प्रसिद्ध यूनानी विचारक अरस्तू ने कहा था, “शुरुआत अच्छी हो तो सफलता मिलती ही है।” केंद्रीय मंत्रिमंडल ने “नया और जीवंत भारत” बनाने की दिशा में 17 अप्रैल, 2017 को एक बड़ा कदम उठाया। उसने मोटर वाहन नियमों में संशोधन का फैसला किया और सत्ताधारियों की ठसक तथा विशेषाधिकार का प्रतीक मानी जाने वाली लाल बत्ती का प्रयोग बंद करने का आदेश दे दिया। यह वाकई एक ऐतिहासिक फैसला था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वह काम करने में कामयाब रहे हैं, जो उनसे पहले के कई प्रधानमंत्री नहीं कर सके थे। लाल बत्ती पर प्रतिबंध के साथ ही सामंतवादी व्यवहार के युग पर विराम लग गया। लाल बत्ती और कई धुनों वाले तेज सायरन औपनिवेशिक मानसिकता के प्रतीक थे और गणतंत्र की भावना के विपरीत थे। शुरुआत में यह कदम छोटा लग सकता है, लेकिन समाज के सभी वर्गों के बीच संतुलन स्थापित करने के लिहाज से यह बहुत बड़ा कदम है।
लाल बत्ती पर सर्वोच्च न्यायालय का आदेश (अतीत पर नजर)
लाल बत्ती के दुरुपयोग के बारे में 2013 में जनहित याचिका दाखिल की गई थी और उच्चतम न्यायालय ने वीआईपी संस्कृति के विषय में याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, “याचिका में कहा गया है कि यदि सत्ता कुछ लोगों तक ही सीमित रह जाएगी तो सत्ता की तीव्र लिप्सा लोकतांत्रिक सिद्धांतों की बुनियाद को ही खत्म कर देगी। लेकिन पिछले चार दशकों में हमने जो किया है, उससे सर्वाधिक स्थापित राजनीतिक व्यवस्था को भी झटका लगता.... इसके सबसे बड़े उदाहरण लाल बत्ती जैसे सत्ता के प्रतीक हैं, जो सबसे छोटे जन प्रतिनिधियों से लेकर सबसे बड़े जन प्रतिनिधियों और विभिन्न कैडर के प्रशासनिक अधिकारियों के वाहनों पर लगी रहती हैं। लाल बत्ती सत्ता की प्रतीक हैं और जिन्हें इनके प्रयोग का अधिकार है तथा जिन्हें नहीं है, उनके बीच स्पष्ट अंतर पैदा करती हैं।”
अब बत्तियां केवल आपातकालीन एवं राहत सेवाओं पर ही लग पाएंगी, जिनमें कानून प्रवर्तन अधिकारी भी शामिल हैं। इसे वर्तमान सरकार की बेहद प्रगतिशील उपलब्धि कहकर सराहा गया है। आम आदमी इसे उन लोगों की कथित दबंगई पर लगाम कसने का कदम मानता है, जिन्हें जनता के लिए काम करना था। प्रधानमंत्री ने हाल ही में एक असाधारण कदम उठाया। जब वह भारत की आधिकारिक यात्रा पर आईं बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख हसीना की अगवानी करने के लिए गए तो सड़कों पर कार्यालय जाने वालों की भारी भीड़ थी, इसीलिए उन्होंने अपना काफिला छोटा करने का आदेश दिया। वह उदाहरण खड़ा करते हैं, जिस पर दूसरे चलते हैं। लाल बत्ती का खात्मा वास्तव में अच्छी शुरुआत की दिशा में ठोस कदम है। यह लंबे समय से चली आ रही इस कुप्रथा का अंत करने के सर्वोच्च न्यायालय के सुझाव के अनुरूप है।
कहने की जरूरत नहीं कि लाल बत्ती वास्तव में जीवन शैली बन चुकी थी। लोकतांत्रिक एवं गणतांत्रिक आदर्श निश्चित रूप से इस औपनिवेशिक खुमार के पक्ष में नहीं थे। प्रधानमंत्री मोदी ने जनता की भावना को समझा और अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस के अवसर पर 1 मई से इस पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा कर दी। ‘मन की बात’ के मंच से राष्ट्र के नाम अपने नियमित संबोधन में उन्होंने कहा कि लाल बत्ती “नए भारत” की भावना और प्रकृति से मेल नहीं खाता है। इसे खत्म करने का केंद्रीय मंत्रिमंडल का निर्णय और उसे हमारे द्वारा अपनाया जाना ऐसे युद्ध की बड़ी शुरुआत है, जो सुशासन की ओर ले जाने की बात कहता है। अब आम आदमी आशा कर सकता है कि वीआईपी के तमगे के साथ आने वाली हनक और फायदे अब खत्म हो जाएंगे तथा “देश का हरेक व्यक्ति विशिष्ट (ईपीआई) होगा।” भारत की पुरानी व्यवस्थ बदलती दिख रही है और जनता तथा समाज के लिए यह अच्छा हो रहा है। जो व्यवस्था अंग्रेजों के राज की निशानी मानी जाती थी और जीवन शैली बन गई थी, उसे खत्म करने का सरकार का कदम सराहनीय है। लोकतांत्रिक आदर्शों को सुदृढ़ करने की मंशा के साथ यह बड़ी उपलब्धि है। प्रधानमंत्री मोदी ने एक ट्वीट का उत्तर देते हुए कहा कि जहां तक नए भारत के उदाहरण का सवाल है तो ये प्रतीक पुराने हो चुके हैं। लाल बत्ती पर प्रतिबंध से औपनिवेशिक युग का अंत हुआ है इससे वे लोकतांत्रिक सिद्धांत फिर स्थापित हुए हैं, जिन्हें भारत चाहता है।
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[2] https://www.vifindia.org/author/dr-madhumita-balaji
[3] http://www.vifindia.org/sites/default/files/vibrant-india-vol-1-no-12-the-removal-of-lal-batti-a-stamp-out-on-the-vip-culture.pdf
[4] https://www.yahoo.com/news/indian
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