राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए), जिसे 26/11 के मुंबई हमलों के बाद विशेष रूप से आतंकवाद संबंधी घटनाओं की जांच के लिए 2009 में गठित किया गया था, को 13 दिसंबर 2016 को बड़ी सफलता मिली, जब हैदराबाद में एनआईए की विशेष अदालत ने प्रतिबंधित इंडियन मुजाहिदीन (आईएम) के पांच सदस्यों को हैदराबाद के दिलसुखनगर क्षेत्र में 21 फरवरी, 2013 को दोहरे विस्फोट के लिए दोषी करार दिया। उसके बाद 19 दिसंबर, 2016 को विशेष अदालत ने अभियोजन तथा बचाव पक्ष की दलीलें सुनने के बाद पांचों दोषी अभियुक्तों को मौत की सजा सुना दी। (एनएम भारत सरकार 2016)
युवा जांच एजेंसी के लिए इसे दो कारणों से बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है; पहला कारण - इसकी संपूर्ण तथा कुशलता भरी जांच एवं अभियोजन तथा दूसरा - रिकॉर्ड समय के भीतर सुनवाई समाप्त होकर फैसला आना। देश में आईएम के आतंकवादियों को दोषी ठहराए जाने का यह पहला बड़ा अवसर है। दोषियों में आईएम का सह संस्थापक मोहम्मद अहमद सिद्दीबापा उर्फ यासीन भटकल भी शामिल है। मुख्य षड्यंत्रकर्ता यासीन भटकल की गिरफ्तारी बहुत चुनौतीपूर्ण थी क्योंकि दोहरे विस्फोट के बाद भटकल ने टेलीफोन और इंटरनेट से दूरी बना ली थी ताकि उसका पता नहीं चल सके। एनआईए ने खुफिया एजेंसियों के साथ मिलकर काम किया और पता लगा लिया कि भटकल नेपाल में है। उसकी हरकतों पर बारीक नजर रखी गई और उसे नेपाल लाकर गिरफ्तार कर लिया गया। (गायकवाड़ 2013)
एनआईए के पेशेवर जांचकर्ताओं द्वारा मेहनत के साथ जांच किए जाने के बाद अभियोजकों के साथ मिलकर रियाज भटकल (ए1), असदुल्ला अख्तर (42), वकास (ए3), मोहम्मद तहसीन अख्तर (ए4) और यासीन भटकल (ए5) के खिलाफ विस्तृत आरोपपत्र (एनएम भारत सरकार 2014) लगभग एक वर्ष के भीतर ही 14 मार्च, 2014 को एनआईए की अदालत में पेश कर दिया गया। आरोपपत्र में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं 302, 307, 324, 326, 201, 120बी, 124ए, 153ए, विस्फोटक सामग्री अधिनियम, 1908 की धारा 3 और 5 तथा अवैध गतिवधि (निरोधक) अधिनियम, 1967 की धाराओं 16, 18 और 20 के तहत किए गए अपराधों का उल्लेख था। (एनएम भारत सरकार 2014) सुनवाई लगभग 31 महीने चली और अंत में एनआईए को अपने पेशे की परम संतुष्टि मिली क्योंकि उनकी अथक कोशिशों का फल उसे मिल गया।
उसी दिन यानी 19 दिसंबर, 2016 को देश में आतंकवाद से संबंधित मामलों में जांच के क्षेत्र में एक और घटना हुई, जो हाल के दिनों में उतनी ही महत्वपूर्ण थी। एनआईएन के जांचकर्ताओं की एक टीम ने पठानकोट एयरबेस पर 2 जनवरी, 2016 को हुए आतंकवादी हमले में विस्तृत आरोप पत्र दाखिल कर दिया। इस हमले में 7 जवान/सुरक्षाकर्मी शहीद हुए थे और चार आतंकवादी मारे गए थे। यह बहुत पेचीदा मामला था, जो 26/11 को लश्कर-ए-तैयबा द्वारा मुंबई में किए गए हमले या 13/12 को संसद में हमले अथवा 1999 के आईसी 814 विमान अपहरण से अलग था, जिन्हें उतने ही कुख्यात जैश-ए-मोहम्मद ने अंजाम दिया था। पठानकोट हमले की पूरी योजना पाकिस्तान में बैठे जैश के वरिष्ठ कमांडरों या नेताओं की निगरानी और नियंत्रण में बनाई गई थी और उसे अंजाम दिया गया था, लेकिन उससे जुड़े सबूत इलेक्ट्रॉनिक तथा अन्य तकनीकी जानकारी पर आधारित थे। इस बार एनआईए के हाथ में 26/11 के ‘कसाब’ या संसद हमले के ‘अफजल गुरु’ जैसा कोई नहीं था।
एनआईए से मामले की जांच करने को कहा गया और उसने अपराध होने के बाद एक वर्ष से भी कम समय में ढेरों सबूत जुटा डाले। जांच में इलेक्ट्रॉनिक सूचना का विश्लेषण करना, आवाजों के नमूने लेना, अंतरराष्ट्रीय कॉल्स का ब्योरा हासिल करना, गवाहों से पूछताछ करना, बेहद जटिल डीएनएन प्रोफाइलिंग करना और एक वर्ष में जुटाए गए सभी सबूतों का निरीक्षण करना शामिल था। (एनएम भारत सरकार 2016) पंजाब के विभिन्न जिलों में बैठे चार दलों ने इतने ही समय में तथ्यों का सत्यापन किया और गवाहों से पूछताछ की। (भारत सरकार, पठानकोट आतंकी हमले 2016 में जांच की जानकारी)
एनआईए के जांचकर्ताओं ने गवाहों के बयानों के रूप में इस बात के पर्याप्त सबूत इकट्ठे किए कि आतंकवादियों को जैश के नेता मौलाना मसूद अजहर और मुफ्ती अब्दु रऊफ द्वारा प्रशिक्षित, प्रेरित किया गया था और कट्टर बनाया गया था। उन्होंने फोन पर हुई बातचीत टैप कर और गवाहों के बयानों के जरिये यह भी साबित किया कि काशिफ जान और शाहिद लतीफ ने वायुसेना के ठिकाने पर हमला करने वाले चारों आतंकवादियों को रास्ता दिखाया था, हथियार मुहैया कराए थे और वहां भेजा था। घटनास्थल से मिले सामान और दस्तावेजी सबूतों, फॉरेंसिक रिपोर्ट और फोन कॉल्स के भारीभरकम विश्लेषण ने स्पष्ट रूप से साबित कर दिया कि पठानकोट एयरबेस पर हमले में जैश के आतंकवादियों का हाथ था।
भारत सरकार के गृह मंत्रालय से अवैध गतिवधि (निरोधक) अधिनियम, 1967 की धारा 45(1) के तहत अभियोजन की अनुमति मांगी गई। शस्त्र अधिनियम, 1959 की धारा 39 और विस्फोटक सामग्री अधिनियम, 1908 की धारा 7 के तहत आवश्यक अनुमति भी पठानकोट के जिला मजिस्ट्रेट से ले ली गई है और उसे आरोपपत्र के साथ जमा भी कर दिया गया है। (एनएम भारत सरकार 2016) एनआईए की वेबसाइट पर मौजूद आरोपपत्र को पढ़ने के बाद इस बात में कोई संदेह ही नहीं रह जाता कि एजेंसी से कम से कम समय में बहुत उत्कृष्ट जांच की है।
2009 में गठित एनआईए को शुरुआत में दिल्ली में ही केंद्रित संगठन माना गया था, जिसे राज्यों में अपराध शाखाओं, विशेष जांच दलों (एसआईटी) और विशेष कार्य बलों (एसटीएफ) से मुकाबला करना पड़ता। आरंभिक दिनों में उसके सामने बाधाएं भी आईं क्योंकि राज्य नई संस्था को महत्व देने के लिए तैयार ही नहीं थे; कई बार मामले सौंपने में देर करते थे; सहयोग नहीं करते थे। लेकिन धीरे-धीरे एजेंसी ने इस समस्याओं से पार पा लिया और अब वह आतंकवाद रोधी मामलों की जांच करने वाली बुनियादी एजेंसी बनकर उभर चुकी है। अब देश भर में इसकी उपस्थिति है और हैदराबाद, गुवाहाटी, मुंबई, कोच्चि तथा लखनऊ में इसकी पूर्ण इकाइयां एवं शाखाएं हैं। एनआईए ने अब एक अलग विशेषज्ञ प्रकोष्ठ ‘टेरर फंडिंग एंड फेक करेंसी सेल (टीएफसीसी सेल)’ स्थापित कर लिया है, जो जाली भारतीय मुद्रा तथा आतंकवादियों को वित्तीय सहयोग जैसे मामलों से निपटता है। यह प्रकोष्ठ आतंवादियों को दी जा रही मदद तथा जाली भारतीय नोटों (एफआईसीएन) की जानकारी रखता है। यह उन मामलों में आतंकवादियों को आर्थिक सहायता दिए जाने के मामले भी खंगालता है, जिनकी जांच एनआईए नियमित तौर पर करती है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहे नक्सली समूहों को आर्थिक सहायता दिए जाने के मामलों में टीएफसीसी प्रकोष्ठ ने ऐसे ढेरों बैंक खातों का सत्यापन किया है, जिन पर नक्सली समूहों से संबंधित होने का संदेह है। लेकिन प्रकोष्ठ द्वारा की गई जांच में इन संदिग्ध खातों का ज्ञात नक्सली समूहों से कोई रिश्ता नहीं निकला। (पीएम भारत सरकार 2015)
आतंकी मामलों में वाकई राष्ट्रीय जांच एजेंसी बनकर उभर रही एनआईए के पास अभी आतंकवाद से जुड़े करीब 50 मामले हैं, जिनमें से 30 उसकी दिल्ली इकाई के हाथ में हैं। इनमें कुछ मामले अधिक गंभीर हैं, जैसे जम्मू-कश्मीर में उधमपुर, नगरोटा और उड़ी में हाल ही में हुए हमले, अबू जुंदाल मामला, बिहार तथा पश्चिम बंगाल में 2013/14 में हुए बम विस्फोट, एफआईसीएन तथा आतंकवाद को आर्थिक सहायता के कुछ मामले, 2011 के मक्का मस्जिद धमाके, मालेगांव और समझौता बम विस्फोट के विवादित मामले, अजमेर शरीफ बम विस्फोट, पूर्वोत्तर राज्यों में कई आतंकी मामले और केरल तथा दक्षिणी राज्यों में आईएसआईएस से संबंधित तमाम मामले। एनआईए ने मुंबई में नवंबर 2008 में हुए हमलों के पीछे की बड़ी साजिश का पर्दाफाश करने में भी मदद की है और अपराधियों को उनके अंजाम तक पहुंचाने के लिए अब वह अन्य कानून प्रवर्तन एवं सुरक्षा एजेंसियों के साथ मिलकर काम कर रही है।
राष्ट्रीय जांच एजेंसी बनने में एनआईए के सामने नई संस्था तैयार करने और उसके साथ में क्षेत्रीय तथा वैश्विक प्रभाव वाले आतंकवाद, उग्रवाद, आतंकियों की आर्थिक सहायता जैसे पेचीदा मामलों की जांच की दोहरी चुनौती है। कम से कम ऊपर बताए गए दो मामलों से एजेंसी को यह भरोसा हो जाना चाहिए कि उसे ऐसा किया है और भविष्य में भी ऐसा कर सकती है। सराहनीय कार्य और जांच के कारण उसने वैश्विक स्तर पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है; इसलिए अचरज की बात नहीं है कि दुनिया की अग्रणी जांच एजेंसी कहलाने वाली अमेरिकी की संघीय जांच ब्यूरो (एफबीआई) इस्लामिक स्टेट से जुड़े कुछ मामलों और चरमपंथ के मामलों में एनआईए के साथ मिलकर काम कर रही है। (कुमारी 2016)
एजेंसी के सामने चुनौती बहुत बड़ी है। उसके पास विशेष रूप से शीर्ष पेशेवर कर्मचारियों के मामले में संसाधन अब भी बहुत कम हैं। इससे सरकार पर भी यह जिम्मेदारी आ जाती है कि वह एनआईए में कामकाज को इतना आकर्षक बना दे कि सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाएं आतंकवाद के खिलाफ ‘जंग’ में साथ जुड़ जाएं। इसका मतलब कर्मचारियों के लिए काम की बेहतर स्थितियां बनाना भर नहीं है बल्कि इससे भी अहम है एजेंसी को स्पष्ट और अलग अधिकार देना, आतंकी मामलों की जांच एवं अभियोजन की प्रणाली को अधिका आसान बनाने के लिए नए कानून बनाना तथा कानूनों में समुचित संशोधन करना। यह कहना भी गलत नहीं होगा कि एनआईए का तंत्र सब कुछ अपने ही दम पर नहीं कर सकता। वह केवल जांच और मुकदमे कर सकती है। आतंकवाद के अभिशाप के खिलाफ राष्ट्र की लड़ाई को और भी ऊंचे स्तर तक ले जाने की जरूरत है। इसके लिए सरकार को अन्य देशों के समान प्रस्तावित राष्ट्रीय आतंकवाद निरोध केंद्र (एनसीटीसी) स्थापित कर खुफिया सूचनाएं जुटाने, समन्वय करने और कामकाज करने का बुनियादी ढांचा मजबूत करने के अपने पुराने विचार पर फिर नजर डालने की जरूरत है। यह काम तब तक आसान नहीं है, जब तक इस पर राष्ट्रीय सहमति नहीं बनती। तब तक अगर यह सुनिश्चित किया जाता है कि किसी भी आतंकी संगठन के सिर उठाने के बारे में विश्वसनीय सूचना मिलते ही एनआईए को उसमें लगा दिया जाएगा तो सुगम जांच तथा सफल अभियोजन में बहुत मदद मिलेगी। पता चला है कि कुछ पश्चिमी देशों में यह व्यवस्था लोकप्रिय है और उसके सराहनीय परिणाम भी मिले हैं।
(रामानंद गर्गे विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन, नई दिल्ली में स्कॉलर हैं और सीडी सहाय रिसर्च एंड एनालिसिस विंग के पूर्व प्रमुख हैं फाउंडेशन में डीन हैं)
संदर्भः
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[2] https://www.vifindia.org/author/shri-c-d-sahay
[3] https://www.vifindia.org/author/ramanand-garge
[4] http://www.nia.gov.in/
[5] http://www.nia.gov.in/writereaddata/Portal/CasesPdfDoc/CS_14-03-13_-RC-0
[6] http://www.nia.gov.in/writereaddata/Portal/News/121_1_PressRelease_19_12
[7] http://www.nia.gov.in/writereaddata/Portal/CasesPdfDoc/01-2013-NIA-HYD-C
[8] http://www.nia.gov.in/writereaddata/Portal/News/122_1_PressRelease_19_12
[9] http://www.nia.gov.in/writereaddata/Portal/PressReleaseNew/269_1_PressRe
[10] http://www.nia.gov.in/writereaddata/Portal/News/23_1_PressRelease0801201
[11] http://pib.nic.in/
[12] http://pib.nic.in/newsite/PrintRelease.aspx?relid=115760
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