दुनिया के विभिन्न हिस्सों (पाकिस्तान, अफगानिस्तान, यमन, सीरिया, इराक और कई अन्य देश) में जिहादी आतंकवादियों के खिलाफ लक्षित हत्या के अभियानों में शामिल ड्रोन हमलों का एक नकारात्मक नतीजा हमेशा रहा है और वह है उन नागरिकों की अवांछित मौतें, जिन्हें न तो निशाना बनाया जाता है और न ही जो लड़ाके हैं।
ड्रोन के कारण निर्दोष नागरिकों की मौत के मसले पर दुनिया भर में प्रतिरोध हो रहा है। अमेरिका में तेज-तर्रार वकीलों और जांचकर्ताओं का संगठन ‘रिप्रीव’ दुनिया भर में शक्तिशाली सरकारों के हाथों मानवाधिकार के अत्यधिक हनन से परेशान लोगों के लिए काम कर रहा है। उसका आकलन है कि ड्रोन हमलों में एक व्यक्ति को निशाना बनाने पर औसतन 28 निर्दोष लोगों की जानें जा रही हैं।1 2017 में अपनी रिपोर्ट ‘ड्रोन्स एंड असेसिनेशंस’ में रिप्रीव ने दावा किया है कि एक हमले के दौरान एक लक्षित व्यक्ति को खत्म करने के असफल प्रयास में कुल 76 वयस्कों और 29 बच्चों की मौत हो गई।2
ड्रोन के कारण अवांछित हानि अपरिहार्य क्यों है - तकनीकी विश्लेषण
इस लेख में इसी बात की पड़ताल की गई है कि हथियार रहित हवाई प्रणाली (यूएएस) में आज इतना अधिक तकनीकी उन्नयन हासिल करने के बावजूद निर्दोषों की मौत अपरिहार्य क्यों है। आगे के अनुच्छेदों में बारीकी से इस पर चर्चा की गई है।
जमीनी नियंत्रण केंद्रों (जीसीएस) की कमान पायलटों के पास है वांछित लक्ष्यों को दूर से ही पहचानने, उन पर नजर रखने तथा गोलीबारी करने के लिए यूएएस की कमान सेंसर (पेलोड) ऑपरेटरों के हाथ में होती है, इसीलिए सटीक निशाना लगाने में कई कारणों से चूक हो सकती है। ऑपरेटर का सीमित प्रशिक्षण, जीसीएस तथा यूएवी के बीच संचार अथवा उपग्रह संपर्क में विलंब और चूक, यूएएस में लगे सेंसरों की सटीक लक्ष्य पर अचूक निशाना लगाने की सीमित क्षमता और यूएएस से दागे जा रहे हथियार की तकनीकी सीमा आदि। विश्लेषण इनमें से हरेक कारण पर केंद्रित होगा, लेकिन उसमें ऑपरेटर का प्रशिक्षण शामिल नहीं होगा क्योंकि वह अमूर्त है। इसके लिए प्रीडेटर/रीपर श्रेणी के यूएएस पर विचार किया जा रहा है।
जहां तक संचार, डेटा संपर्क और कनेक्टिवटी का सवाल है तो आम तौर पर पूरा नेटवर्क ही हाई/वेरी हाई/अल्ट्रा हाई फ्रीक्वेंसी (वॉयस/डेटा में एचएफ/वीएचएफ/यूएचएफ) वाले सेल्युलर/लैंडलाइन टेलीफोनों से बना होता है, जिनका हार्डवेयर उपग्रह संपर्क (सैटकॉम) टर्मिनलों से जुड़ा होता है। जीसीएस और यूएएस के बीच लाइन ऑफ साइट (एलओएस) डेटा लिंक सी बैंड (4-8 गीगाहर्ट्ज) पर आधारित होता है, जबकि एलओएस के परे (बीएलओएस) परिचालन के लिए केयू बैंड (11.2-14.5 गीगाहर्ट्ज) का इस्तेमाल होता है। चूक यहीं से शुरू हो जाती है।
पहली चूक इस बात से होती है कि आदेश क्या दिया गया है और आदेश प्राप्त कर रहे जीसीएस ऑपरेटर और यूएएस द्वारा जॉयस्टिक चलाने में हो रहे विलंब के कारण लूप में डाला क्या गया है। रीपर यूएएस में अभी लगभग 1.2 सेकंड का विलंब होता है।3 यह तर्क दिया जा सकता है कि यूएएस के निर्धारित मार्ग पर आने के बाद कुछ सेकंड के विलंब से कोई अंतर नहीं पड़ता, लेकिन यह बात विचारणीय है कि सैकड़ों नॉट (220 नॉट का अर्थ है 390 किमी/घंटा अथवा 108.42 मीटर/सेकंड) की रफ्तार होने के कारण इतनी देर में ही मानव लक्ष्य के दायरे के एकदम छोर पर आ जाता है।
सटीकता पर असर डालने वाला अगला मुद्दा है यूएएस पर मौजूद सेंसरों की लक्ष्य पहचानने की क्षमता। यूएएस पर मौजूद सेंसर सूट में लक्ष्य देखने के लिए दृश्य सेंसर हो सकते हैं, शॉर्ट/मिड वेव बैंड वाले आईआर सेंसर हो सकते हैं, रंगीन अथवा श्वेत-श्याम डेलाइट टीवी कैमरा, इमेज इंटेंसिफाइड टीवी कैमरा, लेजर रेंज फाइंडर और डेजिग्नेटर तथा लेजर इल्युमिनेटर हो सकते हैं। इस सूट को मल्टी-स्पेक्ट्रल-टारगेटिंग सिस्टम (एमटीएस) कहा जाता है। आधुनिक यूएएस में सिंथेटिक अपर्चर रडार (सार) ही एमटीएस का दिल होता है। हमले के लिए दागे गए गोले की सटीकता हस बात पर अधिक निर्भर करती है कि रडार एक लक्ष्य को अन्य मानवों से अलग करने में कितना सक्षम है। सार में चलते-फिरते और स्थिर लक्ष्यों में भेद करने के लिए ग्राउंड मूविंग टारगेट इंडीकेटर (जीएमटीआई) होता है और अलग-अलग समय पर ली गई दो सार तस्वीरों में मामूली फर्क का संकेत देने के लिए सीसीडी (कोहरंट चेंज डिटेक्शन) क्षमता होती है।4 उपरोक्त क्षमता (0.1 मिनट स्पॉटलाइट मोड रिजॉल्यूशन) होने के बाद भी जमीन पर उसका असर केवल एक ही व्यक्ति तक सीमित नहीं रह पाता। आज के हंटर-किलर यूएएस गुजरे जमाने के लिए आईएसआर (खुफिया, निगरानी, जासूसी) का ही नया अवतार हैं क्योंकि उन्हें निगरानी और जासूसी करने वाली हथियार रहित मशीनों में ही हथियार लगाकर बनाया गया है।
इससे ध्यान आता है कि किस तरह के हथियार दागे जा रहे हैं। प्रीडेटर और रीपर यूएएस पर जो हथियार तैनात किए जाते हैं, वे एजीएम-114 हेलफायर मिसाइल, एम 92 स्टिंगर मिसाइल अथवा एजीएम-176 ग्रिफिन मिसाइल, ब्रिमस्टोन मिसाइल (यूके), जीबीयू 12 पेववे सेकंड लेसर गाइडेड बॉम्ब (एलजीबी) और जीबीयू 38 जॉइंट डायरेक्ट अटैक म्यूनिशन (जेडीएएम) के विभिन्न प्रकार के संयोजनों और अदलाबदली से बने होते हैं। एजीएम 114 मिसाइलों को अर्द्ध सक्रिय लेसर होमिंग मिलीमीटर वेव रडार सीकर से निर्देशित किया जाता है, लेकिन वह हाई एक्सप्लोसिव एंटी टैंक (हीट) टैंडम ‘एंटी आर्मर’ मेटल ऑग्मेंटेड चार्ज दागता है। एम 92 स्टिंगर दागकर भुला दी जाने वाली मिसाइल है, जिसमें निष्क्रिय आईआर फोकल एरे सीकर होता है और जो 3 किलो का बेहद विस्फोटक हथियार दागती है। इसीलिए ये हथियार मनुष्यों को निशाना बनाने के लिए एकदम उपयुक्त नहीं होते।
रेथियॉन ग्रिफिन वांछित हथियार है। यह एकदम सटीक दिशा में जाने वाला हथियार (पीजीएम) है, जिसमें लेसर/जीपीएस/आईएनएस से निर्देशित अपेक्षाकृत छोटे मुखास्त्र या वारहेड होते हैं। यह मिसाइल साथ में होने वाले नुकसान को कम से कम करने के लिए खास तौर पर बनाई गई है। एमबीडीए (यूके) ब्रिमस्टोन एक और आधुनिक पीजीएम है। पहले इसका दागने और भूल जाने वाला मॉडल था, जिसमें मिलीमीटर वेव से सक्रिय रडार था, जो आईएनएस ऑटोपायलट के साथ दो मोड में काम करता था। यह 1 मीटर से भी कम वृत्ताकार क्षेत्र (सीईपी) में सटीक मार करता है। होमिंग सीकर लेसर निर्देश के अनुकूल बनाया गया है, जिससे उसे तमाम व्यक्तियों के बीच से लक्ष्य को चुनने में मदद मिलती है। इसके वारहेड का आकार टेंडम है और विस्फोट क्षेत्र छोटा है, जिससे लक्ष्य के अलावा हानि कम होती है।
पेववे 2 सामान्य उद्देश्य वाला लेसर से निर्देशित बम है। रेथियॉन ने लेसर से तय होने वाले दिशानिर्देश की सटीकता में धीरे-धीरे सुधार किया है और अब इसका सीईपी घटकर 3.6 फुट रह गया है। जीबीयू बोइंग मानक वाले एमके 82 बम का इस्तेमाल करती है, जिसमें लगी जेडीएएम गाइडेंस किट उसे बेकार हथियार से कुशल हथियार में तब्दील कर देती है। दिशानिर्देश की इस प्रणाली से सटीकता तो बढ़ जाती है, लेकिन लक्ष्य से इतर नुकसान हो सकते हैं। इसीलिए “क्या ड्रोन के कारण अवांछित हानि अपरिहार्य है” प्रश्न के संबंध में मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं-
• हंटर-किलर मौलिक नहीं है बल्कि आईएसआर के लिए बनाए गए मूल प्लेटफॉर्म से लिया गया विचार है।
• रियल-टाइम आईआर, डे टीवी अथवा लेसर से तस्वीर लेने की क्षमता वाला एमटीएम दिनोदिन तकनीकी रूप से अधिक उन्नत हो रहा है, इसलिए ‘सुई’ (वांछित मानव लक्ष्य) पर निशाना लगाना संभव हो सकता है। लेकिन उस पर तैनात हथियार प्रणाली ‘भूसे के ढेर’ पर ही निशाना लगा सकते हैं यानी अवांछित क्षति होना तय है। यह बात अलग है कि उसमें लगातार कमी आ रही है।
• दागे जा रहे हथियार बख्तरबंद गाड़ियों को नष्ट करने वाले ही हैं। इनसे कम अवांछित क्षति का तो सवाल ही नहीं उठता।
• हालांकि पीजीएम आ गए हैं, लेकिन सभी अभियानों में ग्रिफिन/ब्रिमस्टोन हथियार इस्तेमाल नहीं किए जाते।
• यूएएस को जिन भूमिकाओं के लिए आज तैयार किया जा रहा है, हंटर-किलर उनमें से एक भूमिका भर है। मुद्दा हाल के घटनाक्रम हैं, जहां मोर्चे पर लगी यूएएस प्रणालियों के एमटीएस से आ रही सीधी तस्वीरों को मैदान अथवा आकाश में तैनात सेंसरों के लिए मददगार माना जा रहा है। माना जा रहा है कि सेंसरों को बूस्ट/पैरा-बूस्ट चरण में हमला करने आ रही मिसाइलों के खतरे का इन तस्वीरों की मदद से पहले ही पता चल जाएगा।
कुल मिलाकर पड़ताल से पता चलता है कि यूएएस अभियानों में होने वाली अवांछित मौतों के लिए सेंसरों की तकनीकी सीमाएं और पुराने हथियार जिम्मेदार हैं। यूएएस अभियानों में अवांछित मौतें तब तक जारी रहने (पहले के मुकाबले कम संख्या में) की संभावना है, जब तक अनियमित युद्धों में हंटर-किलर अभियानों का इस्तेमाल होता रहेगा।
प्रस्तुत विश्लेषण तकनीकी तथ्यों पर आधारित है। इसमें जीसीएस ऑपरेटर का ‘कुछ भी हो, हमारी बला से’ जैसा रवैया या ‘सबको निशाना बनाने’ (काफिले में शामिल वाहन आसान निशाना होते हैं) का रवैया शामिल नहीं है। दुर्भाग्य से जीसीएस ऑपरेटरों में ऐसा रवैया बहुत दिखता है। ऐसे अमूर्त मानवीय व्यवहार और रवैये से परिचित तो सभी हैं, लेकिन तकनीकी विश्लेषण में उन्हें शामिल नहीं किया जा सकता।
अवांछित मौतों के जिस प्रश्न पर ऊपर विचार किया गया है, वह बहुत नकारात्मक मुद्दा है और यूएएस/ड्रोन के सशस्त्र अभियानों में सटीकता के दावों पर इससे सवाल खड़े होते हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि सशस्त्र यूएएस के जरिये ‘ढूंढो-निशाना लगाओ-उड़ा दो’ वाले हंटर-किलर अभियानों में जितने आतंकवादी खत्म होते हैं, उनसे ज्यादा पैदा हो जाते हैं। यहीं पर संयुक्त अभियानों में मानवयुक्त और मानवरहित क्षमता की जरूरत महसूस होती है, जहां यूएएस के क्रूर अंधेपन के ऊपर मानव पायलट की बुद्धि और निर्णय लेने की क्षमता का पहरा बिठाया जाए।
संदर्भ
1. http://www.reprieve.org.us-drone-strikes [3].
2. http://www.reprieve.org>drones- drones-and-asssasinations,2017.
3. http;//www.airforce-technology.co.>projects-reaper.
4. http://www.sandia.gov>radar>files>spie>lynx.
(ये लेखक के निजी विचार हैं और वीआईएफ का उनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है)
Links:
[1] https://www.vifindia.org/article/hindi/2018/february/13/hunter-killer-se-mauten-apriharya-kyo
[2] https://www.vifindia.org/author/lt-gen-dr-v-k-saxena
[3] http://www.reprieve.org.us-drone-strikes
[4] http://www.vifindia.org/article/2018/january/17/why-hunter-killer-casualties-are-inevitable-a-technical-analysis
[5] http://russia-now.com/en/78408/drone-strike-reveals-u-s-shameful-hypocracy-human-rights/
[6] http://www.facebook.com/sharer.php?title=हंटर किलर से मौतें अपरिहार्य क्यों – तकनीकी पड़ताल&desc=&images=https://www.vifindia.org/sites/default/files/us-drones-in-pakistan.png&u=https://www.vifindia.org/article/hindi/2018/february/13/hunter-killer-se-mauten-apriharya-kyo
[7] http://twitter.com/share?text=हंटर किलर से मौतें अपरिहार्य क्यों – तकनीकी पड़ताल&url=https://www.vifindia.org/article/hindi/2018/february/13/hunter-killer-se-mauten-apriharya-kyo&via=Azure Power
[8] whatsapp://send?text=https://www.vifindia.org/article/hindi/2018/february/13/hunter-killer-se-mauten-apriharya-kyo
[9] https://telegram.me/share/url?text=हंटर किलर से मौतें अपरिहार्य क्यों – तकनीकी पड़ताल&url=https://www.vifindia.org/article/hindi/2018/february/13/hunter-killer-se-mauten-apriharya-kyo