नेपाल सरकार ने 20 सितंबर, 2015 को लागू सबसे विवादित संविधान को क्रियान्वित करने की प्रक्रिया में इस वर्ष मई और सितंबर के बीच 753 ग्राम परिषदों/नगर पालिकाओं के लिए स्थानीय स्तर के चुनाव तीन चरणों में संपन्न कराए। हाल ही में 26 नवंबर को उसने प्रांतीय और संसदीय चुनावों का पहला चरण पूरा किया और अगले चरण के चुनाव 7 दिसंबर को होने हैं।
32 जिलों में 26 नवंबर को कराए गए संसदीय और प्रांतीय चुनावों के पहले चरण में संघीय संसद की 37 सीटों और प्रांतीय विधानसभाओं की 74 सीटों के लिए मतदान हुआ। 26 नवंबर को पहले चरण का मतदान मोटे तौर पर शांतिपूर्ण रहा, हालांकि मीडिया की खबरों के मुताबिक लगभग 100 छिटपुट घटनाएं हुईं। चुनाव आयोग के अनुसार लगभग 65 प्रतिशत मतदान हुआ।
7 दिसंबर को दूसरे चरण में 45 जिलों के लिए चुनाव होंगे, जिनमें 128 संसदीय सीटों और 256 प्रांतीय सीटों पर मतदान किया जाएगा। चुनाव आयोग के पास पंजीकृत 90 राजनीतिक दलों में से 48 दल संघीय संसद की सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं और 53 दल प्रांतीय विधानसभाओं की सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं।
संसद के 275 सदस्यीय निचले सदन में 165 सदस्यों को फर्स्ट पास्ट द पोस्ट (एफपीटीपी) आधार पर चुना जाएगा और 110 सदस्य आनुपातिक प्रतिनिधित्व (पीआर) के आधार पर चुने जाएंगे। इसी प्रकार प्रांतीय विधानसभाओं में 550 सीटें हैं, जिनमें 330 उम्मीदवारों को एफपीटीपी प्रणाली से 220 को पीआर के आधार पर चुना जाएगा। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कुल संघीय और प्रांतीय पीआर उम्मीदवारों में 55 प्रतिशत महिलाएं हैं।1 राजनीतिक विश्लेषक इसे राजनीतिक प्रक्रिया में महिलाओं के सशक्तिकरण की दृष्टि से स्वागतयोग्य घटना मान रहे हैं क्योंकि क्षेत्र में कोई भी अन्य देश अभी ऐसा लक्ष्य भी निर्धारित नहीं कर पाया है, उसे प्राप्त करना तो बहुत दूर की बात है।
संसद के 59 सदस्यीय ऊपरी सदन के लिए चुनाव प्रांतीय तथा संघीय संसद का चुनाव पूरा होने के बाद चेयरपर्सन/डिप्टी चेयरपर्सन, मेयर/डिप्टी मेयर, प्रांतीय विधानसभाओं के सदस्यों और संघीय संसद के सदस्यों द्वारा परोक्ष रूप से किया जाएगा।
संघीय चुनाव के आनुपातिक प्रतिनिधित्व उम्मीदवारों में 30.93 प्रतिशत उम्मीदवार खस-आर्य समूह से हैं। उनके बाद देसी राष्ट्रीयता वाले उम्मीदवार (28.82 प्रतिशत), थारू (6.64 प्रतिशत), दलित (13.86 प्रतिशत), मधेशी (15.62 प्रतिशत) और मुसलमान (4.14 प्रतिशत) आते हैं। इसी प्रकार प्रांतीय चुनावों के उम्मीदवारों में 30.55 प्रतिशत उम्मीदवार खस-आर्य समूह से हैं, जिनके बाद देसी राष्ट्रीयता वाले उम्मीदवार (27.88 प्रतिशत), थारू (7.1 प्रतिशत), दलित (13.46 प्रतिशत), मधेशी (17.31 प्रतिशत) और मुसलमान (3.7 प्रतिशत) आते हैं।2
तालिका 1 बताती है कि प्रांत संख्या 3 में सबसे अधिक (20 प्रतिशत) संसदीय/प्रांतीय विधानसभा सीटें हैं; जबकि प्रांत संख्या 6 में सबसे कम (7 प्रतिशत) सीटें हैं। प्रांत संख्या 3 के बाद मधेशी जनसंख्या की बहुलता वाले प्रांत संख्या 2 में 19 प्रतिशत सीटें हैं। उसके बाद प्रांत संख्या 1 (17 प्रतिशत), प्रांत संख्या 5 (16 प्रतिशत) और प्रांत संख्या 7 (10 प्रतिशत) हैं।
किंतु कुल 1.4 करोड़ मतदाताओं में से लगभग आधे को स्थानीय चुनावों में अपने मताधिकार के प्रयोग से रोक दिया गया।3 खाड़ी तथा दुनिया के दूसरे हिस्सों में काम कर रहे लगभग 50 लाख नेपालियों को चुनावों में मतदान से रोक दिया गया। साथ ही देश में 7 लाख सरकारी कर्मचारियों को भी मतदान नहीं करने दिया गया। इसे चुनाव प्रक्रिया में गंभीर खामी मानकर राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने इस पर प्रतिकूल टिप्पणी कीं क्योंकि इस प्रकार यह प्रक्रिया कम प्रतिनिधित्व वाली रह गई। चुनाव आयोग को भविष्य में इसके लिए कोई रास्ता निकालना होगा।
हाल में हुआ एक अध्ययन बताता है कि नेपाल में चुनाव प्रत्येक निर्वाचित उम्मीदवार द्वारा खर्च किए गए धन के लिहाज से सबसे महंगा चुनाव होने जा रहा है। स्थानीय स्तर के चुनावों में देश में प्रत्येक मतदाता पर औसतन 5,000 रुपये खर्च किए गए। यह अनुमान इस आंकड़े पर आधारित है, जिसके अनुसार मई, जून और सितंबर, 2017 में संपन्न तीन चरणों के चुनावों में 69.72 अरब रुपये खर्च किए गए और उनमें मतदाताओं की संख्या 1.41 करोड़ थी।4 इसमें सरकार, उम्मीदवारों, चुनाव आयोग, सुरक्षा एजेंसियों तथा विभिन्न चुनाव पर्यवेक्षण समूहों द्वारा किया गया समूचा खर्च शामिल है। चुनावों पर किए गए कुल खर्च में 63 प्रतिशत राशि उम्मीदवारों द्वारा ही खर्च की गई थी।
चुनावी खर्च संबंधी आचार संहिता का उल्लंघन आम बात हो गई है। स्थानीय निकायों, प्रांतीय विधानसभाओं तथा संघीय संसद के लिए चुनाव लड़ने वाले अधिकतर उम्मीदवार चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित सीमा से अधिक धन खर्च करते रहे हैं। ऐसी खबरें भी हैं कि सरकार ने आचार संहिता का उल्लंघन किया क्योंकि चुनावों से पहले प्रमुख पदों पर जमकर नियुक्तियां, तबादले और प्रोन्नतियां की गईं।
देश में सभी सभी प्रमुख दलों के बीच मधेश आधारित राष्ट्रीय जनता पार्टी नेपाल (आरजेपीएन) इकलौता दल था, जिसने मधेशियों, थारू और जनजाति जैसे वंचित समुदायों के अधिकारों का मसला उठाया। नेपाली कांग्रेस (एनसी), कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल - एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी (सीपीएन-यूएमएल) और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल - माओवादी केंद्र (सीपीएन-एमसी) जैसे प्रमुख दलों समेत अन्य सभी राजनीतिक दलों ने वंचित समूहों के अधिकारों से जुड़े मुद्दे छोड़कर स्वयं को विकास के मसलों तक ही सीमित रखा।
विदेश मामलों की बात करें तो सत्तारूढ़ नेपाली कांग्रेस पार्टी के नेता अपने चुनाव अभियान के दौरान भारत तथा चीन के साथ संबंधों में संतुलन बनाए रखने की बात कहते रहे। किंतु सीपीएन-यूएमएल और सीपीएन-एमसी के वामपंथी गठबंधन के नेता गाहे-बगाहे भारत-विरोधी और चीन-समर्थक रुख दिखाते रहे।5 सीपीएन-यूएमएल और सीपीएन-एमसी भारत के साथ कथित असमान संधियां जैसे 1950 की शांति एवं मैत्री संधि को समाप्त करना चाहते हैं। किंतु मधेश आधारित आरजेपीएन भारत के साथ विशिष्ट संबंधों में किसी प्रकार का परिवर्तन करने के पक्ष में नहीं है।
मतदाताओं, विशेषकर सुदूर क्षेत्रों के मतदाताओं को शिक्षित करने पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया है।6 चुनावों का आकलन करने नेपाल आए 123 विदेशी चुनाव पर्यवेक्षकों की दिलचस्पी भी ऐसे मुद्दों पर ध्यान देने के बजाय अगली सरकार के गठन तक देश में ही बने रहने में अधिक दिखी।7
बाद में यूरोपीय संघ के देशों से आए कुछ चुनाव पर्यवेक्षकों ने विवाद खड़ा कर दिया क्योंकि उन पर अपने दायरे से बाहर जाकर प्रांतीय तथा संसदीय चुनावों पर नजर रखने का आरोप लगा। इसीलिए चुनाव आयोग ने अपने दो पर्यवेक्षकों - कंचनपुर जिले से लार्स-गोरान प्लैगमैन और इवा सुहोनन - को वापस बुला लिया। उसके फौरन बाद ब्रिटेन का संगठन डिपार्टमेंट फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट भी विवाद में फंस गया। इस समय चार अंतरराष्ट्रीय संगठनों कार्टर सेंटर, यूरोपीय संघ, एशियन नेटवर्क फॉर फ्री इलेक्शन और पेरू के अनकावा इंटरनेशनल को चुनावों की निगरानी की अनुमति दी गई है।8
कुछ अज्ञात समूहों द्वारा देश में बड़े पैमाने पर चुनाव विरोधी गतिविधियों अंजाम दिया गया। चुनाव अभियान के दौरान ‘वाम गठबंधन’ और ‘लोकतांत्रिक गठबंधन’ के बीच बार-बार झड़पों के मामले आम हैं।9 तराई और पहाड़ी जिलों में वाम तथा लोकतांत्रिक मोर्चों के कई वरिष्ठ नेताओं पर बम हमले किए गए, जिनमें कई लोग घायल हुए। ऐसी हिंसक गतिविधियों के कारण कई मतदाता और चुनावी अभियानों में जुटे लोग डर गए। पहले कभी देश में इतनी बड़ी संख्या में चुनाव संबंधी हिंसा नहीं नहीं हुई थी।10 इसीलिए स्थिति पर नियंत्रण पाने में कानून प्रवर्तन एजेंसियों को बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा है।
प्रतिभागितापूर्ण लोकतंत्र के नाम मात्र के अनुभव के साथ देश में इतने बड़े पैमाने पर चुनाव कराने की चुनौतियों के बावजूद नेपाल में चुनाव तय समय में शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न होने की संभावना है। यदि मतदाता एकदम खंडित जनादेश नहीं देते हैं तो नए संविधान के अनुरूप नई सरकार के गठन में कोई बड़ी बाधा नहीं आएगी। यदि खंडित जनादेश आता है तो नेपाल में एक बार फिर वैसा ही गठबंधन और खेमेबाजी का खेल होगा तथा राजनीतिक अस्थिरता जारी रहेगी, जैसा पहली संविधान सभा के गठन के समय थी और दूसरी संविधान सभा में भी जारी रही।
किंतु नवजात लोकतंत्र के लिए चिंता का बड़ा प्रश्न यह है कि चुनाव प्रक्रिया जनता के प्रतिनधित्व की प्रक्रिया को समावेशी तथा न्यायसंगत बनाने के लिए देश में मजबूत एवं स्थिर लोकतंत्र के बीज बोने में सफल होगी अथवा नहीं। पहले ही ऐसा माना जा रहा है कि निर्धारित व्यवस्था में मधेशी, थारू और जनजाति समूहों समेत वंचित एवं हाशिये पर डाले गए वर्गों की चिंताओं का पर्याप्त समाधान नहीं होता क्योंकि संघीय राज्यों के गठन, जनसंख्या आधारित चुनावों, समावेशन एवं नागरिकता से जुड़े मसलों का समाधान अभी संविधान में होना है।
निर्वाचन प्रक्रिया संपन्न होने के बाद बनी सरकारों को इसका हल निकालना होगा। हालांकि राष्ट्र निर्माण का कार्य, आर्थिक प्रबंधन, विकास गतिविधियां और सबसे बढ़कर 2014 के विनाशकारी भूकंप के पीड़ितों का राहत एवं पुनर्वास कार्यक्रम को पूरा करना सबसे महत्वपूर्ण होगा, लेकिन नया संविधान लागू होने के बाद जनता के विभिन्न वर्गों ने जो मुद्दे सामने रखे थे, उन्हें भी भूलना नहीं चाहिए।
(डॉ. झा नेपाल में सेंटर फॉर इकनॉमिक एंड टेक्निकल स्टडीज के कार्यकारी निदेशक हैं)
संदर्भ
1. उपरोक्त.
2. पोस्ट रिपोर्ट, “विमेन अकाउंट फॉर 55 परसेंट ऑफ टोटल पीआर कैंडिडेट्स”, द काठमांडू पोस्ट, काठमांडूः 20 नवंबर, 2017.
3. युवराज घिमिरे, “नेक्स्ट डोर नेपालः मच एडो अबाउट नथिंग”, द इंडियन एक्सप्रेस, 27 नवंबर, 2017.
4. पृथ्वी श्रेष्ठ और विनोद घिमिरे, “इलेक्शंस बिकमिंग ‘अननैचुरली एक्सपेंसिव’”, द काठमांडू पोस्ट, 18 नवंबर, 2017..
5. घिमिरे, 1.
6. टीका आर प्रधान, “ईसी हेल्पलेस अगेंस्ट पोल कोड वॉयलेटर्सः ऑब्जर्वर्स”, द काठमांडू पोस्ट, काठमांडू, 25 नवंबर, 2017.
7. घिमिरे, 1.
8. हिमालयन न्यूज सर्विस, “टू यूरोपियन यूनियन ऑब्जर्वर्स बार्ड फ्रॉम मॉनिटरिंग पोल्स”, द हिमालयन टाइम्स, काठमांडूः 25 नवंबर, 2017.
9. पोस्ट रिपोर्ट, “पार्टीज क्लैश इन डिफरेंट डिस्ट्रिक्ट्स अहेड ऑफ पोल्स”, द काठमांडू पोस्ट, काठमांडूः 25 नवंबर, 2017.
10. रोशन सेधई, “विद मोर अटैक्स, एंक्जाइटी ओवर पोल सिक्योरिटी ग्रोज”, माई रिपब्लिका, काठमांडूः 19 नवंबर, 2017.
(प्रस्तुत लेख में लेखक के निजी विचार हैं और वीआईएफ का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है)
Links:
[1] https://www.vifindia.org/article/hindi/2017/december/29/nepal-ke-chunaavon-ka-haal
[2] https://www.vifindia.org/author/hari-bansh-jha
[3] http://www.vifindia.org/article/2017/december/06/updates-on-nepalese-elections
[4] http://www.forevernews.in/nepal-polls-vote-count-underway-75026
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