परिचय
भारत के पास चीन के बारे में कोई स्पष्ट धारणा नहीं है और हमारे विचार अब भी 1962 के युद्ध पर तथा दूसरे देशों की शोध रिपोर्टों में दिए गए विचारों पर आधारित हैं। इसलिए तमाम प्रयासों के बावजूद चीन राजनीति तथा सुरक्षा के मोर्चे पर अपने व्यवहार के मामले में पहेली बना हुआ है। यह आवश्यक है कि भारत चीन के बारे में अपनी समझ विकसित करे। हमें चीन से निपटने के लिए प्रत्येक क्षेत्र में विशेषज्ञों को तैयार करने की जरूरत है। इसकी शुरुआत चीन का लगातार विश्लेषण करने वाले प्रौद्योगिकीविदों और सशस्त्र बलों को मेंडरिन भाषा की जानकारी प्रदान करने से हो सकती है। उसी के अनुसार उत्कृष्टता केंद्र तैयार करने होंगे, जो चीन की नीतियों और योजनाओं का अंदाजा लगा सकेंगे और उन्हें बूझ लेंगे।
कौन से हैं ये केंद्र?
चीन 2000 से भी अधिक वर्षों से नाम मात्र के विपक्ष वाली एकल सरकार के अधीन एकजुट सभ्यता बना रहा है। उसका मूल विचार यह है कि घरेलू और विदेश नीति में वह एकजुट देश बना रहे। राष्ट्रीय सुरक्षा और राजनयिक संबंधों के मोर्चे पर लगाम पूरी तरह केंद्र सरकार के हाथों में रहती है। पीपुल्स लिबरेशन आर्मी यानी चीनी सेना सरकार के उच्चाधिकारियों से नहीं बल्कि कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं से और केंद्रीय सैन्य आयोग से निर्देश लेती है, जो पार्टी का ही अंग है। लेकिन चीनी अर्थव्यवस्था के मामले में ऐसा नहीं है और वहां स्थानीय स्वायत्तता तथा प्रयोगों के कारण चीन की आर्थिक वृद्धि की गति तेज हुई है। चीन सरकार स्थानीय नेताओं को बुनियादी संसाधन तथा दिशानिर्देश देती है। स्थानीय नेता तय करते हैं कि वृद्धि हासिल करने का सबसे अच्छा तरीका क्या है।
चीन में उदारवाद आरंभ हुए लगभग चार दशक बीत गए हैं और उसे यह समझे हुए भी चार दशक बीत चुके हैं कि स्थानीय स्तर पर कितनी आजादी दी जानी चाहिए। चीन की केंद्रीय सरकार स्पष्ट रूप से जानती है कि राष्ट्रीय सफलता स्थानीय सफलता पर निर्भर करती है। केंद्रीय सरकार और स्थानीय सरकार के बीच जो कुछ होता है, एक उद्देश्य के तहत होता है। केंद्रीय सरकार केंद्र के लिए तथा प्रांतीय पंचवर्षीय योजना द्वारा प्रांतों के लिए योजना की औपचारिक प्रक्रिया संभालती है। इन योजनाओं को पीपुल्स कांग्रेस द्वारा मंजूर किया जाता है। वास्तविक क्रियान्वयन अलग मसला है। चीन की स्थानीय सरकारों का काम प्रायः कानूनों, नियमों तथा ठेकों से शुरू होता है। विलियम एंथोलिस अपनी पुस्तक ‘इनसाइड आउट इंडिया एंड चाइना’ में कहते हैं केंद्रीय सरकार और प्रांतों के बीच सौदेबाजी, प्रांतों तथा स्थानीय निकायों के बीच सौदेबाजी और स्थानीय निकायों तथा कारोबारियों के बीच सौदेबाजी ही प्रशासन का सार है। कुछ ने इसे बंटा हुआ सत्तावाद या तानाशाही माना है, कुछ ने सलाह-मशविरे वाली तानाशाही और हाल ही में कुछ ने वास्तविक संघवाद अथवा व्यवहारात्मक तानाशाही कहा है। इस प्रकार सत्ता कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर विभिन्न अधिकारी वर्गों के बीच तथ चीन सरकार में विभिन्न निकायों के बीच बंटी है।
यह जानना उचित रहेगा कि चीन की प्रशासन व्यवस्था विधि शासन पर आधारित नहीं है। उसके बजाय अधिकारों पर लगातार समझौते होते रहते हैं। कम्युनिस्ट पार्टी तथा सरकार के भीतर अलग-अलग अधिकारी वर्ग पर्दे के पीछे एक-दूसरे से बहस करते हैं और उनकी रस्साकशी के बाद अंतिम नीतिगत परिणाम बाहर आता है। अक्सर यह तय कर पाना मुश्किल होता है कि वास्तव में निर्णय किसने लिया या वह निर्णय कितने समय तक जनता के दिमाग में रहेगा। इस व्यवस्था के कारण आर्थिक वृद्धि तो तेज हुई है, लेकिन नागरिकों, निजी कंपनियों, गैर सरकारी संगठनों तथा शेष विश्व में इससे कुंठा भी पैदा हुई है। पूरी तरह अपारदर्शी होने के कारण इस व्यवस्था का विश्लेषण करना मुश्किल होता है। इसीलिए उत्कृष्टता केंद्र बनाने की आवश्यकता है।
जो केंद्र तैयार किए जाने हैं, उन्हें चीन की ‘समग्र राष्ट्रीय शक्ति’ पर ध्यान केंद्रित करना होगा। उन्हें चीन की भाषा, साहित्य, रणनीति, आर्थिक योजना, राजनीतिक विचार, युद्ध के विशेषज्ञता वाले क्षेत्रों में बलों के निर्माण पर ध्यान देना होगा और इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि अभी के लिए, कुछ समय बाद के लिए और लंबे समय बाद के लिए उनकी कया परिकल्पना है। इसके लिए चुनिंदा विश्वविद्यालयों, सशस्त्र बलों, रक्षा एवं विदेश मंत्रालयों एवं विचार समूहों में चीनी विशेषज्ञता वाले समूहों की आवश्यकता होगी।
केंद्रों का विकास
केंद्र आदर्श तभी माने जाएंगे, जब वे चीन के विश्लेषण की आवश्यकता पर केंद्रित होंगे। इसके लिए विदेश तथा रक्षा मंत्रालयों में दृष्टिकोण योजना प्रकोष्ठ हो सकते हैं, जो चीन की राजनीतिक दृष्टि तथा सामरिक योजनाओं से संबंधित घटनाक्रमों और भारत पर उनके प्रभाव पर ध्यान केंद्रित करेंगी। चीन पर नजर रखने वाले समर्पित विचार समूहों को इन दोनों मंत्रालयों के लिए यथोचित काम करने का जिम्मा दिया जा सकता है। आदर्श स्थिति में राष्ट्रीय रक्षा परिषद को अपने कर्मचारियों को चीन से संबंधित मुद्दों के समग्र अध्ययन का जिम्मा देना चाहिए और चीन की समग्र राष्ट्रीय शक्ति एवं चीन तथा उसकी नीतियों पर उनके प्रभाव पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। विश्वविद्यालय को चीनी विचार समूहों तथा चीन में होने वाले घटनाक्रमों पर नजर रखने वाले अन्य विचार समूहों के साथ संपर्क स्थापित करना चाहिए।
मुख्यालयों, एकीकृत रक्षा स्टाफ, सेना, नौसेना, वायुसेना और कमान मुख्यालयों में चीनी रणनीति का विश्लेषण करने के लिए ऐसे प्रकोष्ठ होने चाहिए, जिनमें चीनी दुभाषिए हों क्योंकि उसकी रणनीतियों से उनके क्षेत्र पर असर होता है और उन्हें चीनी रणनीति, तरीकों, हथियारों के विकास तथा भारत के प्रति उसके दृष्टिकोण की प्रतिक्रिया देने के लिए संभावित रुझानों का विश्लेषण भी करना चाहिए। इन प्रकोष्ठों को ऐसे स्तर तक पहुंचने देना चाहिए, जहां वे भविष्य की घटनाओं विशेषकर महाद्वीपीय, सामुद्रिक तथा बाहरी अंतरिक्ष की घटनाओं का आकलन करने में सक्षम हो सकें।
अगला क्षेत्र शैक्षिक संस्था होंगी। प्रस्तावित भारतीय राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय और चीन से संबंधित मुद्दों तथा चीनी भाषा पर काम कर रहे अन्य सभी विश्वविद्यालयों को इस विषय पर काम करने के दिशानिर्देश दिए जाने चाहिए एवं समुचित सामग्री मुहैया करानी चाहिए ताकि समग्र राष्ट्रीय शक्ति के निर्माण की चीन की कवायद से संबंधित विभिन्न प्रश्नों का उत्तर मिल सके।
हम भाग्यशाली हैं कि हमारे देश में बड़ी संख्या में विचार समूह तैयार हो रहे हैं। सरकार से समुचित सहायता के साथ इन विचार समूहों को विशेष क्षेत्र में अनुसंधान का जिम्मा दिया जा सकता है और इस तरह उन्हें संबंधित विषय में विशेषज्ञता हासिल हो जाएगी। विदेश मंत्रालय इन क्षेत्रों में तालमेल बिठा सकता है और उचित चर्चा हो सकती है तथा प्रतिक्रिया दी जा सकती है।
सैन्य शक्ति में अपनी श्रेष्ठता
चीन इस समय विशेष बलों, ‘असेसिन्स मेस’ हथियारों, साइबर युद्ध और बाहरी अंतरिक्ष में युद्ध पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। भारतीय सशस्त्र बलों को इन सभी क्षेत्रों पर बहुत बारीकी से ध्यान देने की जरूरत है। विशेष बलों को शत्रु की सीमा के भीतर विशेषकर तिब्बत में होने वाले अभियानों के लिए प्रशिक्षित किया ही जाना चाहिए। हमें तिब्बतियों और अन्य पहाड़ी जनजातियों पर ध्यान देना चाहिए और ऐसे अभियानों के लिए समुचित कार्य प्रणाली ईजाद करनी चाहिए।
जहां तक ‘असेसिन्स मेस’ हथियारों की बात है तो डीआरडीओ को डायरेक्ट एनर्जी एंड इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक पल्स हथियारों का विकास तेज करना चाहिए क्योंकि ये हर प्रकार के लक्ष्यों को नष्ट करने में उपयोगी होंगे; अभी इनका विकास परीक्षण होना रह गया है और इस काम में तेजी लानी होगी। चीन के साथ हमारी पूरी लड़ाई पहाड़ी क्षेत्रों में होगी। यदि हमारे उपकरणों का वजन कम होगा तो हम युद्ध के लिए हमारी तैयारी बढ़ जाएगी। उसके लिए हमें अपने उपकरणों में नैनो तकनीक इस्तेमाल करनी चाहिए। सेना के प्रत्येक अंग के लिए ऐसे उपयोग वाली वस्तुएं पहचानना तथा हल्के टैंक, बंदूकें, छोटे हथियार एवं अन्य उपकरण हासिल करने के लिए भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलूरु, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान एवं राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान और निजी क्षेत्र के साथ काम करना दूरदर्शिता होगी। इससे सुनिश्चित होगा कि हम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में आगे बढ़ सकें और चीनी आक्रमण के खिलाफ लड़ सकें।
अगला पहलू है बाहरी अंतरिक्ष में अपनी क्षमता बढ़ाना। सर्वविदित तथ्य है कि चीन बाहरी अंतरिक्ष में तेजी से हथियार तैनात कर रहा है। हमें सुनिश्चित करना होगा कि उपग्रह-रोधी हथियारों समेत निगरानी उपकरणों एवं हथियारों का विकास बिना किसी विलंब के किया जाए। इसके लिए विशेष बल कमान, साइबर कमान तथा आकाशीय कमान आरंभ करना समझदारी की बात होगी।
चीन महाशक्ति बनने के लिए हर तरह का यत्न कर रहा है। हमें चीन द्वारा सामरिक क्षमताओं के तीव्र आधुनिकीकरण का मुकाबला करने के लिए अपने भीतर श्रेष्ठता विकसित करने में कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए।
Links:
[1] https://www.vifindia.org/article/2017/september/04/china-par-utkristhata-kendra-tayar-karna
[2] https://www.vifindia.org/node/1677
[3] http://www.vifindia.org/article/2017/august/11/developing-nodes-of-excellence-on-china
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