“यह तो होना ही था” - सदमे और अविश्वास के बीच पहली प्रतिक्रिया यही थी। उदार और सहिष्णु इस्लाम में यकीन रखने वाला और उसी रास्ते पर चलने वाला बांग्लादेश स्तब्ध था तथा इस्लाम के नाम पर रमजान के महीने में अर्थहीन हिंसा तथा इतने बेकसूरों की क्रूरता भरी हत्या की इस घिनौनी हरकत को स्वीकार ही नहीं कर सका। क्षुब्ध दिख रहीं प्रधानमंत्री शेख हसीना ने यही बात कह भी दी, “यह बेहद घिनौनी हरकत है। ये किस तरह के मुसलमान हैं? उनका कोई मजहब नहीं है।” (टाइम्स ऑफ इंडिया)
प्रत्यक्षदर्शियों, आधिकारिक जानकारी और मीडिया की खबरों के मुताबिक रमजान के आखिरी शुक्रवार यानी 1 जुलाई को बांग्लादेशी समयानुसार रात करीब 9:20 बजे सात हथियारबंद आतंकवादियों का समूह ढाका के बीचोबीच संपन्न इलाके गुलशन में लोकप्रिय होली आर्टिसन बेकरी/रेस्तरां में घुस गए। आनन फानन में उन्होंने कर्मचारियों और ग्राहकों को बंधक बना लिया, लेकिन उनके कब्जे में आने से पहले ही कुछ कर्मचारियों समेत कुछ लोग पिछले दरवाजे से निकल भागने में कामयाब हो गए। आतंकवादी अच्छी तरह प्रशिक्षित लग रहे थे और जिस तरह उन्होंने आनन फानन में आगे के दरवाजे पर कब्जा जमाया, कर्मचारियों से लाइट बंद करने के लिए कहा और सीसीटीवी कैमरों को कपड़े से ढका, उसे देखकर लगता है कि उन्हें अच्छी तरह समझाया गया था और उन्होंने सका खूब अभ्यास भी किया था। उस दौरान उन्होंने 33 लोगों को बंधक बनाया, जिनमें कुछ स्थानीय और कई विदेशी शामिल थे।
उसके बाद आतंकवाद का वीभत्स नमूना दिखा, जिसमें लाचार बेकसूर लोगों को महज इसीलिए बेरहमी से मार दिया गया क्योंकि वे मुसलमान नहीं थे या कुरान शरीफ की आयतें नहीं सुना पाए या विदेशी थे। यह बंधक बनाए जाने का मामला नहीं था। बंधक बनाने वालों की कोई मांग ही नहीं थी, इसलिए उन्हें बात भी नहीं करनी थी। वे रात भर लोगों के सिर ही कलम करते रहे! उस दौरान उन्होंने नौ इतालवियों, सात जापानियों, दो बांग्लादेशियों, एक अमेरिकी तथा 19 वर्ष की एक भारतीय लड़की समेत 20 बंधकों को मौत के घाट उतार दिया। भारतीय लड़की अमेरिका के बर्कले से अपने माता-पिता के पास छुट्टियां मनाने पहुंची थी।
विशेष बलों को तुरंत भेजा गया, सुरक्षा घेरा कड़ा किया गया, नौसेना के कमांडरों ने होटल के पीछे झील में डेरा डाल दिया। शुरू में स्थानीय पुलिस ने आतंकवादियों से लोहा लिया, लेकिन उसके दो साथी शहीद हो गए। अंत में 10 घंटों के नाटकीय घटनाक्रम और तनाव के बाद शनिवार की सुबह को विशेष बलों ने रेस्तरां पर धावा बोला। छह आतंकवादी मारे गए और उनमें से एक को जिंदा पकड़ने में कामयाबी मिल गई। कुछ भारतीयों, जापानियों और श्रीलंकाई नागरिकों समेत तेरह बंधकों को सुरक्षित निकाल लिया गया।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय फौरन शेख हसीना सरकार के समर्थन में आ गया। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे बात की और इस ‘नीच हरकत’ की भर्त्सना की। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने भी सहानुभूति और समर्थन का संदेश भेजा। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने लगातार घटना की जानकारी मांगी और विदेश विभाग ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में बांग्लादेश की जनता के साथ होने की बात कही। यूरोपीय संघ ने भी एक बयान में ऐसी ही भावनाएं प्रकट कीं। पोप फ्रांसिस ने अर्थहीन हिंसा को ईश्वर तथा मानवता के विरुद्ध अपराध बताया। इटली, मलेशिया, पाकिस्तान आदि से भी सहानुभूति एवं समर्थन के ऐसे ही संदेश आए। लेकिन बांग्लादेशी राजनीति की प्रकृति ही ऐसी है कि विपक्ष की नेता और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की अध्यक्ष खालिदा जिया ने राष्ट्रीय शोक की इस घड़ी में भी एक लिखित बयान में कहा, “असभ्य और अलोकतांत्रिक चरमपंथी ताकतों को अगर हमने इसी वक्त नहीं कुचला तो वे लंबी लड़ाई कर सकती हैं, जिससे शांति और सुरक्षा को खतरा होगा।” निश्चित रूप से यह आतंकी कार्रवाई की स्पष्ट भर्त्सना नहीं थी।
निश्चित रूप से बांग्लादेश के लिए यह अब तक की सबसे भीषण आतंकी घटना थी क्योंकि अभी तक वहां धर्मनिरपेक्ष ब्लॉगरों, प्रगतिशील लेखकों, उदार विचारकों, विदेशी सहायताकर्मियों, हिंदू पुजारियों तथा ऐसे ही अन्य लोगों को कत्ल किया जाता रहा है। पिछले पखवाड़े में भी पुलिस की त्वरित एवं कड़ी कार्रवाई तथा खुफिया विभाग की सूचनाओं पर पुलिस की विशेष शाखा के कर्मियों द्वारा छापों और हजारों चरमपंथी एवं आपराधिक तत्वों की गिरफ्तारी के बावजूद ये गतिविधियां पिछले दो वर्ष से भी अधिक समय से जारी हैं।
सरकार ने देश में तेजी से बढ़ रहे चरमपंथ को पहचान लिया है और इससे निपटने के लिए विभिन्न स्तरों पर उपाय भी आरंभ कर दिए हैं। किंतु यह वायरस तेजी से बढ़ रहा है और ऐसा लगता है कि बांग्लादेश धर्मनिरपेक्ष, प्रगतिशील कार्यकर्ताओं की हत्या के लिए जिम्मेदार ताकतों या गुटों को स्पष्ट रूप से अभी तक नहीं पहचान पाया है। ऐसी हरेक घटना और हालिया घटना के बाद दो स्पष्ट रूप से पहचाने गए चरमपंथी गुट जमातउलमुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) या अंसारुल्ला बांग्ला टीम (एबीटी), जिसे अंसार बांग्ला या अल कायदा इन द इंडियन सबकॉण्टिनेंट (एक्यूआईएस) या आईएसआईएस घटना की जिम्मेदारी लेते हैं। कभी-कभार जैसा कि ढाका हमले के मामले में हुआ था, आईएसआईएस या एक्यूआईएस स्थानीय गुटों के दावे पर सवाल उठाए बगैर सीधी जिम्मेदारी लेते हैं। किंतु बांग्लादेश सरकार इस विचार से सहमत नहीं है कि दोनों अंतरराष्ट्रीय इस्लामी समूहों में से कोई भी औपचारिक रूप से देश में मौजूद है। इसीलिए नियम यही है कि इन दावों को सरकारी अधिकारी तुरंत नकार देते हैं और प्रधानमंत्री स्वयं यह कह चुकी हैं कि अल कायदा या आईएसआईएस जैसे समूह देश में मौजूद नहीं हैं। इसका दोष या तो सत्तारूढ़ पार्टी के राजनीतिक विरोधियों पर या देसी आतंकवादियों पर मढ़ दिया जाता है, जैसा कि इस बार हुआ है।
तो सच क्या है? क्या अल कायदा और/अथवा आईएसआईएस ने देश में पैठ बना ली है या वे जेएमबी या एबीटी की शक्ल में अपने प्रतिनिधियों के जरिये काम कर रहे हैं? सामरिक विशेषज्ञ मानते हैं कि सच इन दोनों तथ्यों के बीच कहीं है। एक्यूआईएस और आईएसआईएस की छाप वाला बेहद चरमपंथी इस्लाम उपमहाद्वीप में तेजी से बढ़ा है। दोनों संगठन क्षेत्र में प्रभाव जमाने के लिए होड़ कर रहे हैं। उनका स्थानीय चरमपंथी गुटों के साथ शायद कोई औपचारिक गठबंधन नहीं होगा, लेकिन ऐसी किसी भी बड़ी घटना की जिम्मेदारी लेना उनके लिए सहूलियत भरा है क्योंकि इससे क्षेत्र में उनके ब्रांड का आकर्षण बढ़ता है और रणनीतिक फायदा भी होता है। यह भी सच है कि हाल ही में एबीटी और जेएमबी के अड्डों पर पुलिस के छापों के दौरान नियमित रूप से एक्यूआईएस और आईएसआईएस का साहित्य मिलता रहा है। यह भी सच है कि ये स्थानीय समूह भर्तियों और चरमपंथ से जुड़ी अपनी गतिविधियों के दौरान एक्यूआईएस या आईएसआईएस ब्रांडों का इस्तेमाल करने के कारण नजर में चढ़ गए हैं। शायद ढाका अभियान के दौरान जिंदा पकड़े गए आतंकवादी से पूछताछ में पता चले कि कौन सा गुट जिम्मेदार है।
फिलहाल जांच के नतीजे आने तक सरकार के इस नजरिये को सही माना जा सकता है कि यह घिनौनी घटना ‘घरेलू’ आतंकवादियों की करतूत है। लेकिन इस घटना को आतंकवादियों के एजेंडा और उनके तौर-तरीके में अहम बदलाव के तौर पर देखा जाना चाहिए। उनका एजेंडा सत्तारूढ़ पार्टी को परेशान करते रहने तक ही सीमित नहीं लगता है। यह और भी डरावना हो सकता है और इसमें चरमपंथी इस्लाम को देश और देश के बाहर तक फैलाने का मकसद हो सकता है, जिसका असर निश्चित रूप से भारत पर पड़ेगा। इसीलिए दोनों देशों में खुफिया तथा सुरक्षा प्रतिष्ठानों के लिए यह आवश्यक है कि वे ढाका की घटना को गंभीर मानें और उभरती हुई चुनौतियों से प्रभावी तरीके से निपटने के लिए संयुक्त प्रक्रिया तैयार करें। भारत के पास आतंकवाद से निपटने का दशकों का अनुभव है और उसके पास आतंकवाद से निपटने की बेहद विकसित क्षमताएं भी हैं। बांग्लादेश ने हमारे लिए बहुत कुछ किया है। अब बदले में काम करने की हमारी बारी है।
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