भारतीय सेना कई मित्र देशों की सेनाओं के साथ सैन्य अभ्यासों में हिस्सा लेती आई है. इनमें से कई वैकल्पिक रूप से वार्षिक अथवा अर्ध-वार्षिक रूप से, एक दूसरे के स्थानों पर आयोजित की जाती है. हमारे पडोस में हम हैण्ड-इन-हैण्ड अभ्यास के लिए चीन के साथ, सुयरा किरण अभ्यास के लिए नेपाल के साथ, सम्पृति अभ्यास के लिए बांग्लादेश, मैत्री-शक्ति अभ्यास के लिए श्रीलंका, एकुवेरिन एवं लामितई अभ्यास मालदीव्स एवं सेय्चेलेस के साथ क्रमशः जुड़ते रहे है.
अपने बृहत पड़ोस में और यहाँ तक की बाह्य क्षेत्र में भी हम रूस के साथ इंद्र अभ्यास, अमेरिका के साथ युद्ध-अभ्यास एवं वज्र प्रहार अभ्यास, किर्गिस्तान के साथ खंजर अभ्यास, इंडोनेशिया के साथ गार्ड-शक्ति अभ्यास, फ़्रांस के साथ शक्ति अभ्यास, ऑस्ट्रेलिया के साथ औस्ट्र-हिन्द अभ्यास, मंगोलिया के साथ नोमेडिक एलीफैंट अभ्यास, ओमान के साथ अल-नागर अभ्यास, सिंगापोर के साथ अग्नि-वारियर अभ्यास एवं बोल्ड कुरुक्षेत्र अभ्यास और थाईलैंड से साथ मैत्री अभ्यास करते आये है. इसके साथ ही त्रि-पक्षीय नौसेना मालाबार अभ्यास में जापान और अमेरिका भी इसमें शामिल रहते है. सूची और भी लम्बी है. जहाँ कई क्षेत्रों में इन अभ्यासों के परिणाम जाहिर तौर पर दिखते है, वहीँ कुछ अन्य एवं महत्वपूर्ण क्षेत्रों में ये अमूर्त ही रहते है.
यदि हम मूर्त परिणामों की बात करे तो ये वार्षिक या अर्ध-वार्षिक गतिविधियाँ सैन्य संबंधों को बेहतर बनाते हुए, आपसी समझ को बढ़ावा देने, एक-दूसरे की सेना के प्रति इज्जत पैदा करने में और साथ ही आपसी आत्मविश्वास को बढ़ावा देने में सक्रिय भूमिका निभाती है. शामिल होने वाली टुकड़ियाँ अलग-अलग स्थानों पर एक दूसरे के साथ, बेहतर जुडाव महसूस करते हुए नई चीज़ें सीखती है. इस तरह से अलग-अलग सेनाओं की टुकड़ियाँ इन अभ्यासों के दौरान असल युद्ध से प्राप्त अनुभव का फायदा लेते हुए अपने-अपने प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए सर्वश्रेठ अभ्यास आपस में सीखती है. उदाहरण के लिए इंद्रा 2017 के दौरान रूस की सेना के पास सीरिया में इस्लामिक स्टेट (आईएस) से लड़ने का अनुभव था तो वहीँ भारत की सेना को जम्मू कश्मीर में आतंक-विरोधी अभियान में काम करने का ताजा अनुभव प्राप्त था.
वास्तविक काल में इसका सबसे बेहतर फायदा तब होता है जब दो टुकड़ियाँ आपस में मिल कर कार्य करती है. जैसे कि- जब प्रतिभागी देशों की सेना की टुकड़ियाँ आपस में मिलकर किसी हथियार को संचालित करती है. भारत-रूस के परिपेक्ष्य में ऐसा पहली बार इंद्रा 2017 के दौरान हुआ था जब भारतीय वायुसेना एवं रूसी वायुसेना ने एक साथ एसयू-30, एएन-26 एवं एमआई-8 विमानों को संचालित किया था. इसमें सबसे ज्यादा फायदा यह है कि इसमें आपसी अभ्यास, सह-संचालन, एवं वास्तविक काल में संयुक्त अभ्यास करने का अच्छा अभ्यास होता है जिसमें सबसे ज्यादा सीखने को मिलता है.
इस तरह के अभ्यासों से हमें उन देशों के साथ आपसी आत्मविश्वास को बढ़ावा देने और सम्बन्ध बेहतर बनाने में मदद मिलती है जिनसे हमारे सम्बन्ध उतने बेहतर नही है. जैसे कि- चीन के साथ हैण्ड-टू-हैण्ड अभ्यास का महत्त्व काफी है, हालाँकि इस अभ्यास की प्रकृति और इसका प्रारूप अधिकाधिक रूप से सामरिक ही है. फिर भी जब देश इस तरह से आपस में मेल-मिलाप करते है तो तनाव की परतें थोड़ी बहुत तो पिघलती ही है. पाकिस्तान के साथ शायद यह काम आए?
इन अभ्यासों का जितना प्रत्यक्ष फायदा है उससे अधिक अप्रत्यक्ष फायदा है. मुख्य रूप से अप्रत्यक्ष लाभ दो क्षेत्रों से प्राप्त किये जा सकते है- पहला, अपनी छवि को औरों के सामने रखने से और दूसरा- रणनैतिक सन्देश के माध्यम से. इन दोनों ही क्षेत्रों का प्रभाव भारत द्वारा छोटे देशों पर डालना महत्वपूर्ण है. नेपाल, सिंगापोर, मालदीव्स, किर्गिस्तान, सेय्चेल्स, बांग्लादेश, थाईलैंड, श्रीलंका जैसे प्रतिभागी देशों के जरिये न केवल उनकी सेना बल्कि उनकी सरकार भी भारत की सैन्य क्षमता, उसकी काबिलियत, क्षेत्रीय, व्यावसायिक एवं आर्थिक डील-डौल का अद्भुद नमूना देखती है. इससे हमारे पड़ोसियों का भारत के प्रति आत्मविश्वास बढ़ता है. साथ ही उन्हें हमारी सम्पूर्ण शक्ति को देख यह निश्चिंतता मिलती है कि कठिन परिस्थितियों में भारत जैसा एक सशक्त देश उनके साथ खड़ा है.
अपनी काबिलियत का प्रदर्शन और उससे भी ज्यादा ‘प्राण जाए पर वचन न जाए’ की नीति को प्रदर्शित करना, अपने निकट के पड़ोसियों के साथ बेहतर सम्बन्ध स्थापित करने में सहायक होता है. जैसे की डोक्लाम मसले पर भारत का हमारे हिमालयी पडोसी भूटान के साथ प्रतिबद्धता से खड़े होना यह दर्शाता है कि हम अपने वचन के प्रति बेहद प्रतिबद्धता के साथ खड़े होते है. सही इरादों को हमें क्षमताओं और साधन के साथ समर्थवान बनाना होगा. जब देश की सेनाएं आपसे में ऐसे अभ्यासों में शामिल होती है तो इसी तरह की चीज़ें सामने आती है और इनकी प्रमाणिकता और अधिक बढ़ जाती है.
रणनैतिक सन्देश: इसका एक बेहतरीन उदाहरण हिन्द महासागर क्षेत्र एवं प्रशांत क्षेत्र में हमारे नौसेना का अन्य देशों की नौसेना के साथ अनेक गतिविधियों में भाग लेना है. मालाबार अभ्यास में शामिल तीन देश, भारत, जापान एवं अमेरिका इसका उदाहरण है. मालाबार 2017 की अगर बात करें तो 16 जहाज, 95 विमान एवं दो पनडुब्बियों के साथ विश्व की तीन सर्वाधिक शक्तिशाली नौसेनाओं ने जब बंगाल की खाड़ी में अभ्यास किये तो कई रणनैतिक सन्देश पहुँचे. बेहतर सैन्य सम्बन्ध स्थापित करने के मूर्त परिणामों से इत्तर इस अभ्यास में भाग लेने में तीनों देशों के बीच यह विश्वास स्थापित करने में भी सहायता हुई कि अन्य सशक्त नौसेनाओं के विरुद्ध ये देश एक संयुक्त नौसेना के रूप में काम करने के लिए उपयुक्त है. सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि इससे पूरे विश्व मं् यह सन्देश जाता है कि ये देश समग्र रूप से समुद्री-क्षेत्र में चुनौतियों से जूझने में सक्षम है और अलग-अलग अभियानों का एक साथ संचालन कर सकते है. रणनैतिक क्षेत्र में ऐसे ताकतवर संदेशों को स्थापित करने से समुद्री-सुरक्षा के मसले पर विशेषकर कि हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में, सुलभता लाती है.
जिन अभियानों का यहाँ जिक्र हुआ है, वे बेहद व्यापक है और इनमे सी लेन्स ऑफ़ कम्युनिकेशन (एसएलओसीस) यानि समुद्री वार्तालाप की कड़ियों को खोलना, अनुरक्षण के दल उपलब्ध करवाना एवं तस्करी, आपदा प्रबंधन, राहतकारी अभियान से जुड़े कार्यों के लिए तत्पर रहना आदि शामिल है. इन अभ्यासों में शामिल होने से केवल देश विशेष की छवि प्रभावित नही होती, बल्कि अन्य देश जो उसके समतुल्य शक्ति रखते है, उनके बीच शक्ति प्रदर्शन करते हुए संतुलन बनाये रखने का काम भी करती है. जाहिर है की यहाँ बात चीन की हो रही है जो अपने पॉवर-प्ले और आक्रामक रवैय्ये के लिए जाना जाता है. चाहें फिर बात चीन द्वारा पनडुब्बियों को हिन्द महासागर क्षेत्र में फ़ैलाने और स्थापित करने के बढ़ते हुए प्रयासों की हो, या दक्षिणी-चीन समुद्र पर अपना अधिकार जताने की, या श्रीलंका, बांग्लादेश और पाकिस्तान में अपने बंदरगाह स्थापित करने की हो. कुल मिलाकर इस क्षेत्र में जुडाव बढ़ाने से चीन की इस क्षेत्र में प्रमुखता से बढती क्षमता, इरादे और साधन, एक जटिल पॉवर-प्ले से गुज़रते हुए उससे ही टकरा जाते है.
संयुक्त अभ्यास सभी प्रतिभागियों के लिए बेहतर है. इस सन्दर्भ में यह बेहद ख़ुशी की बात है कि पिछले दो दशकों से हमारी सेनाओं से जुड़े इस तरह के अभ्यासों में काफी बढ़ोतरी हुई है. इस तरह से ये हमारे देशहित में है कि हम इस तरह की गतिविधियों का हिस्सा बनते रहे और जल, थल और वायु क्षेत्र में ऐसी गतिविधियों का समय-समय पर आयोजन करतें रहें.
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[3] http://www.vifindia.org/article/2017/december/01/takeaways-from-joint-exercises-some-tangible-mostly-intangible
[4] https://thewire.in/3690/what-indias-hot-pursuit-strategy-is-and-is-not/
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