फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) के नौ सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने 8 से 19 अक्टूबर के बीच 12 दिनों तक पाकिस्तान का दौरा किया। एफएटीएफ के एशिया-प्रशांत समूह (एपीजी) में अमेरिका के वित्त विभाग, ब्रिटेन के स्कॉटलैंड यार्ड, पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना, तुर्की के न्याय विभाग, मालदीव की वित्तीय खुफिया इकाई तथा इंडोनेशिया के वित्त मंत्रालय के विशेषज्ञ शामिल थे। उन्हें विदेश तथा वित्त जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों के प्रमुख पाकिस्तानी अधिकारियों के साथ बैठकें कीं और एफएटीएफ द्वारा तय 40 सिफारिशों तथा सितंबर, 2019 तक पूरी की जाने वाली 10 सूत्रीय कार्य योजना के पालन पर चर्चा की। यह दौरा दो महीने पहले अगस्त में हुए पारस्परिक निरीक्षण के बाद की स्थिति जांचने के लिए हुआ था।
पाकिस्तान को कानूनों में खामियों के कारण तथा धन शोधन रोकने एवं आतंकवाद को वित्तीय सहायता रोकने वाले उपायों का पालन नहीं किए जाने के कारण इसी वर्ष जून में ग्रे सूची में डाल दिया गया। ऐसा माना गया कि पाकिस्तान पर आतंकवाद का मुकाबला करने और धन शोधन में खामियों को दूर करने के लिए अधिक सक्रिय होने का दबाव बनाने के इरादे के अमेरिका और उसके साथियों ने ऐसा कराया था।
मीडिया सूत्रों के मुताबिक दौरे पर आया प्रतिनिधिमंडल पाकिस्तान की प्रगति से नाखुश रहा क्योंकि कानूनी व्यवस्था और संस्थागत व्यवस्थाओं में खामियां मिलीं और उनमें पर्याप्त मजबूती महसूस नहीं की गई।
संदिग्ध अलाभकारी संगठनों, एक्सचेंज कंपनियों और बड़ी कंपनियों को जांचने-परखने के लिए निर्धारित व्यवस्था में दोष मिले। जिम्मेदार एजेंसियों - फाइनेंशियल मॉनिटरिंग यूनिट, नेशनल काउंटर-टेररिज्म अथॉरिटी, स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान, फेडरल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी, सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन ऑफ पाकिस्तान, एंटी-नारकोटिक्स फोर्स, फेडरल बोर्ड ऑफ रेवेन्यू, नेशनल अकाउंटेबिलिटी ब्यूरो, सेंट्रल डायरेक्टरेट ऑफ नेशनल सेविंग एंड स्थानीय आतंकवाद विरोधी कार्यालय - के बीच तालमेल की कमी और सूचीबद्ध व्यक्तियों एवं इकाइयों के खिलाफ कदम उठाने में गंभीरता की कमी इसका कारण रही। परिणामस्वरूप कानूनी ढांचे का प्रभावी तरीके से क्रियान्वयन नहीं हो सका। ब्रोकरेज हाउसों में सबसे ज्यादा कमजोरी दिखी और कानूनी खातों से हुए भारी लेनदेन के दस्तावेज नहीं थे, जिनके कारण राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी पर सवाल खड़े हो गए। सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन ऑफ पाकिस्तान के अधिकारियों ने बताया कि रियल एस्टेट ब्रोकरेज कंपनियां उसकी जिम्मेदारी के दायरे से बाहर हैं क्योंकि उन्हें रियल एस्टेट डीलरों के जरिये पंजीकृत किया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि संबंधित अधिकारियों की कानूनी कार्रवाइयों की समयसीमा तय कर उनसे अपने प्रयास तेज करने के लिए कहा गया है ताकि भविष्य में एफएटीएफ द्वारा जांच के लिए टिकाऊ समाधान हासिल हो सकें।
प्रतिनिधिमंडल ने यह संकेत भी दिया है कि अलाभकारी तथा धार्मिक संगठनों द्वारा ढाबों तथा अन्य अहम स्थानों पर रखे गए ढेर सारे दान पात्रों का भी ब्योरा रखना पड़ेगा। इसके अलावा रियल एस्टेट डीलरों के साथ करेंसी डीलरों को हरेक कारोबारी लेनदेन का दस्तावेजी हिसाब-किताब रखना चाहिए। अन्य सिफारिशों में एजेंसियों को धन-शोधन एवं आतंकवाद की मदद रोकने के उद्देश्य से बेहतर बनाकर अधिक जिम्मेदार बनाना, तय संपत्तियों को सील करना और मौजूदा प्रत्यर्पण कानूनों को सुधारना शामिल हैं। पाकिस्तान सरकार को जनवरी, 2019 तक संदिग्ध व्यक्तियों और उनके संगठनों तथा उनकी संपत्तियों एवं परिस्थितिजन्य सूचना का भंडार तैयार करना है। साथ ही अधिकारियों को आतंकी गतिविधियों की वित्तीय मदद की पड़ताल करने और की जांच करने और एक वर्ष की अवधि पूरी होने से पहले ही दान राशि के आने-जाने के रास्ते तथा इस्तेमाल की जांच करने का जिम्मा भी मिला है।
रिपोर्ट का मसौदा 19 नवंबर को सरकार को सौंप दिया गया। पाकिस्तान को 15 दिन के भीतर अपनी आधिकारिक प्रतिक्रिया देनी थी। इसके बाद एपीजी का प्रतिनिधिमंडल पेरिस में एफएटीएफ के सामने अपनी अंतरिम रिपोर्ट पेश करेगा। प्रतिनिधिमंडल का अगला समीक्षा दौरा मार्च-अप्रैल, 2019 में होने की संभावना है और उसकी रिपोर्ट तीन महीने बाद सार्वजनिक हो सकती है।
एफआईए का कहना है कि धन शोधन एवं आतंकवादियों को वित्तीय सहायता रोकने वाली प्रणालियों के लिए जवाबदेह सरकारी अधिकारियों के ढुलमुल रवैये के कारण पाकिस्तान अधिक गंभीर संकट में फंस सकता है। इमरान खान को सौंपी गई विशेष रिपोर्ट में विभागों की कमजोरियों तथा ऐसे मुद्दों की ओर ध्यान दिलाया गया है, जिनसे गंभीरता के साथ निपटने की जरूरत है। संबंधित सरकारी विभागों में तथा सख्त कानूनों के बावजूद प्रत्यर्पण एवं पारस्परिक कानूनी सहायता की संधियों पर सुस्ती भरे प्रयासों में सबसे अधिक खामियां दिखती हैं। टेलीबैंकिंग, रियल एस्टेट और ऑटो-ट्रेड जैसे चिंता भरे क्षेत्रों की जांच के लिए संघीय इकाई भी नहीं है।
रिपोर्ट में एक कार्यबल की स्थापना की जरूरत बताई गई है, जो एजेंसियों के बीच में संचालन समिति के तौर पर काम कर सकता है। मशविरों में आतंकवाद को वित्तीय मदद रोकने में अहम भूमिका निभाने वाली फाइनेंशियल मॉनिटरिंग यूनिट का तथा उसे मजबूत करने कदमों का भी जिक्र है। उसमें यह भी कहा गया था कि स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान को ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी संदिग्ध लेनदेन की रिपोर्ट दर्ज हुए बगैर नहीं छूटे और ऐसी रिपोर्ट में उल्लिखित गैर सहकारी वाणिज्यिक बैंकों को दंडित किया जाए।
पाकिस्तान में गंभीरता और प्रतिबद्धता की कमी हाल में फिर दिखी, जब हाफिज मोहम्मद सईद के संगठन जमात-उद-दावा (जेयूडी) और उसकी धर्मार्थ इकाई फलह-इ-इंसानियत फाउंडेशन (एफआईएफ) को प्रतिबंधित संगठनों की सूची से बाहर कर दिया गया क्योंकि उन्हें संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के तहत लाने वाले अध्यादेश की अवधि खत्म हो गई। 2008 के मुंबई हमलों की साजिश रचने वालों को सजा दिलाने की कोशिश कर रहे भारत के लिए यह गंभीर चिंता का विषय है। इसी वर्ष फरवरी में पूर्व राष्ट्रपति ममनून हुसैन ने इस अध्यादेश को लागू किया था, जिसके जरिये आतंकवाद निरोधक अधिनियम, 1997 को संशोधित किया गया और दोनों संगठनों को सूची में शामिल कर दिया गया। संविधान का अनुच्छेद 89 कहता है कि राष्ट्रपति द्वारा लागू किया गया अध्यादेश केवल 120 दिन तक कायम रह सकता है।
हाफिज सईद के वकील ने इस्लामाबाद हाई कोर्ट में कहा गया कि इमरान खान की सरकार ने न तो अध्यादेश की अवधि बढ़ाई और न ही उसे कानून की शक्ल देने के लिए संसद में ले गई। हाफिज सईद ने दावा किया कि उसे हिरासत में रखना पाकिस्तान की संप्रभुता के खिलाफ है। याची ने दावा किया कि आतंकवाद निरोधक अधिनियम की धारा 11-ईई और 11-बी का जुड़ना संविधानप्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। उसने इन धाराओं को अवैध करार देने का अनुरोध भी किया। याचिका निपटाते हुए न्यायाधीश ने कहा कि यदि अध्यादेश दोबारा लागू किया जाता है तो याची को कानून के क्रियान्वयन को चुनौती देने के लिए एक और याचिका दाखिल करने की आजादी है।
नेशनल काउंटर टेररिज्म अथॉरिटी ने देश में प्रतिबंधित संगठनों की सूची अंतिम बार 5 सितंबर को अद्यतन की है और 66 संगठनों में से उपरोक्त दो संगठन सूची में नहीं थे। फिर भी आतंकवाद निरोधक अधिनियम की धारा 11-डी-(1) सरकार को संगठनों की निगरानी का अधिकार देता है। अमेरिका ने सूची से उन्हें हटाए जाने की आलोचना करते हुए पाकिस्तान से ऐसा कानून लागू करने के लिए कहा है, जो जेयूडी और एफआईएफ पर फिर से प्रतिबंध लगा दे। विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने पीटीआई से कहा, “पाकिस्तान ने आतंकवाद को वित्तीय सहायता रोकने वाले तंत्र में मौजूद खामियां दूर करने के लिए फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) के साथ काम करने का संकल्प लिया था। लेकिन जेयूडी और एफआईएफ से प्रतिबंध हटना इस संकल्प के विरुद्ध है।”1
ऐसी स्थिति में विचारणीय बिंदु यह है कि इतनी जर्जर अर्थव्यवस्था के साथ पाकिस्तान एफएटीएफ के प्रति इतना अगंभीर कैसे हो सकता है? क्या एफएटीएफ पाकिस्तान के विरोधाभासी रवैये को देखेगा, जो एक ओर जेयूडी और एफआईएफ जैसे आतंकी संगठनों को शरण प्रदान कर रहा है और दूसरी ओर आतंकवाद को खत्म करने का दावा कर रहा है? क्या एफएटीएफ का एशिया प्रशांत समूह पाकिस्तान को काली सूची में डालने का स्वतंत्र फैसला लेगा या चीन एफएटीएफ में अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर पाकिस्तान के समर्थन में फैसला करवा लेगा?
वास्तव में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को एफएटीएफ के दौरे से उम्मीदें लगाते समय सतर्क रहना चाहिए क्योंकि पाकिस्तान ‘ग्रे सूची’ में संकट भरा समय गुजारने के बाद हमेशा खुद को सुरक्षित करता रहा है। इसलिए हैरत की बात नहीं है कि पिछली बार सूची में शामिल होने पर पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से राहत पैकेज ही हासिल नहीं किया बल्कि वैश्विक बॉण्ड बाजार से भी धन ले लिया। तो क्या इतिहास खुद को दोहराएगा? जब पाकिस्तान आईएमएफ से एक बार फिर राहत पैकेज मांगेगा तो क्या उसके खिलाफ एफएटीएफ की ‘दंडात्मक कार्रवाई’ को ध्यान में रखा जाएगा?
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[1] https://www.vifindia.org/article/hindi/2019/january/08/finacial-axen-task-force-ka-pakistan-daura
[2] https://www.vifindia.org/author/shruti-punia
[3] https://economictimes.indiatimes.com/news/defence/pakistan-must-enact-legislation-to-proscribe-hafiz-saeed-led-jud-fif-us/articleshow/66460859.cms
[4] https://www.vifindia.org/2018/november/27/visit-of-the-financial-action-task-force-to-pakistan
[5] https://www.geo.tv/assets/uploads/updates/2018-03-15/186569_5671024_updates.jpg
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