पाकिस्तान ने इमरान खान की कप्तानी में नई राजनीतिक पारी शुरू की है; इमरान खान नया पाकिस्तान के अपने एजेंडा के साथ चुने गए हैं। यह एजेंडा कागजों पर ऐसे इस्लामी कल्याणकारी राज्य का सपना दिखाता है, जो भ्रष्टाचार से मुक्त होगा और जिसमें देश को आगे ले जाने की राष्ट्रीय गौरव की भावना कूट-कूटकर भरी होगी।
इमरान खान राष्ट्रीय सुरक्षा और देश हित के मामले में नजरिये और समझ को लेकर अक्सर पिछली पाकिस्तान सरकारों की आलोचना करते आए हैं। उनके अनुसार पाकिस्तान भू-राजनीति का शिकार रहा है और पिछली सरकारों की अनदेखी के कारण स्थिति और भी बदतर हो गई है। जनवादी नेताओं के इस दौर में इमरान खान के उभार को लेकर देसी हलकों में रोमांच है और यह अपेक्षा भी है कि पाकिस्तान की विदेश नीति पटरी पर लौट आएगी। लेकिन यूरोपीय संघ (ईयू) के निगरानी दल को 2018 के पाकिस्तान के आम चुनाव निष्पक्षता भरे नहीं लगे। चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) और अमेरिकी ड्रोन्स हमलों पर इमरान खान की टिप्पणियों को देखते हुए उन्हें भी मनमानी करने वाला और खतरनाक माना जाता है।
इस आलेख में उन चार देशों के बरअक्स पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले पर इमरान के नजरिये का विश्लेषण किया जा रहा है, जिन देशों से पाकिस्तान की विदेश नीति के उद्देश्य परिभाषित होते हैं। ये चार देश हैं: अफगानिस्तान, चीन, भारत और अमेरिका।
इमरान खान ने जीत के बाद अपने भाषण में कहा कि अफगानिस्तान में शांति का मतलब पाकिस्तान में शांति है। उन्होंने कहा कि अफगानों को ‘आतंक के खिलाफ युद्ध’ का और उससे पहले अफगान जिहाद का सबसे अधिक खमियाजा भुगतना पड़ा है। लेकिन शांति के उनके नारे खोखले हैं क्योंकि अफगानिस्तान और पाकिस्तान में इस्लामी उग्रवादियों को समर्थन देने के कारण इमरान विवादों में रहे हैं। उनकी पार्टी पर और उन पर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने कभी हमला नहीं किया है। उलटे टीटीपी ने 2014 में पाकिस्तानी सरकार के साथ शांति वार्ता के लिए जिन शीर्ष राजनीतिक हस्तियों को चुना था, इमरान उनमें शामिल थे।1 उनका कहना है कि उग्रवादियों के साथ सैन्य समाधान बड़े समाधानों का छोटा हिस्सा भर है, लेकिन टकराव को सैन्य अभियानों के बल पर ही नहीं सुलझाया जा सकता।2
अशरफ गनी ने भी रमजान संघर्षविराम के दौरान अफगानिस्तान में तालिबान के साथ बातचीत की इच्छा जताई। अमेरिका ने भी तालिबान से कतर में उन्हीं के दफ्तर में बातचीत की। संघर्ष से प्रभावित पक्षों के तालिबान विरोधी सुर बदलने से पता चलता है कि अफगानिस्तान में तालिबान की स्वीकार्यता बढ़ गई है। तालिबान का पक्ष लेकर इमरान ने सेना के सुर से सुर मिलाने का और अफगानिस्तान में कठपुतली सरकार न सही, पिछलग्गू सरकार बनाने के पाकिस्तान की विदेश नीति के व्यापक उद्देश्य के साथ खड़े रहने का सही दांव खेला है। अफगानिस्तान में आबादी के लिहाज से बड़े ताजिक, हाजरा और उज्बेक समुदायों को ऐसी सरकार पसंद नहीं आएगी, जिसमें पख्तूनों के नेतृत्व वाले तालिबान को राजनीतिक विशेषाधिकार हासिल हों। इस तरह बांटने और तरजीह देने से अफगानिस्तान में संघर्ष की स्थिति और भी बदतर हो जाएगी।
अफगानिस्तान और पाकिस्तान ने शांति एवं सौहार्द के अफगानिस्तान पाकिस्तान कार्य योजना (अपैप्स) के जरिये अपने कामकाजी रिश्तों को संस्थागत रूप दे दिया है। इमरान की सरकार ने अपैप्स में अधिक भरोसा दिखाया है3 लेकिन इमरान खान के सार्वजनिक बयानों से यह उम्मीद नहीं जगती कि अफगानिस्तान में शांति कैसे हासिल की जाएगी। ऐसा लगता है कि इमरान खान का उद्देश्य सीमा पार के दूसरे पठान की तरह लोकप्रियता हासिल करना अधिक है, खास तौर पर उस समय, जब अपनी-अपनी तजमीन से काम करने वाले आतंकवादी गुटों को परिभाषित करने के मामले में दोनों देशों के बीच मतभेद हैं।4 इससे वह उस समय सेना और पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए अनुकूल बन जाते हैं, जिस समय पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से तेरहवीं बार राहत पैकेज हासिल करने की कोशिश में है।5 इमरान खान अफगानिस्तान के साथ समस्या को प्राथमिकता देंगे ताकि उस देश के साथ उनका ठीकठाक राजनीतिक तालमेल बन सके। आदर्श स्थिति में पाकिस्तान की सेना के दखल के बगैर उसके उद्देश्यों को पूरा करते हुए अफगानिस्तान के साथ स्थायी और बेहतर रिश्ते बनाने के लिए काम होना चाहिए।
याद रहे कि अतीत में इमरान खान ने सीपीईसी परियोजनाओं में अधिक पारदर्शिता की मांग की थी; उन्होंने आरोप लगाया कि नवाज शरीफ ने खैबर पख्तूनवा प्रांत को उसके वाजिब अधिकार से वंचित कर दिया।6 सीपीईसी परियोजनाओं में भ्रष्टाचार की उनकी बात ने पेशावर में उस बस परियोजना को खत्म कर दिया, जिसे 2017 में सीपीईसी के तहत शामिल किया गया था। पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के कुछ कार्यकर्ता सीपीईसी को आज की ईस्ट इंडिया कंपनी जैसा मानते हैं और दावा करते हैं कि इस पर बर्बाद हुई रकम का इस्तेमाल स्वास्थ्य और शिक्षा पर किया जा सकता था।7
माइकल कुगलमैन के अनुसार सीपीईसी को पटरी से उतारने अथवा उसकी समीक्षा करने की भी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है क्योंकि दोनों देशों के लिए इसका बड़ा रणनीतिक महत्व है। संपर्क परियोजनाओं के जरिये पाकिस्तान का लक्ष्य अपनी भौगोलिक स्थिति का इस्तेमाल पारगमन यानी आने-जाने के गलियारे के तौर पर करना है ताकि एशिया में शक्ति संतुलन बना रहे और उसने चीनी वित्तीय मदद के बदले अपना भविष्य गिरवी रखने का जोखिम उठाया है।8 इमरान खान के नेतृत्व वाली सरकार ने सीपीईसी की 62 अरब डॉलर की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं को बरकरार रखने तथा उसका दायरा बढ़ाकर स्वच्छ जल, स्वास्थ्य और पाकिस्तानी युवाओं को रोजगार के लिए तकनीकी प्रशिक्षण देने जैसी सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं को शामिल करने की पुष्टि की है।9 इसलिए सीपीईसी की समीक्षा करने के पीटीआई के बारीक इशारे हाल ही में फाइनैंशियल टाइम्स में आए।10
चीन ने सीपीईसी के लिए समझौते का सही ब्योरा नहीं बताकर पाकिस्तान को सबसे बड़ा फायदा पहुंचाया है, जिससे इमरान खान और उन्हें अपने इशारों पर चलाने वालों को अलग दृष्टिकोण बनाने तथा नई मांगें सामने रखने का मौका मिली जाएगा। इमरान खान को सीपीईसी की पारदर्शिता अथवा चीन-पाक संबंधों के बीच में से किसी एक को चुनना होगा क्योंकि चीन के साथ कारोबारी मॉडल में निविदा की निष्पक्ष प्रक्रियाएं नहीं होतीं, उसके बजाय कुछ कंपनियों को बढ़ावा दिया जाता है।11 इसलिए देर-सबेर चीन को अहसास हो जाएगा कि उसका भी वही हश्र हो सकता है, जो अमेरिका का आतंक के खिलाफ युद्ध में हुआ था।
पाकिस्तान और भारत के बीच रिश्ते बंटवारे के बाद से तमाम उतार-चढ़ावों के उपरांत ठहर से गए हैं। परमाणु क्षमता से संपन्न दोनों पड़ोसियों के बीच दो युद्ध हुए हैं और सीमा पर लगातार झड़पें होती रहती हैं। भारत के पास इस बात के ठोस सबूत हैं कि पाकिस्तान भारत की धरती पर घातक हमले करने वाले आतंकवादियों को शरण और प्रशिक्षण देता है तथा आतंकवादियों को कश्मीर भी भेजता है। पाकिस्तान बलूचिस्तान में विद्रोही तत्वों को समर्थन देने का आरोप भारत पर लगाता है, लेकिन ये आरोप विश्वसनीय नहीं लगते। नवाज शरीफ के नेतृत्व वाली पिछली पाकिस्तान सरकार ने स्वीकार किया था कि पठानकोट में हमला करने वाले आतंकवादी पाकिस्तानी थे। यह बात सेना को अच्छी नहीं लगी क्योंकि ऐसा भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते सुधारने के लिए कहा गया था, इसीलिए शरीफ को सत्ता से बेदखल कर दिया गया। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर, जहां से सीपीईसी परियोजना गुजरती है, में भारत की संप्रभुता के उल्लंघन तथा उसमें दाइमेर-भाषा बांध के निर्माण पर भी विवाद है। भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव का अपहरण करना और झूठे मामले में फंसाना भारत और पाकिस्तान के बीच दुश्मनी बढ़ाने वाले आखिरी घटना थी। पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने उन्हें सजा-ए-मौत सुनाई है। लेकिन भारत द्वारा अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में ले जाने के बाद यह अंतरराष्ट्रीय मसला बन गया।
सीओपी-21, शांघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर बैठक और उफा बैठक जैसे विभिन्न सम्मेलन में निष्फल मुलाकातें हुई हैं। संयुक्त राष्ट्र में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की मुलाकात होनी थी, लेकिन पाकिस्तान स्थित संगठनों द्वारा भारतीय सुरक्षाकर्मी की हत्या किए जाने तथा वहां आतंकी बुरहान वानी की प्रशंसा में 20 डाक टिकट जारी होने के बाद मुलाकात रद्द कर दी गई।12 नए प्रधानमंत्री ने कश्मीर को अपनी पार्टी के एजेंडा तथा घोषणापत्र में मुख्य मुद्दा बनाया और जीत के बाद अपने पहले भाषण में भी उन्होंने कश्मीर में पुराने और अप्रासंगिक संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षक समूह को फिर हरकत में लाने की बात कही, जो द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर करने के उद्देश्य पर पानी फेर देगी।13 इमरान खान और उनकी पार्टी ने अपने घोषणापत्र में कश्मीर मसले को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद प्रस्ताव के दायरे में भी सुलझाने का संकल्प किया है। लेकिन कश्मीर पर प्रस्ताव 47 के अनुसार सबसे पहले पाकिस्तान को अपने कब्जे वाले कश्मीर से सेना हटानी होगी, जिससे पाकिस्तान ने खुद ही इनकार कर दिया है। शांति का यह विचार भी वैसा ही है, जैसा पाकिस्तान की पिछली सरकारें कहती आई हैं।
इमरान खान ने भारत से रिश्ते सुधारने के लिए एक कदम बढ़ाने को कहा है, जिसके जवाब में पाकिस्तान दो कदम बढ़ाएगा। लेकिन सीमा पर पाकिस्तान का छद्म युद्ध नहीं रुका है। इसलिए इमरान की ओर से शांति के ऐसे प्रस्तावों को भारतीय पक्ष की ठंडी प्रतिक्रिया ही मिलेगी; बेहतर व्यापार रिश्तों की उनकी बेहद महत्वाकांक्षी राजनीतिक-आर्थिक कूटनीति भी संभवतः काम नहीं आएगी। अपने देश में भारत के प्रति जहरीला रुख भी इतना ही स्तब्ध करने वाला है; यह भारत-विरोधी रुख बरकरार रहने की संभावना अब बहुत अधिक है। 2018 के चुनावों में चरम-दक्षिणपंथी इस्लामी पार्टियां जिस तरह उभरी हैं, वह भारत-पाकिस्तान संबंधों के लिए शायद अच्छा नहीं रहेगा।14 पाकिस्तान ने झूठे वायदे किए हैं और वक्त ही बताएगा कि खाकी छाया के तले इमरान के युग में द्विपक्षीय संबंध कितने बदलते हैं।
पाकिस्तान में अमेरिका के बारे में आम धारणा की बात करें तो 52 प्रतिशत से अधिक पाकिस्तानी मानने लगे हैं कि 11 सितंबर के हमलों के लिए अमेरिका ही जिम्मेदार था!15 इमरान खान ने पाकिस्तान में प्रधानमंत्री पद के लिए अपने एजेंडा की शुरुआत इसी अमेरिका विरोधी स्वर के साथ की थी। नया पाकिस्तान के उनके वायदों की बुनियाद पश्चिम तथा अमेरिका के खिलाफ इन्हीं धारणाओं पर टिकी है, जो मानती है कि पाकिस्तान गुरु और चेले वाले रिश्तों के बोझ से आजाद हो जाएगा। इमरान खान के मुताबिक पाकिस्तान को पारस्परिक फायदे वाले रिश्ते रखने चाहिए और अमेरिका को ‘किराये की बंदूक के तौर पर उसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए क्येांकि इससे पाकिस्तान को बड़ी कुर्बानियां देनी पड़ी हैं।’16 वह पाकिस्तान की धरती पर अमेरिका के ड्रोन हमलों के मुख विरोधी रहे हैं। अतीत में उन्होंने कहा था कि अगर वह प्रधानमंत्री बनते हैं तो अमेरिकी ड्रोन को मार गिराने के आदेश देंगे।17 लेकिन दूसरी ओर माइक पॉम्पिओ का स्वागत करते समय और राजनीतिक प्रक्रिया के जरिये अफगानिस्तान में शांति प्रस्ताव के प्रति समर्थन दोहराते समय इमरान खान राजनीतिक समझौता करते दिखते हैं।18 अमेरिका के सब्र का बांध भी टूट रहा है। जल्मे खलीलजाद की नियुक्ति और इमरान खान तथा पॉम्पिओ की मुलाकात के समय उनकी मौजूदगी से यह बात साबित होती है। खलीलजाद को पाकिस्तान द्वारा खेले जा रहे दोहरे खेल का कट्टर आलोचक माना जाता है।19
इमरान खान काबुल की डोरियां तालिबान के हाथ में थमाने की सैन्य प्रतिष्ठान की योजना पर सहमत हो गए हैं, लेकिन जवाबदेही के मामले में पाकिस्तान पर अमेरिका का बड़ा दबाव होगा। अमेरिका ने 30 करोड़ डॉलर की गठबंधन सहायता राशि रद्द कर पाकिस्तान पर और भी दबाव डाल दिया है और आईमेट (इंटरनेशनल मिलिटरी एजूकेशन एंड ट्रेनिंग पाठ्यक्रमों) में पाकिस्तानी अधिकारियों की शिरकत पर रोक लगाने के पेंटागन के हालिया फैसले से दोनों देशों और सेनाओं के बीच तालमेल एवं सहयोग में खटास ही आएगी। एक-दूसरे को फायदा पहुंचाने वाले रिश्ते के पीटीआई के एजेंडा को अफगानिस्तान में पार पाना ही होगा क्योंकि वहां दोनों को अपने-अपने खास मकसदों के लिए एक दूसरे की जरूरत है।
पाकिस्तान को आतंकवाद पर संदिग्ध नीति के बावजूद हथियारों और गोला-बारूद के मामले में अमेरिका की मदद मिली है। इसके बावजूद भू-रणनीतिक बाधाओं के कारण ‘पारस्परिक लाभप्रद’ वाली बात खोखली ही लगती है और मामूली बदलावों को छोड़ दें तो दोनों के बीच रिश्ता चलता रहेगा। अमेरिका अब भी पाकिस्तान के साथ संपर्क बनाए रखने के नए तरीके तलाशता रहेगा। इमरान खान जैसे जनवादी नेता हवाई किले बनाते रहेंगे और हालात बदलने के लिए कम से कम पाकिस्तान की ओर से जरूरी राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं दिखेगी। पाकिस्तानी सेना (जिसने चुनावों में इमरान की जीत का रास्ता तैयार किया) के हाथ में बागडोर होगी और मीडिया को परेशान करने तथा नवाज शरीफ जैसे राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को दूर रखने के लिए न्यायपालिका का इस्तेमाल करने के बावजूद वह हर किसी को यह यकीन दिला देगी कि पाकिस्तान में लोकतंत्र फल-फूल रहा है।20
(आलेख में लेखक के निजी विचार हैं। लेखक प्रमाणित करता है कि लेख/पत्र की सामग्री वास्तविक, अप्रकाशित है और इसे प्रकाशन/वेब प्रकाशन के लिए कहीं नहीं दिया गया है और इसमें दिए गए तथ्यों तथा आंकड़ों के आवश्यकतानुसार संदर्भ दिए गए हैं, जो सही प्रतीत होते हैं)
Links:
[1] https://www.vifindia.org/article/hindi/2018/october/26/imarn-khan-ke-naye-pakistan-ke-liya-videsh-nitiyo-ki-chunatiya
[2] https://www.vifindia.org/author/ankit-singh
[3] https://www.dawn.com/news/1084259
[4] https://tribune.com.pk/story/449938/war-in-afghanistan-is-jihad-says-imran
[5] https://dailytimes.com.pk/294029/apapps-revival-of-us-pakistan-talks-will-bode-well-for-afghan-peace/
[6] https://www.thenews.com.pk/print/373941-talks-begin-to-determine-if-pakistan-will-seek-imf-bailout
[7] https://www.dawn.com/news/1304419
[8] https://www.scmp.com/week-asia/politics/article/2157234/what-will-pakistans-new-leader-imran-khan-deliver-china
[9] https://www.economist.com/special-report/2017/07/22/china-makes-pakistan-an-offer-it-cannot-refuse
[10] https://www.dawn.com/news/1432000/pakistan-china-agree-to-broaden-cpec-base
[11] http://timesofindia.indiatimes.com/articleshow/65753066.cms?utm_source=contentofinterest&utm_medium=text&utm_campaign=cppsthttps://timesofindia.indiatimes.com/world/pakistan/cpec-deals-with-china-unfair-to-pakistan-says-imran-khan-government-report/articleshow/65753066.cms
[12] https://www.firstpost.com/india/india-pakistan-meeting-cancelled-new-delhi-takes-right-step-but-should-get-rid-of-its-naivete-on-imran-khan-5235971.html
[13] https://www.dailypioneer.com/columnists/oped/un-kashmir-mission-is-obsolete.html
[14] https://www.vifindia.org/article/2018/september/07/pakistan-an-analysis-of-the-participation-of-religious-parties-in-elections-2018
[15] http://gallup.com.pk/2003-2015-17-increase-in-pakistanis-who-believe-that-america-was-responsible-for-911-attack/
[16] https://www.geo.tv/latest/203986-us-used-pakistan-as-a-hired-gun-says-imran
[17] https://www.telegraph.co.uk/news/worldnews/asia/pakistan/9589541/Imran-Khan-I-will-order-air-force-to-shoot-down-drones.html
[18] https://www.dawn.com/news/1431126
[19] https://timesofindia.indiatimes.com/world/south-asia/zalmay-khalilzad-the-blunt-veteran-leading-us-peace-efforts-in-afghanistan/articleshow/65689448.cms
[20] https://timesofindia.indiatimes.com/world/pakistan/press-freedom-in-pakistan-under-pressure-by-military-report/articleshow/65787153.cms
[21] https://www.vifindia.org/article/2018/october/05/foreign-policy-challenges-for-imran-khan-s-naya-pakistan
[22] https://www.thenews.com.pk//assets/uploads/updates/2018-08-20/357407_3107471_updates.jpg
[23] http://www.facebook.com/sharer.php?title=इमरान खान के नया पाकिस्तान के लिए विदेश नीति की चुनौतियां&desc=&images=https://www.vifindia.org/sites/default/files/357407_3107471_updates_1.jpg&u=https://www.vifindia.org/article/hindi/2018/october/26/imarn-khan-ke-naye-pakistan-ke-liya-videsh-nitiyo-ki-chunatiya
[24] http://twitter.com/share?text=इमरान खान के नया पाकिस्तान के लिए विदेश नीति की चुनौतियां&url=https://www.vifindia.org/article/hindi/2018/october/26/imarn-khan-ke-naye-pakistan-ke-liya-videsh-nitiyo-ki-chunatiya&via=Azure Power
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