22 मार्च, ‘विश्व जल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है. पृथ्वी में केवल २ प्रतिशत ताज़ा पानी उपलब्ध है. इसमें से भी 70 प्रतिशत जल दोनों ध्रुवों में हिमगिर के रूप में जमा हुआ है और बाकि असमतल रूप से बंटा हुआ है. पानी की कमी को दूर करने के लिए जल संरक्षण और गंदे पानी को पुनरावृत (रीसायकल) करना एक महत्वपूर्ण उपाय है.
इस मसले पर दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर सी आर बाबू, प्रोफ़ेसर एमेरिटस और उनकी टीम ने ‘कंस्ट्रक्टेड वेटलैंड सिस्टम’, यानी निर्मित झील प्रणाली, का उपयोग करते हुए नीला हौज़ जैव-विविधता पार्क में गंदे पानी को साफ़ करने का कार्य किया है. नीला हौज़ संजय वन के पास, जेएनयू (जवाहरलाल लाल नेहरु विश्वविद्यालय) के पास स्थित है. एक समय में हौज़ एक जलस्थल हुआ करता था जो बाद में सूख़ गया और बदबूदार कूड़ाघर में तब्दील हो गया था. दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के चलते दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) को नीला हौज़ को अपनी मूल अवस्था में स्थापित करने का कार्य सौंपा गया. इस कार्य की ज़िम्मेदारी प्रोफ़ेसर सी आर बाबू को दी गयी थी.
प्रोफ़सर ने इस काम के लिए पास में स्थित किशनगढ़ नामक गाँव के अनिर्मित सीवर के पानी का उपयोग किया जिसे विशेष जलीय-पौधों के माध्यम से निर्मित किया गया था. इस काम के लिए उन्होंने कंस्ट्रक्टेड वेटलैंड सिस्टम यानि निर्मित झील प्रणाली (सीडब्ल्यूएस) का निर्माण किया.
सीडब्ल्यूएस के माध्यम से पानी को शुद्ध करने की प्रक्रिया दो-चरणों में संपन्न होती है. पहले चरण में सीवेज के पानी को 24 घंटों तक ऑक्सीडेशन की प्रक्रिया से गुजरने के लिए खुले स्थान पर छोड़ा जाता है जहाँ एरोबिक बैक्टीरिया सीवेज में मौजूद ऑर्गनिक तत्वों को अनिर्मित सीवेज पानी में बदल देते है. दूसरे चरण में पानी को तालाब में टाईफा, फरागमाइट्स, आल्टरनानथेरा, पोमेया, सोलानम जैसे जलीय-पौधों के साथ रखा जाता है जिससे की पानी में मौजूद हानिकारक तत्व और जैवीय-अपशिष्ट से पानी को मुक्ति मिलती है और वह झील में जाता है.
पानी के सीडब्ल्यूएस उपचार से पहले और उपचार के बाद किये गये परीक्षणों पर यदि नज़र डालें तो यह साफ़ है की पानी की गुणवत्ता में काफ़ी सुधार हुआ. पानी का पीएच स्तर उपचार से पहले 7.8 था जबकि उपचार के बाद वह 6.8 पर आ गया. वहीँ जैव-रासायनिक ऑक्सीजन माँग भी 40 से 4.0 हो गयी और रासायनिक ऑक्सीजन माँग 80 से 0.7 हो गयी. घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा 0 से 3.4 हो गयी और फॉस्फेट 103 से 14 की मात्रा पर आ गया. कुल घुले हुए ठोस पदार्थ भी 600 से गिरकर 298 पर आ पहुँचे.
सीडब्ल्यूएस की खास बात यह है कि इसमें बिजली का उपयोग नही होता और जलीय-पौधों के माध्यम से शुद्धिकरण का काम किया जाता है. झील में पानी का बहाव भी प्राकर्तिक रूप से ही होता है और इसमें पम्पिंग की आवश्कता नही होती.
नीला हौज़ सीडब्ल्यूएस, एक वर्ष से अधिक समय से कार्यरत है. 20 फीट गहरी झील पहले ही तैयार हो चुकी है. बड़ी मात्रा में साफ़ पानी झील में इन अनिर्मित सीवेज से शुद्ध होकर पहुँचा है. प्रवासी पक्षी अब झील में आने लगे है. आसपास के इलाके को एक पार्क में तब्दील कर दिया गया है जिसका प्रयोग निवासियों द्वारा किया जाता है. सबसे बड़ी बात यह है कि सीडब्ल्यूएस बेहद सुलभ और सस्ता उपाय है जिसके द्वारा प्राकर्तिक तौर पर जल शुद्ध किया जाता है और इससे बड़े और तकनीकी रूप से जटिल और महँगे उपचार प्लांट के फ़िजूल खर्चे में कटौती हुई है.
दिल्ली/एनसीआर में इन सीडब्ल्यूएस प्रणाली को हज़ारों जगहों पर सुलभता से लगाया जा सकता है. कई नाले जो यमुना में अपनी गंदगी निस्तारित करते है, उनका भी सीडब्ल्यूएस प्रणाली एक हल हो सकता है. इससे न केवल यमुना में गंदगी कम होगी बल्कि आसपास स्वच्छता और सुंदरता भी आएगी. डीडीए को इस तरह के कुछ उपायों को लागू करने के बारे में गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है. इसमें रिहायशी लोगों को भी सक्रियता दिखानी होगी.
Credit for photos : Yasser Arafat
(ये लेखक के निजी विचार हैं और वीआईएफ का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है)
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