निर्यात से चलने वाला और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में व्यापार की अधिक हिस्सेदारी वाला क्षेत्र होने के कारण पूर्वी एशिया ने विनिमय दरें अनुकूल बनाने के लिए प्रायः मौद्रिक साधनों का प्रयोग किया है। विनिमय दरों में कमी यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही है कि निर्यात में प्रतिस्पर्द्धात्मकता रहे और व्यापार संतुलन धनात्मक रहे। कई पूर्वी एशियाई देशों में केंद्रीय बैंक विनिमय दरों को ठीक करने के लिए और वैश्विक वित्तीय बाजारों में आम उतार-चढ़ाव से बचने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार तो रखते ही हैं, सॉवरिन ऋण (डेट) भी खरीदते हैं। सॉवरिन ऋण को सरकार का समर्थन प्राप्त होता है और इसीलिए सामान्यतः इसे कम जोखिम वाली संपत्ति माना जाता है और अगर देश का ऋण उसके जीडीपी की तुलना में अस्थिर न हो तो रकम वापस मिलने की बहुत अधिक संभावना होती है। पूर्वी एशिया ही नहीं, पूरी दुनिया में सबसे प्रमुखता से खरीदा जाने वाला सॉवरिन ऋण ‘अमेरिकी फेडरल डेट’ है, जिसे अमेरिकी वित्त विभाग हुंडियों, नोटों, बॉण्ड तथा मुद्रास्फीति से अप्रभावित रहने वाले ऋणपत्रों (सिक्योरिटी) के रूप में बेचता है। जीडीपी की तुलना में ऋण के ऊंचे अनुपात (2016 में जीडीपी का 114 प्रतिशत) के बाद भी अमेरिकी सरकारी ऋणपत्र अमेरिका के वैश्विक दबदबे के कारण और डॉलर में होने के कारण सुरक्षित संपत्ति होते हैं। लगभग 20,000 अरब डॉलर के बकाया अमेरिकी सरकारी ऋण (2016 के अंत के आंकड़े) में से करीब 30 प्रतिशत अमेरिकी सरकार की संपत्तियों के रूप में हैं और बाकी 70 प्रतिशत ऋण सार्वजनिक है, जिसमें से 30 प्रतिशत विदेशी सरकारों तथा निवेशकों के पास है।1 इस प्रकार अमेरिका के सरकारी ऋण में दो-तिहाई से अधिक स्वयं अमेरिकियों के पास है।
विदेशी सरकारों के पास मौजूद अमेरिकी सरकारी ऋणपत्रों में आधे से अधिक (2,700 अरब डॉलर अथवा कुल अमेरिकी ऋण के 14 प्रतिशत) पूर्वी एशियाई सरकारों के पास है।2 द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पूर्वी एशिया में अमेरिकी गठबंधन ने क्षेत्र में सुरक्षा का भाव भर दिया और देशों को अपनी आर्थिक वृद्धि तथा विकास पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर दिया। इसके अलावा अमेरिकी घरेलू बाजार को सबसे आकर्षक निर्यात बाजार माना जाता था और इसीलिए अधिकतर देशों ने अपनी विनिमय दरों को डॉलर के बाजार मूल्य के अनुरूप कर लिया। अपनी विनिमय दरों को ठीक करने का एक तरीका ढेर सारे अमेरिकी सरकारी ऋणपत्र खरीदकर भारी मात्रा में डॉलर इकट्ठे करना था ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि डॉलर का मूल्य उनकी अपनी मुद्रा की तुलना में नीचे नहीं जाएगा। वास्तव में विदेश में मौजूद अमेरिकी सरकारी ऋणपत्रों की सबसे बड़ी धारक पूर्वी एशिया की सरकारें ही मानी जाती हैं, जो रणनीतिक तथा आर्थिक दोनों मामलों में बहुत वांछित स्थिति है। जापान अक्टूबर, 2016 में (एक बार फिर) चीन को पछाड़कर अमेरिकी सरकारी ऋणपत्रों का सबसे बड़ा धारक बन गया। इस मामले में चीन ने अगस्त, 2008 में जापान को ही पछाड़ा था। हालांकि जापान और चीन दोनों के ऋणपत्र भंडार में कमी आ रही है, लेकिन चीन के भंडार में अक्टूबर में 41.3 अरब डॉलर की कमी आई, जिसके बाद उसके पास कुल 1,120 अरब डॉलर के ऋणपत्र बचे, जबकि जापान के पास 1,130 अरब डॉलर के ऋणपत्र हैं।3
नई सहस्राब्दी में ‘विश्व का कारखाना’ बनने के बाद से चीन की तीव्र आर्थिक वृद्धि ने अमेरिका तथा चीन के बीच आर्थिक संबंध काफी बढ़ा दिए हैं। 2015 में अमेरिका-चीन द्विपक्षीय व्यापार ने अमेरिका-कनाडा व्यापार को पीछे छोड़ दिया और दुनिया में सबसे बड़ा द्विपक्षीय व्यापार संबंध बन गया। चीन तथा कनाडा के साथ अमेरिका के व्यापार के आंकड़े 2015 में क्रमशः 600 अरब डॉलर तथा 577 अरब डॉलर रहे। इसके अलावा अमेरिका-चीन व्यापार में व्यापार अधिशेष लगातार चीन की ओर रहने (2015 में 367 अरब डॉलर) से चीन के लिए अमेरिकी सरकारी ऋणपत्र खरीदना ऐच्छिक नहीं बल्कि अनिवार्य हो गया है।4चीन सरकार ने रेनमिनबी के मूल्य को बेहद छोटे दायरे में रखा है, जिसके उतार-चढ़ाव पर सरकार का नियंत्रण रहता है, जबकि पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना का देश में होने वाले विदेशी मुद्रा के सभी लेनदेन पर पूरा नियंत्रण है। चूंकि चीन में डॉलर की बेरोकटोक आवक होती रहती है, इसलिए रेनमिनबी का मूल्य बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है और प्रतिस्पर्द्धात्मकता खत्म होने का डर भी हो जाता है। अमेरिकी सरकारी ऋणपत्र खरीदने से पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना अपने भारी व्यापार अधिशेष को कीमती संपत्तियों में बदल लेता है और सुनिश्चित करता है कि रेनमिनबी के मूल्य में फेरबदल के बिना अथवा चीनी अर्थव्यवस्था में महंगाई बढ़े बगैर ही निर्यात में चीन की प्रतिस्पर्द्धात्मकता बनी रहे।
चीन की ही तरह जापान भी अमेरिकी सरकारी ऋणपत्र लगातार खरीदता रहा है। ब्रेटन वुड्स व्यवस्था 1971 में ही खत्म होने के बावजूद 1985 की प्लाजा संधि से पहले कम मूल्य वाले येन की कीमत नहीं बढ़ी थी। जापान के मामले में अमेरिका के साथ भारी व्यापार अधिशेष ने विदेशी मुद्रा के बाजारों में येन की जबरदस्त मांग उत्पन्न कर दी और येन के मूल्य को जापान से बाहर जाने वाली पूंजी के भारी प्रवाह ने कम बनाए रखा। अमेरिका और जापान में ब्याज दरों में अच्छे खासे अंतर के कारण जापानी निवेशकों ने अमेरिका में निवेश किया (एक समय रॉकफेलर सेंटर, कोलंबिया पिक्चर्स सुर्खियों में थे) और सुनिश्चित किया कि येन की तुलना में डॉलर की कीमत कम नहीं होने पाए। अमेरिकी ऋण खरीदने के जापान के लिए रणनीतिक निहितार्थ भी थे क्योंकि इससे “स्वच्छंद या मनमर्जी से चलने वाले सहयोगी” के ठप्पे के साथ होने वाली उसकी आलोचना बंद हो गई और अमेरिका-जापान व्यापारिक टकराव का तनाव भी समाप्त हो गया। 1990 में शेयर बाजारों के ढहने और संपत्ति का बुलबुला फूटने के बाद कुछ समय तक चली मंदी/ठहराव तथा बूढ़ी होती और घटती आबादी के कारण बैंक ऑफ जापान ने प्रणाली में नई मुद्रा डालने पर ध्यान केंद्रित कर लिया है। ‘अबेनॉमिक्स’ के साथ अब कहा जा सकता है कि जापान बेशक अमेरिकी कॉर्पोरेट ऋण के सबसे बड़े धारकों में शुमार है, लेकिन निवेश का सुरक्षित ठिकाना पाने के लिए वह लगातार बड़ी संख्या में अमेरिकी ऋणपत्र खरीदता रहेगा।
विश्व की भंडार योग्य मुद्रा का डॉलर का दर्जा और अपनी मुद्राओं का मूल्य कम रखने तथा “सुरक्षित” डॉलर संपत्तियां अपने पास रखने (चूंकि कोई विकल्प ही नहीं है) की कई सरकारों की इच्छा ने सुनिश्चित किया है कि दुनिया भर में अमेरिकी ऋण के लिए धन आता रहे और उसे खरीदा जाता रहे। एक स्वतः स्फूर्त चक्र में चलने वाली इस प्रक्रिया ने अमेरिका को भारी सैन्य प्रतिबद्धताएं पूरी करने में मदद की है और इस तरह अमेरिकी शक्ति का प्रभुत्व भी सुनिश्चित हुआ है। पूर्वी एशिया के मामले में अमेरिका ने बड़े और गंभीर व्यापारिक घाटों को अपनी सरकारी वित्तीय एवं निजी वित्तीय इकाइयों को चीन/जापान की बड़ी घरेलू बचतों तथा भारी विदेशी मुद्रा भंडारों से मिलने वाली सस्ती पूंजी के साथ आने वाला दुष्प्रभाव मान लिया है। इसके अलावा विनिर्मित वस्तुओं तथा कच्चे माल का इतना सस्ता आयात होने से अमेरिका में जीवन का स्तर (मुद्रास्फीतिपरक) आय बढ़े बगैर भी बरकरार रहता है तथा अमेरिकी व्यापारों में लागत भी कम होती है। लेकिन जीडीपी की तुलना में ऋण के बढ़ते अनुपात से अमेरिका के सामने दूसरे देशों द्वारा उसके ऋणपत्र बेचे जाने का संकट खड़ा हो गया है क्योंकि इससे मुद्रा की आपूर्ति कम हो जाएगी और अमेरिकी ब्याज दरें बढ़ जाएंगी, जिससे अमेरिकी ऋण रखना और भी महंगा हो जाएगा।
लेकिन 2016 में चीन द्वारा अमेरिकी सरकारी ऋणपत्रों की भारी बिकवाली से स्थिति में सुधार नहीं आया था। कई दशकों से दोहरे अंकों में वृद्धि होने के कारण चीन के पास आवश्यकता से अधिक क्षमता हो गई है, रियल एस्टेट का बुलबुला बन गया है और फैलते हुए असंगठित बैंकिंग क्षेत्र के कारण वित्तीय संकट मंडरा रहा है। उसके सामने “हॉट मनी” (अटकलों के आधार पर बेहद कम समय के लिए किया गया निवेश) और भारी मात्रा में घरेलू पूंजी बाहर जाने की समस्या भी खड़ी हो गई है। खबरें हैं कि चीन के बाजार ढहने के दौरान, चीनी नागरिकों ने प्रतिबंधों के बावजूद लगभग 500 अरब डॉलर अमेरिकी रियल एस्टेट समेत विभिन्न विदेशी संपत्तियों में लगा दिए।5 2017 के आरंभ में चीन सरकार ने 50,000 डॉलर विदेशी मुद्रा प्रति व्यक्ति का कोटा बरकरार रखा, लेकिन पूंजी को बाहर जाने से रोकने के लिए उसने खुलासे की अतिरिक्त आवश्यकताएं भी घोषित कर दीं।6 2013 से ही चीन का व्यापार कारोबार घट रहा है, लेकिन व्यापार अधिशेष धीरे-धीरे बढ़ रहा है क्योंकि जिंसों की कीमतों में कमी के कारण आयात घट गया है। 2015 में कुल व्यापार में 8 प्रतिशत कमी आई, लेकिन व्यापार अधिशेष 35 प्रतिशत बढ़ गया।7
वृद्धि दरें इस वर्ष 6.7 से 6.5 प्रतिशत अथवा इसके भी नीचे रहने की संभावना है। अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए किए जा रहे व्यय और रेनमिनबी को (पूंजी विदेश जाने के दबाव से) बचाकर स्थिर रखने के प्रयासों के कारण चीन सरकार को अपना भारी विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से खर्च करना पड़ा है। नवंबर, 2016 में विदेशी मुद्रा भंडार 3,050 अरब डॉलर था, जो 2011 की तुलनना में कम था क्योंकि पिछले 28 महीनों में लगभग 920 अरब डॉलर खर्च कर दिए गए।8 इसके बावजूद चीन के भविष्य के लिए सब कुछ निराशाजनक नहीं है क्योंकि चीन सरकार ने अपने देश की अर्थव्यवस्था को मंदी के अनुरूप ढालने तथा घरेलू खपत पर अधिक जोर देने का प्रयास किया है। इसके अलावा चीनी अर्थव्यवस्था में ढांचागत बदलाव भी एकदम स्पष्ट हैं, जैसे सबसे अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्राप्त करने वाला देश चीन अब विदेश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (ओएफडीआई) करने वाला तीसरा सबसे बड़ा निवेशक भी बन गया है। 2015 में उसने लगभग 120 अरब डॉलर का गैर पूंजीगत ओएफडीआई किया।9 किंतु दिसंबर, 2016 में अमेरिका में दरें बढ़ने (और 2017 में दरों में फिर बढ़ोतरी होने के संकेत मिलने) से अमेरिकी डॉलर की कीमत बढ़ने की अटकलें लगने लगी हैं, जिससे रेनमिनबी में कमजोरी आ जाएगी और चीन की अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति पैदा हो जाएगी। इसके अलावा चीन का विदेशी ऋण (जून, 2015 के आंकड़ों के अनुसार 1,680 अरब डॉलर10) और महंगा हो जाएगा क्योंकि डॉलर का मूल्य बढ़ने से मूलधन तथा उस पर ब्याज की दरें भी बढ़ जाएंगी।
इसलिए 2016 में भारी मात्रा में अमेरिकी सरकारी ऋणपत्र बेचने की चीन की हरकत को मौद्रिक सख्ती बरतने की उसकी आर्थिक आवश्यकता के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। इसके अलावा बेल्ट एंड रोड, एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक जैसी योजनाओं ने चीन के व्यापार अधिशेष के बेहतर उपयोग के नए रास्ते खोल दिए हैं, जो उसकी विदेश नीति के लक्ष्यों के अनुरूप भी हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अक्टूबर, 2016 से रेनमिनबी को भी डॉलर, यूरो, येन और पौंड के साथ स्पेशल ड्रॉइंग राइट्स (एसडीआर) की श्रेणी में रख दिया है। रेनमिनबी को मिला एक्सडीआर (एसडीआर मुद्रा) का दर्जा उसके अंतरराष्ट्रीयकरण में मील का पत्थर है और चीन के आर्थिक विकास की सफलता की पुष्टि है। इस तरह डॉलर के बजाय रेनमिनबी को भंडार योग्य मुद्रा बनाने की चीन की इच्छा पूरी होने में अभी बहुत समय है। अमेरिका में ट्रंप की अगुआई में नया प्रशासन आने से और बुनियादी ढांचे पर खर्च करने तथा व्यापार संरक्षवाद बढ़ाने के उनके एजेंडा से डॉलर के बाजार मूल्य पर अनिश्चितता छाई हुई है। चूंकि चीन के विदेशी मुद्रा भंडार में एक तिहाई हिस्सा अमेरिकी सरकारी ऋणपत्रों का है, इसलिए इस बात की संभावना बहुत कम है कि चीन अमेरिका के साथ मुद्रा युद्ध आरंभ करे और अपना भंडार कम कर ले।
निष्कर्ष
निर्यात में प्रतिस्पर्द्धात्मकता सुनिश्चित करने के लिए पूर्वी एशिया के देशों को डॉलर की तुलना में अपनी मुद्राओं की कीमत बरकरार रखनी होगी। चूंकि अमेरिका प्रमुख निर्यात बाजार है, इसलिए अमेरिकी सरकारी ऋणपत्रों में निवेश करने से उन्हें अमेरिका के साथ भारी व्यापार अधिशेष के कारण डॉलर का (अपनी मुद्राओं की तुलना में) संभावित मूल्यह्रास रोकने में मदद मिलती है। पूर्वी एशिया के देशों में अमेरिकी सरकारी ऋणपत्र इसलिए भी लोकप्रिय हैं क्योंकि उनकी अपेक्षा “सुरक्षित” वैश्विक संपत्ति कोई नहीं है। अमेरिकी सरकारी ऋणपत्रों के कारण अमेरिका एवं पूर्वी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में स्वतः स्फूर्त पारस्परिक निर्भरता के बावजूद अमेरिकी सरकार स्वच्छंद है क्योंकि पूर्वी एशियाई सरकारों के पास उसका ऋण है। चीन और जापान की अपेक्षा स्वयं अमेरिका के पास ही (सरकारी ऋणपत्रों के जरिये) अधिक अमेरिकी सरकारी ऋण है और अपने ऋण से धन कमाने के लिए वह किसी भी समय और ऋण खरीद सकता है। इसलिए डॉलर में मूल्य वाले अमेरिकी सरकारी ऋणपत्रों की मांग और प्रमुखता पूर्वी एशिया में बनी रहेगी।
संदर्भ
Links:
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[2] https://www.vifindia.org/author/prerna-gandhi
[3] http://www.usdebtclock.org/
[4] http://ticdata.treasury.gov/Publish/mfh.txt
[5] https://www.bloomberg.com/news/articles/2016-12-15/japan-overtakes-china
[6] https://www.census.gov/foreign-trade/balance/index.html
[7] http://www.cnbc.com/2015/10/14/what-china-selling-us-treasurys-really-me
[8] https://www.bloomberg.com/news/articles/2017-01-03/china-drills-down-int
[9] http://english.mofcom.gov.cn/article/statistic/BriefStatistics/201603/20
[10] http://www.safe.gov.cn/wps/portal/english/Data/Forex
[11] http://www.china-invests.net/20120516/29183.aspx
[12] http://english.gov.cn/archive/statistics/2015/10/02/content_281475202939
[13] http://www.vifindia.org/article/2017/january/16/us-treasury-securities-why-holding-us-debt-matters-in-east-asia
[14] http://www.live-news24.com
[15] http://www.facebook.com/sharer.php?title=अमेरिकी सरकारी ऋणपत्र: अमेरिकी ऋण रखना पूर्वी एशिया में क्यों है महत्वपूर्ण&desc=&images=https://www.vifindia.org/sites/default/files/US-Treasury-Securities-Why-holding-US-Debt-matters-in-East-Asia_0.jpg&u=https://www.vifindia.org/article/hindi/2017/february/13/ameriki-sarakari-rnapatra-ameriki-rna-rakhana-purvi-esiya-mem-kyon-hai-mahatvapurna
[16] http://twitter.com/share?text=अमेरिकी सरकारी ऋणपत्र: अमेरिकी ऋण रखना पूर्वी एशिया में क्यों है महत्वपूर्ण&url=https://www.vifindia.org/article/hindi/2017/february/13/ameriki-sarakari-rnapatra-ameriki-rna-rakhana-purvi-esiya-mem-kyon-hai-mahatvapurna&via=Azure Power
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