प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में गत 15 मार्च को केन्द्रीय केबिनेट ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 को मंजूरी दे दी है. वर्ष 2002 के पंद्रह साल बाद स्वास्थ्य नीति को लेकर केंद्र सरकार द्वारा लिए गए इस निर्णय से स्वास्थ्य क्षेत्र में व्यापक स्तर पर बदलावों की संभावनाओं को देखा जा रहा है. दरअसल भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में स्वास्थ्य सुविधाओं की जन-जन तक सुगमता से पहुँच अभी भी एक चुनौती बनी हुई है. देश की बड़ी आबादी उन स्वास्थ्य सुविधाओं को प्राप्त नहीं कर पा रही है, जिनकी उन्हें दरकार है. सरकार द्वारा मंजूर इस स्वास्थ्य नीति पर अगर गौर करें तो इसमें लोक कल्याणकारी प्रावधानों के साथ-साथ नीतिगत स्तर पर स्वास्थ्य क्षेत्र की आर्थिक सुदृढ़ता को मजबूत करने की दिशा में पहल की गयी है. आम तौर पर स्वास्थ्य एवं शिक्षा को लेकर सरकारें लोक कल्याणकारी नीतियों के नाम पर राज्य का बोझ अत्यधिक बढ़ाती जाती हैं, लेकिन इस नई नीति में कुछ हदतक परिवर्तन देखा जा सकता है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति लागू होने के बाद किन-किन मोर्चों पर लाभ होगा और स्वास्थ्य क्षेत्र में किस ढंग से परिवर्तन मूर्त रूप लेंगे, इसे समझने के लिए इसके विविध प्रावधानों पर गौर करना होगा. दूरगामी लक्ष्यों की अगर बात करें तो स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने संसद में जो खाका प्रस्तुत किया है, उसके अनुसार वर्ष 2025 तक जन्म से जुड़ी जीवन प्रत्याशा को 67.5 से बढ़ाकर 70 साल करने, वर्ष 2022 तक अशक्तता समायोजित आयु की निगरानी करने, 2025 तक पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर को नियंत्रित कर 23 करने, नवजात शिशु मृत्यु दर को घटाकर 16 तक पहुंचाने एवं मृत जन्म वाली शिशु दर को इकाई अंकों में लाने का लक्ष्य रखा गया है. साथ ही कुछ बीमारियों अथवा रोगों के उन्मूलन को लेकर सरकार द्वारा तय सीमा में निवारण का लक्ष्य इस स्वास्थ्य नीति में रखा गया है. मसलन, कुष्ठ रोग निवारण के लिए वर्ष 2018 तक का लक्ष्य रखा गया है तो कालाजार और लिम्फेटिक फाईलेरियासिस के उन्मूलन के लक्ष्य को 2017 अंत तक हासिल करने की बात कही गयी है. भारत को 2025 तक पूर्णतया छय रोग से मुक्त करने की दिशा में आगे बढ़ने का लक्ष्य भी रखा गया है. इसमें कोई दो राय नहीं कि कैंसर, मधुमेह, ह्रदय संबंधी बीमारियों से अकाल मृत्यु की समस्या भारत के लिए स्वस्थ समाज के निर्माण में बाधक की तरह अभी भी खड़ी है. सुनिश्चित योजना से इन बीमारियों से मुक्ति की दिशा में कदम बढाने की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही है. स्वास्थ्य नीति 2017 में इस समस्या पर भी गंभीरता पूर्वक विचार करते हुए सरकार ने अकाल मृत्यु की दर को घटाने की दिशा में कदम उठाने की मंशा जताई है.
इसमें कोई दो राय नहीं कि उपरोक्त लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए स्वास्थ्य क्षेत्र के ढांचागत बदलावों के साथ-साथ सस्ते स्वास्थ्य सुविधाओं की सुलभता पर भी ध्यान देने की जरूरत है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में प्रति 1000 व्यक्तियों पर 2 बेड सुरक्षित करने का प्रावधान रखा गया है. चूँकि सार्वजनिक क्षेत्र के तहत अगर ढांचागत बदलावों के लक्ष्यों को सीमित कर दिया गया तो यह कार्य पूरा हो पाएगा, इसको लेकर संदेह है. अत: निजी क्षेत्रों की सहभागिता से ढांचागत बदलावों को अमली जामा पहनाने की दिशा में सरकार ने निर्णय किया है. भारत सरकार की वेबसाईट पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति-2017 के संबंध में जारी एक समाचार नोट के दूसरे पैराग्राफ में स्वास्थ्य क्षेत्र में गुणवत्ता को बढाने एवं जरुरतमंदों के लिए स्वास्थ्य को सुलभ बनाने के लिहाज से निजी क्षेत्रों की भागीदारी को अहम् जरूरत के रूप प्रस्तुत किया गया है. स्वास्थ्य मंत्री ने जरुरी स्वास्थ्य संबधी उपकरणों को भारत में निर्मित करने के लिए ‘मेक इन इण्डिया’ को भी स्वास्थ्य क्षेत्र में निजी कंपनियों के माध्यम से लाने पर सहमति जताई है. इसमें कोई शक नहीं कि निर्माण क्षेत्र में सरकार का उतरना उचित नहीं था, लिहाजा सार्वजनिक-निजी सहभागिता से जिला एवं इससे ऊपर के स्तर के अस्पतालों के निर्माण, रख-रखाव, उपकरणों की उपलब्धता आदि को करने का फैसला लिया गया है. जब स्वास्थ्य क्षेत्र की आधारभूत संरचना के विकास में निजी क्षेत्र की सहभागिता बढ़ेगी तो सार्वजनिक क्षेत्र लोक कल्याणकारी योजनाओं को बेहतर ढंग से लागू कर पाएगा. हमें गौर करना होगा कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में सरकार ने जेनरिक दवाइयों की अत्यधिक उपलब्धता, सबको बुनियादी चिकित्सा की मुफ्त व्यवस्था, मुफ्त निदान, दवाइयों की उपलब्धता एवं निशुल्क आपात सेवाओं का उचित ढंग से संचालन किए जाने की बात कही गयी है. अब यदि सरकार इन लक्ष्यों को हासिल करना चाहती हैं तो उसे एक बड़े बजट की जरूरत अवश्य होगी. वर्तमान में भारत का स्वास्थ्य बजट कुल जीडीपी का 1.04 फीसद है. हालांकि राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में इसको बढ़ाकर 2.5 फीसद करने का प्रस्ताव किया गया है. लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि स्वास्थ्य बजट में की गयी इस बढ़ोतरी को .5 फीसद के हेल्थ सेस के माध्यम से जुटाया जाएगा. चूँकि स्वास्थ्य में बजट में अगर दोगुने की बढ़ोतरी की जाती है तो उसको किसी न किसी रूप में जुटाना सरकार की विवशता है.
स्वास्थ्य के क्षेत्र में निजी क्षेत्रों की सहभागिता को प्रोत्साहित करने पर हो सकता है कि निजी क्षेत्र के प्रसार का विरोध करने वाली विचारधाराओं वाले समूहों को आपत्ति हो, लेकिन यथार्थ के धरातल पर जाकर जब पड़ताल करते हैं तो यही महसूस होता है कि बड़े अस्पतालों के निर्माण, उनके रख-रखाव आदि में सरकारी खजाने से बहुत रकम खर्च होती है, जो अगर इलाज पर सीधे खर्च हो तो शायद आम गरीब तबके के मरीजों को फायदा मिले. ऐसे में सरकार द्वारा उच्च स्तर के अस्पतालों को निजी क्षेत्रों के सहयोग से बनाने की पहल परिवर्तनकारी कही जा सकती है. एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार भारत में चिकित्सकों से जनच कराने एवं अस्पताल में भर्ती होने के मामले में निजी अस्पतालों की भूमिका क्रमश: 80 एवं 60 फीसद है. अर्थात देश के अधिकांश मरीज निजी अस्पतालों पर निर्भर हैं, जहाँ उनको अपनी जेब से इलाज का खर्च वहन करना पड़ता है. ऐसे में सरकार अगर उनके इलाज के खर्च को बीमा आदि के माध्यम से निजी अस्पतालों को मुहैया करा दे तो मरीज के स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च में बड़ी कमी आएगी. ऐसे में अगर निजी अस्पतालों में यह सुविधा देनी है तो फिर सरकार को निर्माण क्षेत्र से ज्यादा सेवा क्षेत्र पर खर्च करना होगा. लिहाजा उसे अस्पताल बनाने पर खर्च करने की बजाय मरीजों के लिए किसी भी अस्पताल में सस्ती अथवा मुफ्त स्वास्थ्य सुविधाओं की व्यवस्था करनी होगी. हालांकि अभी इस प्रणाली को किस रूप में विकसित किया जाएगा, पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है. सरकार डिजिटाईजेशन के स्तर पर भी स्वास्थ्य सेवाओं को जोड़ने की बात अपने प्रस्ताव में कर रही है. इसको एक जरुरी पहल के रूप में देखा जा सकता है. स्वस्थ भारत के निर्माण में उन प्रणालियों पर भी काम शुरू किए जाने की जरूरत है, जो परंपरागत हैं. इस दिशा में आयुष मंत्रालय पहले से काम करता नजर आ रहा है. लेकिन इस स्वास्थ्य नीति में भी प्राथमिक स्कूलों में योग आदि के माध्यम से स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का प्रसार करने की कोशिशों को तरजीह दी गयी है. ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि सरकार द्वारा प्रस्तावित यह स्वास्थ्य नीति स्वास्थ्य क्षेत्र में एक परिवर्तनकारी कदम की तरह साबित हो सकती है. इसको अगर सही ढंग से लागू किया गया तो परिणाम बेहतर नजर आने की संभावना प्रबल रूप से दिखती है.
(लेखक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च फैलो हैं एवं नैशनलिस्ट ऑनलाइन डॉट कॉम में संपादक हैं.)
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