चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) का 19वां पार्टी अधिवेशन (कांग्रेस) 24 अक्टूबर, 2017 को समाप्त हुआ और शी चिनिफिंग को लगातार दूसरी बार पांच वर्ष के लिए पार्टी तथा देश का नेता चुना गया। पार्टी के विचारों में योगदान के लिए शी का नाम पार्टी के संविधान में भी लिखा गया। इसके साथ ही उनका कद माओ और तेंग के बराबर हो गया। 19वें पार्टी कांग्रेस में शी शायद माओ के बाद सबसे ताकतवर पार्टी नेता बन गए। पार्टी कांग्रेस आरंभ होने से पहले ही अधिकतर विश्लेषकों को यह बात पता थी कि शी को नेतृत्व के मामले में बड़ी चुनौती का सामना नहीं करना पड़ेगा हालांकि ऐसी अटकलें थीं कि पिछले पांच वर्ष में भ्रष्टाचार के विरुद्ध चलाए गए निर्मम अभियान का खमियाजा उन्हें भुगतना पड़ सकता है। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
पोलितब्यूरो की स्थायी समिति में बहुत बदलाव किए गए हैं। यह चीन पर नजर रखने वाले कई विश्लेषकों की अपेक्षाओं के एकदम उलट है क्योंकि उन्हें लगता था कि 7 सदस्यों वाली स्थायी समिति में एक या दो नए चेहरे आएंगे और केवल एक या दो सीटों पर ही मुकाबला होगा। लेकिन एकदम अलग तस्वीर उभरी। स्वयं शी और प्रधानमंत्री ली कच्यांग के अलावा सभी सदस्यों को हटा दिया गया है और उनके स्थान पर पांच नए सदस्य आ गए हैं। वे हैं: शांघाई के पार्टी नेता हान झेंग, पार्टी के केंद्रीय नीति अनुसंधान कार्यालय के निदेशक वांग हनिंग, शी के चीफ ऑफ स्टाफ और पार्टी मुख्यालय के निदेशक ली झांशू, उप प्रधानमंत्री वांग यांग और पार्टी के कार्मिक विभाग की जिम्मेदारी देखने वाले केंद्रीय संगठन विभाग के प्रमुख झाओ लेजी।
शीर्ष संगठनों में पूरी तरह फेरबदल कर दिया गया है। स्थायी समिति के अलावा पोलितब्यूरो के 25 में से 15 सदस्यों को बदल दिया गया है। 200 से अधिक सदस्यों वाली केंद्रीय समिति के अधिकतर सदस्यों को भी बदल दिया गया है। इस तरह शी के पास चीन को नई ऊर्जा देने, उसे वैश्विक अगुआ बनाने और चीन को 2050 तक संपन्न समाजवादी समाज बनाने के लिए काफी नई टीम आ गई है। ली झांशू (जन्म 1950) ने पार्टी के कई पदों पर काम किया है, जिनमें मुख्यालय निदेशक और राष्ट्रीय सुरक्षा कार्यालय के निदेशक के पद शामिल हैं। 2012 से ही वह केंद्रीय समिति के पूर्ण सदस्य हैं। वह पोलितब्यूरो में नहीं थे। 2017 में वह सीधे पोलितब्यूरो की स्थायी समिति में पहुंच गए हैं। उन्हें शी के करीब माना जाता है। झाओ लेजी (जन्म 1957) 2002 से केंद्रीय समिति के और 2012 से पोलितब्यूरो के सदस्य रहे हैं। वह पार्टी बिल्डिंग वर्क के लिए केंद्रीय शीर्ष समूह और इंस्पेक्शन वर्क के लिए केंद्रीय शीर्ष समूह के उप प्रमुख रहे हैं। हान झेंग शांघाई पार्टी समिति के सचिव हैं, 2012 से पोलितब्यूरो के सदस्रू हैं, 2002 से केंद्रीय समिति के पूर्ण सदस्य हैं और पूर्व चीनी नेता च्यांग झेमिन के करीबी माने जाते हैं। क्या वह च्यांग झेमिन गुट से हैं और शी को चुनौती दे सकते हैं? इस बारे में अटकलें शुरू हो जाएंगी। वांग यांग (जन्म 1955) 2013 से ही स्टेट काउंसिल के उपाध्यक्ष हैं। वह 2007 से पोलितब्यूरो के सदस्य और सीसीसी केंद्रीय समिति के पूर्ण सदस्य हैं। वांग हनिंग (जन्म 1955) 2002 से केंद्रीय समिति के केंद्रीय नीति अनुसंधान केंद्र के निदेशक हैं, 2013 से कॉम्प्रिहेंसिव डीपिंग ऑफ रिफॉर्म्स के केंद्रीय शीर्ष समूह के निदेशक हैं और 2002 से केंद्रीय समिति के पूर्ण सदस्य हैं।
एक को छोड़ दें तो सभी को पार्टी संगठनों में लंबा अनुभव है और वे सभी पिछले पांच वर्षों से शी के साथ काम करते रहे हैं। शांघाई के पार्टी सचिव हान झेंग एकमात्र अपवाद हैं। कई लोग कहेंगे कि जिन्हें शी का चहेता कहा जाता था, उन्हें छोड़ दिया गया है और पोलितब्यूरो स्थायी समिति के सदस्यों को देखकर लगता है कि विभिन्न गुटों में आपसी समझौता हुआ है। चीन में पार्टी व्यवस्था पूरी तरह अपारदर्शी है। निश्चित रूप से कुछ भी कह पाना बहुत कठिन है। लेकिन शी का अभूतपूर्व वर्चस्व ही 19वें पार्टी कांग्रेस की मुख्य बात रही है। विश्लेषकों के ध्यान में यह बात भी आई है कि 2022 में शी का कार्यकाल समाप्त होने पर उनका उत्तराधिकारी कौन होगा, यह स्पष्ट नहीं हुआ है। इसका यह मतलब भी हो सकता है कि शी ने दो कार्यकाल की अभी तक की परंपरा से इतर तीसरा कार्यकाल भी हासिल करने की संभावना जीवित रखी है। किंतु यह भविष्य की बात है।
भारत के लिए काम की बात यह है कि शी पहले से अधिक ताकतवर हो गए हैं। वह कट्टर कम्युनिस्ट भी हैं। वह पार्टी के प्रभुत्व और चीनी मिजाज वाले समाजवाद में यकीन रखते हैं। उन्होंने 2050 तक चीन को नई ऊर्जा देने का खाका तैयार कर लिया है, जिसकी हिम्मत पाश्चात्य शैली के लोकतंत्रों में बहुत कम नेता कर पाते हैं। वैश्विक संबंधों पर शी का प्रभाव स्पष्ट है। अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान वह चीन को विश्व शक्ति के तौर पर और भी मजबूत बनाने के लिए प्रतिबद्ध रहेंगे और दुनिया की चाल तय करेंगे। वह पहले ही कई काम कर चुके हैं, जैसे चीन का वैश्विक प्रभाव बढ़ाने के लिए बेल्ट एंड रोड योजना शुरू करना। आगे जाकर चीनी युआन दुनिया भर में वैश्विक मुद्रा के तौर पर डॉलर के दबदबे को चुनौती देगा। शी ऐलान कर ही चुके हैं कि चीन बड़ी तकनीकी ताकत बनेगा क्योंकि इस दिशा में वह पश्चिम से काफी पिछड़ा हुआ है। संभावना है कि वह पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को भी मजबूत बनाते रहेंगे। शी संप्रभुता से जुड़े मसलों पर समझौता नहीं करेंगे। दोनों देशों के बीच सीमा विवाद के कारण भारत को यह बात ध्यान में रखनी होगी।
कुल मिलाकर भारत को शी के नेतृत्व में अधिक मजबूत और प्रतिबद्ध चीन का सामना करना होगा।
(ये लेखक के निजी विचार हैं और आवश्यक नहीं कि वीआईएफ के भी ऐसे ही विचार हों)
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