चीन ने संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (अनक्लोस) पर हस्ताक्षर किए हैं, अमेरिका ने नहीं। दक्षिण चीन सागर लगभग चालीस वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। अनुमान है कि यहां से समुद्र के रास्ते प्रतिवर्ष लगभग 5 लाख करोड़ डॉलर का व्यापार होता है और दुनिया के एक तिहाई व्यापारिक जहाज हर वर्ष यहीं से गुजरते हैं। यह दुनिया में व्यापार के सबसे महत्वपूर्ण रास्तों में से है। इसमें ऊर्जा और समुद्री जीवन की प्रचुर संभावनाएं हैं। यहां 11 अरब बैरल तेल और 190 लाख करोड़ घन फुट प्राकृतिक गैस का भंडार होने का अनुमान है। दुनिया भर में जो मछलियां पकड़ी जाती हैं, उनका 12 प्रतिशत हिस्सा दक्षिण चीन सागर में ही होने का अनुमान है। चीन की साम्यवादी सरकार 1947 के एक पुराने नक्शे के सहारे दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा ठोकती है। इस समय दक्षिण चीन सागर पर विभिन्न देशों के विवादित दावे हैं, जो नीचे दिए गए हैं।
चीन के ऊपर अब जमीन पर कब्जा कर और द्वीप बनाने की कोशिश कर दक्षिण चीन सागर में 3,200 एकड़ क्षेत्र तैयार करने का आरोप है। मध्यस्थता पैनल का हाल का फैसला फिलीपींस-चीन विवाद से संबंधित है, लेकिन इससे क्षेत्र में अन्य देश भी अतिक्रमण की शिकायत वाले दावे करेंगे। इसीलिए चीन पर दक्षिण चीन सागर गतिरोध को बातचीत के जरिये निपटाने का भारी दबाव उत्पन्न हो गया है।
विभिन्न विश्लेषक मीडिया में कहते रहे हैं कि “कोई भी और रास्ता चीन के अंतरराष्ट्रीय रुतबे को नुकसान पहुंचाएगा। चीन समझता है कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका की बढ़ी हुई उपस्थिति - जिसने 2012 में शुरू की गई ‘एशिया की धुरी’ नीति के साथ ही संस्थागत जामा पहन लिया है - चीन के उभार को रोकने के लिए है। कई विश्लेषक मानते हैं कि यदि अमेरिका अलग-अलग देशों के साथ सुरक्षा साझेदारी के बजाय क्षेत्रीय सहयोग को प्राथमिकता देता है तो दक्षिण चीन सागर में तनाव का समाधान आसान होगा। अमेरिका की सक्रिय कूटनीति जापान, भारत और एक सीमा तक ऑस्ट्रेलिया को दक्षिण चीन सागर में ‘नौवहन की स्वतंत्रता’ अभियान में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित करती है।” स्थायी मध्यस्थता अदालत के फैसले पर चीन की प्रतिक्रिया दक्षिण चीन सागर पर श्वेत पत्र के रूप में आई, जिसे चीन की राज्य परिषद के सूचना कार्यालय ने 13 जुलाई, 2016 को जारी किया। 13,375 शब्दों के इस श्वेत पत्र में 143 अनुच्छेद हैं। प्रस्तावना में ही सात अनुच्छेद हैं, जो चीन का रुख बताते हैं और वे अनुच्छेद नीचे दिए गए हैं। नीचे दिया गया नीतिगत दस्तावेज तैयार करते समय चीन की स्पष्टता दर्शाने के लिए पांच अन्य शीर्षक जोड़े गए हैं:
दक्षिण चीन सागर पर चीन के श्वेत पत्र का सार
प्रस्तावना
शेष पांच खंड
चीन के कूटनीति संबंधी प्रयास
फिलीपींस ने जिन 15 बिंदुओं को लेकर अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत का रुख किया था, अदालत ने उनमें से लगभग सभी को सही ठहराते हुए चीन के विरुद्ध फैसला सुना दिया। उस फैसले को निष्प्रभावी करने के लिए चीन लगातार कूटनीतिक प्रयास करता रहा है। चीन ने अदालत के अधिकार क्षेत्र पर सवाल खड़ा करते हुए और दक्षिण चीन सागर एवं उसके संसाधनों पर ऐतिहासिक अधिकारों का सार्वजनिक दावा करते हुए कार्यवाही का बहिष्कार कर दिया। उसने 13 जुलाई, 2016 को दक्षिण चीन सागर पर वह व्यापक श्वेत पत्र प्रस्तुत किया और सार्वजनिक कर दिया, जिसकी चर्चा ऊपर की जा चुकी है। 25 जुलाई 2016 को लाओ गणराज्य के वियंतिएन में बैठक के बाद जारी होने वाले आसियान सदस्य देशों एवं चीन के विदेश मंत्रियों के संयुक्त बयान में चीन का नाम नहीं आए, यह सुनिश्चित करने को ही चीन ने अपना एकमात्र लक्ष्य एवं उद्देश्य बना लिया। संयुक्त बयान के अंतिम भाग में कहा गयाः
“डीओसी की 10वीं वर्षगांठ पर 2012 में 15वें आसियान-चीन शिखर सम्मेलन में स्वीकार किए गए संयुक्त बयान को याद करते हुए;
कहा जाता हैः
यह स्वीकार करना होगा कि इस कूटनीतिक मसले पर चीन ने जबरदस्त सफलता हासिल की है। इसका श्रेय अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए चीन की आक्रामक कूटनीति को जाता है।
चीन का सामरिक रुख
इससे पहले 14 जुलाई, 2016 को मध्यस्थता आदेश पर टिप्पणी करते हुए चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा, “आदेश अमान्य है और बाध्यकारी नहीं है। चीन इसे स्वीकार नहीं करता।” बाद में चीन के सहायक विदेश मंत्री ने दक्षिण चीन सागर के ऊपर वायु सुरक्षा पहचान क्षेत्र (एडीआईजेड) घोषित करने के चीन के कथित अधिकार को दोहराया। उन्होंने कहा कि चीन एडीआईजेड को लागू करेगा या नहीं, यह चीन के सामने आने वाले खतरे के स्तर पर निर्भर करेगा।
अपने सामरिक आधार को और बल देने के लिए चीन ने बहुमुखी रास्ता अपनाया है। उस इतनी सफलता तो मिली ही है कि अमेरिका ने दक्षिण चीन सागर में शक्ति संतुलन की तस्वीर बदलने के लिए अभी तक कोई कदम नहीं उठाया है। हालांकि अमेरिका ने वाहक पोतों के समूह को दक्षिण चीन सागर से गुजारने की अपनी आजादी का इस्तेमाल किया, लेकिन 27 जुलाई को उसे अपने शीर्ष नौसेना कमांडर को चीन भेजना पड़ा, जब चीन ने दक्षिण चीन सागर में विशाल सैन्य अभ्यास आरंभ कर दिया, सैन्य अभ्यास के दौरान समूचे इलाके में शेष विश्व का प्रवेश निषिद्ध कर दिया, रूस के साथ सितंबर, 2017 में संयुक्त सैन्य अभ्यास करने की घोषणा कर दी और गहन मिसाइल प्रक्षेपण अभ्यास कर डाले। चीन ने सभी विदेशियों को अनुमति के बगैर दक्षिण चीन सागर में प्रवेश नहीं करने का परामर्श जारी कर दिया है और चेतावनी दी है कि प्रवेश करने पर पकड़े गए तो दो वर्ष तक की कैद होगी।
अभी तक दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर में चीन के सामरिक हितों की स्थापना के बाद केवल जापान ने अपने सामरिक रुख की घोषणा करने वाला श्वेत पत्र जारी किया है। यह श्वेत पत्र 484 पृष्ठों का है, जिसे जापान के मंत्रिमंडल ने 2 अगस्त, 2016 को मंजूरी प्रदान की और संक्षेप में इसके प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं:
मीडिया रणनीति
दुनिया भर में मीडिया के मोर्चे पर पाकिस्तान, भारत तथा उपमहाद्वीप के अन्य देशों में चीनी राजनयिक तथा उनके सैन्य सहयोगियों ने संवाददाता सम्मेलनों को संबोधित किया, चीनी दृष्टिकोण को बिना किसी भ्रम के सामने रखने के लिए क्षेत्र के विचार संस्थानों तक गए, कभी-कभार तो गैरकूटनीतिक और सख्त भाषा का इस्तेमाल भी किया ताकि सुनने वालों के मन में इस बारे में कोई भ्रम नहीं रह जाए कि चीन चाहता है कि दक्षिण चीन सागर को उसी नजरिये से देखा जाए, जिससे वह देखना पसंद करता है और जो वह देखता है, वही सच है। चीन पूरी दुनिया को बारीक इशारा कर रहा है कि अपने राष्ट्रीय हित के मामले में वह राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक स्तर पर अपनी सुविधा के मुताबिक कोई भी कदम उठाएगा चाहे वह कदम कानूनी, राजनीतिक अथवा नैतिक आधार पर वैश्विक दृष्टिकोण से कितना भी भिन्न क्यों न हो।
47 स्ट्रीट, 7 अवेन्यू और ब्रॉडवे के बीच स्थित टाइम्स स्क्वायर के उत्तरी छोर पर चीनी सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ की जो विशाल स्क्रीन लगी है, चीन ने 30 जुलाई, 2016 के बाद से ही “दक्षिण चीन सागर में चीन की ऐतिहासिक भूमिका एवं दृष्टिकोण” को प्रचारित करने के लिए हर दस मिनट बाद उस पर वीडियो विज्ञापन चलाना शुरू कर दिया है, जिसे बहुत दूर से भी देखा जा सकता है। आम तौर पर उस स्क्रीन पर या तो चीन के दर्शनीय स्थानों के व्यावसायिक वीडियो दिखाए जाते हैं या चीन की चीन की राजनीतिक एवं आर्थिक गतिविधियों जैसे आधी दुनिया को वन रोड, वन बेल्ट के जरिये जोड़ने की बुनियादी ढांचा योजना की झलकियां दिखाई जाती हैं, जो देश और विदेश में मध्य साम्राज्य की नई कहानी को नियंत्रित करने की बड़ी योजना का हिस्सा है। कहा जाता है कि चीन इस पर 2-3 लाख डॉलर प्रतिमाह खर्च करता है © मेटे होम। चीन से पहले ऐसे किसी देश की बात ध्यान में नहीं आती है, जिसने अपने राष्ट्रीय हित के लिए मीडिया का इतना व्यापक इस्तेमाल करने की कोशिश की हो।
उपमहाद्वीपीय व्यवस्था का उद्भव
यह जानना दिलचस्प है कि चीन जानबूझकर और योजनाबद्ध तरीके से एक उपमहाद्वीपीय व्यवस्था तैयार करने में जुटा है, जिसमें सरकार का व्यापक बाहरी रवैया उसके भीतर के रवैये पर आधारित रहता है। मेंडलबॉम (1988) ने ऐसी ही परिकल्पना की थी कि मजबूत देश अपनी सुरक्षा को अधिकतम स्तर तक पहुंचाने के लिए विस्तार करते हैं। कमजोर देशों के पास यदि कोई विकल्प नहीं होता है तो वे मजबूत देशों के आगे घुटने टेक देते हैं अन्यथा वे खुद को मजबूत देशों से दूर कर या अन्य देशों के साथ हाथ मिलाकर अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं। नव-यथार्थवादी व्यवस्था का सिद्धांत बताता है कि अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था “प्रक्रिया” एवं “ढांचे” से बनी है और यह सिद्धांत “ताकत एवं हित” की व्यवस्था के भीतर देशों के व्यवहार की व्याख्या करता है। इसीलिए बसरुर हमें बताते हैं कि ““पारस्परिक संवाद की तीव्रता” का सिद्धांत कार्य करने की गति प्रदान करता है क्योंकि तीव्रता व्यवस्था का गुण है, उसके सदस्य देशों का नहीं।”
चीन ने आज अपना रुख विदेश एवं सामरिक नीति पर केंद्रित कर दिया है और इसके लिए उसने उपमहाद्वीपीय व्यवस्था तैयार की है, जिसमें आसियान तथा चीन किसी पर निर्भर नहीं हैं, लेकिन दक्षिण चीन सागर उन पर निर्भर है। इस पर आसियान के सदस्य, जो कमजोर देश हैं, चीन जैसे मजबूत देश के आगे झुक गए हैं और मजबूत तथा कमजोर की जमात के बीच में रहने वाले भारत जैसे देश ने खुद को उसमहाद्वीपीय व्यवस्था, जिसका केंद्र दक्षिण चीन सागर है, से दूर रखते हुए अपने सुरक्षा हितों की रक्षा करने का दूरदर्शिता भरा काम किया है। जब से दक्षिण चीन सागर में ऊर्जा तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों की संभावना में बाकी दुनिया की रुचि बढ़ी है, विशेषकर उसके बाद से दक्षिण चीन सागर को मिलाते हुए उपमहाद्वीपीय व्यवस्था तैयार करने और बढ़ाने में चीन को सफलता मिली है अथवा नहीं, यह कुछ समय बाद लिखा जाने वाला इतिहास ही बताएगा।
निष्कर्ष
इसमें कोई संशय नहीं कि इस समय चीन विश्व राजनीति में प्रमुख स्थान पाने की विशेष राजनीतिक इच्छाशक्ति वाली बड़ी ताकत के रूप में उभर रहा है। उसने अपनी सामरिक गतिविधियों और कूटनीतिक कौशल के जरिये बड़ी शक्तियों और उनके सहयोगियों पर प्रभाव डालकर यह दिखाया भी है। अभी तो इस सीमित उपमहाद्वीपीय व्यवस्था पर उसका ही नियंत्रण है।
Links:
[1] https://www.vifindia.org/article/hindi/2016/december/02/dakshin-china-sagar-vivad-galti-thik-karna
[2] https://www.vifindia.org/author/gautam-sen
[3] http://www.vifindia.org/article/2016/august/05/south-china-sea-imbroglio-setting-the-record-straight
[4] https://associazioneeuropalibera.wordpress.com
[5] http://www.facebook.com/sharer.php?title=दक्षिण चीन सागर विवाद: गलती ठीक करना&desc=&images=https://www.vifindia.org/sites/default/files/-चीन-सागर-विवाद-गलती-ठीक-करना.jpg&u=https://www.vifindia.org/article/hindi/2016/december/02/dakshin-china-sagar-vivad-galti-thik-karna
[6] http://twitter.com/share?text=दक्षिण चीन सागर विवाद: गलती ठीक करना&url=https://www.vifindia.org/article/hindi/2016/december/02/dakshin-china-sagar-vivad-galti-thik-karna&via=Azure Power
[7] whatsapp://send?text=https://www.vifindia.org/article/hindi/2016/december/02/dakshin-china-sagar-vivad-galti-thik-karna
[8] https://telegram.me/share/url?text=दक्षिण चीन सागर विवाद: गलती ठीक करना&url=https://www.vifindia.org/article/hindi/2016/december/02/dakshin-china-sagar-vivad-galti-thik-karna