पूरी दुनिया में खिलाफत की स्थापना की शपथ लेने वाले इस्लामिक स्टेट या दाएश जैसे संगठन के लिए अपने कब्जे वाले इलाकों का हाथ से खिसकते जाना निश्चित रूप से एक झटका है। अमेरिका स्थित एक सूचना एजेंसी का अनुमान है कि एक जनवरी से 14 दिसंबर के बीच इराक और सीरिया में दाएश के कब्जे से 12,000 वर्ग किलोमीटर का इलाका छिन गया और यह 78,000 वर्ग किलोमीटर रह गया, यह कुल 14 प्रतिशत भूभाग का नुकसान है।1 पिछले साल 30 सितंबर से सीरिया में शुरू हुए रूस के हवाई हमलों ने दाएश को अलग-थलग करने में बड़ी भूमिका निभायी। रूसी दखल की बदौलत बशर अल असद की फौज और उसके सहयोगियों ने इस साल मार्च के आखिर में दाएश को पालमायरा से खदेड़ दिया।
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के 14 मार्च को सीरिया से अपने सैनिकों की वापसी के ऐलान के बाद रूसी सेना ने अभियान का रुख पालमायरा और उसके आस-पास के इलाकों की तरफ कर दिया जिसकी वजह से यह बड़ी कामयाबी मिल पायी। इससे रूस के पश्चिम एशिया में एक बड़ी ताकत के रूप में लौटने की संभावना पर फिर से बहस छिड़ गयी। इस पूरे सैन्य अभियान में हालाँकि रूसी फौजों ने अपनी ताकत तो जरूर दिखायी पर अभी यह देखना बाकी है कि मास्को का राजनीतिक रसूख सीरियाई संकट के समाधान में कितना मददगार होगा। इसका राजनीतिक पहलू अभी भी डगमग लग रहा है क्योंकि अमेरिका सहित अन्य दूसरे दिग्गज देश सीरियाई संकट के राजनीतिक हल को लेकर एकमत नहीं हैं। पालमायरा पर कब्जे के बाद एक विशेषज्ञ ने यह सतर्क टिप्पणी की : पालमायरा पर कब्जे के बाद आईएसआईएस के लिए यूफ्रेट्स (फरात) नदी की घाटी के साथ लगते अपने सुरक्षित ठिकानों से पश्चिमी सीरिया में सैन्य ताकत के प्रदर्शन की क्षमता काफी कम हो गयी है। इससे असद की फौज को एक बफर क्षेत्र मिल गया है जिसकी उसे सख्त जरूरत थी और जिससे असद के कब्जे वाले इलाके में बेहद अहम तेल व गैस के कुओं की हिफाजत में मदद मिलेगी जो पश्चिमी सीरिया में बिजली की आपूर्ति करते हैं। असद सरकार पालमायरा और यहाँ की सैन्य सुविधाओं का अधिकतम फायदा उठाते हुए इसका इस्तेमाल अग्रिम सैन्य चौकियों के तौर पर करेगी जहाँ से अब वह अर-रक्का और दिएर-अज जोर जैसे शहरों में आईएसआईएस के खिलाफ अभियानों को अंजाम देगी जो यहाँ अमेरिका नीत गठबंधन के लिए हालात जटिल बना देगा।22
संभावना यह है कि पालमायरा का इस्तेमाल इन प्रांतों में दाएश के खिलाफ हमलों का दायरा बढ़ाने के लिए लांच पैड के तौर पर किया जायेगा।
अमेरिका की अगुवाई वाले गठबंधन ने सितंबर 2014 में जब से दाएश की मिलीशिया के खास तौर से, इराक में अभियानों पर अंकुश लगाने के लिए सैन्य कार्रवाई शुरू की, तभी से यह आतंकवादी संगठन अपने कब्जे वाले इलाके खोने लगा है। दाएश के खिलाफ रणनीति में कुल मिला कर कई झोल होने के बावजूद पलटवार के लिए उठाये गये कदमों को सीरिया में भी खासी सफलता मिली है। 2015 के दौरान और 2016 के शुरू में इन दोनों देशों में अपने कब्जे वाले कई इलाकों पर दाएश की पकड़ ढीली पड़ने लगी। मई, 2015 में निर्णायक जीत, जिसके परिणामस्वरूप रमादी को आईएस के कब्जे से मुक्त कराया गया, से पहले ही कबायली फौजों व स्थानीय जनता के सहयोग व समन्वय से इराकी फौजों ने सामरिक रूप से अहम टिकरित पर अप्रैल में कब्जा कर लिया था। इस शानदार सफलता के साथ ही मोसुल को भी इस संगठन के चंगुल से मुक्त कराने की कोशिशें शुरू हो गयीं पर अभी तक इसमें सफलता नहीं मिली है। नवंबर में कुर्द पेशमर्गा लड़ाकों और यजीदी मिलीशिया के बीच आपसी समन्वय की परिणति इराक में सिंजर पर पूर्णरूपेण कब्जे के रूप में हुई। कुर्दों और यजीदियों ने इसे दौरान सिंजर को सीरिया से जोड़ने वाली एक सड़क के कुछ हिस्सों पर भी कब्जा कर लिया।3 इससे दाएश के लड़ाकों की सीरिया और इराक के बीच आवाजाही और हथियारों की तस्करी भी बाधित हो गयी जिससे इस संगठन पर वित्तीय दबाव बढ़ा। इसके तुरंत बाद ही अमेरिकी नीत गठबंधन के अभियान में दिसंबर 2015 के आखिर में अनबार प्रांत की राजधानी रमादी को भी मुक्त करा लिया। इसके बाद से अपने हमले जारी रखने के बाद भी नये इलाकों पर कब्जा करने की आईएस की कोशिशों को कोई खास कामयाबी नहीं मिली है।
इसी तरह से सीरिया में दाएश के कब्जे वाले इलाके सिकुड़ने लगे लेकिन इसका कथित मुख्यालय रक्का अब भी इसके कब्जे में है। दाएश के लड़ाकों के खिलाफ जंग लड़ रहे सीरियाई कुर्दों ने तुर्की की सीमा पर स्थित सीरियाई कस्बे ताल अबयाद को दोबारा अपने कब्जे में लेने के लिए संगठित अभिायान चलाया। रणनीतिक रूप से यह कस्बा बेहद अहम था क्योंकि दाएश के लड़ाके इसका इस्तेमाल तुर्की में दाखिल होने के लिए करते थे। साथ ही इसका इस्तेमाल रक्का में रसद की आपूर्ति के लिए भी होता था। इस कस्बे को आईएस के कब्जे से आजाद कराने के लिए कुर्द संगठन पापुलर प्रोटेक्शन यूनिट्स (वाईपीजी) के अभियान में अमेरिकी हवाई बमबारी ने भी मदद की। अपने कब्जे वाले इलाके खोने के साथ ही इन दोनों देशों में इस संगठन के वित्तीय ढांचे को भी करारी चोट पहुँची है जिसके नतीजे में दाएश के लड़ाकों में आपसी तकरार बढ़ रही है। इस सारे घटनाक्रम के बीच अपनी सीमा पर सीरियाई कुर्दों की बढ़ती ताकत से तुर्की बेहद चिंतित है क्योंकि ये अरसे से अपने लिए एक अलग कुर्द देश की माँग करते रहे हैं। एक अमेरिकी रक्षा विशेषज्ञ के मुताबिक, ... इराक में जो हो रहा है, सीरिया के हालात उससे जुदा नहीं हैं : आईएसआईएस को अपने सुरक्षित ठिकानों से खदेड़ कर उन इलाकों पर कब्जा करने में कुर्दों को मिली कामयाबी से कुर्द राष्ट्रवादी समूहों के हौसले बढ़े हैं और इससे जातीय तनावों को हवा मिल रही है...पर उनकी सफलता से सीमा पार तुर्की में चिंताएँ गंभीर होती जा रही हैं।4
हितों के इसी टकराव का ही नतीजा है कि तुर्की और अमेरिका जैसी बाहरी ताकतें दाएश के खिलाफ जंग में एक दूसरे को फूटी आँख भी नहीं सुहा रहीं। हालाँकि इसका मुख्य वास्ता सीरियाई संकट से है जहाँ कुछ देश ऐसे हैं जो बशर अल असद को सत्ता से बेदखल होते नहीं देखना चाहते जबकि दूसरे असद के बगैर एक नयी सरकार का गठन चाहते हैं।
दाएश हालांकि अभी भी एक इस्लामी राज्य की स्थापना की अपनी मूलभूत अवधारणा पर कायम है पर इसके सीधे कब्जे वाले इलाकों का लगातार हाथ से निकलते जाना इसके लिए गंभीर चिंता का विषय है। 2014 के मध्य जून के दौरान लगातार एक के बाद एक शहरों और इलाकों को जीत कर अपना भौगोलिक विस्तार ही वह चीज थी जो दाएश को समकालीन आतंकवादी संगठनों से अलग करती थी। यहाँ तक कि 1980 के दशक में अस्तित्व में आने और असाधारण रूप से व्यापक नेटवर्क के बावजूद आईएस का पितृ संगठन अल कायदा कभी भी इस स्थिति में नहीं था जहाँ कोई भूभाग पूरी तरह उसके कब्जे में हो। इस विचार, कि एक खिलाफत हो जिसकी अपनी प्रशासनिक इकाइयाँ, मुद्रा, समाजिक सेवाएँ, न्यायपालिका, शैक्षणिक सेवाएँ और बैंकिंग तंत्र हो, ने दुनिया के विभिान्न कोनों से समर्थकों और सहानुभूति रखने वालों को अपनी ओर आकर्षित किया। यही वजह है कि बहुत से चरमपंथी संगठनों ने दाएश के प्रति बैय्यत (निष्ठा की शपथ) का ऐलान किया और ढेरों विदेशी रंगरूट इसमें शामिल होने सीरिया और इराक पहुँचे। लेकिन जब से दाएश के कब्जे वाले इलाके सिकुड़ने लगे हैं, इस तरह की खिलाफत की स्थापना की महत्त्वाकाँक्षाओं की लौ भी मद्धिम पड़ने लगी है।
आगे की चुनौतियाँ : इराक और सीरिया में दाएश के कमजोर पड़ने से संतुष्ट होकर शिथिल पड़ने से बचने की जरूरत है। इसके खिलाफ जंग में शामिल देशों को आने वाले दिलों में लगातार गंभीर चुनौतियों से जूझना होगा। लगातार खिसकती जमीन के बावजूद इन दोनों में दाएश अभी भी कुछ चीजों को पूरी तरह काबू में रखने में सक्षम साबित हो रहा है। इसका नेतृत्व अभी भी रणनीतिक फैसले लेने और इस इलाके में और इससे परे अन्य देशों में आतंकवादी अभिायानों की रणनीतियाँ बनाने और इससे जुड़े आदेश देने में सक्षम है। यही नहीं, इसकी संरचनात्मक और सैन्य अभिायानों के लिए जरूरी हथियार व रसद आपूर्ति का ढांचा भी पूरी तरह ध्वस्त नहीं हुआ है। इससे भी ज्यादा चिंता का विषय रासायनिक व जैविक हमलों की संभावना है। पिछले साल अगस्त में कुर्द फौजों पर इस तरह के एक कथित हमले55 के बाद यूरोपीय संसद और अमेरिकी खुफिया सेवाओं ने खास तौर से यूरोप में इस तरह के हमलों की संभावना के बारे में चेतावनी जतायी थी। पेरिस में 13 नवंबर को हुए हमलों के बाद इस पर फिर से गंभीरता से चर्चा शुरू हुई।66 भौतिकी, रसायन व कंप्यूटर के क्षेत्र में अच्छी शैक्षणिक पृष्ठभूमि और पेशेवर अनुभव वाले युवाओं का दाएश की ओर आकर्षित होना इस चिंता की खास वजह है। नतीजे में दाएश को अपने गढ़ सीरिया और इराक से खदेड़ने के अलावा उनकी सैन्य क्षमता को नेस्तनाबूद करना, जिसमें विस्फोटकों व बम बनाने से जुड़ा तकनीकी ज्ञान भी शामिल है, को नष्ट करना शीर्ष प्राथमिकता होनी चाहिए। इसके लिए उनके वित्तीय स्रोतों, जिससे उन्हें अपने सांगठनिक ढांचे को बनाये व चलाये रखने में मदद मिलती है, को खत्म करना होगा।
अपने इलाके में जमीन खिसकते जाने के मद्देनजर इस संगठन ने अपनी आतंकवादी गतिविधियों का निर्यात शुरू कर दिया है। हाल के कई आतंकवादी हमले या तो सीधे दाएश से जुड़े हैं या इससे प्रेरित होकर हुए हैं। 2014 के आखिर से मार्च 2016 के बीच फ्रांस, यमन, ट्यूनीशिया, तुर्की, बेल्जियम, कुवैत, सऊदी अरब, लेबनान, अफगानिस्तान, आस्ट्रेलिया, लीबिया, इंडोनेशिया और मिस्र जैसे देशों में कुछ बड़े आतंकवादी हमले हुए।7
ये जनसंहार, खासतौर से पेरिस और ब्रूसेल्स में हुए हमले, बेहद सावधानी के साथ योजना बना कर विदेशी ठिकानों पर हमले करने की दाएश की बढ़ती हुई क्षमता का जीता-जागता सबूत हैं। ये इन हमलों को दक्षता के साथ अंजाम ने की उसकी क्षमता को भी साबित करते हैं। आगे और हमलों की संभावना को भी नकारा नहीं जा सकता क्योंकि पहले से ही एक व्यापक इस्लामी नेटवर्क मौजूद है जिसकी हथियारों व वित्तीय मदद तक पहुँच है और जिसे युद्धक्षेत्र के अनुभव के साथ लौटे आतंकवादियों की भी मदद हासिल है। यह बात दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों के संदर्भ में भी लागू होती है जहाँ से बहुत से लड़ाके दाएश में शामिल होने के लिए पश्चिम एशिया गये और जहाँ बहुत से असंतुष्ट समूह और स्थानीय आतंकवादी संगठन हमले के लिए एक माकूल मौके की तलाश में बैठे हैं। इस तरह से ये उन देशों के आतंकवाद निरोधक उपायों के सामने कड़ी चुनौती पेश करेंगे जो दाएश के सबसे बड़े निशाने हैं। इससे भी आगे दाएश अब अपने विस्तार के लिए लीबिया को एक विकल्प की तरह देख रहा है हालाँकि इस देश में अभी वह ज्यादा बड़े भूभाग पर कब्जा नहीं कर पाया है। हालाँकि इसमें कई भौगोलिक और वित्तीय सीमाएँ हैं पर फिर भी लीबिया में अपने प्रभाव के विस्तार का इस्तेमाल यह संगठन यूरोपीय देशों में और आस-पास के देशों में आतंकवादी हमलों को अंजाम देने में करेगा। दाएश और इसके खिलाफ जंग के बेहद सांप्रदायिक चरित्र और इसमें शामिल बहुत से गुटों के अपने अपने हितों को देखते हुए इससे खाली कराये गये इलाके में प्रशासनिक व्यवस्था कायम करने की चुनौती भी काफी बड़ी होगी। यह देखना दुखद होगा कि दाएश अभी पूरी तरह खत्म भी नहीं हुआ है और विभिन्न गुटों में आपसी संघर्ष शुरू हो गये हैं।
आखिर में दाएश के कब्जे वाले इलाकों को मुक्त कराने भर से इस संगठन की कमर नहीं टूट जायेगी और दीर्घ काल में इसकी घृणा से ओत-प्रोत विचारधारा से लड़ना ज्यादा मददगार होगा। परंतु वास्तविकता यह है कि युवाओं को अतिवाद के चंगुल में फंसने और जिहाद के नाम पर उन्हें मानव बम बनकर खुद को उड़ा देने वाली अतिवादी विचारधारा के चंगुल में फँसने से बचाने के लिए अभी तक कोई प्रभावी वैकल्पिक पाठ या कार्यक्रम नहीं बन पाया है। मौजूदा समय में खास तौर से यूरोप में युवाओं के अतिवाद के चंगुल में फँसते जाने की प्रक्रिया एक उचित उदाहरण है। ज्यादा संभावना यही है कि अपने आतंकवादी अभियानों में यह संगठन दिनोंदिन और वैश्विक होता जायेगा। इन विकराल समस्याओं का सामना करना निकट भविष्य में एक बहुत बड़ी चुनौती होने जा रहा है। इन तमाम चीजों के बावजूद इराक और सीरिया में युद्धक्षेत्र में मिली पराजयों का दाएश पर असर पड़ना तय है पर वह अपने कब्जे वाले इलाकों को बचाने के लिए लड़ाई जारी रखेगा। फिलहाल समय की सबसे बड़ी जरूरत यह है कि इसे सैन्य और वैचारिक रूप से नेस्तनाबूद करने की लड़ाई में कतई शिथिलता नहीं बरती जाये। हालाँकि यह दोनों ही चुनौतियाँ बहुत कठिन हैं।
Endnotes
Links:
[1] https://www.vifindia.org/article/hindi/2016/april/25/hath-sa-niklata-ilakae-Daesh-ka-samnea-nayi-chunatti
[2] https://www.vifindia.org/author/alvite-singh-ningthoujam
[3] http://www.vifindia.org/article/2016/april/13/losing-territories-the-new-challenge-for-daesh
[4] http://www.gettyimages.in
[5] http://www.facebook.com/sharer.php?title=हाथ से निकलते इलाके, दाएश के सामने नयी चुनौती&desc=&images=https://www.vifindia.org/sites/default/files/-से-निकलते-इलाके,-दाएश-के-सामने-नयी-चुनौती.jpg&u=https://www.vifindia.org/article/hindi/2016/april/25/hath-sa-niklata-ilakae-Daesh-ka-samnea-nayi-chunatti
[6] http://twitter.com/share?text=हाथ से निकलते इलाके, दाएश के सामने नयी चुनौती&url=https://www.vifindia.org/article/hindi/2016/april/25/hath-sa-niklata-ilakae-Daesh-ka-samnea-nayi-chunatti&via=Azure Power
[7] whatsapp://send?text=https://www.vifindia.org/article/hindi/2016/april/25/hath-sa-niklata-ilakae-Daesh-ka-samnea-nayi-chunatti
[8] https://telegram.me/share/url?text=हाथ से निकलते इलाके, दाएश के सामने नयी चुनौती&url=https://www.vifindia.org/article/hindi/2016/april/25/hath-sa-niklata-ilakae-Daesh-ka-samnea-nayi-chunatti