तकरीबन चौथाई सदी से यानी 1989-90 में जब से आतंकवाद ने जम्मू-कश्मीर को जकड़ा है तभी से भारत ने अपने खिलाफ पाकिस्तान के कूटनीतिक दुष्प्रचार को तवज्जो नहीं दी है। संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तानी उकसावे का औपचारिक जवाब देने और विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता द्वारा कभी-कभार बयान दिए जाने के अलावा भारत ने पाकिस्तान के साथ लगातार भिड़ने से परहेज ही किया है। इसके पीछे विचार यही था कि पाकिस्तान के होहल्ले को भाव देने के बजाय नजरअंदाज कर दिया जाए और उसकी उपेक्षा की जाए, जिसका वह हकदार है। लेकिन इसका दूसरा पहलू यह रहा कि इससे पाकिस्तानियों को भारतीय पक्ष से मजबूत प्रतिकार के बगैर मनचाही भ्रामक जानकारी फैलाने का खुला मौका मिल गया। किंतु हांगझू में जी 20 शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न केवल पाकिस्तान को क्षेत्र में आतंक फैलाने वाला देश बताया बल्कि आतंकवाद को प्रायोजित करने वाले देशों को अलग-थलग करने तथा प्रतिबंधित करने का आह्वान भी किया। इसे देखकर यही लगता है कि अतीत की नीति अब संभवतः बदल रही है। भारत अब जैसे को तैसा की तर्ज पर काम करेगा और पाकिस्तान को अलग-थलग करने तथा उसकी असलियत अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने लाने के लिए प्रत्येक उपलब्ध कूटनीतिक मंच का इस्तेमाल करेगा।
श्री मोदी ने जो सख्त रुख अपनाया है, उसके लिए एक तरह से पाकिस्तानियों ने ही उन्हें मजबूर किया है, जो जम्मू-कश्मीर में हालिया अशांति के बहाने भारत की छवि खराब करने के लिए जबरदस्त दुष्प्रचार कर रहे थे। जरा सोचिए, पाकिस्तान ने अपना ही भला किया होता अगर कश्मीर में भारत के कथित मानवाधिकार उल्लंघन एवं दमन के खिलाफ “अंतरराष्ट्रीय समुदाय की सामूहिक चेतना को झकझोरने” का भारी कूटनीतिक अभियान चलाने से पहले उसने देखा और परख होता कि वह क्या कह रहा है और क्या अंतरराष्ट्रीय समुदाय वाकई में उसे मानने के लिए तैयार होगा या नहीं। भारत के दृष्टिकोण से उसके पड़ोसी की ऐसी प्रतिक्रिया उसे अपनी बात ज्यादा जोर से मनवाने का मौका दे देती है। इसकी वजह साफ हैः भारत के लिए पाकिस्तान में गहराई तक बैठी घृणा उसे ऐसे रुख अपनाने पर मजबूर कर देती है, जो भारत से ज्यादा उसी का नुकसान करती है।
मिसाल के तौर पर भारत के खिलाफ पाकिस्तान के ताजा अभियान का चेहरा मारा गया आतंकवादी बुरहान वानी है। पाकिस्तानियों का दावा है कि वानी की हत्या से ही कश्मीर में अशांति फैली है। दिलचस्प है कि वानी का जिक्र करते समय पाकिस्तान यह बात नहीं छिपाता कि वह हिज्बुल मुजाहिदीन से था, जो अमेरिका द्वारा ‘अन्य आतंकवादी संगठनों’ की फेहरिस्त में रखा गया है। हालांकि पाकिस्तानी उसे सोशल मीडिया कार्यकर्ता के तौर पर दर्शाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन खुद वानी ने बंदूक लहराते हुए अपनी तस्वीर खिंचाने से गुरेज नहीं किया और न ही उसने यह ऐलान करने में परहेज किया कि भारत से जंग करना उसका काम है। इतना ही नहीं, पाकिस्तान में रहने वाले हिज्बुल मुजाहिदीन के मुखिया ने फिदायीन हमलों को जायज ही नहीं ठहराया है बल्कि भारत के बाकी हिस्सों में भी इस तरह के हमलों की धमकी दी है। कल्पना कीजिए कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय में ऐसे में समय में इसका कैसा संदेश जाएगा, जब यूरोप, पश्चिम एशिया, अफ्रीका, एशिया तथा उत्तर अमेरिका के देश उन संगठनों के आतंकी हमले झेल रहे हैं, जिनकी विचारधारा हिज्बुल मुजाहिदीन जैसे संगठनों से मिलती जुलती है।
स्पष्ट रूप से बुरहान वानी के मामले में अभियान छेड़कर पाकिस्तानियों ने अपने पांव पर ही कुल्हाड़ी मार ली है क्योंकि ज्यादातर देशों में इस्लामपंथियों और जिहादियों के प्रति सहानुभूति न के बराबर है। साथ ही कश्मीरी युवाओं की वे तस्वीरें याद हैं, जिनमें वे पाकिस्तानी झंडे के साथ ही आईएसआईएस का बैनर भी लहराते हैं? भारत को केवल इतना करना है कि उन तस्वीरों को उन सभी देशों के प्रमुख अखबारों में पूरे पृष्ठ के विज्ञापन में छपवा दिया जाए, जहां पाकिस्तानी सांसद ‘दुनिया के जमीर को झकझोरने’ के लिए जा रहे हैं। मजे की बात है कि सांसदों के दल में एजाज-उल-हक भी शामिल हैं, जो पूर्व तानाशाह जिया-उल-हक के पुत्र हैं और जिन्होंने डेनमार्क के अखबार में पैगंबर मुहम्मद का कार्टून छपने पर खुलेआम ऐलान किया था कि वह फिदायीन हमलों और ईशनिंदकों के कत्ल का समर्थन ही नहीं करते बल्कि इस्लाम के पैगंबर की ईशनिंदा करने वाले किसी भी शख्स का कत्ल करने के लिए वह तैयार हैं। इन तस्वीरों से कश्मीरियों का ही नहीं बल्कि आईएसआईएस के साथ गिरोहबंदी कर बैठे पाकिस्तानियों का भी दुष्प्रचार तो होता ही है, कश्मीर के मसले पर उग्र हो रहे तथा भारत के खिलाफ जंग की धमकी दे रहे जमात-उल-दावा/लश्कर-ए-तैयबा तथा दूसरे बदनाम इस्लामी संगठनों की तस्वीर भारत की इस बात के ही पक्ष में जाती हैं कि पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में लपटों को हवा दे रहा है।
इसीलिए हैरत की बात नहीं है कि पिछले दो महीनों में पाकिस्तान के भारी दुष्प्रचार से केवल इतना ही हुआ है कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने औपचारिक बयान जारी किया है और इस्लामी सहयोग संगठन (ओआईसी) के महासचिव ने भारत से कश्मीर में जनमत संग्रह कराने के लिए कहा है। अगर पाकिस्तानी वाकई बान की मून के भरोसे हैं तो भगवान ही उनका मालिक है। जहां तक ओआईसी का सवाल है तो यह विडंबना ही है कि उसके महासचिव दुनिया के सबसे बड़े और सबसे गंभीर लोकतंत्र में जनमत संग्रह की मांग करने की गुस्ताखी तब कर रहे हैं, जब उनके ज्यादातर सदस्य देशों में राष्ट्रीय क्या स्थानीय चुनाव तक नहीं होते हैं। वैसे ओआईसी के सदस्य इस मंच से पाकिस्तानी सुर में ही बोलने और भारत के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को पूरी तरह ताक पर रखने की कला में माहिर हो चुके हैं। यहां तक कि पाकिस्तान का ‘परम मित्र चीन’ भी अभी तक उसका समर्थन करने से परहेज ही कर रहा है।
सब जानते हैं कि जब भी पाकिस्तानियों को लगता है कि भारत से उन्हें कोई भाव नहीं मिल रहा है तो वे अंतरराष्ट्रीय संबंधों में नैतिकता की कमी का रोना रोने लगते हैं। यह पाकिस्तानियों का दोगलापन ही है, जो कुर्दों पर अत्याचार करने वाली तुर्की की नीतियों, तिब्बत और शिनच्यांग में चीन की हरकतों का पूरी बेशर्मी के साथ समर्थन करते रहे हैं और जिन्होंने दक्षिण चीन सागर में चीन के अतिक्रमण का भी समर्थन किया है। पाकिस्तान द्वारा मानवाधिकारों पर आधारित अभियान इतना विरोधाभासी लगता है कि वह खुद ही चारो खाने चित हो जाता है क्योंकि पाकिस्तान ऐसा देश है, जो अपने ही नागरिकों को मृत्युदंड देने के मामले में दुनिया के तीन शीर्ष देशों में शुमार है। इसमें हत्या और अपहरण की वे घटनाएं तो गिनी ही नहीं जा रही हैं, जिन्हें पाकिस्तानाी सुरक्षा एजेंसियां बलूचिस्तान, कराची और देश के अन्य हिस्सों में अंजाम दे रही हैं। यह आंकड़ा हजारों में है। जहां तक मानवाधिकारों का सवाल है तो पाकिस्तान का दर्जा सबसे खराब देशों में है। इसीलिए पाकिस्तान के लिए कश्मीर के मामले में मानवाधिकार का सवाल उठाना बहुत बड़ी बेवकूफी है।
अंत में भारत को कश्मीर के मसले पर बातचीत के लिए आमंत्रित करने की पाकिस्तान की नई कूटनीतिक चाल है ताकि वह अंतरराष्ट्रीय समुदाय को दिखा सके कि वह तो समझदारी की बात कर रहा है, लेकिन भारत अड़ियलपन दिखा रहा है। यह पाकिस्तान का चिरपरिचित धूर्तता और बेवकूफी भरा प्रयास है, जिससे बाकी दुनिया को परिचित होना चाहिए, जो अफगानिस्तान में पाकिस्तान के दोगलेपन और धोखेबाजी का खमियाजा भुगत चुकी है। विडंबना है कि पाकिस्तान ‘कश्मीर में गंभीर स्थिति’ के कारण बातचीत करना चाहता है, जबकि उससे भारत की यह बात सही साबित होती है कि पाकिस्तान आतंकवाद का निर्यात करता है। इस मामले में भक्षक रक्षक होने का स्वांग तो रच ही रहा है, साथ में अगर कश्मीर में अशांति से पाकिस्तान का कोई लेना देना नहीं है तो पाकिस्तान से बातचीत करने का कोई मतलब ही नहीं है, यह तो पाकिस्तान को अपने अंदरूनी मामलों में दखल देने का न्योता देने जैसा होगा। इसके उलट यदि अशांति में पाकिस्तान का कोई हाथ है तो भारत का यह रुख एकदम ठीक है कि बातचीत केवल आतंकवाद पर केंद्रित होगी।
अगर पाकिस्तान काल्पनिक दुनिया में (ज्यादातर पाकिस्तानियों की भ्रामक मनोस्थिति को देखते हुए इसकी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता) नहीं रह रहा है तो उसे पता होना चाहिए कि कश्मीर पर उसकी बात कोई नहीं मानने वाला। अगर पाकिस्तान अब भी अड़ा रहता है तो शायद उसे अंतरराष्ट्रीय कूटनीति से ज्यादा अपनी घरेलू राजनीति को संभालने की जरूरत है। विपक्ष और सेना दोनों से घिरे नवाज शरीफ पाकिस्तान के भीतर अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए कश्मीर का सहारा लेना चाहते हैं। लेकिन यह शेर पर सवार होने जैसा है और असली दिक्कत शेर की पीठ से नीचे उतरने पर आती है। कहने का अर्थ है कि जब अंतरराष्ट्रीय अभियान खत्म होगा और कोई नतीजा हाथ नहीं आएगा तब नवाज शरीफ की राजनीतिक स्थिति और भी बदतर हो जाएगी।
यह लगभग तय है कि पाकिस्तान का दुष्प्रचार आज या कल खत्म ही हो जाएगा, लेकिन अगर भारत मान रहा है कि कूटनीतिक मोर्चे पर पाकिस्तान की नाकामी से भारत को कश्मीर में रास्ता साफ मिल जाएगा तो यह बड़ी भूल होगी। भारत को फूंक-फूंककर कदम बढ़ाने होंगे और अशांतिग्रस्त राज्य में राजनीतिक तथा प्रशासनिक उपाय ठीक से आजमाने होंगे और यह काम चतुराई, संवेदनशीलता तथा समझदारी के साथ करना होगा। लेकिन कश्मीर में अशांति तथा उपद्रव जल्द समाप्त करना भारत के लिए सबसे महत्वपूर्ण है ताकि राजनीतिक एवं विकास संबंधी उपायों की गुंजाइश बन सके।
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[2] https://www.vifindia.org/author/sushant-sareen
[3] http://www.vifindia.org/article/2016/september/07/kashmir-who-ll-buy-what-pakistan-is-selling
[4] http://tribune.com.pk
[5] http://www.facebook.com/sharer.php?title=कश्मीर: कौन मानेगा पाकिस्तान की बात?&desc=&images=https://www.vifindia.org/sites/default/files/-कौन-मानेगा-पाकिस्तान-की-बात.jpg&u=https://www.vifindia.org/article/hindi/2016/september/26/kashmir-koun-managa-pakistan-ki-baat
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