22 मार्च 2016 की सुबह ब्रसेल्स शहर आतंकी हमलों से दहल गया। सुबह के करीब 7.50 बजे जेवेन्थम हवाईअड्डे पर कुछ-कुछ सेकेन्ड के अंतराल में दो धमाके हुए। इन धमाकों को आत्मघाती हमलावरों द्वारा अंजाम दिया गया। इन हमलों के घंटे भर बाद ही शहर के बीचों-बीच मेलबीक सबवे स्टेशन पर एक और धमाका हुआ। इन दोनों ही घटनाओं में 31 लोगों सहित 2 आत्मघाती हमलावर मारे गए और 330 लोग (सीएनएन रिपोर्ट) घायल हुए। ये धमाके सुबह में तब हुए जब लोगों की आवाजाही वाला समय था। इन धमाकों ने यूरोप के उस ठिकाने को हिला दिया जहां नाटो, यूरोपीय कमीशन और यूरोपीय यूनियन की संसद के मुख्यालय मौजूद हैं।
गत 18 मार्च को ब्रसेल्स के मोलनबीक इलाके से पेरिस हमलों के षड़यंत्रकारी और आईएसआईएस के आतंकी सलाह अब्देसलाम की गिरफ्तारी के बाद आतंकियों द्वारा यह जवाबी हमला किया गया। बेल्जियम और फ्रांस के चार महीने तक चले संयुक्त आतंकरोधी अभियान के बाद अब्देसलाम को ब्रसेल्स के मोलनबीक से गिरफ्तार किया गया था। इस घनी आबादी वाले इलाके में ज्यादातर सीरिया (चरिसाफिस,2016) से आए मुस्लिम शरणार्थी रहते हैं। इस इलाके को इस्लामी कट्टरपंथ का बड़ा केन्द्र माना जाता है और यह स्थान कट्टरपंथी लड़ाकों के लिए कुख्यात है। अपनी पहली प्रतिक्रिया में, बेल्जियम के प्रधानमंत्री चार्ल्स मीका ने स्वीकार किया, “हमें जिसका डर था वही हुआ” (बीबीसी यूरोप, 2016), यह इस बात की तरफ इशारा था कि पुलिस और सुरक्षा एजेन्सियों को किसी जवाबी प्रतिक्रिया की उम्मीद थी लेकिन वे इसे रोक नहीं सके। विशेषज्ञों की माने तो हवाईअड्डे पर हुए पहले दोनों धमाकों की क्षमता बहुत तीव्र थी। धमाके की जगह से कुछ कीलें भी बरामद की गईं जो इस बात की तरफ इशारा करती हैं कि इन विस्फोटकों को स्थानीय स्तर पर तैयार किया गया था। संघीय वकीलों ने इस बात की पुष्टि की कि हमला करने का यह तरीका बिल्कुल आईएस की तरह का है जिसका ब्लू प्रिंट पेरिस हमले में भी दिखाई दिया था। पेरिस हमले में बहुत से
हमलावरों ने विस्फोटक बेल्ट (डिहल,2016) पहनी हुई थी। उन्होंने कहा कि इस बात की पूरी संभावना है कि ये हमले सलाह अब्देसलाम की गिरफ्तारी के विरोध में किए गए हैं। गौर करने वाली बात यह है कि आईएस के पेरिस हमलों की अगुवाई करने वाला अब्देलहामिद अब्बाउद भी इसी इलाके का रहने वाला था।
अपराधी:
बेल्जियम के सुरक्षा अधिकारियों ने जल्द ही पहचान लिया कि आत्मघाती हमले में दो भाई खालिद अल-बकरावी (27) और इब्राहिम अल-बकरावी (30) शामिल थे। खालिद अल-बकरावी ने खुद को मेलबीक मैट्रो स्टेशन पर उड़ा लिया था जबकि इब्राहिम अल-बकरावी ने हवाई अड्डे पर आत्मघाती हमला किया था। तीसरे संदिग्ध का नाम नाजिम लाचरावी (25) बताया गया जिसने पेरिस हमले में इस्तेमाल विस्फोटक तैयार किया था। यह आतंकी अभी पकड़ से बाहर है। तीनों आतंकियों के बेल्जियम का नागरिक होने की पुष्टि हुई है। ये पहले आपराधिक गतिविधियों में शामिल रहे थे लेकिन इनके आतंकवादी गतिविधियों से जुड़ने के संकेत नहीं थे। इन घटनाओं के बाद शहर के संवेदनशील इलाकों में बडे पैमाने पर तलाशी अभियान चलाया गया।
ब्रसेल्स ही क्यों ?
हालांकि ब्रसेल्स को जवाबी हमले के लिए चुनने की तात्कालिक वजह पिछले सप्ताह हुई अब्देसलाम की गिरफ्तारी थी। विश्लेषक बताते हैं कि पश्चिमी हितों का प्रतिनिधित्व करने वाली एक महत्वपूर्ण यूरोपीय राजधानी होने, यूरोप के दूसरे हिस्सों से आसानी से जुड़े होने और यूरोपीय यूनियन सहित नाटो का मुख्यालय होने के कारण भी ब्रसेल्स आतंकियों के निशाने पर था। हाल के समय में पेरिस हमले की जांच के दौरान आंतकनिरोधी जांच दल के लिए यह ब्रसेल्स जांच का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया था। बेल्जियम और फ्रांस की संघीय जांच एजेन्सियां ब्रसेल्स के आस-पास आईएस की भर्ती प्रक्रिया और आईएस की गतिविधियों के संबंध में गहन छानबीन कर रही थीं। बेल्जियम पर आईएस की नजर बहुत पहले से थी क्योंकि यह उन प्रमुख देशों में से एक था जो इस्लामिक स्टेट के खिलाफ अमेरिका के नेतृत्व में बने सैन्य गठबंधन में शामिल हुआ था । बेल्जियम ने ईराक पर हवाई हमले करने के साथ ईराकी सेना को प्रशिक्षण और सलाह देने में भी अमेरिकी सेना की सहायता की थी। अपनी उदार अप्रवासन नीति के कारण यह बहुत से मुस्लिम अप्रवासियों का भी ठिकाना बन गया था।
ब्रसेल्स का मेलबीक इलाका उस समय चर्चा में आया जब फ्लेज्लिंग इस्लाम पार्टी के उम्मीदवारों लाउनसिंग अइट जेडिंग और रिडोउने एहरोच ने मुस्लिम बहुल मोलनबीक-सेंट-जीन और अंडरलेच्ट नगरपालिकाओं में भारी बहुमत से जीत हासिल की थी। चुनाव के बाद पत्रकार वार्ता में इन चुने हुए पार्षदों ने कहा था कि अपने चुनाव को वे बेल्जियम में मुस्लिम समुदाय के दावे के तौर पर देखते हैं और इन्होंने बेल्जियम में शरीया कानून लागू करने की शपथ ली। ब्रसेल्स के ज्यादातर मुसलमान मोरक्को (70 फीसदी) और तुर्की (20 फीसदी) मूल के हैं और शेष 10 फीसदी अल्बानिया, इजिप्ट, पाकिस्तान और उत्तरी अफ्रीका से ताल्लुक रखते हैं। उन्होंने अतिथि श्रमिकों के रुप में 1960 के दशक में बेल्जियम आना शुरु किया। हालांकि अतिथि श्रमिकों के कार्यक्रम को 1974 में बंद कर दिया गया, फिर भी बहुत से अप्रवासी परिवार-एकीकरण कानूनों के कारण वहां रुक गए और अपने परिवारों को ले आए। मोलनबीक इलाके में 25 फीसदी हिस्सा मुसलिम आबादी का है। इस कारण हाल के वर्षों में यहां काम करने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों में असुरक्षा की भावना पैदा हुई है। जिसके कारण कुछ कंपनियों ने इस इलाके से अपना कारोबार समेट लिया है। उदाहरण के लिए, जून 2011 में अमेरिका की विज्ञापन कंपनी बीबीडीओ (BBDO) ने अपने कर्मचारियों पर स्थानीय युवाओं द्वारा हमले की 150 वारदातों का हवाला देते हुए मोलनबीक इलाके को छोड़ दिया था। (केर्न, 2012)
फ्रांस के आतंरिक खुफिया विभाग (नोस्सिटर,2016) के पूर्व प्रमुख बर्नार्ड स्कवारसिनि और सुरक्षा से जुड़े दूसरे लोग यह महसूस करते हैं कि बेल्जियम के 1.12 करोड़ लोग सबसे धनी असफल राज्य होने का उपहास झेल रहे हैं। गहराई तक पैठ बना चुके आंतकी संगठनों, फ्रेंच, जर्मन और डच भाषा बोलने वालों के बीच बटी कमजोर सरकार, बुरी तरह से बीमार और खत्म हो चुकी खुफिया सेवा के चिंताजनक स्थिति ने इस्लामिक वातावरण को बढ़ाने की दिशा में अनुकूल परिस्थितियां प्रदान की हैं। स्कवारसिनि के विचारों का साथ देते हुए, कुछ सुरक्षा और खुफिया विशेषज्ञ ब्रसेल्स धमाके को सबूत के तौर पर रखते हुए यह मानते हैं कि आपातकाल की स्थिति में भी यूरोप का खुला समुदाय कभी खतरों से मुक्त नहीं होगा। जोखिम बहुत तेजी से बढ़ रहा है। इसे सूचना को साझा करने में खुफिया एजेन्सियों की विफलता और बेल्जियम की खुफिया सेवा की कमजोरी के तौर पर भी देखा जा रहा है, जिसमें उभरते गिरोहों और षडयंत्र के संकेतों को पहचानने की क्षमता नहीं थी। गत 22 मार्च को ब्रसेल्स में हुए धमाके एक खतरनाक ढंग से विकसित हो रही एक प्रवृति को दर्शाते हैं। इससे पता चलता है कि अंतररार्ष्ट्रीय समुदाय ने आतंकियों की क्षमताओं को कम आंकने की भूल की है। आज ये आतंकी अपनी इच्छा से किसी भी समय किसी भी जगह पर हमला कर सकते हैं।
दुनिया भर के सुरक्षा विशेषज्ञ इस बात पर एकमत हैं कि इलेक्ट्रोनिक और तकनीकी खुफिया साधनों पर ज्यादा निर्भरता से इस तरह के उभरते आतंकवाद के खतरों से प्रभावी तरीके से नहीं निपटा जा सकता। वे आतंकवाद के मुद्दों से जुड़े खुफिया तंत्र के मानवीय खुफिया स्रोत के साथ समन्वय पर ज्यादा जोर देते हैं। जिससे कि इनके तंत्र में गहराई तक पैठ की जा सके।
अंतर्राष्ट्रीय निंदा:
अंतरराष्ट्रीय तौर पर ब्रसेल्स हमलों की सभी देशों के प्रमुखों ने निंदा की एवं दुनिया भर की सरकारों ने बेल्जियम सरकार के साथ एकजुटता दिखाई। अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने हवाना में क्यूबा के लोगों को संबोधित करते हुए “निर्दोष लोगों पर किए इस क्रूर हमले की निंदा की”। (शैनन, 2016). ब्रिट्रेन के प्रधानमंत्री ने कहा, “ यूरोप के देशों को आतंकवाद के खिलाफ एक साथ खड़े होने की जरुरत है।” ब्रसेल्स में हुए हमलों के बाद ब्रिटेन की पुलिस द्वारा संवेदनशील इलाकों में गश्त बढ़ा दी गयी। ब्रिटिश सरकार की कोबरा समिति के साथ बैठक के बाद प्रधानमंत्री कैमरन ने कहा, “हम विभिन्न यूरोपीय देशों में आतंकवाद के वास्तविक खतरे का सामना कर रहे हैं और हमारे पास जो कुछ है उससे हमें उसका सामना करना होगा”। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री मैल्कम टर्नबुल ने आतंकवादी हमलों के बाद ट्वीट करके बेल्जियम के लोगों के साथ एकजुटता दिखाई और कहा, “ब्रसेल्स में हुए हमलों से गहरी चिंता हुई। ऑस्ट्रलिया के विचार, प्रार्थनाएं और एकजुटता बेल्जियम के लोगों के साथ है।”(डोड एंड अस्थाना, 2016)। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने कहा, “चीन ब्रसेल्स में हमलों की कड़ी निंदा करता है और हर तरह के आतंकी हमलों का कड़ाई से विरोध करते हुए पीड़ित परिवारों के साथ गहरी संवेदना व्यक्त करता है। चीन के लोग बेल्जियम और यूरोप के लोगों के साथ खड़े हैं।” जर्मन चांसलर एंगला मर्केल ने भी हमलों की कड़ाई से निंदा की और “हमलावरों को यूरोप के मूल्यों का शत्रु बताया” एवं जर्मन सुरक्षा एजेन्सियों की तरफ से बेल्जियम की सुरक्षा सेवाओं को ब्रसेल्स के आतंकी हमलावरों की खोज, पहचान और सजा देने में पूरी सहायता का देने का वादा किया ( नस्र, 2016)।
भारत की प्रतिक्रिया / चिंताएं:
भारत की तात्कालिक चिंता 30 मार्च को 13वें भारत-यूरोपीय यूनियन की बैठक के लिए होने वाली प्रधानमंत्री मोदी की ब्रसेल्स यात्रा को लेकर थी। ब्रसेल्स से प्रधानमंत्री मोदी 31 मार्च को परमाणु सुरक्षा बैठक में हिस्सा लेने के लिए अमेरिका जाएंगें। नई दिल्ली में भारत के विदेश मंत्रालय कहा कि अभी तक प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में कोई परिवर्तन नहीं है(स्वरुप, 2016)। बेल्जियम की सरकार ने भी बैठक रद्द नहीं की । इस विषय पर कोई अलग प्रतिक्रिया आतंकियों के हौसले को ही मजबूत करेगी। हालांकि, भारत की खुफिया और सुरक्षा एजेन्सियों को पुख्ता सुरक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाए जाने की उम्मीद होगी। ब्रसेल्स में भारत के राजदूत ने कहा कि स्थानीय अधिकारियों के द्वारा इस बात का आश्वासन दिया गया था।
भारत में तात्कालिक कदम के तौर पर हवाईअड्डों और संवेदनशील इलाकों पर विशेष ध्यान रखने के साथ सुरक्षा चेतावनी जारी की गई। इस बात पर ध्यान दिया गया कि घुसने से पहले किसी तरह की स्कैनिंग और सुरक्षा जांच के अभाव के कारण यह घटना हुई क्योंकि शायद अधिकारियों ने फ्रांस, ब्रिट्रेन और स्पेन जैसे देशों से आ रही आतंकी हमलों की बहुत सारी चेतावनियों पर ध्यान नहीं दिया था। विशेषकर पेरिस हमले और गोलीबारी के बाद जांच से यह पता चला कि बहुत से आंतकी मॉड्यूल के तार बेल्जियम से जुड़े थे। इन सब बातों के सामने आने के बाद अधिकारियों को हवाईअड्डे पर घुसने से पहले ही सुरक्षा जांच करनी चाहिए थी। भारतीय सुरक्षा विशेषज्ञों ने ध्यान दिलाया कि दशकों पहले भारत में भी यही स्थिति थी। लेकिन तब से स्थिति में बहुत बदलाव आया चुका है। सिविल एवियशन सिक्योरिटी के महानिदेशक और केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल हवाई अड्डे की सुरक्षा को खतरा पहुंचाने वाली किसी प्रक्रिया को अनुमति नहीं देते हैं।
भारत के लिए देश के कुछ हिस्सों में दाएश या आईएसआईएस समर्थकों की दिखती उपस्थिति अधिक चिंताजनक है। इस आतंकी संगठन के अत्याधिक कट्टरपंथी समर्थकों पर नजर रखने और उनके खिलाफ मजबूती से कदम उठाने की जरुरत है। भारत में इस संगठन से जुडे ज्यादा लोग नहीं पकड़े गए हैं लेकिन सिर्फ इस बात से भारतीय सुरक्षा और खुफिया समुदाय राहत महसूस नहीं कर सकती। चरम कट्टरवाद धीरे-धीरे इलाके में फैल रहा है जिसमें पाकिस्तान और बांग्लादेश भी शामिल हैं। हालांकि दोनों ही देशों के अधिकारी इससे इंकार करते हैं। जैसा की यूरोपीय देशों के संदर्भ में पहले भी इस बात का जिक्र किया गया है, वही उप-महाद्वीप के संदर्भ में भी यह महत्वपूर्ण है कि भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश की सुरक्षा और खुफिया एजेन्सियां साझा तौर से खुफिया सूचनाओं को इकट्ठा करने और समय से उसको आपस में बांटने की जरुरत को समझ कर एक व्यवस्था विकसित करें।
भारत के संदर्भ में, एक ओर मुद्दा हमारी संघीय व्यवस्था के कारण आने वाली कानूनी और संवैधानिक बाधाओं का है जिन पर ध्यान दिया जाना चाहिए। संविधान के तहत कानून,व्यवस्था और स्थानीय पुलिस राज्य का विषय है । इस कारण तकनीकी रुप से इस तरह की स्थिति बनती है कि केन्द्रीय सरकार खुफिया सूचना इकट्ठा करती है लेकिन उस पर अमल करने के लिए उसे राज्य के अधिकारियों के साथ साझा करना पड़ता है। दुख की बात है कि कई बार राज्य के अधिकारी इस सूचना पर उतना ध्यान नहीं देते जितना कि दिए जाने की जरुरत है। हालांकि हाल के समय में कुछ सुधार दिखाई दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि राज्य के खुफिया विभागों को आंतकवाद को अहम मुद्दा मान कर इस विषय पर बहुत ध्यान देना चाहिए। इन चिंताओं के संबंध में खुफिया विभाग समय-समय पर राज्य पुलिस के महानिदेशकों और उनके खुफिया विभाग के प्रमुखों को अवगत कराता है। इन मुद्दों को रक्षा मंत्री मनोहर पार्रीकर द्वारा अपनी हाल की बरेली एयरबेस यात्रा के दौरान उठाया गया था, जहां एयरबेस की सुरक्षा को लेकर उनके सामने कुछ बातें रखी गई थीं(परिक्कर, 2016)। पिछले वर्ष हुआ पेरिस का हमला हो, ब्रसेल्स धमाका हो या हमारी भारत में हुइ पठानकोट की घटना, ये सभी सही समय रहते आतंकवाद से निपटने के लिए निर्णायक कार्रवाई करने की जरुरत की चिंता की तरफ इशारा करते हैं।
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[2] https://www.vifindia.org/author/shri-c-d-sahay
[3] https://www.vifindia.org/author/ramanand-garge
[4] http://www.vifindia.org/article/2016/march/28/brussels-terror-attack-implications-for-india-and-the-region
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