीं है कि परमाणु हमले की धमकी से भारत को नियंत्रण रेखा पर कार्रवाई करने से रोका जा सकता है। बालाकोट में भारत ने आतंकी शिविरों पर जो ऐहतियातन हमला किया, वह पाकिस्तान की जमीन पर था। क्या पाकिस्तानी सेना अपनी जमीन पर काम करने वाले आतंकी गुटों पर भविष्य में अधिक नियंत्रण रखेगी? क्या अभिनंदन की रिहाई के बाद भारत को पाकिस्तान के साथ वार्ता शुरू कर देनी चाहिए?
पाकिस्तान के लिए बातचीत का मतलब बल और आतंकवाद का प्रयोग है, जो हमने जम्मू-कश्मीर में देखा है। प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपने भाषण में अमेरिका और रूस के साथ तालिबान की बातचीत की सराहना की और उसे भारत-पाक रिश्तों के लिए नजीर बताया। दोहा और मॉस्को में बातचीत के समय तालिबान ने गनी सरकार के संघर्ष विराम के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। पाकिस्तान के लिए आतंकवाद और बातचीत एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
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