डोकलम में भारत और चीन की फौजों के बीच ढाई महीने से भी अधिक समय तक तनावपूर्ण टकराव की स्थिति रही और 28 अगस्त, 2017 को उसका हल निकला। टकराव के दौरान चीन का सरकारी मीडिया तीखी और घमंड भरी बातें कहता रहा। साथ ही चीन ने तिब्बत में और पहली बार हिंद महासागर में भी गोलीबारी का अभ्यास शुरू कर दिया। इसके अतिरिक्त पूर्ववर्ती साम्राज्यों के बीच 19वीं सदी में हुई संधियां भी निकाल ली गईं ताकि बाद में हुई संधियों को दबाया जा सके। ये हरकतें जिस क्रम में की गईं और जिस तरह एक साथ की गईं, उसने कानूनी युद्ध, मनोवैज्ञानिक युद्ध और मीडिया युद्ध के मानक तरीकों की याद दिला दी, जिसका चीन अपने विरोधियों के साथ क्षेत्र संबंधी विवाद और मतभेद निपटाने के लिए करता रहा है।
सबको तब राहत मिली, जब दोनों पक्षों की समझदारी भरी कूटनीति के जरिये गतिरोध खत्म हो गया। किंतु यह विचार आना स्वाभाविक है कि यदि ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका (ब्रिक्स) समूह की शिखर बैठक नजदीक नहीं होती तो क्या एकाएक ऐसा समाधान हो जाता। नवीं वार्षिक बैठक के दौरान प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी की द्विपक्षीय बैठक ने संबंधों को और भी सामान्य कर दिया होगा। दिलचस्प है कि दोनों पक्षों के नीति निर्माताओं को विवाद खत्म करने और आगे बढ़ने में ही समझदारी दिखी।
शियामेन में अपने उद्घाटन भाषण में राष्ट्रपति शी ने क्षेत्र में शांति बहाल करने के लिए सदस्यों से “अपने मतभेद भुलाने तथा पारस्परिक विश्वास एवं रणनीतिक संचार के जरिये एक दूसरे की चिंताओं का ध्यान रखने” का अनुरोध किया।1 उन्होंने विवादित मसले सुलझाने के लिए कूटनीति के मूल्य बरकरार रखने की जरूरत पर भी जोर दिया।2 राष्ट्रपति शी ने तालिबान और अल-कायदा के साथ लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद को आतंकी समूह मानकर प्रधानमंत्री मोदी को बड़ी कूटनीतिक जीत दिला दी। कुछ लोग इन कदमों को भारत तथा पाकिस्तान के बीच फर्क का प्रतीक मान सकते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो ब्रिक्स में चीन का राजनीतिक लचीलापन अभूतपूर्व रहा है। डोकलम का चरम बिंदु और नवीं ब्रिक्स शिखर बैठक का निराशाजनक अंत भारत-चीन संबंधों में ऐतिहिासिक घटनाएं बनकर उभरी हैं। राष्ट्रपति शी द्वारा की गई स्पष्ट स्वीकारोक्तियां तथा कूटनीतिक रियायतें भारत के प्रति चीन की नीति में अच्छे खासे परिवर्तन का संकेत देती हैं, लेकिन किसी ठोस निष्कर्ष पर पहुंचना अभी जल्दबाजी हो सकती है। ऐसा लगता है कि डोकलम के बाद चीनी नेतृत्व को कुछ सख्त सबक मिले हैं अर्थात् यदि भारत तथा चीन के बीच आर्थिक एवं राजनयिक सहयोग बरकरार रखना है तो क्षेत्र संबंधी विवाद एवं सामरिक अलगाव एक सीमा से आगे नहीं ले जाया जा सकता।
नवीं ब्रिक्स शिखर बैठक में दिखाए गए राजनीतिक और राजनयिक भाईचारे के ठीक उलट दोनों पक्षों के सैन्य प्रतिष्ठानों को अपई गई राजनीतिक एवं राजनयिक मैत्री के ठीक उलट दोनों पक्षों के सैन्य प्रतिष्ठान अपनी क्षमताओं में और इजाफा कर सकते हैं तथा अपनी रणनीतियां नए सिरे से तैयार कर सकते हैं। तेज ‘फाइटिंग रीजनल इनफॉर्मेटाइज्ड वॉर’ (फ्राई-वॉर) करने अथवा किसी को विवश करने में चीन की लाचारी को पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) अपनी आंतरिक समीक्षा में नाकामी मान सकती है। भारतीय सैन्य प्रतिष्ठान ने भी टकराव के दौरान अपनी गंभीर खामियां पहचान ली होंगी। सेना प्रमुख जनरल विपिन रावत ने हाल ही में आगाह किया था कि चीन “यथास्थिति बदलना” चाहता है और “भविष्य में डोकलम जैसी और भी घटनाएं हो सकती हैं।” 3
ब्रिक्स, शांघाई सहयोग संगठन, जी-20 देशों के समूह, दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्रों के संघ (आसियान) में राजनीतिक सहयोग बढ़ने के बावजूद भारत और चीन के बीच सैन्य प्रतिस्पर्द्धा बढ़ना अपरिहार्य लग रहा है क्योंकि भरोसे की कमी है। उस स्थिति में दोनों मजबूत पड़ोसियों को एक दूसरे की संवेदनाएं समझनी होंगी। भारत के विरोध के प्रमुख कारणों में से एक है 2015 का रक्षा श्वेत पत्र। श्वेत पत्र में पीएलए को खुल्लमखुल्ला आक्रामक दिशा प्रदान की गई है। इसमें दृढ़ता के साथ कहा गया है कि “चीन अपने अंतरराष्ट्रीय कद के अनुरूप सैन्य बल तैयार करेगा।” 4 चीन के रक्षा बजट ने मामला और बिगाड़ दिया क्योंकि 2015 का उसका घोषित रक्षा बजट 145 अरब डॉलर है5, जो भारत के रक्षा बजट का करीब 3-4 गुना है। असाधारण व्यय और सैन्य आधुनिकीकरण से चीनी सेना को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में “सक्रिय रक्षा” और “हितों तथा अधिकारों की रक्षा” की अपनी घोषित नीति पर चलने की जबरदस्त क्षमता और विश्वास हासिल हो जाएगा। उनमें से कुछ नीतियां दूसरे देशों के अधिकारों एवं दावों से टकराती हैं। श्वेत पत्र में सख्त स्वर के कारण अनिष्ट का संकेत मिलता है, जो भविष्य में शत्रुतापूर्ण स्थिति ला सकता है और भारत को अतिरिक्त क्षेत्रीय गठबंधनों की ओर जाना पड़ सकता है।
भारत और चीन के बीच सैन्य प्रतिस्पर्द्धा का दूसरा प्रमुख कारण वन बेल्ट वन रोड (ओबॉर) परियोजना है। एक ओर चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) ने जम्मू-कश्मीर में भारतीय सेना का समीकरण उलझा दिया है, दूसरी ओर समुद्री रेशम मार्ग (एमएसआर) तनाव की स्थिति उत्पन्न कर रहा है और हिंद महासागर के क्षेत्र में कई युद्धक्षेत्र तैयार करने की क्षमता इसके भीतर है। उपमहाद्वीप के छोटे देशों में बुनियादी ढांचे का विकास दक्षिण एशिया में भारत के सामरिक स्थान को कम ही नहीं करता बल्कि क्षेत्रीय अस्थिरता को भी जन्म देता है। आर्थर एम एक्सटीन अपनी पुस्तक ‘चाइना गोज टु सी’ में 201 ईसा पूर्व में रोम साम्राज्य की रणनीति का विश्लेषण करते हैं, जहां एजियन समुद्र किनारे वैसे ही छोटे-बड़े देश थे, जैसे आज दक्षिण एशिया में हैं।6 किंतु यूनान तथा मकदूनिया के बीच की मुख्य प्रतिद्वंद्विता की तुलना भारत-पाकिस्तान प्रतिद्वंद्विता से की जा सकती है। मकदूनिया की जिद (पाकिस्तान की ही तरह) पर रोमवासियों (चीन के समान) ने यूनान को (भारत की तरह) अलग-थलग करके एजियन में लगातार ‘कमजोरी का संतुलन’ स्थापित किया था। उसी प्रकार चीन हिंद-प्रशांत में क्षेत्रीय दादा की तरह उभरा है और पाकिस्तान को उसका बिना शर्त समर्थन भारत के लिए खतरा बनेगा क्योंकि इससे भारत की स्थिति कमजोर हो सकती है और क्षेत्र में परमाणु संघर्ष का खतरा बढ़ जाता है।
भारत तथा चीन के बीच टकराव का सबसे अहम कारण अनसुलझी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) है। चीन ने अधिकतर पड़ोसियों के साथ अपने सीमा विवाद सुलझा लिए हैं। भारत के साथ अनसुलझी सीमाओं के कारण कई और डोकलम हो सकते हैं। थूसीडाइडस की प्रसिद्ध उक्ति है, “ताकतवर जो चाहते हैं कर लेते हैं और कमजोर दुख सहते हैं, जो उन्हें सहना ही चाहिए। इसलिए मेलियन को हिंसा के बगैर एथेंस के सामने हथियार डाल देने चाहिए।” 7 डोकलम की घटना ने चीन को यह संकेत दे दिया है कि भारत मेलियन की तरह हथियार डालने नहीं जा रहा। इसीलिए भारत और चीन के बीच एलएसी का तेजी से सीमांकन करना ही इकलौता विकल्प बचा है।
डोकलम का समाधान बताता है कि चीन अपने दीर्घकालिक लक्ष्यों के लिए छोटे-मोटे समझौते करने से पीछे नहीं हटेगा। डोकलम टकराव जैसी एक घटना अथवा ब्रिक्स जैसी शिखर बैठकें राष्ट्रपति शी को अपना ‘चीन का सपना’ पूरा करने के प्रयासों से हटा नहीं पाएंगी। परिणामस्वरूप भारत-चीन संबंधों में डोकलम जैसे कई विरोधाभाास दिखने की संभावना है जैसे कूटनीतिक अथवा आर्थिक सहयोग कुछ समय के लिए बढ़ना और सैन्य प्रतिद्वंद्विता लंबे समय के लिए बढ़ते जाना। भारत कुछ समय के लिए डोकलम और नवीं ब्रिक्स शिखर बैठक से संतुष्ट हो सकता है, लेकिन डोकलम जैसे टकराव का स्थायी समाधान तभी मिल सकता है, जब चीन 2017/18 के ‘रक्षा श्वेत पत्र’ में ठोस परिवर्तन करे और एलएसी की सीमा तय करे। चीन को ओबॉर पर भारत की चिंताओं के प्रति स्पष्ट संवेदनशीलता दिखानी होगी और क्षेत्र में काम कर रहे सभी आतंकी संगठनों पर दंडात्मक प्रतिबंध के लिए संयुक्त राष्ट्र में भारत का समर्थन भी करना होगा।
चीन और भारत दोनों ने शियामेन ब्रिक्स सम्मेलन में अपने द्विपक्षीय संबंधों में नया अध्याय शुरू किया है। मौजूदा गर्माहट दोनों देशों को सुरक्षा तथा क्षेत्रीय स्थिरता पर विवादित मसलों को हल करने और झगड़े का निपटारा होने तक कोई व्यवस्था तय करने का अवसर प्रदान करती है। चीन के श्वेत पत्र, एलएसी, ओबॉर और आतंक पर भारत की संवेदनाएं उनमें सबसे आगे होनी चाहिए। बदल में भारत को भी उतना ही कुछ करने के लिए तैयार रहना होगा।
संदर्भ
1. टाइम्स ऑफ इंडिया, 3 सितंबर, 2017, http://timesofindia.indiatimes.com/world/china/xi-kicks-off-brics-summit [3].
2. इकनॉमिक टाइम्स, 8 सितंबर, 2017, http://economictimes.indiatimes.com/news/international/world-news/brics- [4].
3. हिंदुस्तान टाइम्स, 27 अगस्त, 2017, http://www.hindustantimes.com/india-news/china-trying-to-change-status-q [5].
4. चीन का रक्षा मंत्रालय, 26 मई 2015, http://eng.mod.gov.cn/Press/2015-05/26/content_4586805_4.htm [6]
5. द न्यूयॉर्क टाइम्स, 4 मार्च, 2015, https://www.nytimes.com/2015/03/05/world/asia/chinas-military-budget-inc [7].
6. एंड्र्यू एरिक्सन एवं अन्य, चाइना गोज़ टु सी – मैरिटाइम ट्रांसफॉर्मेशन इन कंपैरेटिव हिस्टॉरिकल पर्सपेक्टिव, नेवल इंस्टीट्यूट प्रेस, एनापोलिस, 2009, पृष्ठ 81.
7. रॉबर्ट कैपलन, एशियाज़ कॉल्ड्रन – साउथ चाइना सी एंड दि एंड ऑफ स्टेबल पैसिफिक, रैंडम हाउस, 2014, पृष्ठ 18.
Links:
[1] https://www.vifindia.org/article/hindi/2017/october/12/niyantran-rekha-virodhabhas
[2] https://www.vifindia.org/author/somen-banerjee
[3] http://timesofindia.indiatimes.com/world/china/xi-kicks-off-brics-summit
[4] http://economictimes.indiatimes.com/news/international/world-news/brics-
[5] http://www.hindustantimes.com/india-news/china-trying-to-change-status-q
[6] http://eng.mod.gov.cn/Press/2015-05/26/content_4586805_4.htm
[7] https://www.nytimes.com/2015/03/05/world/asia/chinas-military-budget-inc
[8] http://www.vifindia.org/article/2017/september/21/the-doklam-paradox
[9] https://thewire.in/154449/expert-gyan-india-china-bhutan/
[10] http://www.facebook.com/sharer.php?title=नियंत्रण रेखा विरोधाभास&desc=&images=https://www.vifindia.org/sites/default/files/india-china_reuters_0.jpg&u=https://www.vifindia.org/article/hindi/2017/october/12/niyantran-rekha-virodhabhas
[11] http://twitter.com/share?text=नियंत्रण रेखा विरोधाभास&url=https://www.vifindia.org/article/hindi/2017/october/12/niyantran-rekha-virodhabhas&via=Azure Power
[12] whatsapp://send?text=https://www.vifindia.org/article/hindi/2017/october/12/niyantran-rekha-virodhabhas
[13] https://telegram.me/share/url?text=नियंत्रण रेखा विरोधाभास&url=https://www.vifindia.org/article/hindi/2017/october/12/niyantran-rekha-virodhabhas