उम्मीद के मुताबिक भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इस्लामी सहयोग संगठन (ओआईसी) का अपना संबोधन आतंकवाद पर केंद्रित रखा। उन्होंने साफ लफ्जों में कहा कि मानवता की रक्षा तभी हो सकेगी, जब उन तमाम मुल्कों पर दबाव बनाया जाएगा, जो आतंकी गतिविधियों के लिए फंडिंग करते हैं। उनका निशाना जाहिर तौर पर पाकिस्तान था। यह कमोबेश अपने घर में पाकिस्तान को घेरने जैसा था, क्योंकि इस संगठन में अब तक उसका खासा दखल रहा है। संभवत: इसीलिए पाकिस्तान ने भारत को मिले इस सम्मान पर नाराजगी जाहिर की, और हां-ना के बाद आखिरकार इसमें शामिल न होने का फैसला लिया।
भारतीय विदेश मंत्री का अबू धाबी दौरा सिर्फ इसीलिए खास नहीं है कि इस्लामी सहयोग संगठन की इस बैठक में भारत को ‘सम्मानित अतिथि’ के रूप में बुलाया गया, बल्कि इसलिए भी कि मुस्लिम दुनिया के करीब आने का हमारे लिए यह एक सुनहरा मौका है। साल 1969 में इस संगठन का गठन हुआ है, और उस वक्त भी हमें इसमें शामिल होने का न्योता मिला था। तब हम इसके सदस्य भी बन सकते थे, लेकिन पाकिस्तान द्वारा खड़ी की गई बाधाओं की वजह से उस समय हमें किनारे कर दिया गया और फिर हम इससे बाहर हो गए। इस कारण मुस्लिम दुनिया से हमारी दूरी भी बढ़ती गई, जिसका पाकिस्तान ने हमारे खिलाफ और अपने हित में बखूबी इस्तेमाल किया। साफ है कि बरसों का वह टूटा नाता एक बार फिर जुड़ता हुआ दिख रहा है। बदलाव हो रहा है, इसीलिए हमें ‘गेस्ट ऑफ ऑनर’ से सम्मानित भी किया गया। पाकिस्तान बेशक इस बैठक में शामिल नहीं हुआ, लेकिन सुषमा स्वराज ने खुलकर अपनी राय रखी और मुस्लिम दुनिया को उसकी करतूतें गिनाईं।
इस्लामी सहयोग संगठन से नजदीकी कई मोर्चों पर हमारे लिए फायदेमंद है। सबसे बड़ा फायदा तो यह होगा कि कश्मीर के मसले पर अब हम मुस्लिम राष्ट्रों तक अपनी बात आसानी से पहुंचा सकेंगे। असल में, इस संगठन के सभी 57 सदस्य मुस्लिम देश हैं, जिनका एक ‘कश्मीर कॉन्टेक्ट ग्रुप’ भी है। इस पर पूरी तरह से पाकिस्तान का कब्जा है। वह इसका इस्तेमाल कश्मीर पर अपनी सियासत चमकाने में करता रहा है। यही कारण है कि पिछले दो दशकों से कश्मीर मसले पर यह ग्रुप जो भी बयान जारी करता रहा, वह एकतरफा होता था। हमारा पक्ष उसमें रखा ही नहीं जाता था। मगर अब यह तस्वीर बदल सकती है। हमारे लिए नया रास्ता खुल गया है। इसीलिए सुषमा स्वराज ने हालिया घटनाक्रमों का जिक्र करते हुए कहा कि आतंकवाद से जंग महज युद्ध या खुफिया जानकारी से नहीं जीती जा सकती। इसके लिए समग्र नीति की दरकार होगी, जो सभी राष्ट्रों को मिलकर बनानी होगी।
यह तस्वीर यूं ही नहीं बदली है, और न ही ऐसा पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रम के कारण हुआ है। यह मूल रूप से भारत सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कूटनीति का नतीजा है। इन दिनों खासतौर से खाड़ी के देशों के साथ हमारे रिश्ते काफी सुधरे हैं। सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे मुल्कों के हम काफी करीब आए हैं, जबकि उन्हें पाकिस्तान का खैरख्वाह माना जाता रहा है। इससे एक तरह से हमने पाकिस्तान के ‘जोन’ में प्रवेश पा लिया है। इस संगठन के कई सदस्यों के साथ हमारे संबंध अच्छे हैं, लेकिन अब उनसे हमारे रिश्ते और सहज हो जाएंगे।
यह संगठन वैश्विक राजनीति पर भी काफी असरकारी है। इसके सभी सदस्य देश मिलकर फैसला लेते हैं और अच्छी बात यह है कि पूरा संगठन उस फैसले पर खड़ा रहता है। संयुक्त राष्ट्र में भी ये देश एक ‘ब्लॉक’ की तरह काम करते हैं और एक साथ वोट देते हैं। पिछले कई वर्षों से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य बनने के लिए हम प्रयास करते रहे हैं। अब तक चूंकि पाकिस्तान से प्रभावित होकर ये देश हमारे खिलाफ रहे हैं, लेकिन अब उम्मीद जताई जा रही है कि यह ‘परंपरा’ टूट सकती है। संभव है कि इसके सदस्य देश हमारे पक्ष में मतदान करें, जिस वजह से संयुक्त राष्ट्र की वोटिंग प्रक्रिया पर खासा प्रभाव पड़ेगा। फिर, जैश-ए-मोहम्मद के आका मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने में भी यह संगठन हमारे काम आ सकता है। अगर संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबंधित सूची में मसूद अजहर को शामिल करने के लिए मतदान की प्रक्रिया अपनाई जाती है, तो ये मुस्लिम राष्ट्र हमारा दावा मजबूत कर सकते हैं। इन दिनों अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने उसे वैश्विक आतंकी घोषित करने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया है। पर्याप्त सहयोग के बिना यह प्रस्ताव पास नहीं हो सकता। इस्लामी सहयोग संगठन इसमें मददगार हो सकता है। आतंकवाद के खिलाफ भी यह संगठन हमारा साथ दे सकता है।
रही बात अर्थव्यवस्था की, तो इस मोर्चे पर भी इस्लामी सहयोग संगठन हमारे लिए फायदेमंद हो सकता है। इसके कई सदस्य देश भारत में निवेश बढ़ा सकते हैं। संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, कुवैत, तुर्की जैसे देशों के साथ हमारे रिश्ते बेहतर हो रहे हैं। अब उनमें और गति आने की उम्मीद है। इन देशों के साथ जैसे-जैसे रिश्ता मजबूत होता जाएगा, वैसे-वैसे भारत में निवेश के नए दरवाजे खुलते जाएंगे। हालांकि ऐसा नहीं है कि भारत इस संगठन को कुछ नहीं दे सकता। हम इन देशों के साथ अपनी रक्षा तकनीक और प्रौद्योगिकी साझा कर सकते हैं। तुर्की, मिस्र जैसे देशों को भारत से खूब फायदा हो सकता है।
जाहिर है, आने वाले दिनों में द्विपक्षीय रिश्तों के साथ-साथ हम कई नए संबंधों को भी आकार लेते हुए देखेंगे। भारत के मुस्लिम समाज में इससे काफी अच्छा संदेश जाएगा। यह एक नई शुरुआत है, और भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का संबोधन यह संकेत है कि आने वाले दिनों में हमें इसका भरपूर फायदा मिलने वाला है।
(This article appeared in Live Hindustan on 2ndMarch, 2019.)
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[3] https://www.ndtv.com/india-news/minister-sushma-swaraj-at-organisation-of-islamic-cooperation-oic-meet-we-must-act-together-stand-to-2001142
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